पहला आलेख - भूमिका

ग़ज़ल क्या है, अरूज क्या है ये सब बाद में पहले हम "शब्द" पर चर्चा करेंगे कि शब्द क्या है? शब्द एक ध्वनि है, एक आवाज़ है, शब्द का अपना एक आकार होता है, जब हम उसे लिखते हैं , लेकिन जब हम बोलते हैं वो एक ध्वनि मे बदल जाता है, तो शब्द का आकार भी है और शब्द निरकार भी है और इसी लिए शब्द को परमात्मा भी कहा गया जो निराकार भी है और हर आकार भी उसका है. तो शब्द साकार भी है और निराकार भी. हमारा सारा काव्य शब्द से बना है और शब्द से जो ध्वनि पैदा होती है उस से बना है संगीत अत: हम यह कह सकते हैं कि काव्य से संगीत और संगीत से काव्य पैदा हुआ, दोनों एक दुसरे के पूरक हैं. काव्य के बिना संगीत और संगीत के बिना काव्य के कल्पना नही कर सकते. और हम काव्य को ऐसे भी परिभाषित कर सकते हैं कि वो शब्द जिन्हें हम संगीत मे ढाल सकें वो काव्य है तो ग़ज़ल को भी हम ऐसे ही परिभाषित कर सकते हैं कि काव्य की वो विधा जिसे हम संगीत मे ढाल सकते हैं वो गजल है. ग़ज़ल का शाब्दिक अर्थ चाहे कुछ भी हो अन्य विधाओं कि तरह ये भी काव्य की एक विधा है .हमारा सारा काव्य, हमारे मंत्र, हमारे वेद सब लयबद्ध हैं सबका आधार छंद है.
अब संगीत तो सात सुरों पर टिका है लेकिन शब्द या काव्य का क्या आधार है ? इसी प्रश्न का उत्तर हम खोजेंगे.
हिंदी काव्य शास्त्र का आधार तो पिंगल या छंद शास्त्र है लेकिन ग़ज़ल क्योंकि सबसे पहले फ़ारसी में कही गई इसलिए इसका छंद शास्त्र को इल्मे-अरुज कहते हैं. एक बात आप पल्ले बाँध लें कि बिना बहर के ग़ज़ल आज़ाद नज़्म होती है ग़ज़ल कतई नहीं और आज़ाद नज़्म का काव्य में कोई वजूद नहीं है. हम शुरु करते हैं वज़्न से. सबसे पहले हमें शब्द का वज़्न करना आना चहिए. उसके लिए हम पहले शब्द को तोड़ेंगे, हम शब्द को उस अधार पर तोड़ेंगे जिस आधार पर हम उसका उच्चारण करते हैं. शब्द की सबसे छोटी इकाई होती है वर्ण. तो शब्दों को हम वर्णों मे तोड़ेंगे. वर्ण वह ध्वनि हैं जो किसी शब्द को बोलने में एक समय मे हमारे मुँह से निकलती है और ध्वनियाँ केवल दो ही तरह की होती हैं या तो लघु (छोटी) या दीर्घ (बड़ी). अब हम कुछ शब्दों को तोड़कर देखते है और समझते हैं, जैसे:
"आकाश"
ये तीन वर्णो से मिलकर बना है.
आ+ का+श.
आ: ये एक बड़ी आवाज़ है.
का: ये एक बड़ी आवाज़ है
श: ये एक छोटी आवाज़ है.
और नज़र( न+ज़र)
न: ये एक छोटी आवाज़ है
ज़र: ये एक बड़ी आवाज़ है.
छंद शास्त्र मे इन लंबी आवाज़ों को गुरु और छोटी आवाजों को लघु कहते है और लंबी आवाज के लिए "s" और छोटी आवाज़ के लिए "I" का इस्तेमाल करते हैं. इन्हीं आवाजों के समूह से हिंदी में गण बने. फ़ारसी में लंबी आवाज़ या गुरु को मुतहर्रिक और छोटी या लघु को साकिन कहते हैं .इसी आधार पर हिंदी में गण बने और इसी आधार पर फ़ारसी मे अरकान बने.यहाँ हम लघु और गुरु को दर्शने के लिए 1 और 2 का इस्तेमाल करेंगे.जैसे:
सितारों के आगे जहाँ और भी हैं.
पहले इसे वर्णों मे तोड़ेंगे. यहाँ उसी अधार पर इन्हें तोड़ा गया जैसे उच्चारण किया जाता है.
सि+ता+रों के आ+गे ज+हाँ औ+र भी हैं.
अब छोटी और बड़ी आवाज़ों के आधार पर या आप कहें कि गुरु और लघु के आधार पर हम इन्हें चिह्नित कर लेंगे. गुरु के लिए "2 " और लघु के लिए " 1" का इस्तेमाल करेंगे.
जैसे:
सि+ता+रों के आ+गे य+हाँ औ+र भी हैं.
(1+2+2 1 + 2+2 1+2+2 +1 2 + 2)
अब हम इस एक-दो के समूहों को अगर ऐसे लिखें.
122 122 122 122
तो ये 122 क समूह एक रुक्न बन गया और रुक्न क बहुवचन अरकान होता है. इन्ही अरकनों के आधार पर फ़ारसी मे बहरें बनीं.और भाषाविदों ने सभी सम्भव नमूनों को लिखने के लिए अलग-अलग बहरों का इस्तेमाल किया और हर रुक्न का एक नाम रख दिया जैसे फ़ाइलातुन अब इस फ़ाइलातुन का कोई मतलब नही है यह एक निरर्थक शब्द है. सिर्फ़ वज़्न को याद रखने के लिए इनके नाम रखे गए.आप इस की जगह अपने शब्द इस्तेमाल कर सकते हैं जैसे फ़ाइलातुन की जगह "छमछमाछम" भी हो सकता है, इसका वज़्न (भार) इसका गुरु लघु की तरतीब.
ये आठ मूल अरकान हैं , जिनसे आगे चलकर बहरें बनीं.
फ़ा-इ-ला-तुन (2-1-2-2)
मु-त-फ़ा-इ-लुन(1-1-2-1-2)
मस-तफ़-इ-लुन(2-2-1-2)
मु-फ़ा-ई-लुन(1-2-2-2)
मु-फ़ा-इ-ल-तुन (1-2-1-1-2)
मफ़-ऊ-ला-त(2-2-2-1)
फ़ा-इ-लुन(2-1-2)
फ़-ऊ-लुन(1-2-2)
अब भाषाविदों ने यहाँ कुछ छूट भी दी है आप गुरु वर्णों को लघु में ले सकते हैं जैसे मेरा (22) को मिरा(12) के वज्न में, तेरा(22) को तिरा(12) भी को भ, से को स इत्यादि. और आप बहर के लिहाज से कुछ शब्दों की मात्राएँ गिरा भी सकते हैं और हर मिसरे के अंत मे एक लघु वज़्न में ज्यादा हो सकता है. अनुस्वर वर्णों को गुरु में गिना जाता है जैसे:बंद(21) छंद(21) और चंद्र बिंदु को तकतीअ में नहीं गिनते जैसे: चाँद (21)संयुक्त वर्ण से पहले लघु को गुरु मे गिना जाता है जैसे:
सच्चाई (222)
अब फ़ारसी मे 18 बहरों बनाई गईं जो इस प्रकार है:
1.मुत़कारिब(122x4) चार फ़ऊलुन
2.हज़ज(1222x4) चार मुफ़ाईलुन
3.रमल(2122x4) चार फ़ाइलातुन
4.रजज़:(2212) चार मसतफ़इलुन
5.कामिल:(11212x4) चार मुतफ़ाइलुन
6 बसीत:(2212, 212, 2212, 212 )मसतलुन फ़ाइलुऩx2
7तवील:(122, 1222, 122, 1222) फ़ऊलुन मुफ़ाईलुन x2
8.मुशाकिल:(2122, 1222, 1222) फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
9. मदीद : (2122, 212, 2122, 212) फ़ाइलातुन फ़ाइलुनx2
10. मजतस:(2212, 2122, 2212, 2122) मसतफ़इलुन फ़ाइलातुनx2
11.मजारे:(1222, 2122, 1222, 2122) मुफ़ाइलुन फ़ाइलातुनx2 सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ सूरत में.
