HeaderLarge

नवीनतम रचनाएं

6/recent/ticker-posts

किस भाँति तुम्हें पूजूँ प्रस्तर [कविता] - आलोक शंकर

किस भाँति तुम्हें पूजूँ प्रस्तर! कुछ प्राण धरा पर भी बरसे
कब तक पीयूष रहे अम्बर में धरा बूँद भर को तरसे

नयनों में पलते सुखद लोक , जीवन की कुत्सित नश्वरता
यह हर्ष , प्रमाद , भावनाएँ ,मानव की लोलुप निर्भरता
सबकी हिम्मत से दूर खड़े , तेरे घर के निस्पंद द्वार
जिनतक न डूबती आँखों की पहुँची कोई कातर पुकार
किस तरह करूँ आहूत किसे, तेरी करूणा थोड़ी बरसे
किस भाँति तुम्हें पूजूँ प्रस्तर! कुछ प्राण धरा पर भी बरसे

धरती की नित बढ़ रही प्यास , झरते निर्झर से आश्वासन
देवत्त्व रिझाने हेतु त्याग , दुख के ये बेमन आलिंगन
धरती के सारे स्वार्थ त्याज्य, अम्बर को पर है प्यास बड़ी
दुख सह कर , बलि दे मिटे धरा ,ऊपर लहराती जीभ खड़ी
धरती भी कब तक यज्ञ करे, जब झरे कृपणता ऊपर से
किस भाँति तुम्हें पूजूँ प्रस्तर! कुछ प्राण धरा पर भी बरसे
***** 

एक टिप्पणी भेजें

16 टिप्पणियाँ

  1. किस भाँति तुम्हें पूजूँ प्रस्तर! कुछ प्राण धरा पर भी बरसे
    "बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुती"

    regards

    जवाब देंहटाएं
  2. धरती की नित बढ़ रही प्यास , झरते निर्झर से आश्वासन
    देवत्त्व रिझाने हेतु त्याग , दुख के ये बेमन आलिंगन
    धरती के सारे स्वार्थ त्याज्य, अम्बर को पर है प्यास बड़ी
    दुख सह कर , बलि दे मिटे धरा ,ऊपर लहराती जीभ खड़ी
    धरती भी कब तक यज्ञ करे, जब झरे कृपणता ऊपर से
    किस भाँति तुम्हें पूजूँ प्रस्तर! कुछ प्राण धरा पर भी बरसे

    Ultimate, no comparision.

    Alok Kataria

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर बिम्बों व भावों से सजी कविता.. पसंद आयी

    जवाब देंहटाएं
  4. धरती के सारे स्वार्थ त्याज्य, अम्बर को पर है प्यास बड़ी
    दुख सह कर , बलि दे मिटे धरा ,ऊपर लहराती जीभ खड़ी
    धरती भी कब तक यज्ञ करे, जब झरे कृपणता ऊपर से
    किस भाँति तुम्हें पूजूँ प्रस्तर! कुछ प्राण धरा पर भी बरसे

    अअलोक शंकर की कलम असाधारण है।

    जवाब देंहटाएं
  5. आलोक जी आप का स्तर उन रचनाओं के तुल्प है जिन्हे चिरजीवी कहा जाता है।

    जवाब देंहटाएं
  6. किस भाँति तुम्हें पूजूँ प्रस्तर! कुछ प्राण धरा पर भी बरसे


    सुंदर प्रस्तुती....

    जवाब देंहटाएं
  7. आलोक जी! बार बार किसी की तारीफ़ करना मुझे पसंद नहीं है पर आपके संदर्भ में मज़बूर हो जाता हूँ. यार कभी तो कमी छोड़ दिया करो :)
    खैर, मज़ाक एक तरफ लेकिन कविता बहुत सुंदर है. बधाई स्वीकारें!

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत अच्छी कविता है आलोक जी, बहुत बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुंदर रचना है... बहुत अच्छे शब्दों में... बधाई स्वीकार करें

    जवाब देंहटाएं
  10. आप गंभीरता से काव्यकर्म कर रहे हैं। यह भाषा और यह भाव प्रस्तुत करना हसी खेल नहीं।

    जवाब देंहटाएं
  11. आलोक,
    हर पंक्ति में दर्द है, हर शब्द है प्रश्न|
    जिस प्रकार विश्व सञ्चालन हो रहा है उसे देखते नहीं लगता की कोई तो है पूजा के लायक| कुछ सवाल जो हर संवेदनशील र्हदय को कश के पकडे हुए है उसे वाचा दी है इस रचना ने|

    जवाब देंहटाएं
  12. कालजयी प्रश्‍नों को प्रभावी शब्‍दों में पिरो कर सशक्‍त रचना के रूप में प्रस्‍तुत किया है आलोक जी. गुंथे हुए भावों को सटीक शब्‍दों का जामा पहनाया है आपने. सुन्‍दर...

    जवाब देंहटाएं
  13. आपको पढ़ना न केवल सुखद वरन आनंदातिरेक का कारण बनता है ।
    वो भी हर बार ।

    प्रवीण पंडित

    जवाब देंहटाएं
  14. Even though I couldnt understand the whole I liked what I read ,
    It is nice get going...

    जवाब देंहटाएं

आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.

आइये कारवां बनायें...

~~~ साहित्य शिल्पी का पुस्तकालय निरंतर समृद्ध हो रहा है। इन्हें आप हमारी साईट से सीधे डाउनलोड कर के पढ सकते हैं ~~~~~~~

डाउनलोड करने के लिए चित्र पर क्लिक करें...