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ग़ज़ल की बुनियादी संरचना [स्थायी स्तंभ - ग़ज़ल: शिल्प और संरचना] - सतपाल 'ख्याल'


ग़ज़ल पर प्रस्तुत भूमिका के साथ ही अनेकों सकारात्मक प्रतिक्रियायें प्राप्त हुई। इन प्रतिक्रियाओं में एक बात अधिकतम पाठकों नें कही कि हम ग़ज़ल की बुनियादी बातों से इस स्तंभ का आरंभ करें, इससे बेहतर तरीके से इस विधा को समझा जा सकेगा। ग़ज़ल क्या है? इस विषय पर बडी चर्चा हो सकती है और हम आगे इस पर परिचर्चा आयोजित भी करेंगे। बहुत बुनियादी बात विजय वाते अपनी ग़ज़ल में कहते हैं:-

हिन्दी उर्दू में कहो या किसी भाषा में कहो
बात का दिल पे असर हो तो ग़ज़ल होती है।


यानी ग़ज़ल केवल शिल्प नहीं है इसमें कथ्य भी है। यह संगम है तकनीक और भावना का। तकनीकी रूप से ग़ज़ल काव्य की वह विधा है जिसका हर शे'र (‘शे'र’ को जानने के लिये नीचे परिभाषा देखें) अपने आप मे कविता की तरह होता है। हर शे'र का अपना अलग विषय होता है। लेकिन यह ज़रूरी शर्त भी नहीं, एक विषय पर भी गज़ल कही जाती है जिसे ग़ज़ले- मुसल्सल कहते हैं। उदाहरण के तौर पर “चुपके- चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है” बेहद प्रचलित ग़ज़ल है, ये “ग़ज़ले मुसल्सल” की बेहतरीन मिसाल है। ग़ज़ल मूलत: अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है स्त्रियों से बातें करना। अरबी भाषा की प्राचीन ग़ज़ले अपने शाब्दिक अर्थ के अनुरूप थी भी, लेकिन तब से ग़ज़ल नें शिल्प और कथन के स्तर पर अपने विकास के कई दौर देख लिये हैं।

ग़ज़ल को समझने के लिये इसके अंगों को जानना आवश्यक है। आईये ग़ज़ल को समझने की शुरुआत सईद राही की एक ग़ज़ल के साथ करते हैं, और सारी परिभाषाओं को इसी ग़ज़ल की रौशनी में देखने की कोशिश करते हैं:

कोई पास आया सवेरे सवेरे
मुझे आज़माया सवेरे सवेरे

मेरी दास्तां को ज़रा सा बदल कर
मुझे ही सुनाया सवेरे सवेरे

जो कहता था कल तक संभलना संभलना
वही लड़खड़ाया सवेरे सवेरे

कटी रात सारी मेरी मयकदे में
ख़ुदा याद आया सवेरे सवेरे


अ) शे'र:

दो पदों से मिलकर एक शे'र या बैंत बनता है। दो पंक्तियों में ही अगर पूरी बात इस तरह कह दी जाये कि तकनीकी रूप से दोनों पदों का वज़न समान हो। उदाहरण के लिये:


कटी रात सारी मेरी मयकदे में
ख़ुदा याद आया सवेरे सवेरे

शेर की दूसरी पंक्ति का तुक पूर्वनिर्धारित होता है (दिये गये उदाहरण में “सवेरे सवेरे” तुक) और यही तुक शेर को ग़ज़ल की माला का हिस्सा बनाता है।

आ) मिसरा

शे'र का एक पद जिसे हम उर्दू मे मिसरा कहते हैं। चलिये शे'र की चीर-फाड करें - हमने उदाहरण में जो शेर लिया था उसे दो टुकडो में बाँटें यानी –

पहला हिस्सा - कटी रात सारी मेरी मयकदे में
दूसरा हिस्सा - ख़ुदा याद आया सवेरे सवेरे

यहाँ दोनो पद स्वतंत्र मिसरे हैं।

थोडी और बारीकी में जायें तो पहले हिस्से यानी कि शे'र के पहले पद (कटी रात सारी मेरी मयकदे में) को 'मिसरा ऊला' और दूसरे पद (ख़ुदा याद आया सवेरे सवेरे) लाइन को 'मिसरा सानी' पारिभाषित करेंगे। हिन्दी में प्रयोग की सुविधा के लिये आप प्रथम पंक्ति तथा द्वितीय पंक्ति भी कह सकते हैं। प्रथम पंक्ति (मिसरा ऊला) पुन: दो भागों मे विभक्त होती है प्रथमार्ध को मुख्य (सदर) और उत्तरार्ध को दिशा (उरूज) कहा जाता है। भाव यह कि पंक्ति का प्रथम भाग शेर में कही जाने वाली बात का उदघाटन करता है तथा द्वितीय भाग उस बात को दूसरी पंक्ति की ओर बढने की दिशा प्रदान करता है। इसी प्रकार द्वितीय पंक्ति (मिसरा सानी) के भी दो भाग होते हैं। प्रथम भाग को आरंभिक (इब्तिदा) तथा द्वितीय भाग को अंतिका (ज़र्ब) कहते हैं।

अर्थात दो मिसरे ('मिसरा उला' + 'मिसरा सानी') मिल कर एक शे'र बनते हैं। प्रसंगवश यह भी जान लें कि “किता” चार मिसरों से मिलकर बनता है जो एक विषय पर हों।

इ) रदीफ

रदीफ को पूरी ग़ज़ल में स्थिर रहना है। ये एक या दो शब्दों से मिल कर बनती है और मतले मे दो बार मिसरे के अंत मे और शे'र मे दूसरे मिसरे के अंत मे ये पूरी ग़ज़ल मे प्रयुक्त हो कर एक जैसा ही रहता है बदलता नहीं। उदाहरण के लिये ली गयी ग़ज़ल को देखें इस में “ सवेरे सवेरे ” ग़ज़ल की रदीफ़ है।


बिना रदीफ़ के भी ग़ज़ल हो सकती है जिसे गैर-मरद्दफ़ ग़ज़ल कहा जाता है.

