
दुल्हन
अलसाये नयनों में निंदिया, भावों के झुरमुट मचलाए
घूंघट से मुख को जब खोला, आंखों का अंजन इतराए
फूल पर जैसे शबनम चमके, दुल्हन के माथे पर बिंदिया।
मुस्काए माथे पर बिंदिया।
मुजरा
तबले पर ता थइ ता थैया, पांव में घुंघरू यौवन छलके
मुजरे में नोटों की वर्षा, बार बार ही आंचल ढलके
माथे से पांव पर गिर कर, उलझ गई घुंघरू में बिंदिया
सिसक उठी छोटी सी बिंदिया
सीमा के रक्षक
दूर दूर तक हिम फैली थी, क्षोभ नहीं था किंचित मन में
गर्व से ‘जय भारत’ गुञ्जारा, गोली पार लगी थी तन में
सूनी हो गई मांग प्रिया की, बिछड़ गई माथे से बिंदिया।
छोड़ गई कुछ यादें बिंदिया।
19 टिप्पणियाँ
तीनों कवितायें अपने आप में पूर्ण और अलग अलग भावों का सुन्दर गुलदस्ता बन कर प्रस्तुत हुई हैं। महावीर जी को बधाई।
जवाब देंहटाएंबिन्दिया मन भा गयी। हर दृष्टिकोण अनूठे तरीके से प्रस्तुत हुआ है। आखिती कविता रुलाने में सक्षम है।
जवाब देंहटाएंसूनी हो गई मांग प्रिया की, बिछड़ गई माथे से बिंदिया।
जवाब देंहटाएंछोड़ गई कुछ यादें बिंदिया।
Aaaaah....
Alok Kataria
फूल पर जैसे शबनम चमके, दुल्हन के माथे पर बिंदिया।
जवाब देंहटाएंमुस्काए माथे पर बिंदिया।
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माथे से पांव पर गिर कर, उलझ गई घुंघरू में बिंदिया
सिसक उठी छोटी सी बिंदिया
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सूनी हो गई मांग प्रिया की, बिछड़ गई माथे से बिंदिया।
छोड़ गई कुछ यादें बिंदिया।
अध्भुत रचनायें हैं। मन को छूती हैं पंक्तियाँ।
एक ही विषय पर प्रस्तुत किये गये तीनों आयाम विविध है साथ ही साथ भावनाओं का तिरंगा प्रस्तुत कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंदूर दूर तक हिम फैली थी, क्षोभ नहीं था किंचित मन में
गर्व से ‘जय भारत’ गुञ्जारा, गोली पार लगी थी तन में
सूनी हो गई मांग प्रिया की, बिछड़ गई माथे से बिंदिया।
छोड़ गई कुछ यादें बिंदिया।
बहुत खूब। बधाई।
बहुत अच्छी कवितायें हैं, बधाई।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंteen alag alag projections of life with a single similarity
जवाब देंहटाएंwah ji wah ..
badhai
sochta hoon main bhi kuch aisa hi proyog karun ..
good
regards
vijay
Kavivar Shri Mahavir kee kavita
जवाब देंहटाएं"Bindia"ke teen rang bahut achchhe
lage hain.
आदरणीय महावीर जी,
जवाब देंहटाएंएक ही विषय पर लिखी गयी इन कविताओं में रंगों और संवेदनाओं की इतनी विविधता किसी अनुभवी कलम से ही संभव थी। रंग और रस की विविधता भरी इन क्षणिकाओं से बेहद अभिभूत हुआ ।
***राजीव रंजन प्रसाद
तीनों रचनाएँ अलग-अलग भावों को प्रगट करने में पूर्णत्या सफल रही हैँ....बधाई
जवाब देंहटाएंमाथे से पांव पर गिर कर, उलझ गई घुंघरू में बिंदिया
जवाब देंहटाएंसिसक उठी छोटी सी बिंदिया
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सूनी हो गई मांग प्रिया की, बिछड़ गई माथे से बिंदिया।
छोड़ गई कुछ यादें बिंदिया।
एक विषय....विविध आयाम...
बहुत सुन्दर....
महावीर जी,
बधाई।
pahale bhi padhi thi ... bahut sundar bhav
जवाब देंहटाएं३ - क्षणिकाएँ और ३ द्रश्य , अपने आप मेँ पूर्ण यही तो सिध्ध हस्त कवि की लेखनी का
जवाब देंहटाएंकमाल है जो मनोभावोँ को जोडने मेँ सक्षम है !
आदरणीय महावीरजी को पढना एक सुखद अनुभव है
- लावण्या
परम आदरणीय महावीर जी..ऐसी विलक्षण रचना पढ़ कर क्या कहूँ? शब्द हीन हूँ...मेरी क्षमता नहीं की शब्दों में आनंद को बयां करूँ...इश्वर की कृपा है जो आप जैसे विलक्षण कवि को हमें पढने का मौका दे रहा है...नमन आप को मेरा बार बार नमन...
जवाब देंहटाएंनीरज
वाह री बिन्दिया, ओह री बिन्दिया.. आह री बिन्दिया
जवाब देंहटाएंजनाबे महावीर साहिब का नया अंदाज़
जवाब देंहटाएंकाबिले तारीफ है बेहद पसंद आया
हम आपकी ग़ज़ल के तो सचमुच कायल हैं
लेकिन बिंदिया में जो बांकपन और हुस्ने तकरार
आपने पैदा किया है ला जवाब है
में अपनी ग़ज़ल का एक शेयर आपकी नज़र करता हूँ
तमाम शहर में वीरानिया हैं मातम है
के मुर्दा माथों पर बिंदिया चमकती है
चाँद शुक्ला हदियाबादी
डेनमार्क
बिंदिया बहुत ही मन भावन ।
जवाब देंहटाएंहर रंग मे शोभित और अपेक्षित र्रोप से प्रभावी।
प्रवीण पंडित
बिंदिया बहुत ही मन भावन ।
जवाब देंहटाएंहर रंग मे शोभित और अपेक्षित र्रोप से प्रभावी।
प्रवीण पंडित
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.