
इन दिनों दिखाई नहीं देते उसे
फूल के संग काँटे
इन दिनों जून के महीने मे भी
महसूस नहीं होती उसे
बदन पर धूप की चुभन
खीझती नहीं वह
उस पत्थर पर
जिससे राह चलते चलते
ठोकर लगी है उसे अभी
नाराज नही होती वह
अपने – परायों की शातिराना चालाकियों पर
इन दिनों
शिकायत भी नहीं रही उसे
अभावों और दु:खों की
इन दिनों
परवाह भी नही करती वह
वक़्त के कडे तेवरों की
इन दिनों
उमंग से भरी पुलक से भरी
उडती है हवा संग
महकती है फूल संग
लहराती है लहर संग
इन दिनों
प्रेम मे आकंठ डूबी है वह
6 टिप्पणियाँ
प्रेम में आकंठ डूब जाना अपने आप में एक वरदान की प्राप्ति जैसा है जो सभी को नही मिलता | और उस का ह्रदय से वर्णन करने की क्षमता का होना भी इसी श्रेणी में आता है | बड़ी ही चित्रात्मक और भावपूर्ण कविता | बधाई |कविता का प्रेरणा स्रोत के बारे में जानना चाहेंगे | :-)
जवाब देंहटाएंप्रेम शब्द स्वयं में इतना सुंदर है
जवाब देंहटाएंकि उससे जो भी जुड़ेगा सुंदर हो जायेगा......बहुत सुंदर....
और शुभकमनाएँ....आप आकण्ठ उम्र भर प्रेम में डूबी रहें.....तथास्तु.....
स-स्नेह
गीता पंडित
Ek sashakt kavita.Badhaaee.
जवाब देंहटाएंप्रेमोद्गार देखते बनते है।
जवाब देंहटाएंगहरे पानी पैठे बिना वाणी कैसे अभिव्यक्त करे ?
प्रवीण पंडित
सशक्त रचना... प्रेम में यही शक्ति है कि उसके सामने कोई बाधा खडी नहीं रह सकती.
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी कविता.. बधाई
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.