ई) काफ़िया

परिभाषा की जाये तो ग़ज़ल के शे’रों में रदीफ़ से पहले आने वाले उन शब्दों की क़ाफ़िया कहते हैं, जिनके अंतिम एक या एकाधिक अक्षर स्थायी होते हैं और उनसे पूर्व का अक्षर चपल होता है।

इसे आप तुक कह सकते हैं जो मतले मे दो बार रदीफ़ से पहले आती है और हर शे'र के दूसरे मिसरे मे रदीफ़ से पहले। काफ़िया ग़ज़ल की जान होता है और कई बार शायर को काफ़िया मिलने मे दिक्कत होती है तो उसे हम कह देते हैं कि काफ़िया तंग हो गया। उदाहरण ग़ज़ल में आया, आज़माया, लड़खड़ाया, सुनाया ये ग़ज़ल के काफ़िए हैं.

उ) मतला

ग़ज़ल के पहले शे'र को मतला कहा जाता है.मतले के दोनो मिसरों मे काफ़िया और रदीफ़ का इस्तेमाल किया जाता है। उदाहरण ग़ज़ल में मतला है:-

कोई पास आया सवेरे सवेरे
मुझे आज़माया सवेरे सवेरे


ऊ) मकता

अंतिम शे'र जिसमे शायर अपना उपनाम लिखता है मक़्ता कहलाता है.

ए) बहर

छंद की तरह एक फ़ारसी मीटर/ताल/लय/फीट जो अरकानों की एक विशेष तरक़ीब से बनती है.

ऎ) अरकान

फ़ारसी भाषाविदों ने आठ अरकान ढूँढे और उनको एक नाम दिया जो आगे चलकर बहरों का आधार बने। रुक्न का बहुबचन है अरकान.बहरॊ की लम्बाई या वज़्न इन्ही से मापा जाता है, इसे आप फ़ीट भी कह सकते हैं। इन्हें आप ग़ज़ल के आठ सुर भी कह सकते हैं।

ओ) अरूज़

बहरों और ग़ज़ल के तमाम असूलों की मालूमात को अरूज़ कहा जाता है और जानने वाले अरूज़ी.

औ) तख़ल्लुस

शायर का उपनाम मक़ते मे इस्तेमाल होता है. जैसे मै "ख्याल" का इस्तेमाल करता हूँ।

अं) वज़्न

मिसरे को अरकानों के तराज़ू मे तौल कर उसका वज़्न मालूम किया जाता है इसी विधि को तकतीअ कहा जाता है।


उपरोक्त परिभाषाओं की रौशनी में साधारण रूप से ग़ज़ल को समझने के लिये उसे निम्न विन्दुओं के अनुरूप देखना होगा:

-ग़ज़ल विभिन्न शे'रों की माला होती है।
-ग़ज़ल के शेरों का क़ाफ़िया और रदीफ की पाबंदी में रहना आवश्यक है।
-ग़ज़ल का प्रत्येक शेर विषयवस्तु की दृष्टि से स्वयं में एक संपूर्ण इकाई होता है।
-ग़ज़ल का आरंभ मतले से होना चाहिये।
-ग़ज़ल के सभी शे'र एक ही बहर-वज़न में होने चाहिये।
-ग़ज़ल का अंत मक़ते के साथ होना चाहिये।

*****

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52 टिप्पणियाँ

  1. धन्यवाद सतपाल जी। ग़ज़ल के अंगों को बहुत बारीकी से समझाया है आपनें।

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  2. बहुत अच्छा लेख है। बहर और वज़्न को बहुत संक्षिप्त कर दिया है आपने। यह अगले लेखों में आपका विशेष ध्यान चाहता है।

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  3. Basic are nicely explained. Thanks

    Alok Kataria

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  4. परिभाषाओं के बाद ग़ज़ल को जिस तरह से आपने ग़ज़ल को समझाया है वह बहुत सरलता से हम जैसे अनाडियों को भी समझने में मददगार है।

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  5. मात्रायें कैसे गिने यह किसी परिभाषा से समझ नहीं आया। ग़ज़ल की बेसिक समझने में बहुत सहायता हुई। धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  6. सतपाल जी नमस्कार,
    बहोत ही करीने आपने ग़ज़ल के मुलभुत सग्रचना को सामने रखा है बहोत ही बढ़िया जानकारी दी है आपने ... बहोत बहोत बधाई स्वीकारें ..अगली लेख का इंतजार रहेगा ..

    अर्श

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  7. गज़ल के बेसिक के बारे में बहुत ही सरल एवं रोचक तरीके से यह लेख प्रस्तुत किया गया है। इसी तरह की प्रस्तुतियाँ साहित्य शिल्पी को अन्य साईटों से अलग बनाती हैं।

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  8. मुझे ग़ज़ल की बेसिक जानकारी नहीं है...जो रूह में चलती है बस उतना ही मालूम है...कभी अपना लिखा नाप कर नहीं देखा है....मगर तीसरा शेर शायद ग़लत प्रिंट है या क्या है मुझे शक लगता है .....बाकी किताब वालों को ज्यादा पता होगा....

    जो कहता था कल "तक" संभलना संभलना ,
    वो ही लडखडाया सवेरे सवेरे

    सायद यूँ हो.....पर बताइयेगा जरूर मुझे इसमे "तक" की दरकार क्यूँ लग रही है..??
    अगर ग़लत हूँ तो डिस्टर्ब करने के लिए माफ़ भी कीजियेगा ...क्यूँ की मैं पढा हुआ नहीं हूँ......................
    || "बे-तक्ख्ल्लुस" वक्त से सीखा किया ,
    हाय, कैसा बे-रहम उस्ताद था ||

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  9. सबका आभारी हूँ खासकर रंजन जी का .इस लेख का श्रेय उनको ही जाता है.
    मनु जी वो शे’र ठीक है ग़ल़त नही है.
    बस आप लोग इसे फ़ास्ट फ़ूड की तरह मत लेना.थोड़ी मेहनत तो करनी होगी .

