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छोटी सी बिन्दिया और क्षणिकायें [कविता] - महावीर शर्मा



दुल्हन

अलसाये नयनों में निंदिया, भावों के झुरमुट मचलाए
घूंघट से मुख को जब खोला, आंखों का अंजन इतराए
फूल पर जैसे शबनम चमके, दुल्हन के माथे पर बिंदिया।
मुस्काए माथे पर बिंदिया।




मुजरा


तबले पर ता थइ ता थैया, पांव में घुंघरू यौवन छलके
मुजरे में नोटों की वर्षा, बार बार ही आंचल ढलके
माथे से पांव पर गिर कर, उलझ गई घुंघरू में बिंदिया
सिसक उठी छोटी सी बिंदिया



सीमा के रक्षक

दूर दूर तक हिम फैली थी, क्षोभ नहीं था किंचित मन में
गर्व से ‘जय भारत’ गुञ्जारा, गोली पार लगी थी तन में
सूनी हो गई मांग प्रिया की, बिछड़ गई माथे से बिंदिया।
छोड़ गई कुछ यादें बिंदिया।

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19 टिप्पणियाँ

  1. तीनों कवितायें अपने आप में पूर्ण और अलग अलग भावों का सुन्दर गुलदस्ता बन कर प्रस्तुत हुई हैं। महावीर जी को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  2. बिन्दिया मन भा गयी। हर दृष्टिकोण अनूठे तरीके से प्रस्तुत हुआ है। आखिती कविता रुलाने में सक्षम है।

    जवाब देंहटाएं
  3. सूनी हो गई मांग प्रिया की, बिछड़ गई माथे से बिंदिया।
    छोड़ गई कुछ यादें बिंदिया।

    Aaaaah....

    Alok Kataria

    जवाब देंहटाएं
  4. फूल पर जैसे शबनम चमके, दुल्हन के माथे पर बिंदिया।
    मुस्काए माथे पर बिंदिया।
    ---
    माथे से पांव पर गिर कर, उलझ गई घुंघरू में बिंदिया
    सिसक उठी छोटी सी बिंदिया
    ---
    सूनी हो गई मांग प्रिया की, बिछड़ गई माथे से बिंदिया।
    छोड़ गई कुछ यादें बिंदिया।

    अध्भुत रचनायें हैं। मन को छूती हैं पंक्तियाँ।

    जवाब देंहटाएं
  5. एक ही विषय पर प्रस्तुत किये गये तीनों आयाम विविध है साथ ही साथ भावनाओं का तिरंगा प्रस्तुत कर रहे हैं।

    दूर दूर तक हिम फैली थी, क्षोभ नहीं था किंचित मन में
    गर्व से ‘जय भारत’ गुञ्जारा, गोली पार लगी थी तन में
    सूनी हो गई मांग प्रिया की, बिछड़ गई माथे से बिंदिया।
    छोड़ गई कुछ यादें बिंदिया।

    बहुत खूब। बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत अच्छी कवितायें हैं, बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  7. teen alag alag projections of life with a single similarity


    wah ji wah ..

    badhai

    sochta hoon main bhi kuch aisa hi proyog karun ..

    good

    regards

    vijay

    जवाब देंहटाएं
  8. Kavivar Shri Mahavir kee kavita
    "Bindia"ke teen rang bahut achchhe
    lage hain.

    जवाब देंहटाएं
  9. आदरणीय महावीर जी,

    एक ही विषय पर लिखी गयी इन कविताओं में रंगों और संवेदनाओं की इतनी विविधता किसी अनुभवी कलम से ही संभव थी। रंग और रस की विविधता भरी इन क्षणिकाओं से बेहद अभिभूत हुआ ।

    ***राजीव रंजन प्रसाद

    जवाब देंहटाएं
  10. तीनों रचनाएँ अलग-अलग भावों को प्रगट करने में पूर्णत्या सफल रही हैँ....बधाई

    जवाब देंहटाएं
  11. माथे से पांव पर गिर कर, उलझ गई घुंघरू में बिंदिया
    सिसक उठी छोटी सी बिंदिया
    ---
    सूनी हो गई मांग प्रिया की, बिछड़ गई माथे से बिंदिया।
    छोड़ गई कुछ यादें बिंदिया।



    एक विषय....विविध आयाम...

    बहुत सुन्दर....

    महावीर जी,
    बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  12. ३ - क्षणिकाएँ और ३ द्रश्य , अपने आप मेँ पूर्ण यही तो सिध्ध हस्त कवि की लेखनी का
    कमाल है जो मनोभावोँ को जोडने मेँ सक्षम है !
    आदरणीय महावीरजी को पढना एक सुखद अनुभव है
    - लावण्या

    जवाब देंहटाएं
  13. परम आदरणीय महावीर जी..ऐसी विलक्षण रचना पढ़ कर क्या कहूँ? शब्द हीन हूँ...मेरी क्षमता नहीं की शब्दों में आनंद को बयां करूँ...इश्वर की कृपा है जो आप जैसे विलक्षण कवि को हमें पढने का मौका दे रहा है...नमन आप को मेरा बार बार नमन...
    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  14. वाह री बिन्दिया, ओह री बिन्दिया.. आह री बिन्दिया

    जवाब देंहटाएं
  15. जनाबे महावीर साहिब का नया अंदाज़
    काबिले तारीफ है बेहद पसंद आया
    हम आपकी ग़ज़ल के तो सचमुच कायल हैं
    लेकिन बिंदिया में जो बांकपन और हुस्ने तकरार
    आपने पैदा किया है ला जवाब है
    में अपनी ग़ज़ल का एक शेयर आपकी नज़र करता हूँ

    तमाम शहर में वीरानिया हैं मातम है
    के मुर्दा माथों पर बिंदिया चमकती है

    चाँद शुक्ला हदियाबादी
    डेनमार्क

    जवाब देंहटाएं
  16. बिंदिया बहुत ही मन भावन ।
    हर रंग मे शोभित और अपेक्षित र्रोप से प्रभावी।

    प्रवीण पंडित

    जवाब देंहटाएं
  17. बिंदिया बहुत ही मन भावन ।
    हर रंग मे शोभित और अपेक्षित र्रोप से प्रभावी।

    प्रवीण पंडित

    जवाब देंहटाएं

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