12 मुंसरेह :(2212, 2221, 2212, 2221) मसतफ़इलुन मफ़ऊलात x2 सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ सूरत में.
13 वाफ़िर : (12112 x4) मुफ़ाइलतुन x4 सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ सूरत में.
14 क़रीब ( 1222 1222 2122 ) मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलातुन सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ सूरत में.
15 सरीअ (2212 2212 2221) मसतफ़इलुन मसतफ़इलुन मफ़ऊलात सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ सूरत में.
16 ख़फ़ीफ़:(2122 2212 2122) फ़ाइलातुन मसतफ़इलुन फ़ाइलातुन सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ सूरत में .
17 जदीद: (2122 2122 2212) फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन मसतफ़इलुन सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ सूरत में.
18 मुक़ातज़ेब (2221 2212 2221 2212) मफ़ऊलात मसतफ़इलुनx2 सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ सूरत में.
19. रुबाई
यहाँ पर रुककर थोड़ा ग़ज़ल की बनावट के बारे में भी समझ लेते हैं.
ग़ज़ले के पहले शे'र को मतला , अंतिम को मकता जिसमें शायर अपना उपनाम लिखता है. एक ग़ज़ल मे कई मतले हो सकते हैं और ग़ज़ल बिना मतले के भी हो सकती है. ग़ज़ल में कम से कम तीन शे'र तो होने ही चाहिए. ग़ज़ल का हर शे'र अलग विषय पर होता है एक विषय पर लिखी ग़ज़ल को ग़ज़ले-मुसल्सल कहते हैं. वह शब्द जो मतले मे दो बार रदीफ़ से पहले और हर शे'र के दूसरे मिसरे मे रदीफ़ से पहले आता है उसे क़ाफ़िया कहते हैं. ये अपने हमआवाज शब्द से बदलता रहता है.क़ाफ़िया ग़ज़ल की जान(रीढ़)होता है. एक या एकाधिक शब्द जो हर शे'र के दूसरे मिसरे मे अंत मे आते हैं, रदीफ़ कहलाते हैं. ये मतले में क़ाफ़िए के बाद दो बार आती है. बिना रदीफ़ के भी ग़ज़ल हो सकती है जिसे ग़ैर मरद्दफ़ ग़ज़ल कहते हैं.पुरी ग़ज़ल एक ही बहर में होती है. बहर को जानने के लिए हम उसके साकिन और मुतहरिर्क को अलग -अलग करते हैं और इसे तकतीअ करना कहते हैं.बहर के इल्म को अरुज़(छ्न्द शास्त्र) कहते हैं और इसका इल्म रखने वाले को अरुज़ी(छन्द शास्त्री).यहाँ पर एक बात याद आ गई द्विज जी अक्सर कहते हैं कि ज़्यादा अरूज़ी होने शायर शायर कम आलोचक ज़्यादा हो जाता है. बात भी सही है शायर को ज़्यादा अरुज़ी होने की ज़रुरत नहीं है उतना काफ़ी है जिससे ग़ज़ल बिना दोष के लिखी जा सके. बाकी ये काम तो आलोचकों का ज्यादा है. यह तो एक महासागर है अगर शायर इसमें डूब गया तो काम गड़बड़ हो जाएगा.
अब एक ग़ज़ल को उदाहरण के तौर पर लेते हैं और तमाम बातों को फ़िर से समझने की कोशिश करते हैं.द्विज जी
की एक ग़ज़ल है :
अँधेरे चंद लोगों का अगर मक़सद नहीं होते
यहाँ के लोग अपने आप में सरहद नहीं होते
न भूलो, तुमने ये ऊँचाईयाँ भी हमसे छीनी हैं
हमारा क़द नहीं लेते तो आदमक़द नहीं होते
फ़रेबों की कहानी है तुम्हारे मापदण्डों में
वगरना हर जगह बौने कभी अंगद नहीं होते
तुम्हारी यह इमारत रोक पाएगी हमें कब तक
वहाँ भी तो बसेरे हैं जहाँ गुम्बद नहीं होते
चले हैं घर से तो फिर धूप से भी जूझना होगा
सफ़र में हर जगह सुन्दर-घने बरगद नहीं होते.
अब इस ग़ज़ल में पाँच अशआर हैं.
यह शे'र मतला (पहला शे'र) है:
अँधेरे चन्द लोगों का अगर मक़सद नहीं होते
यहाँ के लोग अपने आप में सरहद नहीं होते
मक़सद, सरहद, बरगद इत्यादि ग़ज़ल के क़ाफ़िए हैं.
"नहीं होते" ग़ज़ल की रदीफ़ है
"मक़सद नहीं होते" "सरहद नहीं होते" ये ग़ज़ल की ज़मीन है.
चले हैं घर से तो फिर धूप से भी जूझना होगा
सफ़र में हर जगह सुन्दर-घने बरगद नही होते
ये ग़ज़ल का मक़ता (आख़िरी शे'र) है.
और बहर का नाम है "हजज़"
वज़्न है: 1222x4
अँधेरे चन्द लोगों का अगर मक़सद नहीं होते
यहाँ पर अ के उपर चंद्र बिंदू है सो उसे लघु के वज़न में लिया है, जैसा हमने उपर पढ़ा.
"न" हमेशा लघु के वज्न में लिया जाता है.
न भूलो, तुमने ये ऊँचाईयाँ भी हमसे छीनी हैं
1222 1222 1222 1222
यहाँ पर ने" को लघु के वज्न में लिया है.और हमसे को हमस के वज्न में लिया है.
हमारा क़द नहीं लेते तो आदमक़द नहीं होते
इस मिसरे में "तो" को लघु के वज्न में लिया है.