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  10. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  11. सतपाल जी आप के लेख में बहुत से सवालों का जवाब मिलता है...आपने बड़ी अच्छी तरह ग़ज़ल की व्याख्या की है...मेरी गुजारिश थी की आप जिस ग़ज़ल को लें उसकी तकतीअ भी साथ साथ दें ताकि बहर समझने में भी आसानी होती चली जाए...
    नीरज

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  12. जो कहता था कल "तक" संभलना संभलना ,
    You are right Manu ji "तक" likhaa nahI gayaa. Rajiv ji pls theek kar leN.yeh bahare-mutaqarib saalim me hai.
    122x4
    thanks to check so carefully.

    Regards

    जवाब देंहटाएं
  13. आप भी संभवतः द्विज जी की भांति मात्राएँ गिनकर ग़ज़ल लिखते हैं. इस आलेख में उद्धृत अपना ही एक मिसरा देखिये- 'जो कहता था कल संभलना संभलना' मात्राएँ दोनों चरणों में बीस-बीस हैं. इसलिए आपने इसे ठीक समझ लिया. किंतु मिसरा वज़न से गिर गया. 'जो' इस मिसरे में दो मात्रिक शब्द नही है. यह अपने प्रयोग की दृष्टि से 'जु' के ही वज़न का शब्द है. आपका मिसरा होना चाहिए था - 'जो कहता रहा कल संभलना संभलना' मेरी बातों का ग़लत अर्थ न लीजियेगा. आपका आलेख पाठकों के लिए लाभप्रद है, इसलिए यह सब कुछ लिख बैठा.

    जवाब देंहटाएं
  14. आप भी संभवतः द्विज जी की भांति मात्राएँ गिनकर ग़ज़ल लिखते हैं<<
    मै एक बात साफ़ कर दूँ कि किसी भी नतीजे पर पहुँचने से पहले सोचना चाहिए. ये आप को किस ने कह दिया द्विज जी मात्राएँ गिन कर ग़ज़ल लिखते हैं और दूसरा ये ग़ज़ल जो उदाहरण के लिए दी गई है वो मैने नहीं लिखी है ये सईद जी ने लिखी है और जगजीत सिंह ने गाई है.
    अब शायद आपका नज़रिया बदल गया होगा क्योकी
    अब ग़ज़ल branded हो गई है.
    ये 12 या 21 समझाने के लिए है मात्राएँ गिनाने के लिए नहीं. कुछ लिखने से पहले या कामेट करने से पहले सोच लें तो बेहतर होगा.
    देवनागरी मे ग़ज़ल लिखने वालों के प्रति ऐसा नज़रिया बदल लें.

    जवाब देंहटाएं
  15. निहायत ही सफ़ाई से गजल की बारीकियों को पाठकों के जिस तरह प्रस्तुत किया गया है वह काविले तारीफ़ है... इस स्तंभ से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा. आभार

    जवाब देंहटाएं
  16. मुझे आपकी टिप्पणी पढ़कर आश्चर्य नहीं हुआ. सईद जी ने ग़ज़ल लिखी हो या किसी और ने.ब्रांडेड हो जाना ग़ज़ल के लिए प्रामाणिकता की सनद नहीं है. आप संतुष्ट हैं तो मुझे क्या आपत्ति है.

    जवाब देंहटाएं
  17. हम जैसे अनाडी भी समझ सकें आपने ग़ज़ल इस तरह से समझाई है। सतपाल जी आपको इस प्रयास के लिये बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  18. ग़ज़ल को ले कर हिन्दी-उर्दू की कश्मकश लगातार जारी है इस संदर्भ में विजय वाते साहब की बात मुझे ज्यादा माकूल लगती है -

    हिन्दी-उर्दू में कहो, या किसी भाषा में कहो
    बात का दिल पे असर हो तो ग़ज़ल होती है।

    हिन्दी को इस विधा को आत्मसात करने के लिये अपने ही छंद शास्त्र को आधार मानना होगा और माकूल परिवर्तनों के साथ प्रस्तुत होना होगा। युग विमर्श जी नें एक बहस जो छेडी है उसपर गंभीरता से बात की जा सकती है। माननीय प्राण शर्मा साहब, माननीय द्विजेन्द्र द्विज साहब, माननीय योगेन्द्र मौदगिल साहब के साथ साथ सतपाल जी से भी मैं अनुरोध करूंगा कि इस विषय पर हम जैसे अज्ञानी पाठकों का ज्ञान वर्धन भी करें।

    ***राजीव रंजन प्रसाद

    जवाब देंहटाएं
  19. सतपाल जी
    ग़ज़ल के तीसरे शेर का मिसरा ऊला सही नहीं.... सही मिसरा है जो कहता था कल शब संभालना संभालना... ....तक शब्द ग़लत है....अब शेर पढ़ें:
    जो कहता था कल शब संभालना संभालना
    वो ही लडखडाया सवेरे सवेरे
    और अब इसकी खूबसूरती देखिये.... सईद साहेब ने बहुत खूब लिखा है...
    मनु जी ने बात सही कही थी...तक की जगह शब कहते तो बात बन जाती.
    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  20. रंजन जी,
    जो ग़ज़ल हमने उदाहरण के तौर पर लगाई वो बहरे-मुतका़रिब मसम्मन सालिम है लेकिन क्योंकि युग विमर्श को लगा कि ये मैने लिखी और ये मुतका़रिब मे नही ये सिर्फ़ मात्राएँ गिन कर लिखी गई है ,जो कि ग़ल़त है और उन्होने बिना सोचे समझे कह दिया कि द्विज जी और मै मात्राएँ गिन कर लिखते हैं जो कि सरासर ग़ल्त है.ये मिसरा ग़ल्त लिखा गया जो मैने आप से ठीक करने के लिये भी कहा है.मनु ने भी सवाल उठाया था.
    क्योंकि उन्हे लगा कि ये मात्राएँ गिनकर लिखी ग़ज़ल है जो कि बिल्कुल नही है.और आप बिना सोचे किसी को कु्छ भी नही कह सकते या तो आप उसे prove करें.
    सईद कोई नौसिखीया शायर नही है.उर्दू का एक जाना पहचाना नाम है.

