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आज के बिछुडे न जाने कब मिलेंगे [सौजन्य- लावण्या शाह]: रचना – पं. नरेन्द्र शर्मा

आज से दो प्रेमयोगी अब वियोगी ही रहेगें
आज के बिछुडे न जाने कब मिलेंगे ।

आयगा मधुमास फिर भी, आयगी श्यामल घटा घिर
आँख भर कर देख लो अब, मैं न आऊँगा कभी फिर
प्राण तन से बिछुड कर कैसे मिलेंगे
आज के बिछुडे न जाने कब मिलेंगे ।

अब न रोना, व्यर्थ होगा हर घडी आँसू बहाना
आज से अपने वियोगी हृदय को हँसना सिखाना
अब आज के बिछुडे न जाने कब मिलेंगे
न हँसने के लिए हम तुम मिलेंगे ।

आज से हम तुम गिनेंगे एक ही नभ के सितारे
दूर होंगे पर सदा को ज्यों नदी के दो किनारे
सिन्धु-तट पर भी न जो दो मिल सकेंगे
आज के बिछुडे न जाने कब मिलेंगे ।

तट नही के, भग्न उर के दो विभागों के सदृश हैं
चीर जिनको विश्व की गति बह रही है, वे विवश हैं
एक अथ-इति पर न पथ में मिल सकेंगे
आज के बिछुडे न जाने कब मिलेंगे ।

यदि मुझे उस पार के भी मिलन का विश्वास होता
सत्य कहता हूँ न में असहाय या निरूपाय होता
जानता हूँ अब न हम तुम मिल सकेंगे
आज के बिछुडे न जाने कब मिलेंगे ।

आज तक किसका हुआ सच स्वप्न, जिसने स्वप्न देखा
कल्पना के मृदृल कर से मिटी किसकी भाग्य रेखा
अब कहां संभव कि हम फिर मिल सकेंगे
आज के बिछुडे न जाने कब मिलेंगे ।

आह, अंतिम रात वह, बैठी रही तुम पास मेरे
शीश कन्धे पर धरे, घन-कुन्तली से गाते घेरे
क्षीण स्वर में कहा था, अब कब मिलेंगे
आज के बिछुडे न जाने कब मिलेंगे ।

कब मिलेंगे ?पूछता जब विस्व से मैं विरह-कातर
कब मिलेंग ?गूँजते प्रतिध्वनि-निनादित व्योम-सागर
कब मिलेंगे प्रश्न उत्तर कब मिलेंगे ?
आज के बिछुडे न जाने कब मिलेंगे ।
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[ सौजन्य - लावण्या शाह, रचना - पं. नरेन्द्र शर्मा]
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14 टिप्पणियाँ

  1. अमर रचना है। बहुत अच्छा लगा इसे साहित्य शिल्पी पर पढना।

    जवाब देंहटाएं
  2. पं नरेन्द्र शर्मा की मेरी पसंदीदा तथा कालजयी रचना को इस मंच पर पढवाने का धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर रचना को पढ़वाने का शुक्रिया।

    जवाब देंहटाएं
  4. नरेन्द्र शर्मा जी को पढना अच्छा लगा। आभार।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर....
    मन उद्वेलित हो उठा....

    नमन नरंद्र जी की लेखनी को.....
    और भी पढवाइये.....

    गीता पंडित

    जवाब देंहटाएं
  6. Thanks Sahityashilpi for this presentation.

    Alok Kataria

    जवाब देंहटाएं
  7. एसी कविताओं के प्रस्तुतिकरण से मंच का स्तर बढता है।

    जवाब देंहटाएं
  8. बिछोड भाव को उत्तम उदाहरणों के माध्यम से प्रेषित करती रचना... पढ कर अच्छा लगा

    जवाब देंहटाएं
  9. साहित्य शिल्पी पर ऐसी रचनाओं को देख कर उत्साह बढ़ता है

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत अच्छी रचना है, स्तरीय रचना पढ कर दिल खुश हो गया... सारगर्भित रचना के लिये प्र्स्तोता को बधाई. बाकी रचना कार के तो क्या कहने क्या खूब लिखा है
    आह, अंतिम रात वह, बैठी रही तुम पास मेरे
    शीश कन्धे पर धरे, घन-कुन्तली से गाते घेरे
    क्षीण स्वर में कहा था, अब कब मिलेंगे
    आज के बिछुडे न जाने कब मिलेंगे ।

    कब मिलेंगे ?पूछता जब विस्व से मैं विरह-कातर
    कब मिलेंग ?गूँजते प्रतिध्वनि-निनादित व्योम-सागर
    कब मिलेंगे प्रश्न उत्तर कब मिलेंगे ?
    आज के बिछुडे न जाने कब मिलेंगे ।

    वाह वाह

    जवाब देंहटाएं
  11. KAB MILENGE PRASHN-UTTAR
    KAB MILENGE
    AAJ KE BICHHUDE N JANE
    KAB MILENGE
    ISKO KAHTE HAIN KAVITA AUR ISKO
    KAHTE HAIN GEET.SARGAM KE SATON
    SWAR SAMAAYE HAIN MAHAKAVI NARENDRA
    SHARMA JEE KEE IS RACHNA MEIN.ROTI
    JIDHAR SE BHEE TOD KAR KHAAO UDHAR
    SE HEE MITHEE HAI.LAVANYA JEE,HINDI
    JAGAT AAPKA AABHAAREE HAI KI AAP
    PT.NARENDRA SHARMA KEE KALJAYEE
    RACHNAAON KO PADHVATEE HAIN.

    जवाब देंहटाएं
  12. ये कविता मुझे भी अतयँत प्रिय है -
    अगर आप इस कविता का स -स्वर पाठ सुनना चाहेँ तब इसे यहाँ सुन पायेँगेँ
    सभी पाठकोँ का , सादर धन्यवाद,
    - लावण्या
    Please Click here : ~~
    http://podcast.hindyugm.com/2008/11/podcast-kavi-sammelan-november-2008.html

    जवाब देंहटाएं
  13. इतिहास पर टिप्पणी नहीं की जाती, बस सुखद घटनाओं को याद कर आनंद लिया जाता है।
    यह रचना भी इतिहास की हीं तरह है,सुखद इतिहास!!!
    पं नरेन्द्र शर्मा जी को नमन!!!

    जवाब देंहटाएं

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