बहुत कुछ सीखने को है , ये इल्म तो एक साग़र है . आप उम्र भर सीखते हैं और शुरु में हमने चर्चा की थी कि शब्द परमात्मा है तो परमात्मा को पाने के लिए हम सब जानते हैं कि गुरु का क्या महत्व है. गुरु के बिना ये विधा सीखना मु्श्किल है लेकिन असंभव नहीं. मैं ये इसलिए कह रहा हूँ कि गुरु मिलना भी सबके नसीब मे नहीं होता लेकिन गुरु नहीं है तो हताश होकर लिखना छोड़ देना भी ग़लत है.ये शायरी कोई गणित नहीं है जो किसी को सिखाई जाए कोई भी इसे सीखकर अगर कहे मैं शायर बन जाऊँगा तो वो धोखे में है, ये तो एक तड़प है जो हर सीने मे नहीं होती. बहरें अपने आप आ जाती हैं जब ख़्याल बेचैन होता है. निरंतर अभ्यास लाज़िम है ,यह नहीं कि आज ग़ज़ल लिखो और सोचो कि कल हम शायर बन जाएंगे तो ग़लत होगा. कितने कच्चे चिट्ठे लिखे जाते हैं फाड़े जाते हैं फिर जाकर कहीं माँ सरस्वती मेहरबान होती हैं. आप इस फ़ाइलातुन से घबराए नहीं. बहरें बनने से पहले भी बहरें थीं वो तो एक ताल है जो शायर के अचेतन मे सोई होती है. जब बहर का पता नहीं था उस वक्त की ग़ज़लें निकाल कर देखता हूँ तो कई ग़ज़लें ऐसी हैं जो बहर मे लिखी गईं थी . आज जब बह्र का पता है तो अब पता चल गया यार ये तो इस बहर मे है. कई शायर ऐसे भी हुए हैं जिन्हें इस का इल्म कम था लेकिन उनकी सारी शायरी वज्न मे है. जब ये बहरें सध जाती है तो सब आसान हो जाता है. बस दो चीजें बहुत महत्वपूर्ण हैं मश्क (अभ्यास) और सब्र (धैर्य)
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नोट: -
ग़ज़ल पर विशेष स्तंभ आरंभ करते हुए साहित्य शिल्पी मंच हर्षित है, तथा अपने पाठकों से अनुरोध करता है कि इस स्तंभ के अंतर्गत आप क्या पढना-जानना चाहते हैं से sahityashilpi@gmail.com पर अवश्य अवगत करायें। इस महत्वाकांक्षी स्तंभ के सूत्रधार हैं "सतपाल ख्याल" ।
हमारी कोशिश रहेगी कि श्री प्राण शर्मा, श्री द्विजेन्द्र द्विज, श्री मंगल नसीम आदि गज़ल के विद्वत जनों के विचार भी इस विधा को ले कर प्रस्तुत किये जा सकें। सतपाल जी की के संचालन में आपके प्रश्न व शंकायें भी विवेचित की जायेंगी तथा समुचित उत्तर प्रस्तुत किये जायेंगे।
हमारी कोशिश आपको कविता या ग़ज़ल लिखना सिखाने की नहीं है क्योंकि काव्य आपके भीतर की प्रतिभा है, आप अपने कथ्य के स्वयं विधाता है और इस प्रतिभा को सिखाने का कोई तरीका नहीं। हाँ, ग़ज़ल के लिखे जाने की एक तकनीक है जिसमें पिरो कर आप अपने शब्दों और कथ्य को कुंदन बना सकते हैं।
यह प्रयास आपसे प्रोत्साहन की अपेक्षा रखता है। प्रस्तुत आलेख भूमिका भर है, हम ग़ज़ल की बारीक से बारीक विशेषताओं पर न केवल बात करेंगे अपितु महत्वपूर्ण संदर्भों पर परिचर्चायें भी आयोजित करेंगें।
आपका स्वागत है..
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103 टिप्पणियाँ
मै कोई बहुत बड़ा उस्ताद शायर नहीं हूँ लेकिन कोशिश की है कि जो जाना या पढ़ा वो सबसे बांट सकूं. सुझा्वों का हर समय स्वागत है.
जवाब देंहटाएंये सब द्विज जी के आशीर्वाद से ही है और बाकी उस्ताद ग़ज़लकारों का सहयोग और आशीश चाहता हूँ.यहाँ गल्ति हो बहां डांट भी देना और उसे सही भी करावा दें.
मकसद ये है कि इस विधा बहुत कुछ उर्दू मे लिखा गया, देवनागरी मे ये प्रयास कम हुआ तो ये एक प्रयास है. मै एक शायर हूँ लेकिन कोई भाषाविद नहीं, जितना बन पाया किया बाकी आप के प्रशनों और सुझावों का इंतज़ार रहेगा.ये कोई ग़ज़ल सिखाने का स्कूल नही है बस एक पहल है कि जानकारी एक जगह पर इकट्ठा हो और सबको लाभ मिले मैने १५ सालों मे जो जाना , पढ़ा और सीखा उसी के आधार पर पेश किया.
न भूलो, तुमने ये ऊँचाईयाँ भी हमसे छीनी हैं
हटाएं1222 1222 1222 1222
न 1 भू 2 लो 2 तु 1 म 1 ने 2 तो बहर 122 ,112 हुई यहाँ 1222 कैसे सर् प्लीज समझाइए।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंयहाँ पे जो दो वर्ण साथ में बोल सकते हैं उन्हें १ १ न मानते हुए सीधा २ ही माना जाता है जैसे
हटाएंन भूलो ,तुमने ये ऊंचाईयां भी हमसे छीनी है
१ २२ २ २
यहाँ पे तुम साथ में बोला जाता है इसलिए उसे १ १ की जगह सीधा २ लिखा जाता है ये अरकान का क़ायदा है
तुमने को तुम,ने हो गया तुम 2 ने 2
हटाएंSir..बहुत ही सरल शब्दों में गज़ल की आधारभूत जानकारी आपने प्रस्तुत की है। नए लोग भी पढ़ेंगे तो अवश्य ही कुछ न कुछ लिखने का प्रयास करेंगे। साधुवाद 🙏
हटाएंरवि जी नमस्कार ,
हटाएंहम जानते हैं कि ग़ज़ल या तो कही जाती है या सुनी जाती है , इसलिये शब्दों की लिखावट से ज़्यादा उनका उच्चारण मायने रखता है, ग़ज़ल के व्याकरण के अनुसार तुम शब्द को 1+1 नही पढ़ सकते, जैसे तन, धन, मन इन सारे शब्दों का उच्चारण एक खंड (syllable)में होता है इसलिये
न (1) भू (2) लो (2) तुम (2), ने (1) ये (2) ऊँ(2) चा (2), ई (1) याँ (2) भी (2) हम (2) , से (1) छी (2) नी (2) हैं (2)
तुमने ka wajan 22 hoga… तुम (२) ने (२)
हटाएंBhai use Matra gira kar lia hai agar seekhni hai to 8094991022 jude watsapp only.
हटाएंजब ने 1 है ये 2 कैसे हम समझ नही पा रहे है
हटाएंसर तुम को क्या कभी १ ले सकते हैं ?