    जवाब देंहटाएं
  21. सईद राही साहब की इस गज़ल में जैसा कि नीरज जी ने कहा; ’जो कहता था कल शब संभलना संभलना’ ही है. यद्यपि ’युग-विमर्श’ (शायद डॉ. शैलेश ज़ैदी) जी ने मिसरे को जिस तरह कहा वो मुझे बहर के हिसाब से ज़्यादा ठीक जँचता है मगर इससे अर्थ को लेकर भ्रम पैदा होता है कि शायर किस ’कल’ का ज़िक्र कर रहा है. (क्योंकि तब इसे "जो कहता रहा, कल संभलना संभलना" और "जो कहता रहा कल, संभलना संभलना" दोनों तरह पढ़ा जा सकता है) शायद इसीलिये राही साहब ने ’जो कहता था कल शब संभलना संभलना’ कहा है.

    सतपाल जी का प्रस्तुत लेख गज़ल की बुनियादी जानकारी के लिहाज़ से बहुत अच्छा है और इस तरह के बहसो-मुबाहिसे भी पाठकों की जानकारी में इज़ाफ़ा ही करेंगे. इसलिये सतपाल जी के साथ-साथ उन सभी विज्ञ-जनों का भी धन्यवाद जो अपने अमूल्य विचारों से गज़ल के हम से नौसिखियों को सीखने में मदद कर रहे हैं.

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  22. बहस तो मूल विषय से हट कर हो रही है। गज़ल की बुनियादी बातों को जिस खूबसूरती से लेख में समझाया गया है एसा उदाहरण कम ही देखने को मिलता है।

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  23. सतपाल जी आपकी कक्षा में आ तो जाता हूं पर बात बडी कठिन सी दिखाई दे रही है... गजल में से शेर उसमे से मिसरे मिसरे के भी दो भागा फिर मिसरे के तीन हिस्से .... लगा जैसे अच्छे भले सुंदर से आदमी को डाक़्टर काट काट कर सम्झा रहा है... बहुत अच्छा प्रयासा पर पता नहीं मुझे बात अभी तक कम ही पल्ले पडी है...
    सतपाल जी जिस शेर की बात आप कर रहे है. मुझे लगता है कि वहां 'तक' नही 'सब' या 'शब' उर्दू का शब्द है जिसका अर्थ होता है शाम .... और मुझे बहुत अच्छी तरह याद है क्योंकि मेरे एक बुजुर्ग मित्र नें मेरी शादी के समय यह शेर मुझ से कहा था इस लिये मैं इसे तुम्र नहीं भूल सकता उन्होंने कहा था कि सब मतलब शाम .... जो कल शाम तक संभलो संभलो कहता था वही सवेरे सवेरे लडखडा गया... इसलिये अगले सवेरे के लिये 'सब' यानि शाम का महत्त्व भी इस शेर में है. कृप्या इस नजरिये से देख लें फिर एक बार...

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  24. बात शब्द की नही है बात बहर की है "तक "या "शब" के बिना मिसरा बहर से खारिज़ हो रहा था.शब ही सही होगा अर्थ के आधार पर. बाकी बहस कहीं और चली गई.ये सारी बातें आने वाले लेख मे कवर होंगी.

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  25. SIDHAAT KEE BAAT TO YE HAI KI AGAR
    SHER KE PAHLE MISRE MEIN "KAL"
    SHABD KAA ISTEMAAL KIYAA GAYAA HAI
    TO SHER KE DOOSRE MISRE MEIN "AAJ"
    SHABD KAA ISTEMAAL HONA CHAAHIYE.
    "TAB"KE SAATH "AB" AUR "VAHAN" KE
    SAATH "YAHAN".NEERAJ SAHIB KAA
    KAHNAA SAHEE LAGTA HAI KI "TAK" KEE
    JAGAH "SHAB"KA ISTEMAAL HAI.
    MISRE YANI KAVYAPANKTI MEIN
    SANTOOLAN BANAANE KE LIYE MAATRAAON
    KAA SAHEE PRAYOG KARNAA HEE PADTAA
    HAI,MAATRAAYEN GINNE MEIN KOEE DOSH
    NAHIN HAI.SAU TAK PAHUNCHNE KE LIYE
    EK,DO,TEEN ,CHAAR GINNA HEE PADEGA.
    SHAYREE HO YAA KAVITA HO HAR SHYAR
    YAA HAR KAVI MAATRAAYEN GINTAA HAI.
    HINDI MEIN ADHKAANSH CHHAND MAATRIK
    HAIN.MAATRAAYEN NAHIN GINEE JAAYENGE TO KYA GINEE JAAYENGEE.
    KAHNE KO URDU SHAYREE MEIN KEWAL
    VAARNIK CHHAND HOTE HAIN.LEKIN
    USKE VAARNIK CHHANDON KA AADHAR BHEE MAATRAYEN HAIN."MISRA VAZAN SE
    GIR"JAANE SE KYA TAATPARYA HAI?YEHEE N KI USMEIN KOEE AKSHAR YAA
    MAATRAA KEE KAMEE RAH GAYEE HAI.
    JANAAB SATPAL GAZAL KEBAARE
    MEIN BAHUT ACHCHHA LIKH RAHE HAI.
    UNKE LIKHE KO BAAR-BAAR PADHIYE AUR
    MANAN KIJIYE.

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  26. मुझे मात्रा गिनने का कोई ज्ञान नहीं है और मुझे लगता भी नहीं के शाएर को कभी गिन के लिखना चाहिए ...और भी जो कायदे क़ानून बनाए हैं मैं उनका इतनी सख्ती से पालन करने के पक्ष में भी नहीं हूँ के बात का मज़ा ही जाता रहे ...जो एक प्रेमी ह्रदय में एक निरंतर गुनगुनाहट रहती है....बस वो ही मेरी शायरी का बेस है ...बहुत से लोगों में शायरी महबूब के जाने के बाद पैदा होती है ....तो गुफ्तगू किससे .............

    || ना जबरदस्ती का मकता,
    ना ही मतला बे-वजह ,
    बहर बस इतनी ही ,
    जितनी बख्श दे मेरा खुदा ||

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  27. सतपाल जी,

    बहुत बारीकी से समझाया है आपनें।


    धन्यवाद .....

