हुक्म चलता है तेरा तेरी ही सरदारी है
तू है पैसा, तू ख़ुदा, तेरी वफ़ादारी है।
नंगापन भी तो यहां फ़न की तरह बिकता है
अब तो जिस्मों की नुमाईश ही अदाकारी है।
कट गया दिन तो मेरा भीड़ में जैसे तैसे
लेकिन अब चांद बिना रात बहुत भारी है।
गौर से देख जरा बीज से अंकुर फ़ूटा
ये खुदा है ये उसी की ही खलक सारी है।
छोड़ दो जिद न करो हार चुके हो अब तुम
अब कोई दांव न खेलो तो समझदारी है।
25 टिप्पणियाँ
सुन्दर ख्यालात समेटे गजल..
जवाब देंहटाएंनंगापन भी तो यहां फ़न की तरह बिकता है
अब तो जिस्मों की नुमाईश ही अदाकारी है।
आज की सच्चाई यही है.
नंगापन भी तो यहां फ़न की तरह बिकता है
जवाब देंहटाएंअब तो जिस्मों की नुमाईश ही अदाकारी है।
गौर से देख जरा बीज से अंकुर फ़ूटा
ये खुदा है ये उसी की ही खलक सारी है।
बहुत खूब।
बेहतरीन गज़ल, बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंनंगापन भी तो यहां फ़न की तरह बिकता है
अब तो जिस्मों की नुमाईश ही अदाकारी है।
छोड़ दो जिद न करो हार चुके हो अब तुम
जवाब देंहटाएंअब कोई दांव न खेलो तो समझदारी है।
हर शेर उम्दा है, बहुत बढिया। लिखते रहें।
Very nice, keep writing.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
बहुत अच्छी गज़ल है सतपाल जी, हर शेर अच्छा बन पडा है। बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत बहुत सुंदर ग़ज़ल......हरेक शेर लाजवाब........
जवाब देंहटाएंएक दम कड़क ग़ज़ल कही सतपाल जी | दो चार शेर और हो जाते तो और मज़ा होता | :-)
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल है सतपाल साहेब।
जवाब देंहटाएंहुक्म चलता है तेरा तेरी ही सरदारी है
तू है पैसा, तू ख़ुदा, तेरी वफ़ादारी है।
नंगापन भी तो यहां फ़न की तरह बिकता है
अब तो जिस्मों की नुमाईश ही अदाकारी है।
वाह! क्या बात है!
गौर से देख जरा बीज से अंकुर फ़ूटा
जवाब देंहटाएंये खुदा है ये उसी की ही खलक सारी है।
बहुत खूब।
छोड़ दो जिद न करो हार चुके हो अब तुम
अब कोई दांव न खेलो तो समझदारी है।
वाह......
bahut shukria sahitya shilpi team ka mujhe dubara mauka dene ka aur sab ka shukrgujar hooN ki sab ne saraha.
जवाब देंहटाएंaapka
khyaal
गौर से देख जरा बीज से अंकुर फ़ूटा
जवाब देंहटाएंये खुदा है ये उसी की ही खलक सारी है।
छोड़ दो जिद न करो हार चुके हो अब तुम
अब कोई दांव न खेलो तो समझदारी है।
बहुत अच्छा लिखा है.
Bahut hee achchhee gazal hai
जवाब देंहटाएंSatpal jee.Sabhee ashaar mein
aapne jadoo bikhera hai.dheron
badhaaeean.
सतपाल जी
जवाब देंहटाएंजवाब नहीं आपकी गज़लों का, पहली और महत्वपूर्ण बात कि आप शिल्प को पकड कर चलते हैं। लेकिन असल कविता तो कथ्य है जिसपर आपकी गहरी पकड भी है। हर एक शेर बेहतरीन। प्राण साहब जैसे विद्वतजनों की प्रशंसा आपको मिल चुकी है अत: मेरे कहने को कहाँ रह जाता है।
***राजीव रंजन प्रसाद
बेहतरीन गज़ल। अंतर्वस्तु यथार्थ के अत्यंत सन्निकट-
जवाब देंहटाएंनंगापन भी तो यहां फ़न की तरह बिकता है
अब तो जिस्मों की नुमाईश ही अदाकारी है।
-सुशील कुमार।
सतपाल जी आप की ग़ज़ल पढ़ कर आनंद आ गया...बहुत असर दार शेर हैं आपके...जिस ग़ज़ल की प्राण शर्माजी और महावीर जी ने प्रशंशा कर दी हो वो ग़ज़ल तो कमाल की होगी ही...
जवाब देंहटाएंलिखते रहें और हमें ऐसे ही खुश करते रहें...आमीन.
नीरज
सतपाल जी, जब इतने सारे लोग तारीफ़ कर चुके हैं तो मेरे कहने को कुछ रह ही कहाँ जाता है. बधाई स्वीकारें!
जवाब देंहटाएंbehtar gazal
जवाब देंहटाएंbadhai khayaal saab
बढिया गज़ल है । कुछ शेर बेहतरीन हैं जैसे कि
जवाब देंहटाएंनंगापन भी तो यहां फ़न की तरह बिकता है
अब तो जिस्मों की नुमाईश ही अदाकारी है।
बधाई स्वीकारें।
बहुत ही अच्छी गज़ल बधाई
जवाब देंहटाएंहर शेर अपने आप मे बेमिसाल ।
जवाब देंहटाएंभई वाह ! बेहतरीन गज़ल ।
प्रवीण पंडित
ख्याल ने खूबसूरत ग़ज़ल कही है
जवाब देंहटाएंग़ज़ल में लहज़ा है नाज़ुक ख़याली है
नया अंदाज़ है और फ़िक्र भी
अल्लाह करे ज़ोरे कलम और ज़ियादा ----
चाँद शुक्ला हदियाबादी
डेनमार्क
शब्द खो गये पास थे जो टिप्पणियों में
जवाब देंहटाएंचुरा कर लिख दूँ तो भी इमानदारी है...
सचमुच लगता है शब्द सारे ऊपर की टिप्पणीयों ने चुरा लिये हैं मगर लिखना ही होगा कि,..बहुत सुन्दर गज़ल के लिये आपको बधाई...
एक बार फ़िर सबका तहे-दिल से शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंआपका ख्याल.
I am glad to read the blog.
जवाब देंहटाएंThank you...
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