हटाएंसतपाल जी,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रस्तुति बहुत ही अच्छी है। इस आलेख से खाखा तो खिंच गया है साथ ही सीखने के लिये मैने कमर भी कस ली है। आपसे अनुरोध है कि धीरे धीरे से घूंटी पिलायें। अलगे लेख में सारी परिभाषायें देने का यत्न करें। द्विज साहब की कोई गज़ल को उदाहरण ले कर करेंगे तो एक पंथ दो काज हो जायेगा। इस स्तंभ से और आपसे बहुत अपेक्षायें हैं।
बहुत अच्छा लेख है। भूमिका थोडी जटिल हो गयी है। जिसे हम बेसिक कहते हैं, हमारे जैसे अनाडी वही से सीखना आरंभ कर सकते हैं।
जवाब देंहटाएंइस महत्वपूर्ण स्तंभ के लिये हार्दिक बधाई।
सतपाल जी सिखाने के लिये भाषाविद होने की आवश्यकता नहीं। आप नें बहुत अच्छी तरह भूमिका प्रस्तुत की है। थोडी जटिल हो गयी है बिगनर्स के लिये। अगले आलेख की प्रतीक्षा है।
जवाब देंहटाएंसुंदर है |
जवाब देंहटाएंलेकिन - शुरुवात थोड़ी सरल हो तो अच्छा है | सब का सब एक ही लेख में नही होना चाहिए इससे पाठक को एक साथ सब हजम कराने में दिक्कत होती है |
आगे की शुभकामनाएं |
-- अवनीश तिवारी
Khuch h
हटाएंपंकज, अवनीश और रितु जी,
जवाब देंहटाएंये सब जटिल तो है और ये सब एक दम से हज़म भी नही होगा हाँ , अगर आप थोड़ा बहुत जानते हैं तो मदद ज़रुर मिलेगी.गज़ल विधा ही ऐसी है कि सब्र के बिना तो गुज़ारा हो ही नहीं सकता. आप लेख का प्रिंट लेके आराम से फ़ुरसत मे पढ़ें और फिर कोई प्रशन हो तो भेजें.मेरा हौसला बढ़ाने के लिये शुक्रिया.
धन्यवाद
सतपाल जी
जवाब देंहटाएंआप ने बहुत सार्थक प्रयास किया है ग़ज़ल के बारे में बताने का....आप ने सही कहा है.... ग़ज़ल लिखना मुश्किल है...समंदर से मोती खोज लाने जैसा दुष्कर काम है...हर बार गोते लगाने पर भी मोती नहीं मिलता कंकर पत्थर या गारा ही हाथ आता है...सतत प्रयास से ही कुछ कहा जा सकता हैं...एक बात और ठीक कही आपने गुरु भी किस्मत से मिलते हैं और जब मिलते हैं तो आँखें खोल देते हैं...आज भी जिसे मैं समझता हूँ की बहुत सही ग़ज़ल कही है उस में ऐसी ऐसी गलतियाँ गुरु निकालते हैं की दांतों तले उँगलियाँ दबानी पढ़ती हैं...
मेरा सुझाव है की आप हर श्रृंखला में अलग अलग शेर या ग़ज़ल की तकतीअ करके समझाते जायें तो सीखना आसान हो जाएगा...ये जो मात्राएँ गिराने वाली बात है समझनी थोडी मुश्किल होती है...(मुझे आज तक नहीं आयी...गुरु प्राण साहेब के कदम कदम पर समझाने के बावजूद ). बहुत से शेर या ग़ज़ल की तकतीअ करनी आसान नहीं होती.बहर का भी पता नहीं चलता.
आप के प्रयास से हो सकता है कुछ अच्छे शायर सामने आ जायें. गुरु पंकज सुबीर जी ने भी ग़ज़ल की विधा सिखाने का बहुत ही सफल प्रयास किया था जिसके फल स्वरुप हम जैसे नौसिखिये भी कुछ कहने की कोशिश करने लगे हैं...द्विज जी का भी इसमें बहुत योगदान रहा है...
सफर मुश्किल है लेकिन आगे बढिए हम आप के साथ हैं...(सीखने में)
नीरज
धन्यवाद नीरज जी.
जवाब देंहटाएंGazal vidhaa par satpal jee kaa
जवाब देंहटाएंsarahniy hai.Achchhee jaankaree
deta hai.
प्राण जी,
जवाब देंहटाएंआपका बहुत शुक्रगुज़ार हूँ. आप का आशीर्वाद है. ये जानकारी उस के लिए बहुत माअने रखती है जो लिखता तो खूब है लेकिन मीटर से मार खा जाता है.
मैं कवि तो नहीं हूँ लेकिन आपका लेख पढ कर यह समझ गया हूँ कि कविता लिखना बच्चों का खेल नहीं है। बहुत अच्छा लेख है। आपके सही कहा है कि इसका प्रिंट ले कर इसे आराम से पढ कर विवेचना करना सहायक हो सकता है।
जवाब देंहटाएंआपने सही कहा अभिशेक जी, लेकिन इतना डरने वाली बात नही है ये सब उपर से कठिन या उबाऊ है लेकिन ये तो बहुत ही मज़ेदार है, भाषा का भी अपना एक गणित है जो दिल और दिमाग दोनो से सीखा जाता है.
जवाब देंहटाएंक्या बात है! ये लेख तो सहेज कर रखने लोयक है। मगर सिर्फ़ हिन्दी समझने वाले के लिये जिसे उर्दू न आती हो, ये अरक़ान आदि समझना मुश्किल है। महर्षि साहब की किताब है- गज़ल निर्देशिका- उसे पढ़ें, बहुत सरल आसान तरीक़े से बहर, वज़न आदि को समझाया गया है, जैसे कि "फ़ा इला तुन" के लिये- "बन तपो तप" आदि।
जवाब देंहटाएंऐसे लेख आते रहने चाहिये...शुक्रिया
ये गजल निर्देशिका कहा मिलेगी दी दी
हटाएंThanks Satpal je. Informative.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
Main gazal mein ruchi rakhne walon
जवाब देंहटाएंko salaah doonga ki ve Satpal khyal
jee ke lekh ko baar-baar padhen.
Mushkil baat bhee aasaan lagegee.
Gazal seekhnaa itna mushkil nahin
hai .zaroorat hai seekhne-parkhne,
adhyayan ,abhyaas aur vichaar-
vimarsh karne kee.Aesaa seekhnaa
chahiye jaese Satpal jee ne Shri
Dwij se seekha hai aur seekh rahe
hain.Urdu ke mahan gazalkar Naresh
Kumar "Shad"ne to gazal kee
khoobian jaanne ke liye teen-teen
ustadon kee maar khaayee thee.
Satpal Ji,
जवाब देंहटाएं"Ghazal ko jane" aalekh kaabile tareef hai.Kaavya,Ghazal ke baare me itni baarik aur detailed information ek hi jagah par mil jaye to koi khazana haanth aa gaya lagta hai.Ye aalekh mere jaise un tamaam logon ke liye bahut maayne rakhta hai to Kaavya,ghazal me interest rakhte hain.
Saare mantra,shlok aur ved laybaddha hain aur unka base chhand hai padkar hairat hui.
Ummid karta hun aap aise hi aage bhi hamein ghazal se jude hui tamaam pahluon se rubaru karwate rahenge.
Shukriya,
Anees A.Quraishi
Dear Satpal
जवाब देंहटाएंमैं tour पर था , इसलिए थोड़ा late हो गया ,अपना ख्याल जाहिर करने के लिए .....
सबसे पहले तो आपको और sahitya shilpi को बहुत बहुत बधाई ...
मुझे ग़ज़ल लिखनी नही आती , मेरी अपनी form है , पर मेरी हमेशा से ही ये इच्छा है की मैं ग़ज़ल लिखना सीखूं .. और इस लेख को पढने के बाद मुझे ये यकीं हो गया है कि मैं कुछ न कुछ तो सीख ही जाऊंगा ..