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  28. pahli baar dekhi yah post--yahan to class chal rahi hai--bahut si jaankari hai---bookmark kar liya hai --baad mein aaram se padhengey--dhnywaad.

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  29. साहित्य और साहित्येतर किसी अन्य कला में भी नियम कभी भावाद्गार से बड़े नहीं हो सकते क्योंकि प्रत्येक कला अंतत: मानवीय संवेदना की अभिव्यक्ति का एक माध्यम ही है. अत: शायद ही कोई कवि या शायर होगा जो मात्रायें गिन कर लिखता होगा. परंतु यह भी उतना ही सच है कि एक बार लिख लेने के बाद उसे बेहतर और अधिक प्रभावी बनाने का प्रयास हर रचनाकार करता है और यहीं से नियमों की भूमिका आरंभ होती है. अत: इन्हें पूरी तरह दरकिनार नहीं किया जा सकता और इसके लिये मात्रायें गिनने को कदापि गलत नहीं मान सकता. हाँ, इनके पालन के प्रयास में मूल अभिव्यक्ति से छेड़छाड़ गलत है और इस बिन्दु पर मैं मनु जी से सहमत हूँ.
    हाँ, एक बात और कहना चाहूँगा कि साहित्य किसी व्यक्ति के लिये नहीं अपितु सारे समाज के लिये होता है. अत: साहित्य को लेकर हमारे विचार आपस में यदि न भी मिलते हों तो भी हमें व्यक्तिगत कटाक्ष न करने चाहिये और अंतरजाल जैसे सार्वजनिक मंच पर तो यह बात और भी ज़रूरी हो जाती है. आशा है कि सम्बद्ध लोग मेरा इशारा समझ गये होंगे.
    इतनी सारी बातें एक साहित्यप्रेमी होने के नाते मैं कह तो गया हूँ पर पता नहीं कहने का हक़ भी है या नहीं. अत: किसी को मेरी कोई बात बुरी लगी हो तो मैं कर-बद्ध हूँ.

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  30. HAR KALAA KO SANWAARNE AUR NIKHAARNE KE NIYAM HOTE HAIN CHAAHE
    VO KAVYA KALAA HO YAA BHAVAN NIRMAN
    KALAA.EK-EK PATTHAR KO TARAASH KAR
    BHAVYA TAJMAHAL KHADA KIYAA GAYAA.
    SHAYREE KO BHEE TARAASHAA JAATAA
    HAI.CHANDKAARON NE YUN HEE MAATRIK
    AUR VAARNIK CHHANDON KE SRISHTI
    NAHIN KEE.

    जवाब देंहटाएं
  31. इतने अच्छे आलेख पर ये पूरी बहस बेमानी हो गयी है.सतपाल जी सही कह रहे हैं कि कुछ टिप्पणी करने से पहले ठीक से पढ़ लेना चाहिये...
    सतपाल जी पूरी श्रृंखला को क्रम्बद्ध ले जा रहे हैं और बीच में बहस के किसी और मोड़ कर आलेख को एकदम आगे ले जाना पूरे मंतव्य को बिगाड़ देता है...

    आशा है संयोजक इस बात का ध्यान रखेंगे और लेख के परिपेक्ष्य से हट कर की गयी टिप्पणियों को मौडेरेट करेंगे क्योंकि वो भ्रमित करता है हम जैसे नये विद्यार्थियों को...
    सतपाल जी को प्रणाम!

    जवाब देंहटाएं
  32. ye seekhne ki hi baat chal rahi hai.........

    haan kuchh log ise gazal se hataa kar bhaasha pe le jana chahte hain .........pataa naheen kyun.....???

    जवाब देंहटाएं
  33. पहले तो मैं सतपाल जी को इस श्रृंखला को बढ़ाने और बनाए रखने के लिए बधाई देना चाहता हूं। गौतम जी ने बिल्कुल सही कहा है।
    पाठकों से विनती है कि अपने प्रश्न और विचार लेखानुसार ही तक सीमित रखें और छींटा-कशी के रूप में न होकर क्रियात्मक हों। आज का यह लेख ग़ज़ल विधा की एक झांकी या पारिभाषिक लेख या फिर आगामी लेखों की सूचना-सामग्री को माना जाए। आज प्रश्नों की झड़ी लगाने की गुंजाईश नहीं है।
    मेरे ख़याल में ग़ज़ल के अन्य अव्यव एक एक करके आगामी अंकों में दिए जाएंगे जहां आप को उन विषयों पर अपनी दिलजमी का अवसर मिलेगा।
    मनु जी, आप से यह विनती है कि इस साइट पर सतपाल जी के लेखों को अनमने मन से भी पढ़ते रहें, कुछ दिनों के बाद आप देखेंगे कि जैसा कि आपने कहा है 'प्रेमी हृदय में जो
    गुनगुनाहट रहती है' -वो जज़्बात ख़ुदबख़ुद बहर में आजायेंगे जिनका आप स्वयं अनुभव करेंगें कि आपकी भावनाएं कितनी निखरती हैं, कितनी ज़्यादा असरदार हो जाती हैं।
    अंत में सतपाल जी से यह गुज़ारिश है कि सिखाते हुए उन लोगों का ध्यान ज़रूर रखा जाए जो इस विधा से बिल्कुल अनभिज्ञ हैं। हो सकता है आगे आगे कुछ ऐसे पाठक भी जुड़ेंगे जो रदीफ़ जैसे शब्दों से भी परिचित न हों। कहने का तातपर्य यह है कि भाषा सरल और सुलभ हो।
    महावीर शर्मा

    जवाब देंहटाएं
  34. khair sahib ..kaafi ho gayaa...kaafi door door se log a gaye hain..."akbar aaj bhi zindaa hai ye maaloom na thaa"
    raanjhe aur romiyo me firk hai...aur bahut firk hai.. vaakai....

