
कब तक पीयूष रहे अम्बर में धरा बूँद भर को तरसे
नयनों में पलते सुखद लोक , जीवन की कुत्सित नश्वरता
यह हर्ष , प्रमाद , भावनाएँ ,मानव की लोलुप निर्भरता
सबकी हिम्मत से दूर खड़े , तेरे घर के निस्पंद द्वार
जिनतक न डूबती आँखों की पहुँची कोई कातर पुकार
किस तरह करूँ आहूत किसे, तेरी करूणा थोड़ी बरसे
किस भाँति तुम्हें पूजूँ प्रस्तर! कुछ प्राण धरा पर भी बरसे
धरती की नित बढ़ रही प्यास , झरते निर्झर से आश्वासन
देवत्त्व रिझाने हेतु त्याग , दुख के ये बेमन आलिंगन
धरती के सारे स्वार्थ त्याज्य, अम्बर को पर है प्यास बड़ी
दुख सह कर , बलि दे मिटे धरा ,ऊपर लहराती जीभ खड़ी
धरती भी कब तक यज्ञ करे, जब झरे कृपणता ऊपर से
किस भाँति तुम्हें पूजूँ प्रस्तर! कुछ प्राण धरा पर भी बरसे
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16 टिप्पणियाँ
बेहतरीन कविता .
जवाब देंहटाएंकिस भाँति तुम्हें पूजूँ प्रस्तर! कुछ प्राण धरा पर भी बरसे
जवाब देंहटाएं"बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुती"
regards
धरती की नित बढ़ रही प्यास , झरते निर्झर से आश्वासन
जवाब देंहटाएंदेवत्त्व रिझाने हेतु त्याग , दुख के ये बेमन आलिंगन
धरती के सारे स्वार्थ त्याज्य, अम्बर को पर है प्यास बड़ी
दुख सह कर , बलि दे मिटे धरा ,ऊपर लहराती जीभ खड़ी
धरती भी कब तक यज्ञ करे, जब झरे कृपणता ऊपर से
किस भाँति तुम्हें पूजूँ प्रस्तर! कुछ प्राण धरा पर भी बरसे
Ultimate, no comparision.
Alok Kataria
सुंदर बिम्बों व भावों से सजी कविता.. पसंद आयी
जवाब देंहटाएंधरती के सारे स्वार्थ त्याज्य, अम्बर को पर है प्यास बड़ी
जवाब देंहटाएंदुख सह कर , बलि दे मिटे धरा ,ऊपर लहराती जीभ खड़ी
धरती भी कब तक यज्ञ करे, जब झरे कृपणता ऊपर से
किस भाँति तुम्हें पूजूँ प्रस्तर! कुछ प्राण धरा पर भी बरसे
अअलोक शंकर की कलम असाधारण है।
आलोक जी आप का स्तर उन रचनाओं के तुल्प है जिन्हे चिरजीवी कहा जाता है।
जवाब देंहटाएंकिस भाँति तुम्हें पूजूँ प्रस्तर! कुछ प्राण धरा पर भी बरसे
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुती....
आलोक जी! बार बार किसी की तारीफ़ करना मुझे पसंद नहीं है पर आपके संदर्भ में मज़बूर हो जाता हूँ. यार कभी तो कमी छोड़ दिया करो :)
जवाब देंहटाएंखैर, मज़ाक एक तरफ लेकिन कविता बहुत सुंदर है. बधाई स्वीकारें!
बहुत अच्छी कविता है आलोक जी, बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना है... बहुत अच्छे शब्दों में... बधाई स्वीकार करें
जवाब देंहटाएंआप गंभीरता से काव्यकर्म कर रहे हैं। यह भाषा और यह भाव प्रस्तुत करना हसी खेल नहीं।
जवाब देंहटाएंआलोक,
जवाब देंहटाएंहर पंक्ति में दर्द है, हर शब्द है प्रश्न|
जिस प्रकार विश्व सञ्चालन हो रहा है उसे देखते नहीं लगता की कोई तो है पूजा के लायक| कुछ सवाल जो हर संवेदनशील र्हदय को कश के पकडे हुए है उसे वाचा दी है इस रचना ने|
कालजयी प्रश्नों को प्रभावी शब्दों में पिरो कर सशक्त रचना के रूप में प्रस्तुत किया है आलोक जी. गुंथे हुए भावों को सटीक शब्दों का जामा पहनाया है आपने. सुन्दर...
जवाब देंहटाएंआपको पढ़ना न केवल सुखद वरन आनंदातिरेक का कारण बनता है ।
जवाब देंहटाएंवो भी हर बार ।
प्रवीण पंडित
fadu kavita hai dost!!!
जवाब देंहटाएंEven though I couldnt understand the whole I liked what I read ,
जवाब देंहटाएंIt is nice get going...
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.