लेख ,शायद लंबा हो गया है , मुझे फिर से पढ़ना पडेंगा , ग़ज़ल लिखना यकीनन टेक्नीकल है , और इसे आप जैसे उस्तादों से ही सीखा जा सकता है .. लेकिन मेरी एक request है कि आप थोड़ा धीरे धीरे समझाये , और हो सके तो एक छोटी सी competion रखे कि हर कोई एक या दो शेर लिखे , आप उसको देखे और उसके बहने से suggest करें..
satpal ji , आपने बहुत बड़ा जिम्मा उठाया है , और नए पाठको को सीखने को मिलेंगा , और हो सके तो मुझे जैसा भी सीख जाएँ...
once again kudos to you and shahitya shilpi team..
regards
vijay
बहुत ज़रूरी लेख
जवाब देंहटाएंकई लोग जान पायेंगे की जो वो लिख रहे हैं और कुछ भी हो ग़ज़ल तो नहीं ही है!!!!!!!!
गजल विधा पर बहुत बडी पहल। मैं भी आपसे अनुरोध करूंगी कि विषय को छोटे छोटे टुकडों में बाँट कर प्रस्तुत करें।
जवाब देंहटाएंसतपाल जी नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंसबसे पहले तो मैं आपको बहोत बधाई देना चाहूँगा आपके इस सार्थक प्रयास के लिए ,ये बहोत बहोत बधाई आप्को...
मैं आपका ध्यान एक जगह पे आकृष्ट करना चाहता हूँ के एक जगह आपने बिन्दु (.) को जो शब्द के ऊपर आता है को २ गिनने को कहा (जैसे:बंद(21) छंद(21) और चंद्र बिंदु को तकतीअ में नहीं गिनते जैसे: चाँद (21)संयुक्त वर्ण से पहले लघु को गुरु मे गिना जाता है जैसे:)फ़िर आपने द्विज जी के ग़ज़ल में निचे ...
(अँधेरे चन्द लोगों का अगर मक़सद नहीं होते
यहाँ पर अ के उपर चंद्र बिंदू है सो उसे लघु के वज़न में लिया है, जैसा हमने उपर पढ़ा.
"न" हमेशा लघु के वज्न में लिया जाता है.)
कृपया कर मेरे इस शंका का समाधान करें ,, कृपया इसे अन्यथा न ले ...
आपका
अर्श
बहुत उम्दा शुरुआत , इन्तजार रहेगा
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी अिभव्यिक्त है । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख- उदूॆ की जमीन से फूटी िहंदी गजल की काव्यधारा- िलखा हैं । समय हो तो पढें और प्रितकिर्या भी दें -
जवाब देंहटाएंhttp://www.ashokvichar.blogspot.com
सतपाल जी आपका यह लेख सराहनीय है। आपको और साहित्य शिल्पी को बधाई।
जवाब देंहटाएंप्रिय अर्श जी, आप क्या पूछ्ना चाहते हैं फिर से बताएँ? मै सब बड़े और बज़ुर्ग शायरों का शुक्रगुज़ार हूँ कि मेरा हौसला रक्खा ,खासकर प्राण जी, महावीर जी और रंजन जी का . मै रंजन जी से अनुरोध करता हूँ कि इस बहस को जारी रखें और इस कालम को साईड्बार मे जगह दें ताकि रोज़ बहस हो सके.सबसे ज्यादा शुक्रगुज़ार हूँ द्विज जी का जिनके बिना ये सब पूरा न होता.
जवाब देंहटाएंसतपाल जी,
जवाब देंहटाएंआपका बहुत धन्यवाद. इतनी जानकारी देने वाला यह लेख अपने आप में संग्रहणीय है.
ग्यान्वर्धक....और हम जैसे नये छात्रों के लिये नितांत जरूरी आलेख...
जवाब देंहटाएंवैसे पंकज सुबीर जी तो गुरू ठहरे ही हमारे,आपसे भी शंका निवारण करते रहेंगे आपके इस आलेख के बहाने..
सतपाल जी एक शक रह गया था.आलेख में आप बताते हैं कि ""न" हमेशा लघु के वज्न में लिया जाता है"....तो इसमें छूट है कि नहीं यदि हम "न" की जगह "ना" लिखे तो जरूरत के मुताबिक इसको २ के वजन में गिन सकते हैं कि नहीं?
ये छूट नही है गौतम जी न को ना नही न ही लिखना पड़ेगा.ये लघु के वज्न मे ही लिया जाएगा.
जवाब देंहटाएंअर्श जी आप अपना प्रशन दोहराएँ.मै समझा नही आप क्या पूछ्ना चाहते हैं.
जवाब देंहटाएंShabdon ka wajan itni baariki se samjhane ke liye shukriya.Isse gazal likhna seekhne me kaafi madad milegi.
जवाब देंहटाएं---Anu
dhanyawaad..agli kadiyon ki prateeksha rahegi..
जवाब देंहटाएंसतपाल जी,
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति...
धन्यवाद आपका ....
Satpal Khayaal ji ! Aapne bahot barhaa ehsaan kiya hai unn logo pr jo sachche mn se ghazal kehna seekhna chaahte haiN. Aapki ye koshish qaabil.e.zikr hai aur qaabil.e.ehtraam bhi.
जवाब देंहटाएंnek khwahishaat ke sath...
---MUFLIS---
गजल विधा की बारीकियों को इतनी अच्छी तरह से समझाने के लिए इस पहली कड़ी का स्वागत है और निश्चित रूप से इससे लेखकों और पाठकों दोनों का ज्ञान वर्धन होगा. आभार
जवाब देंहटाएंसतपाल जी नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंमेरा सवाल ये है के शुरुआत में आपने चंद्र बिन्दु को जो किसी शब्द के ऊपर लगता है को २ के वजन में लिया है फ़िर इसे आपने ही सिर्फ़ बिन्दु को १ के वजन में गिना है ये ही मेरा शंका है के इसे क्या गिना जाए आपने द्विज जी के उदहारण को फ़िर से देखे..
जैसे:बंद(21) छंद(21) और चंद्र बिंदु को तकतीअ में नहीं गिनते जैसे: चाँद (21)संयुक्त वर्ण से पहले लघु को गुरु मे गिना जाता है....
मगर फ़िर आपने ने ही अँधेरा में अ के ऊपर के चंद्र बिन्दु को एक गिनने के लिए कहा है .........
कृपया इस शंका का समाधान करे...