    "BE-TAKKHLLUS" UTTH BHI JAA,
    IS BE-RAHAM SI BAZM SE,,
    AB TARAANE TERE KHAATON MEIN,
    RAKAM HONE KO HAIN.."

    alvidaa....
    inse naheen jeet sakta..!!!!!!!!!!!

    जवाब देंहटाएं
  35. किसी भी विषय पर हुई बहस उस विषय को अच्छी तरह समझने का प्रयास होती है...इसमें नकारात्मक जैसा कुछ नहीं होता...मैं भी पहले ये ही समझता था की शायरी दिल से लिखी जाती है बहर मकते या काफिये से नहीं...लेकिन जब प्राण साहेब जैसे गुणी जनों के संपर्क में आया तो एहसास हुआ की अभी तक जिसे सोना समझे बैठा था वो दरअसल पीतल था. बिना गुरु के ज्ञान प्राप्त करना सम्भव नहीं है...ग़ज़ल लिखने के लिए ये सब जरूरी ही नहीं बहुत जरूरी है.... आप ग़ज़ल के अलावा मुक्त छंद लिखें तो सब जायज़ है लेकिन ग़ज़ल लिखने के लिए आप को उसकी बंदिशों को मानना ही पड़ेगा. मात्राएँ ग़ज़ल के शिल्प की जान हैं बिना उसके ग़ज़ल कही ही नहीं जा सकती.
    प्राण साहेब ने अपनी टिपण्णी में जो बात कही है उसे हम सब सीखने वालों को गाँठ में बाँध कर रख लेना चाहिए:
    "मिसरे यानि काव्यपंक्ती में संतुलन बनाने के लिए मात्राओं का सही प्रयोग करना ही पड़ता है ,मात्राएँ गिनने में कोई दोष नहीं है .सौ तक पहुँचने के लिए एक ,दो ,तीन ,चार गिनना ही पड़ेगा."
    बहस के माध्यम से भी हमें देखिये कितना कुछ जानने का मौका मिला है. टिप्पणियों को आप मोडरेट करें लेकिन उसमें से सिर्फ़ व्यक्तिगत आरोपों को ही काटें तो ठीक रहेगा, सार्थक बहस के मुद्दों को नहीं .
    नीरज

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  36. ग़ज़ल के अनुशासन से डरने की ज़रूरत नहीं है.शायरी का दिल से वास्ता होता है लेकिन ग़ज़ल की लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण है कि शे’र सुनकर श्रोता आनंदित हो जाता है वो आनंद ग़ज़ल मे इसके संगीत के पुट से आता है और शायर के अंदाज़ से आता है. छोटी सी बात को रस मे डूबो के पेश करने का हुनर है शायरी. सिर्फ़ उम्दा विचारों का नाम नही है शायरी.और ये सब रब के आशीर्वाद से आता है.
    शायर को ज्यादा अरूज़ी होने की ज़रूरत नही है ये काम आलोचकों का है. अरूज़ी होने से सबसे बड़ा नुक्सान ये होता है कि आदमी घमंड से भर जाता है और फिर यहाँ-वहाँ अपने इल्म का प्रचार करता है और नुक्ताचीनी करने लग जाता है.इस नुक्ताचीनी का शिकार सब शायर होते हैं लेकिन शायरी भाषाओं से परे है.सुरजीत पात्र पंजाब के एक जाने-माने शायर है उनका शे’र आपकी नज़’र करता हूँ:
    हमने तो खून मे डूब के लिखी है ग़ज़ल
    वो और होंगे जो लिखते हैं बहर में.

    सबसे बड़ी बात है कि शायर जब लिखना शुरू करता है तो उसको अरूज़ का इल्म नही होता और जब भी कोई शे’र दिमाग़ मे आता है तो किसी बहर मे तो नहीं होता बाद मे शायर उसको संवारता है.गा़लिब को रात मे सोते वक्त जब कोई शे’र सूझता था तो बो अपने इज़ारबंद(नाड़े) को गाँठ दे देते थे और सुबह गांठे खोलते और अपने शेरों को संवारते.तो आप अपने इज़ारबंद को गांठे देते रहो.

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  37. मुर्गी को तक़ुए का दाग़ लग गया।
    क़लम कम्बख़्त जो दिल की मानकर चल पड़ती थी, वज़न कर रही है और ना-नुकर करने मे लगी है।
    कब तक ?
    दिल की सुने बिना तो रह नहीं पाएगी।

    प्रवीण पंडित

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  38. Bhai Satpal ji ke aalekh par vibhinna ghazal premiyon ki bibhinna pratikriyayen dekhane ko mileen hain.Kuchh kahaten hain ki ghazal dil se nikalee aawaz hai uske liye meeter men rahane ki jaroorat nahin hai. Kisi ne likha hai ki ghazal matraon aur gano par aadharit hoti hai.Urdu ke arooz (chhand shastra) ke adhar par ghazal na to matraon par adharit hoti hai aur na gano par. Asal men laya aur sangeet ki drashti se jis aadhar par sher ki rachana ki jati hai us sutra(chhand)ko bahar kahate hain.Bahar swar laharion ke un chhote chhote tukadon se milkar banati hai jinhen rukna kahate hain.Rukna aath(8) hote hain.In ruknon ko hindi Pingal shashta ke aath (8) ganon ke saman maan sakate hain.In rukno ke naam nimnanusar hain. unke ganon ke anusaar chinha neeche diye ja rahe hain.
    1.Faoolun (ISS)
    2.Failun (SIS)
    3.mustafailun(SSIS)
    4.Mafaeelun (ISSS)
    5.Failaatun (SISS)
    6.Mutfailun(IISIS)
    7.Mafulatun (SSSS)
    8.Mafailtun (ISIIS)
    Rukna ek vachan hai, iske bahuvachan ko arkaan kahate hain.Arkaanon ko jod kar hi bahar banati hai.Arkanon ka nirdaran matale (pahale sher)men hi ho jata hai.Fir unhi arkaano ko poori ghazal men nibahana padata hai.Agar arkaan nahin nibhate hain to sher bahr se khariz ho jata hai.
    Jis tarah hindi ke dohon men 24 matrayen(13-11)har ek pankti men jaroori hain usi tarah ghazal bahar men hona jaroori hai. Bahar se khariz ghazal ko ghazal nahin kah sakte.Maine chhand shatriya dhang se yah stithi ko kahane ki koshish ki hai.Yadi is se stithi saaf ho sake to main samajhoonga ki yah likhana saarthak ho gaya. Dhanyawad.
    Chandrabhan Bhardwaj.

