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मैं-तुम [क्षणिकायें] - आलोक शंकर


हम दोनों ही
बड़ा बनना चाहते थे-
तुम्हें
उनकी नजरों में बड़ा दिखना था,
मुझे
मेरी नजरों में ।

-----

दोनों को ईश्वर नहीं मिला ,
तुम्हें वो नहीं मिला,
मुझे तुम ।

-----

जीवन भर ,
मैनें अपनी पहचान ढूँढी,
फ़िर -
मुझे तुम मिले ।

*****

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17 टिप्पणियाँ

  1. तीनों क्षणिकाएं बेहतरीन हैं। तीसरी वाली में ज्यादा नयापन नहीं है,लेकिन बाकी दो तो शुभान-अल्लाह!!!

    जवाब देंहटाएं
  2. दोनों को ईश्वर नहीं मिला ,
    तुम्हें वो नहीं मिला,
    मुझे तुम ।

    -----

    जीवन भर ,
    मैनें अपनी पहचान ढूँढी,
    फ़िर -
    मुझे तुम मिले ।
    वाह बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  3. दोनों को ईश्वर नहीं मिला ,
    तुम्हें वो नहीं मिला,
    मुझे तुम ।
    kyaa baat hai

    जवाब देंहटाएं
  4. kavitaa to theekthak hai...lekin behtar hoga is mutual admiration committee se bachen jahan har kachraa vaah vaah hai.

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत अच्छा लिखा है...लिखते रहें...
    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  6. आलोक जी! आपकी काव्य-प्रतिभा से परिचित होने के नाते मुझे आपकी यह रचनायें (बल्कि कहना चाहिये कि रचना क्योंकि मेरे विचार से ये तीन स्वतंत्र क्षणिकायें न होकर एक कविता है) आपके स्तर के अनुरूप नहीं लगीं. आपसे इससे बहुत बेहतर की उम्मीद रहती है.
    आशा है कि आप इसे सकारात्मक लेंगे.

    जवाब देंहटाएं
  7. आप की क्षणिकाएं बहुत अच्छी लगीं।

    दोनों को ईश्वर नहीं मिला ,
    तुम्हें वो नहीं मिला,
    मुझे तुम ।

    जवाब देंहटाएं
  8. तीनों क्षणिकाएं ...
    अच्छी हैं ।

    जवाब देंहटाएं
  9. आपकी क्षणिका
    यानी
    चाँद शब्दों में
    भावों की पूरी मनिका
    बधाई स्वीकारें.

    जवाब देंहटाएं
  10. दोनों को ईश्वर नहीं मिला ,
    तुम्हें वो नहीं मिला,
    मुझे तुम ।.....


    तीनों क्षणिकाएँ.....अच्छी हैँ....बढिया हैँ.....

    जवाब देंहटाएं
  11. सुन्दर...

    कभी कभी हम जिसको सारे जहान में ढूंढते फ़िरते हैं वो अपने आस पास या अपने अन्दर ही मिल जाता है..गूढ दार्शनिक विचार है.

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत बढ़िया भाई ...

    शब्द जी उठे है आपकी कविता में ..

    मुझे ये पंक्तियाँ अच्छी लगी ..

    दोनों को ईश्वर नहीं मिला ,
    तुम्हें वो नहीं मिला,
    मुझे तुम ।

    यार दोनों का काबा काशी एक ही है .....
    मोहब्बत और ईश्वर दोनों को मेरा सलाम

    बहुत बहुत बधाई


    विजय

    जवाब देंहटाएं
  13. दोनों को ईश्वर नहीं मिला ,
    तुम्हें वो नहीं मिला,
    मुझे तुम ।
    kavi ki sanikaye bahut kam shabdo main kafi gahri bate darsha rahi hain. ek vakya ke anek arth hain, apko likhne ka adhikar hain, meri shubhkamnaye
    A L Hanfee, Assistant Registrar, IPS Academy, Indore

    जवाब देंहटाएं
  14. हम दोनों ही
    बड़ा बनना चाहते थे-
    तुम्हें
    उनकी नजरों में बड़ा दिखना था,
    मुझे
    मेरी नजरों में ।

    -----

    दोनों को ईश्वर नहीं मिला ,
    तुम्हें वो नहीं मिला,
    मुझे तुम ।


    chhu gaye sir sach

    जवाब देंहटाएं
  15. you have a nice shanika. I would like to hear such beautiful lines ever. do email me like this, I would be happy if you write for Dharti ke liye, how to save dharti earth.
    congratulations

    जवाब देंहटाएं

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