अर्श
अर्श साहब और सत्पाल जी,
जवाब देंहटाएंवैसे मुझे शायद बीच में कुछ कहना नहीं चाहिये और फिर ये लेख अभी पूरा हुआ नहीं है, आगे मुझे यकीन है कि सतपाल जी इन बातों की तरफ़ ध्यान दिलायेंगे कि ग़ज़ल लिखते वक़्त उर्दू में हमें एक सुविधा प्राप्त है, वो ये कि हम फ़्लो में रहते हुये, मात्राओं को गिरा सकते हैं...यानि कि अंधेरे में अं को २ या १ (गज़ल के बहर अनुसार) पढ़ा जा सकता है। और कई उदाहरण दिये जा सकते हैं जो ज़रूर इस लेख में हमें आगे मिलेंगे। ये बातें गज़ल लिखते लिखते प्रैक्टीस से ही आती हैं। वैसे सीखने का तो कोई अन्त नहीं।
हर्श जी मैने ये कहा है कि..अनुस्वर वर्णों को गुरु में गिना जाता है जैसे:बंद(21) छंद(21) और चंद्र बिंदु को तकतीअ में नहीं गिनते जैसे: चाँद <<
जवाब देंहटाएंअर्थात अगर किसी वर्ण के ऊपर चंद्र-बिंदू है उसे नेग्लेक्ट कर देते हैं जैसे: अँधेरे चंद लोगों का अगर..तो ये हो 1222 122.अगर सिर्फ़ बिंदी है तो गुरु वर्ण अगर चंद्र-बिंदू है तो लघु न कि गुरु. जैसे अँ(1)यहां पर सिर्फ़ अ का व्ज़्न लिया है हमने चंद्र-बिंदू को छोड़ दिया इसलिए अ का वज़्न(1) एक लिया है. और चंद मे क्योंकि च के उपर बिंदी है तो उसे गुरु मे लिया.मेरे ख्याल से अब आप समझ गए होंगे. चंद्र-बिंदू को तकतीअ करते वक्त छोड़ दे.और जिस वर्ण के ऊपर बिंदू है उसका वज्न दोगुना हो जाएगा जैसे अँधेरे(122)
doosaraa Arsh ji jo aapne kaha hai ki chaaNd ko 2 ke vazn me liya hai vo isliye ki chaaNd ch ke saath bade A kI matraa hai.
जवाब देंहटाएंचाँद का वज़्न 21 है क्योंकि चंद्र बोंदु छोड़ दिया फिर भी चाँद को अगर तोड़ें तो चा + द
एक बड़ी आवाज़ एक छोटी तो इसका वज़्न हुआ 21आप हिंदी का व्याकरण देखें और लघु-गुरु के बारे मे ज़रुर पढ़ें. मदद मिलेगी.
सतपाल जी और साहित्य-शिल्पी टीम को इस प्रयास के लिए मेरी तरफ से बहुत-बहुत धन्यवाद। अब हम जैसे गज़ल के आशिकों को सही आशिकी का मज़ा मिलेगा।
जवाब देंहटाएं-तन्हा
...(मुझे आज तक नहीं आयी...गुरु प्राण साहेब के कदम कदम पर समझाने के बावजूद )
जवाब देंहटाएंमेरी टिपण्णी में लिखी इस लाइन का बहुत से मित्रों ने ग़लत अर्थ ले लिया और समझा की मैं अपने गुरु प्राण शर्मा साहेब की समझाने की क्षमता पर प्रश्न चिन्ह लगा रहा हूँ...जब की ऐसी बात सोचना भी मेरे लिए पाप है. प्राण साहेब मेरे गुरु हैं और मेरे दिल में उनके लिए उतना ही सम्मान है जितना इश्वर के लिए होता है...उनके बारे में कोई अपमान जनक टिपण्णी की बात मैं सपने में भी नहीं सोच सकता...जिन मित्रों को ऐसा आभास हुआ है उनसे विनम्र प्रार्थना है की मेरी भावनाओं को समझें और जो लिखा है उसके भाव को जाने... मेरे ऐसा लिखने से अगर किसी मित्र की भावनाएं आहत हुई हैं तो मैं सार्वजनिक रूप से उनसे माफ़ी मांगता हूँ.
नीरज
क्या मैं "अजान हो गई" के लिए "नमाज हो गई" काफिया ले सकता हूं?
हटाएंओ के हिसाब से।
Nhi le sakte hai.n aap kyu ki azan me aan kafiya hai namaz me aaz kafiya h ..
हटाएंAgar seekhna hai to 8094991022 par watsapp kare
सतपाल जी शंका का समाधान तो बहोत ही बेहतर तरीके से किया आपने ...... इसके लिए धन्यवाद् फ़िर हम चाँद को २१ और चंद को ११ गिने या फ़िर पुरी तरह से सिर्फ़ २ भी गिन सकते है ?
जवाब देंहटाएंअर्श
प्रिय भाई अर्श जी,
जवाब देंहटाएंचंद , चन्द या ‘चन् द’ एक ही बात है और वज़्न है 21
यानि चन् + द=21
चाँद= चाँ+द=21 (न कि चान्+द)
यानि चाँ या चा=2
और चन्द या चंद चँद नहीं है चँद होता तो 2 होता.
जवाब देंहटाएंजैसे लफ़्ज़ अँधेरा अन्धेरा नहीं है इस लिए 122 है
अन्धेरा होता तो वज़्न 222 होता.
NAsik swar do tarah ke hote hain--
जवाब देंहटाएंlaghu aur deerg.Laghu nasik swar
yani dhwani mein chandra bindu ka
prayog hota hai aur dheerg nasik
swar yani dhwani mein kewal bindu
ka.urdu mein ek hee nasik swar hai
aur vo hai urdu akshar noon .Hindi
mein "Andhera"ka "A"ke upar chandra
bindu ka prayog hota hai aur
"Andhiara" ka "A"ke upar kewal bindu kaa lekin chandra bindu aur
bindu ke prayog mein koee anter
nahin hai.Mere ek shayar dost kee
ye daleel bhee halaq ke neechee
nahin utree ki "ALaf" yani"A"
ke baad halant"Noon"yani "N" aane
par bhee "Alaf"yani "A" laghu hee
rahta hai.Aesa hai to "Ang" aur
"Ant" jaese shabdon ke "A"laghu
hone chaahiye.EK shabd hai-"Tumhe"
"Tu"aur "He"ke beech halant "M"
hai.Urdu mein "M"halant nahin likha
jataa hai."Tumhe"kaa vazan hona
chahiye-22 yani ss "Tanha"shabd ke
vazan ke brabar lekin "Tumhe"kaa
istemaal 1 2 yani laghu aur dheerg
mein kiyaa jataa hai.
Ek prashn hai ki "N"ko laghu
mein prayog kiyaa jaanaa chaahiye
yaa dheerg mein?Iske baare mein
main yehee kahungaa ki itihaas
apne ko dohraataa hai.Kabeer aur
Tulsee das jee ke zamaane "Naahee"
chalta thaa.Ab to aam bola jaataa
hai--"Aao naa","Jao naa"aur"Khao
naa".Punjabi mein to "Na"Hee chalta
hai.Hindi kavita ya Urdu shayree
mein kal "Na"kaa prayog hone lage to koee aashcharya kee baat nahin hai.Vaese bhee dheerg "Na"se hee
Urdu mein namuraad, namumkin, nasamajh,nakaam,napaak aur nalaayak
jaese lafz bane hain.
Bhasha nadia kaa bahtaa panee
hai.Na jaane aage jaakar apnna kya
roop dhaaran kar le!
bahut hi achchha lekh ahi. satpal ji kripya aage yeh bhi batayen ki bahar me ghazal ko gaane ke kya niyam hai?
जवाब देंहटाएंप्राण जी और द्विज जी नस्कार,
जवाब देंहटाएंआप दोनों के द्वारा दिया गया ज्ञान सहेजने के लायक है ... बहोत खूब ....