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  39. LAGTA HAI KI SATPAL JEE KUCHH ULAJH
    GAYE HAIN.EK TARAF VO BAHAR KO
    MAHATTAV N DETE HUE SURJIT PATR KE
    IS SHER KO UDGDRIT KARTE HAIN---
    HUMNE TO KHOON MEIN DOOB KE LIKHEE
    HAI GAZAL
    VO AUR HONGE JO LIKHTE HAIN BAHAR
    MEIN
    AUR DOSREE TARAF GAALIB KA
    UDAAHRAN DEKAR GAZAL KO NIKHAARE-
    SANVAARNE KEE AAVASHYAKTA BATLAATE
    HAIN.
    PATA NAHIN,SATPAL JEE KO YE BHRAM KAESE HO GAYAA HAI KI AROOZEE
    YANI CHHANDSHAASTR JAANNE SE SAB SE
    BADAA NUKSAAN YE HAI KI AADMI
    GHAMANDEE HO JAATAA HAI.MAHAKAVION
    KEE GYAAN SE UPJEE NAMRATA DEKHIYE--
    KAVI N HON N CHATUR KAHAON
    MATI ANUROOP RAAM GUN GAAON
    KAVIT VIVEK EK NAHIN MORE
    SATYA KAHON LIKHI KAAGAD KORE
    ---TULSIDAS
    RAAM TUMHARA CHARIT SVAYAM HEE
    KAVYA HAI
    KOEE KAVI BAN JAAYE SAHAJ SAMBHAVYA HAI
    --MAITHLI SHARAN GUPT
    AROOJ YAA CHHANDSHASTR KA GYAN
    ATI AAVASHAYAK HAI HAR GAZALKAAR KE LIYE VARNA GAZAL PAR IN LEKHON
    KO LIKHNE KEE AAVASHAKTAA HEE KYA
    HAI?

    ATI LOKPRIY MAHAKAVI WAARIS
    SHAH KAA KAHNAA HAI---
    "ILM SHAYREE DAA JISNOO PATAA NAHIN
    US NOO ILM AROOZ PADHAAEEYE JEE

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  40. me manu ji ki baat se sahmat hoon gazal ko niyam se hi dekhen bhasha me na jayen kyu ki hindi aur urdu me fark hota hai
    baki me satpal ji ka dhanyavad deti hoon ki itna achchha sa samjhaya
    saader
    rachana

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  41. aur chacha ghalib ne kahaa hai..

    "dard ko dil mein jagah de ghalib,
    eelm se shaaayri naheen aati"

    aur satpaal ji mere khyaal se naa to kanfuz hain naa bahak rahe hain.....
    chintan kar rahe hain...
    har mahaan shaayer ki tarah...

    koi mujhe bataayegaa ke ...dil me pahle khyaalon ki rawaani uthi hogi yaa bahar...jise sab 21 12 21 12 bol rahe hain...????

    जवाब देंहटाएं
  42. aur us pahle viyogi kavi ne bhi ....jiske baare me mujhe abhi abhi kisi ne mail kiyaa hai.
    shaayad tatkaal viyog chhod kar us pahli kavitaa yaa ghazal..yaa jis bhi bhaashaa me nikli hogi....par..

    apnaa inchitape latkaa diyaa hogaa na naapne ke liye...
    ke dekhoon kitne meeter ki hai..??

    maaster ji ko tang naa karen ..sochne dein...ye chintan bahut zaroori hai har yug ke liye...

