मन मेरा आली ! डर जाये,
मेरे पिया, अभी ना आये ।
उमड़-घुमड़ घनघोर - घटाएँ,
जब भी नील-गगन में छायें
बिजली की ले दीप्त ध्वजाएं,
दिग - दिगांतर में फहराएँ,
मन मेरा आली ! डर जाये,
मेरे पिया, अभी ना आये ।
यूँ सारा सुनसान - सदन ये,
पर घन की आवाज सघन ये,
नित बादल घिर मुझे डराएं,
पी का संदेसा नहीं लाएं ,
मन मेरा आली ! डर जाये,
मेरे पिया अभी ना आये ।
प्रथम दामिनी बाहर चमके,
दूसरी अंतर्मन में दमके,
जलती बुझतीं अभिलाषाएँ,
दिप-दिपा उडगन सी जायें,
मन मेरा आली ! डर जाये,
मेरे पिया अभी ना आये ।
17 टिप्पणियाँ
गीता जी,
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी कविता... बधाई स्वीकारें
प्रथम दामिनी बाहर चमके,
जवाब देंहटाएंदूसरी अंतर्मन में दमके,
जलती बुझतीं अभिलाषाएँ,
दिप-दिपा उडगन सी जायें,
मन मेरा आली ! डर जाये,
मेरे पिया अभी ना आये ।
अंतर्मन को अभिव्यक्त करती एसी रचनायें कम ही पढने को मिलती हैं।
विरही मन की बेमिसाल अभिव्यक्ति। सालों बाद एसी रचना पढी।
जवाब देंहटाएंGeeta jee,
जवाब देंहटाएंAapke geet mein sunder
bhavabhivyakti hai.Aapkee ye
panktian main kaee baar gungunaa
chukaa hoon-----
Pratham damini bahar chamke
Doosree antarman mein damke
Jaltee-bujhtee abhilaashaayen
Dip-dipaa udgan see gaayen
Achchhe geet ke liye
aapko dheron badhaaeean.
Nicely written song. Thanks.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
प्रथम दामिनी बाहर चमके,
जवाब देंहटाएंदूसरी अंतर्मन में दमके,
जलती बुझतीं अभिलाषाएँ,
दिप-दिपा उडगन सी जायें,
वाह बहुत सुन्दर लिखा है।
प्रत्येक पद प्रशंसनीय है। अन्य पाठकों की तरह मैं भी सहमत हूँ कि इस प्रजाति के गीत अब विलुप्त से हो गये हैं।
जवाब देंहटाएंगीता जी,
जवाब देंहटाएंयह नया रंग दिखा आपकी कविता में। इतना सुन्दर शब्द संयोजन है जैसे कोई तराशी हुई मूर्ति, इतनी भाव प्रवणता है मानों कोई निर्झर।
***राजीव रंजन प्रसाद
भावानुकूल शब्दों का चुनाव, उच्चकोटि का शब्द-विधान, काव्य-सौष्ठव और सरसता
जवाब देंहटाएंसे भरी इस सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकारें।
सुन्दर कविता. बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंपुरानी शैली का एक सुंदर विरह-गीत! बधाई स्वीकारें!
जवाब देंहटाएंविरह अग्नि को दर्शाती आपकी कविता अच्छी लगी....
जवाब देंहटाएंप्रथम दामिनी बाहर चमके,
जवाब देंहटाएंदूसरी अंतर्मन में दमके,
जलती बुझतीं अभिलाषाएँ,
दिप-दिपा उडगन सी जायें,
great work
regards
do vist my blog
विरह की अनूठी अभिव्यक्ति। निश्चय ही इस अप्रतिम सांचे की गीत रचनाएं कठिनाई से दिखाई देती हैं। शब्द मात्र शब्द न रहकर स्वयं भाव बन गये हैं।
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना पढ़वाने के लिये आभार ।
प्रवीण पंडित
आभार...
जवाब देंहटाएंगीता पंडित
भावपूर्ण रचना..प्रतिक्षारत प्रेयसी के मन के उदगार अपने प्रिय (पिया) के प्रति
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.