
शरद ऋतु के स्वच्छ गगन पर,
चाँद उग़ आया पूनम का !
सरस युगल सारस - सारसी का,
तैर रहा, झिलमिल जल पर !
खेत खलिहानोँ मेँ पकी फसल-
मुस्कान रँगे मुख, कृषक - वधू के
व्रत त्योहार - रास युमना तट
रुन झुन , रुन झुन, झाँझर के स्वर!
धरती डोली, हौले हौले, बहे पवन
-मुस्काता, बन, शशि, चँचल, हिरने पर !
फैलाती चाँदी सी- शरदिया चाँदनी
मँदिरोँ मेँ बज रहे - शँख ढफ
पखावज, मँजीरे धुन,कीर्तन के सँग!
आई शरद ऋतु मन भावन,
व्रत त्याहारोँ से घर आँगन पावन,
नवरात्र रास, माँ सिँहधारिणी सौम्य सुहावन!
करवा चौथ, दशहरा, आए पाप नशावन !
खनन्` - खनन्` मँजीर बज रहे
धमक -धमक रास की रार मची
-चरर्` चरर्` तैली का बैल चला
-सरर्` सरर्` चुनरी लिपटी रमणी पर -
शक्ति आह्वान करो! माँ भवानी सुमरो !
अम्बिका, वरदायिनी, कल्याणी, कालिका, पूजो!
घर - घर मेँ ज्योत, प्रखर कर लो !
शरद शारदा - वीणापाणि माँ सरस्वती भजो !
हरो तिमिर आवरण माँ, कृपा कर दो !
बिखरा दो, उज्जवल प्रकाश अवनी पर माँ !
शारदीय पूर्ण चन्द्र ज्योत्सना फैला दो माँ !
स्वागत, मँगल आगमन शरद - चँद्रिका माँ !
कृपा सिँधु, कमलिनी, सुमधुर स्मित बिखरा दो माँ !
जग तारिणी, सिँह आसनी ममता का कर, धर दो माँ !
जन - जन - के दु:ख हर, शीतल कर दो माँ!
कात्यायनी नमोस्तुते ! हे अम्बिके, दयामयी नमोस्तुते!
*****
24 टिप्पणियाँ
मनभावन!
जवाब देंहटाएं(उग ना कि उग़!)
Manbhaatee kavita ke liye
जवाब देंहटाएंLavanya jee ko badhaaee.
बिखरा दो, उज्जवल प्रकाश अवनी पर माँ !
जवाब देंहटाएंशारदीय पूर्ण चन्द्र ज्योत्सना फैला दो माँ !
स्वागत, मँगल आगमन शरद - चँद्रिका माँ !
कृपा सिँधु, कमलिनी, सुमधुर स्मित बिखरा दो माँ !
जग तारिणी, सिँह आसनी ममता का कर, धर दो माँ !
जन - जन - के दु:ख हर, शीतल कर दो माँ!
कात्यायनी नमोस्तुते ! हे अम्बिके, दयामयी नमोस्तुते
अति सुन्दर। वीर रस से परिपूर्ण कविता ।
bahut khubsurat
जवाब देंहटाएंवाहवा.. बहुत सुंदर कविता के लिये बधाई स्वीकारें.
जवाब देंहटाएंअद्भुत शब्द...लाजवाब भाव....बेमिसाल रचना...वाह. लावण्या दी आप का जवाब नहीं...
जवाब देंहटाएंनीरज
काव्य-कला पक्ष और भाव पक्ष दोनों ही के स्तर इस कविता में लावण्य जी की अन्य कविताओं की भांति अपना महत्व बनाए हुए हैं। बहुत सुंदर!
जवाब देंहटाएंलावण्या जी को सुन्दर रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंबिखरा दो, उज्जवल प्रकाश अवनी पर माँ !
जवाब देंहटाएंशारदीय पूर्ण चन्द्र ज्योत्सना फैला दो माँ !
स्वागत, मँगल आगमन शरद - चँद्रिका माँ !
कृपा सिँधु, कमलिनी, सुमधुर स्मित बिखरा दो माँ !
जग तारिणी, सिँह आसनी ममता का कर, धर दो माँ !
जन - जन - के दु:ख हर, शीतल कर दो माँ!
कात्यायनी नमोस्तुते ! हे अम्बिके, दयामयी नमोस्तुते!
कितना सुन्दर शब्द संयोजन, बहुत प्रभावी रचना है।
जब भी यह भाषा और एसी उत्कृष्ट रचना दृष्टिगोचर होती है मन कह उठता है अभी साहित्य जीवित है।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना!
जवाब देंहटाएंmere paas shabd hi nahi hai ,is kavita ki taarif karne ke liye , sirf itna kahunga ki amulya. shandaar prastuti .
जवाब देंहटाएंpoore mausam , khil uthen hai , jag jaag utha hai , in fact sansaar hai hi itna khoobsurat ..
dil ko bada sakun mila .....
bahut bahut badhai lavanya ji ..
aur likhiye ..
may god bless you.
regards
vijay
बहुत अच्छी कविता, संग्रह रखने योग्य।
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्द भावों का संगम.. कर्ण प्रिय प्रसार
जवाब देंहटाएंPoem has height and depth.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
भाषा और भाव की उत्कृष्टता है आपकी रचना में।
जवाब देंहटाएंसाहित्य शिल्पी एसी ही उत्कृष्ट रचनाओं के प्रकाशन के कारण चर्चा में है। लावण्या जी की रचना अनुपम है।
जवाब देंहटाएंकविता की उत्कृष्टरा निर्विवाद है। मैं इसमें प्रयुक्त ध्वनि-स्वरों से नितांत प्रभावित हुआ। रुन झुन , रुन झुन, खनन्` - खनन्`, धमक -धमक,सरर्` सरर्`...इन शब्दों नें कविता को प्रवाह प्रदान किया है।
जवाब देंहटाएं***राजीव रंजन प्रसाद
बहुत सुंदर....
जवाब देंहटाएंलावण्य जी
बधाई स्वीकारें.
आप सभी के स्नेह
जवाब देंहटाएंव प्रोत्साहन से
अभिभूत हूँ
लिखती रहूँगी ..
माँ शारदा की कृपा
आप सब
पर बनी रहे
इस सद्` आशा सहित
विनीत,
- लावण्या
बिखरा दो, उज्जवल प्रकाश अवनी पर माँ !
जवाब देंहटाएंशारदीय पूर्ण चन्द्र ज्योत्सना फैला दो माँ !
स्वागत, मँगल आगमन शरद - चँद्रिका माँ !
कृपा सिँधु, कमलिनी, सुमधुर स्मित बिखरा दो माँ !
सुंदर कविता !
बहुत-बहुत बधाई
बधाई स्वीकारें.
जवाब देंहटाएंआप सभी का धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 17 अक्टूबर 2015 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.