
बेटे को तीन कमरों का फ्लैट आवंटित हुआ था। मजदूरों के संग मजदूर बने किशन बाबू खुशी-खुशी सामान को ट्रक से उतरवा रहे थे। सारी उम्र किराये के मकानों में गला दी। कुछ भी हो, खुद तंगी में रहकर बेटे को ऊँची तालीम दिलाने का फल ईश्वर ने उन्हें दे दिया था। बेटा सीधा अफसर लगा और लगते ही कम्पनी की ओर से रहने के लिए इतना बड़ा फ्लैट उसे मिल गया।
बेटा सीधे ऑफिस चला गया था। किशन बाबू और उनकी बहू दो मजदूरों की मदद से सारा सामान फ्लैट में लगवाते रहे।
दोपहर को लंच के समय बेटा आया तो देखकर दंग रह गया। सारा सामान करीने से सजा-संवारकर रखा गया था। एक बैडरूम, दूसरा ड्राइंगरूम और तीसरा पिताजी और मेहमानों के लिए। वाह!
बेटे ने पूरे फ्लैट का मुआयना किया। बड़ा-सा किचन, किचन के साथ बड़ा-सा एक स्टोर, जिसमें फालतू का काठ-कबाड़ भरा पड़ा था। उसने गौर से देखा और सोचने लगा। उसने तुरन्त पत्नी को एक ओर ले जाकर समझाया, “देखो, स्टोर से सारा काठ-कबाड़ बाहर फिंकवाओ। वहाँ तो एक चारपाई बड़े आराम से आ सकती है। ऐसा करो, उसकी अच्छी तरह सफाई करवाकर पिताजी की चारपाई वहीं लगवा दो। तीसरे कमरे को मैं अपना रीडिंगरूम बनाऊँगा।”
रात को स्टोर में बिछी चारपाई पर लेटते हुए किशन बाबू को अपने बूढ़े शरीर से पहली बार कबाड़-सी दुर्गन्ध आ रही थी।
11 टिप्पणियाँ
यही होता है तो फिर एसा ये होता क्यों है?
जवाब देंहटाएंयही दुनियाँ है तो एसी ये दुनियाँ क्यों है?
हमारी नजरों में हमारे बुजुर्ग क्या हैं, कहानी दर्शाती है..हमारी पीढी बेशर्म है।
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील।
जवाब देंहटाएंघर-घर की कहानी....
जवाब देंहटाएंहर तरफ आग है...धुआँ है...
पानी कहीं नहीं है
हमारी संवेदनायें व भीतर की शर्म मरती जा रही है।
जवाब देंहटाएंसच्ची कहानी है। मर्मस्पर्शी।
जवाब देंहटाएं"रात को स्टोर में बिछी चारपाई पर लेटते हुए किशन बाबू को अपने बूढ़े शरीर से पहली बार कबाड़-सी दुर्गन्ध आ रही थी।"
जवाब देंहटाएंTrue Story
-Alok Kataria
बहुत अच्छी रचना है सुभाष जी, नग्न सत्य।
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील व मार्मिक लघू कथा...
जवाब देंहटाएंहमें याद रखना है कि समय अपने आप को दोहराता है...कल कहीं हम कबाड न साबित हों
मार्मिक,
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील।
बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना है .....!
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.