
ज्ञानाश्रयी शाखा में सन्त कबीर के बाद सन्त रविदास या रैदास का नाम उल्लेखनीय है| कबीर के गुरु रामानन्द जी के बारह शिष्य थे, उनमें से एक थे रैदास या रविदास (ये रामदास ,गुरु रविदास आदि नामों से भी प्रचलित थे)| इनका जन्म 1376 मे काशी में हुआ था| रैदास कबीर के बाद रामानंद जी के शिष्य हुए, ऐसा उनकी इस रचना से जान पड़ता है, जिसमें उन्होंने कबीर का जिक्र किया है:
नामदेव कबीर तिलोचन सधना सेन तरै।
कह रविदास, सुनहु रे संतहु! हरि जिउ तें सबहु सरैं।।
हमारी जाति-व्यवस्था काफ़ी पुरानी है| इस काल में जातिगत भेदभाव और छुआछूत अपने चरम पर थे| रैदास जाति से चर्मकार थे, और उनके परिवार का पेशा जूते बनाना था| यह जाति भी पिछड़ी जातियों में से एक थी | उन्होंने अपने कई पदों में अपने आप को चमार कहा था " ऐसी मेरी जाति भिख्यात चमार", "कह रैदास खलास चमारा" आदि| रैदास अपने समय के उन सुधारक सन्तों में थे जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से सामाजिक बुराइयों को दूर करने में बड़ा योगदान दिया|
जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात।
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।
उनका नाम मीराबाई और धन्ना ने बड़े आदर से लिया है, यह भी माना जाता है कि मीरा इनको गुरु मानतीं थीं| जातिवाद के आधार पर ईश्वर की भक्ति को रैदास ने सारहीन बताया और इस बात पर जोर दिया कि विविध ग्रन्थों में एक ही परमेश्वर का गुणगान किया गया है और सारे रूप एक ही परमेश्वर के हैं| उन्होंने अपने आचरण तथा व्यवहार से यह प्रमाणित कर दिया कि मनुष्य अपने जन्म तथा व्यवसाय के आधार पर महान नहीं होता है। "मन चंगा तो कठौती में गंगा" यह कहावत रैदास की ही देन है |
जब हम होते तब तू नाहीं, अब तू ही मैं नाहीं।
अतल अगम जैसे लहरि मई उदधि, जल केवल जल माहीं।|
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग-अँग बास समानी ।
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा ।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती ।
प्रभु जी, तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सुहागा ।
प्रभु जी, तुम तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै रैदासा ।
सन्त रैदास की रचनाओं की प्रमुखता लोकवाणी का अद्भुत प्रयोग थी, जिन्होंने जनमानस पर अपनी अमिट छाप छोड़ी| उनका कोई प्रामाणिक ग्रन्थ नहीं मिलता, फ़ुटकल रचनायें ही मिलतीं हैं, उनके चालीस पद 'आदि गुरु ग्रन्थ साहिब' में भी मिलते हैं| उनके उपदेश आज भी प्रासंगिक हैं| जातिवाद के खिलाफ़ आवाज उठाने वालों में रैदास का नाम सबसे पहले आता है| इनके विचारों के ऊपर आधारित 'रविदासी धर्म' भी प्रचलित हुआ| आज भी सन्त रविदास जातिवाद के खिलाफ़ संघर्ष के प्रतीक माने जाते हैं|
कहा भयौ जू मूँड मुंड़ायौ, बहु तीरथ ब्रत कीन्हैं।
स्वांमी दास भगत अरु सेवग, जो परंम तत नहीं चीन्हैं।।
हिन्दी साहित्य के इतिहास के अन्य अंक : १) साहित्य क्या है? २)हिन्दी साहित्य का आरंभ ३)आदिकालीन हिन्दी साहित्य ४)भक्ति-साहित्य का उदय ५)कबीर और उनका साहित्य ज्ञानमार्गी भक्ति शाखा के अन्य कवि ८)प्रेममार्गी भक्तिधारा ९)जायसी और उनका "पद्मावत"
15 टिप्पणियाँ
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग-अँग बास समानी ।
जवाब देंहटाएंप्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा ।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती ।
प्रभु जी, तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सुहागा ।
प्रभु जी, तुम तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै रैदासा ।
रैदास को प्रस्तुत करने का धन्यवाद। बहुत अच्छा लेख है। आलोक शंकर को बधाई।
हिन्दी साहित्य के इतिहास को प्रस्तुत करना एक बडा कार्य है और हिन्दी की वास्तविक सेवा है। मैं आलोक जी को धन्यवाद देती हूँ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लेख है आलोक जी। बधाई।
जवाब देंहटाएंजातिवाद जैसे संदर्भों को उठाने के बाद लेख विस्तार माँग रहा था। आपने बहुत अच्छा लेख लिखा लेकिन कम से कम एक पैराग्राफ छोटा लिखा।
जवाब देंहटाएंGood Article.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
ज़रूरी लेख्…बधाई
जवाब देंहटाएंअच्छा लेख है, आलोक जी! बधाई!
जवाब देंहटाएंलेख कुछ और विस्तृत और विवेचनात्मक होता तो और बेहतर रहता. फिर भी लेख अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकारें!
जब हम होते तब तू नाहीं, अब तू ही मैं नाहीं।
जवाब देंहटाएंअतल अगम जैसे लहरि मई उदधि, जल केवल जल माहीं।|
अच्छा लेख है....
आलोक जी!
बधाई!
रैदास जी ने अपनी भक्ति से सिद्ध कर दिया की जाति पाती पूछे न कोए हरी को भजे सो हरी को होए..
जवाब देंहटाएंसार भरे लेख के लिए आलोक जी को बधाई.
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जवाब देंहटाएंसबसे पहले मैं अलोक जी को धन्यवाद् देना चाहता हूँ संत रविदास के ऊपर इतनी अछि लेख प्रस्तुत करने के लिए मैं आपकी रचनाओं से हमेशा ही प्रभावित रहा हूँ और आज आपने जो संक्षिप्त विअवरण संत रविदास की विचारों का प्रस्तुत किया है वो अतुलनीय है .मैं आपकी रचनाओं का हमेशा इन्तेजार करता हूँ आशा करता हूँ की आपके लेख आगे भी प्रकाशित होते रहेंगे आपके कृतियों का एक प्रसंसक आशुतोष
जवाब देंहटाएंaaj kal main bhi hindi sahitya hi pad rahi hoon to gyaansharyi sakha ke kaviyon ko padna bahut achha laga
जवाब देंहटाएंहिंदी साहित्य के ऐसे महान कवियों में रैदास उल्लेखनीय मनमाने कवि हैं जो साधारण लोगों के जीवन में रोशनी लगाये हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेतरिन तरीके आपने यह लेख प्रस्तुत किया है, आपका धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.