
जैसी नदिया की धारा
ढूँढे अपना, किनारा,
जैसे तूफ़ानी सागर मे,
माँझी, पाये किनारा,
जैसे बरखा की बदली,
जैसे फ़ूलों पे तितली,
सलोने पिया, मोरे
सांवरिया,
वैसे मगन, मै और तुम
लिपटी जैसे बेला की
बेल,
ऊँचे घने पीपल को घेर,
जैसे तारों भरी रात,
चमक रही चंदा के साथ,
मेरे आंगन मे चाँदनी,
करे चमेली से ये बात,
सलोने पिया, मोरे
सांवरिया
17 टिप्पणियाँ
बड़ी भावपूर्ण रचना , बधाई
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना है .
जवाब देंहटाएंलिपटी जैसे बेला की
जवाब देंहटाएंबेल,
ऊँचे घने पीपल को घेर,
जैसे तारों भरी रात,
चमक रही चंदा के साथ,
मेरे आंगन मे चाँदनी,
करे चमेली से ये बात,
सलोने पिया, मोरे
सांवरिया
सुन्दर अभिव्यक्ति।
UPMAAON SE BHAREE EK SUNDER RACHNA.
जवाब देंहटाएंLAVANYA JEE AAPKO MUBBARAK.
"जैसी नदिया की धारा
जवाब देंहटाएंढूँढे अपना, किनारा,"
नदिया की धारा को हमेशा सागर को खोजते ही सुना था.. नयी उपमा की नयी कविता ले कर आयी आप..जब नदिया अपना किनारा खोजने चली हो ..
आप सभी का धन्यवाद
जवाब देंहटाएंकविता को पसँद करने के लिये -
स स्नेह सादर,
- लावण्या
जैसे बरखा की बदली,
जवाब देंहटाएंजैसे फ़ूलों पे तितली,
कितने सुंदर शब्द चुन कर पिरोये हैं आपने अपनी इस रचना में...वाह...
नीरज
भावपूर्ण, उत्तम उपमाओं का प्रयोग और सुंदर शब्द चयन - पढ़ कर आनंद आ गया। बधाई हो।
जवाब देंहटाएंप्रेम भाव से परिपूर्ण सुन्दर कविता...
जवाब देंहटाएंउपमानों का जवाब नहीं। बहुत अच्छी कविता।
जवाब देंहटाएंआज के समय में आपकी कविता को पढना सु:खद है। एसा स्तर और प्रस्तुतिकरण अब कहाँ, एसी कविता अब नहीं रची जातीं।
जवाब देंहटाएंभावप्रधान-शब्दसौन्दर्य से भरी रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंऊँचे घने पीपल को घेर,
जवाब देंहटाएंजैसे तारों भरी रात,
चमक रही चंदा के साथ,
मेरे आंगन मे चाँदनी,
करे चमेली से ये बात,
सलोने पिया, मोरे
सांवरिया
बहुत अच्छी रचना है लावण्या जी।
सुन्दर भाव भरी रचना...
जवाब देंहटाएंDear laavnya,
जवाब देंहटाएंbahut accha likha hai , bahut bahut badhai.
vijay
सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंरचना के सारे शब्द मुझे समझ आए बस "युति" को छोड़कर। कृप्या इसका अर्थ बताएँगीं!!!!
सुकोमल भाव --सुंदर बिंब ।
जवाब देंहटाएंरचना दूर तक बहा कर के गयी।
प्रवीण पंडित
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.