आभार
अर्श
सतपाल जी आपकी अगली लेख का इंतजार रहेगा...वेसे पंकज सुबीर सर का लेख भी मैंने पढ़ा है ..... मगर आपके लेख का भी इंतजार करूँगा
जवाब देंहटाएंअर्श
प्राण जी को चरण-स्पर्श
जवाब देंहटाएंथोड़ी-सी उलझन हो गयी अब.वही "न" को लेकर.
बिंदी और चन्द्र बिंदी के सन्दर्भ में निवेदन है कि हिन्दी बिंदी का उच्चारण उसके बाद आने वाले शब्द के वर्ग के अंतिम अक्षर के अनुसार होता है. जैसे- हिंदी में बिंदी के बाद 'द' त वर्ग का है. त वर्ग का अंतिम अक्षर 'न' है. इसलिए बिंदी माँ उच्चारण 'आधा न या न्' होता है. 'प' वर्ग का अक्षर बिंदी के बाद हो तो बिंदी का उच्चारण 'आधा म या म्' करें. जैसे कंप = कम्प.
जवाब देंहटाएंजन्म को 'ज' पर बिंदी लगाकर 'म' जोड़कर नहीं लिखा जा सकता. 'य' वर्ग का अक्षर के पहले बिंदी हो तो उच्चार 'आधा न' होता है. यथा- अंश, वंश.
हंस (पक्षी) और हँस (क्रिया) की मात्राएँ क्रमशः २+१=३ तथा १+१=२ होती हैं.
यह ध्वनि विज्ञान पर आधारित है. शब्दों के उच्चारण में लगने वाले समय के अधर पर मात्राएँ लघु या गुरु होती हैं.
'ना' का प्रयोग आंचलिक है, साहित्यिक या टकसाली हिन्दी में 'न' ही स्वीकार्य है. संत कवियों में से किसी ने खडी बोली में नहीं लिखा.
उर्दू और हिन्दी के व्याकरण में अंतर का कारण उनका शब्द भंडार नहीं संस्कृत-प्राकृत तथा अरबी-फारसी हैं जहाँ से उनका उद्गम है. साहित्यिक लेखन करनेवाले जिस भी भाषा-बोली में लिखें उसके शुद्ध रूप को जानें यह अनिवार्य है अन्यथा उनका लेखन स्तरीय नहीं माना जायेगा.
एक बहुत जरूरी विषय पर आपने शुरुआत की है..शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंसभी प्रतिक्रियाओं और प्रस्तुतियों के प्रति समान स्वागत और निरंहकार भाव रखिएगा, गुरुओं का बहुत आशीर्वाद पाइयेगा..
सतपाल जी बहुत अच्छा वर्णन दिया है.....परन्तु गज़ल मूलतः अरबी विधा है फारसी में बाद में आयी फिर उर्दू व हिन्दी में .....
जवाब देंहटाएंसतपाल जी बहुत अच्छा वर्णन दिया है.....परन्तु गज़ल मूलतः अरबी विधा है फारसी में बाद में आयी फिर उर्दू व हिन्दी में .....
जवाब देंहटाएंसतपाल जी बहुत अच्छा वर्णन दिया है.....परन्तु गज़ल मूलतः अरबी विधा है फारसी में बाद में आयी फिर उर्दू व हिन्दी में .....
जवाब देंहटाएंसतपाल जी बहुत अच्छा वर्णन दिया है.....परन्तु गज़ल मूलतः अरबी विधा है फारसी में बाद में आयी फिर उर्दू व हिन्दी में .....
जवाब देंहटाएंक्या बिना मतले के भी गजल हो सकती है, ऐसा अरुज में कहा गया है या नहीं? अगर हो सकती है तो क्या किसी उस्ताद ने ये प्रयोग किया है। कृपया संदर्भवत मार्गदर्शन करें, मुझे कहीं जवाब देना है, मैने एक गजल लिखी जिसमें काफिये कम थे और मतला नहीं बन पाया था। पांच ही काफिये मिले जिससे कि पांच शेर लिख पाया, पर दो काफिये कम पड़े। मार्गदर्शन करें मतले के संदर्भ में सादर।
जवाब देंहटाएंsirji bahut jururi jaankaari hai ham sabhi ko fayeda hoga dhanywaad,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
जवाब देंहटाएंश्रीमान सतपाल ख़्याली जी बहुत अहम और बढ़िया तरीके से आपने ग़ज़ल लिखने के बारे में जानकारी दी है, आगे की जानकारी का इंतजार है !
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक धन्यवाद !
( बेगराज खटाना,दिल्ली )
शुक्रिया,"मै नया हूँ क्या हुआ तुम तो पुराने हो 'प्रदीप'
जवाब देंहटाएंदेखना मै नाव कागज़ की चलाऊँगा ज़रूर "
में नेपाल से हु हामारे इधर भि गजल का माहोल बहुत बड़ा है मे भि लिख्ता हु मगर इघर गजल मे विबाद है खास कर काफिया मे ।
जवाब देंहटाएंमें यह बात पुछ्ना चाहता हूँ आप से कि काफिया दोहराने मिल्ता हे या नहीं गजल में ? जैसे मन, दुश्मन, आगमन जैसे काफिया एकी गजल मे रख्नेको मिल्ता हे की नहीं? पिलीज इस्का उत्तर चाहता हु मे।
प्रश्न कर्ता :- nk ajnabhi
7046057672
आप बिल्कुल राख़ सकतें हैं अलग अलग अर्थ हैं यिन सभी का मैं भी नेपाल से हूं ।
हटाएंतर अहीले मुम्बई मा छू bba पढ़दाई गरदै
ख़ुशी लग यो यार कता बाट भेटे हजुर लाई
8114410347/8655435735
हटाएंप्रशंसनीय
जवाब देंहटाएंप्रशंसनीय
जवाब देंहटाएंरोचक जानकारी
जवाब देंहटाएंसार्थक जानकरी
जवाब देंहटाएंसचमुच बहुत ही ज्ञान वर्धन जानकारी दी है आपने रोचक शैली में । मैं विगत 37-38 वर्षों से हिन्दी में कविता लिखता हूँ ।2012 में "पंकज-गोष्ठी" प्रकाशन से 'मेरी कविताएँ'नामक काव्य-संग्रह भी प्रकाशित हुआ है । तकरीबन 20 साल पहले लगभग 15 ग़ज़लें कही थी। लेकिन पिछले एक वर्ष में लगभग 45 गजलें कहीं है मैंने ।अब जब कुछ मित्रों को दिखाई गजलें तो बहुतों ने तारीफ की, एक-दो गम्भीर आलोचक मित्रों ने बहरहाल और वज्ऩ में खामियों की ओर इंगित किया।तभी से मैं बहरहाल और वज्न की सही जानकारी लेना चाहता था। आपके इस लेख से मैं काफी लाभान्वित हुआ हूँ ।शुक्रिया। अमर पंकज
जवाब देंहटाएंसंशोधन - कृपया बहरहाल नहीं बल्कि बहर पढ़ें। अमर पंकज।
जवाब देंहटाएंमैं काफी अच्छे ख़याल लिख पा रहा हूँ। आपके आलेख ने मुझे दुविधा में डाल दिया है। क्या बैठ कर अपना सारा लिखा वापस चेक करूँ? क्या ये पूरा बिठाया जाता है या सुविधानुसार इसमें थोड़ा बहुत ध्वनि से भी खेला जा सकता है। जैसे आपके लेख में छोटा उ कई जगह 1 और कई जगह 2 कहा गया है (या फिर मेरे समझ की कमी से मुझे ऐसा लग रहा है) - अगर तक़लीफ़ न हो तो 2-3 ग़ज़लें आपसे राय लेने के लिए भेज सकता हूँ। लिखते हुए 30 साल से ज़्यादा हो चुके हैं। अगर वापस मुड़ा तो लगता है कि लिखने की नौबत ही न आयेगी।
जवाब देंहटाएंAAP chahe to humse jud sakte.n hai mera naam ibrahim hai 8094991022 yeh mera watsapp number hai ..
हटाएंपहले तो आपको नमन
जवाब देंहटाएंमैं काफी समय से लिख रहा हूँ
जिसको मैं गजल कहता था
अबसे पहले मैं काफिया, रदीफ नहीं जानता था
बहर भी होती हैं ए तो बिल्कुल भी नहीं
आपको पढा़ धन्य हो गया
अब मुश्किल ए है कि बहर में कैसे लिखा जाये
शेयर लिखकर बहर गिने या
पहले बहर निश्चित कर लें
इस वजह से मेरा लिखना भी रुक गया
सबसे बड़ी समस्या नये लोगों को होती है
कहाँ बड़ी बहर होगी और कहाँ छोटी
कहाँ बडी़ बहर छोटी हो जायेगी और छोटी बड़ी हो जायेगी, पता नहीं चलता
मगर आपकी कृपा से आज कुछ सीखा आगे भी आप गुरु का काम करेगें
उम्मीद है
आपका बहुत बहुत धन्यवाद,,,,
बिना बहर के ग़ज़ल या शेर लिखा जा सकता है क्या ? और क्या ये उचित रहेगा ?
जवाब देंहटाएंज्यादा महत्व बहर को देतें है मगर बिना बहभी लिख सकते हैं मेरे विचार में मगर मै भी बहर में कोशिश कर रहा हूं। बिना बहर के मैंने बहुत लिखें हैं।
हटाएंBina bahr ke nahi likh sakte bina bahr ke ghazal nahi sirf ek khayal hoga jiska koi wujood nahi hai
हटाएंमुश्किल तो है पर फिर भी लिखना पड़ेगा..
जवाब देंहटाएंकोई न कोई दिन शिख ही जाएंगे
सर
जवाब देंहटाएंमैं पहले गजल लिखने से डरता था। भाषा का विद्यार्थी नहीं हूं, न कभी रहा। मगर एक बार किसी शेअर पर टोक दिया गया।
आपने बहुत अच्छा लिखा कि बहर में लिखना हैं मगर बहर से पहले भी गजलें थी। बहर मन के भीतर से निकलती है। आपने बहर को बिल्कुल स्षष्ट करके बता दिया। अब मुझे वापस जोश आया है। आज से ही मैं लिखना शुरू कर रहा हूं। डर दूर हो गया है।
आभार।
अच्छा लेख है।
जवाब देंहटाएं#सतपाल सर के लेख के लिए उनका तहेदिल से शुक्रिया!
जवाब देंहटाएंपहली दफ़ा ग़ज़ल का नियम पढ़कर लगा कि मुझे अभी बहुत कुछ सीखना है..
ग़ज़ल और शेर लिखते वक्त रदीफ़ और काफिया तो बना लेता हूँ परन्तु नियम के तहत लेख पूरा नहीं कर पाता हूं..
कृपया आप सब बड़े महानुभाव एवं बन्धुजन अपने इस बालक #शुभम शुक्ला का लेखन में मार्गदर्शन करें.. ����
इस कृपा हेतु मैं आपका आजीवन आभारी एवं ऋणी रहूँगा..
शुभम शुक्ला
I am glad to read the blog.
जवाब देंहटाएंThank you...
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बहुत सुंदर ढंग से समझाया है
जवाब देंहटाएंAlifbasl pe lekh ki krapa karen
जवाब देंहटाएंइससे अच्छा तो किसी ने नही सिखाया बहुत धन्यवाद आपका
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लेख।
जवाब देंहटाएंग़ज़ल में भी छ्न्द शास्त्र की ही लघु गुरु मात्राओं का प्रयोग होता है , यह जानकर अच्छा लगा । ग़ज़ल लिखने में पर्याप्त सुविधा मिलेगी । बहुत बहुत शुक्रिया जनाब ।
जवाब देंहटाएंआनंद पाठक के बाद साहित्य शिल्पी के माध्यम से आपको पढा़ है।गागर में सागर भरने सा लगा।आपकी अगली प्रस्तुति की प्रतीक्षा है।
जवाब देंहटाएं- सुनील 'श्री'
बहुत ही आसान तरिके से समझाय है सर आपने मैंआपका अभारी हूं
जवाब देंहटाएंश्रीमान कृपया बताये कि ऐसे शब्द जिनमे गजल का काफिया हो उसे मिसरे के अंत में लिख सकते हैं क्या
जवाब देंहटाएंजैसे अगर गजल का शेर होता
सफर में धूप है लेकिन चलो ढूंढे कोई गुम्बद
सफ़र में हर जगह सुन्दर-घने बरगद नहीं होते.
क्या यह सही है
बहुत अच्छी जानकारी बहुत बहुत आभार 👌🙏😍😊🌾🌼🍂💐
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
जवाब देंहटाएंपिछले कुछ समय के कोरोना काल में मैंने कुछ ग़ज़लें लिखने की कोशिश की है, लेकिन इन ग़ज़ल लिखने का सही तरीक़ा मुझे नहीं मालूम.
क्या कोई आप ऐसे ग़ज़लकार से संपर्क करा सकते हैं, जो मेरी कुछ ग़ज़लें में बहर और मीटर में सामंजस्य बैठा सके.
मेरी ये सहायता करने के लिए उचित और मानदेय देना मुनासिब समझता हूँ.
धन्यवाद !
9820151415
Ravindra
मेरे पास शब्दों के भण्डार तो बहुत हैं किन्तु चिन्ता इस बात कि है कि किन शब्दों का प्रयोग करके इस उपयोगी जानकारी के लिए धन्यवाद करूॅं। मैं नज़्म, ग़ज़ल, रूबाई और कविता लिखता हूॅं किन्तु सदैव सोचता था कि यदि वज़्न पर ही गहरा अध्ययन करने बैठ गया तो लिखूॅंगा कैसे। मैं तो बस विचारों के प्रवाह में लिख दिया करता हूॅं। वज़्न की जगह आकार–प्रकार और सॅंरचना का ध्यान अवश्य रखता हूॅं। आज आपकी जानकारी पढ़कर बहुत अच्छा लगा कि आपने अपने शब्दों से रचना करने पर ज़ोर दिया और वज़्न के गहरे अध्ययन को आलोचकों के लिए रखने को कहा। मैं आपका हार्दिक आभारी हूॅं।
जवाब देंहटाएंAgar kisi ko behar seekhni hai to 8094991022 par watsapp kare.n .
जवाब देंहटाएंThanks ..
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.