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  43. साहित्य शिल्पी के संपादकीय मंडल और सतपाल जी,
    मैं तो यह समझता हूं कि इस स्तंभ के द्वारा ग़ज़ल में रुचि रखने वाले व्यक्तियों को लाभ होगा। ग़ज़ल के लिए यदि केवल संगीत का पुट, प्रवाह, अंदाज़, जज़्बात का इज़हार या उद्गारों का शाब्दिक आवरण देना यथेष्ट है तो इसके लिए इस स्तंभ की क्या आवश्यकता है? यदि आप विभिन्न ब्लॉगों का अवलोकन करें तो बिना बहर की
    (आसान शब्दों में- वे ग़ज़लें जिन में ग़ज़लों के नियमों का अभाव है) ग़ज़लें एक से एक
    ख़ूबसूरत रचनाएं पड़ी हैं जिनकी कल्पना और उद्गारों की अभिव्यक्ति बड़े शाइर भी नहीं कर पाते।
    सिर्फ़ उनमें अभाव है उसको संवार कर एक ठीक ग़ज़ल में ढालने की। यह समझिए कि ईंटे हैं, सीमेंट है, पानी है और दीगर सारा सामान है
    लेकिन एक सुंदर मकान बनाने के लिए आवश्यकता है एक सुंदर डिज़ाइन की। लीजिए कुछ तो करना पड़ेगा।
    अब क्रियात्मक रूप से इस स्तंभ के लिए कुछ बातेंः
    (क) सब झगड़ों, उलझाने वाली बातों, निंदा या ताने और सर्वोपरि स्वयं के Ego आदि से दूर हट कर इस स्तंभ को सार्थक बनाने का प्रयत्न किया जाए जिससे लोगों को वास्तविक रूप से लाभ हो। अभी तो ऐसा लगता है कि बखेड़ा खड़ा करके टिप्पणी-बैंक का बैलेंस बढ़ाने की मशीन बन गई है।
    (ख) सतपाल जी, आप इस के सूत्रधार हो, आपके शब्दों और कथन में बहुत नियंत्रित शासन होना चाहिए।
    (ग) स्तंभ को सुव्यवस्थित और सार्थकता के लिए प्रत्येक सोमवार को ग़ज़ल का केवल एक प्रकरण लीजिए - कई चीज़ों को गडमड न करें, उससे पाठक भ्रमित हो सकते हैं।
    (घ) टिप्पणियों में दूसरे नंबर पर 'रचना सागर' की टिप्पणी पर देखें तो अभी तक उसे कोई जवाब नहीं मिला है। सीधी बात है कि यदि दीवार खड़ी करने के लिए यही पता न हो कि इस दीवार के लिए कितनी ईंटे और डिज़ाइन के लिए किस तरह से सजाई जाएं तो दीवार शुरू कैसे करेंगे।
    (च) लीजिए, आप अपने लेखों को अध्यायों के रूप में सिलसिलेवार शुरू करें-
    (१) अगले सोमवार ग़ज़ल विधा में हिंदी और उर्दू में मात्राएं या वज़न, शब्दों को तोड़ना या तक़्तीअ, अक्षरों या मात्राओं का ह्रस्व होना आदि- ढेर सारे उदाहरण।
    (२) अगला सोमवारः रदीफ़। यह एक वाक्य में पूरा नहीं हो जाता - ढेर सारे उदाहरण।
    (३) अगला सोमवारः क़ाफ़िया - यह बहुत पेचीदा और जटिल विषय है, ख़ासकर 'मतले' में। बहुत सारे उदाहरण।
    (४) अब कहीं जाकर बहरों का प्रवेश हो, सीढ़ी दर सीढ़ी बहर की संरचना। इसके लिए कई सोमवार चाहिए। अगर इस वेब में तालिका (Table) की सुविधा हो तो बहर समझाने में
    आसानी हो जाती है।
    (५) इस तरह यहां तक एक ग़ज़ल का ढांचा बनाने की क्षमता तो आजाएगी लेकिन इसे खूबसूरती का पहनावा देने के लिए बहुत सी बातें मिलेंगी जिसके लिए आप स्वयं सक्षम हैं और अन्य साथियों का साथ तो होगा ही।
    यहां पर ज़रूरत होगी कुछ ऐसे लेखों की जहां व्याकरण, देश, काल, उचित शब्दों पर ध्यान दिया जाए। बहुत अर्सा हुआ मैंने अभिव्यक्ति पर एक लेख पढ़ा था 'उर्दू ग़ज़ल बनाम हिंदी
    ग़ज़ल(खूबियां और ख़ामियां)' जो वहां अब नहीं है। यदि मिल जाए तो यहां बिल्कुल सही बैठेगा।
    सतपाल जी इन अन्य लोगों की सहायता से, निश्चिंत रहिए, सेहरा आपके ही सर पर
    बंधेगा।
    विनीत
    महावीर शर्मा

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  44. anya log kaun hain maaloom naheen.....
    par sehraa satpaal ji ke sar hi bandhnaa chaahiye..
    kyun ke mujhe lagtaa hai ke wo bhed chaal wale yaa lathi pakad kar chalne wale bande naheen hain...
    itnaa ahsaas to ho hi gayaa hai mujhe ke itnaa vinamra admi shaayar ke siwaa kuchh naheen ho saktaa.
    baaki un pe itne logon ki jimmewaari hai...dabaw bhi hai..
    unke likhe ek ek harf pe jamaane ki nigaah hai...
    aur unhone jo bhi kahaa hai main us se sahmat bhi hota aa rahaa hoon ...
    kam se kam kisi bhi vidhaa ko leker kattarpanthi to naheen hai satpaal ji...ye to maaloom ho hi gayaa hai...

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  45. पाठकों से करबद्ध विनती है कि विषय वस्तु पर ही केन्द्रित रह कर बात को आगे बढाये और इस प्रयास को सार्थकता प्रदान करें। बहस हमेशा सार्थक होती है बशर्ते विषय वस्तु पर ही हो। व्यक्तिगत कटाक्ष बहस को बहस नहीं रहने देते।

    साहित्य शिल्पी मंच आभारी है कि ग़ज़ल के बडे उस्ताद प्राण शर्मा जी, महावीर जी, चंद्रभान जी व् नीरज जी जैसे मनीषियों नें अपनी बात रख कर इस चर्चा को न केवल सार्थकता प्रदान की अपितु ग़ज़ल की उन बारीकियों को भी बताया जिसे किसी किताब से नहीं जाना जा सकता, इसे केवल गहरा अनुभव ही बयान कर सकता है।

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  46. सभी बज़ुर्गों और भाइयों को प्रणाम:
    मै बहर के हक़ मे हूँ , लेकिन सिर्फ़ बहर के इल्म से ही शायरी नही आ सकती. मै ये मानता हूँ कि बहर आत्मा है और शब्द शरीर, शब्दों से छेड़-छाड़ की जा सकती है बहर से नही . लेकिन ये कोरा गणित नही है.इसमे कहीं भी onfusion नही है.मनु जी दिल और दिमाग़ जब मिल जाते हैं तभी एक ग़ज़ल सामने आती है और दिल दिमाग़ से ज्यादा अहम रोल अदा करता है.
    जब कोई शे’र मन मे आता है तो दिल से होकर आता है फिर दिमाग़ उस शे’र की गाँठें खोलता है और उसे अपने इल्म से सजाता है.
    बाकी मै कोई बहुत बड़ा उस्ताद नही हूँ ग़ल्त हो सकता हूँ, बज़ुर्ग शायरों की राये सर आँखों पर.यहाँ पर हम गाँठे खोलने की कोशिश करेंगे, गाँठे देने की नहीं.
    धन्यवाद

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  47. rachna ji,
    maatrayeN nahi ginni hain. aap piChlaa lekh paRen aur agle lekh kaa intzaar karen.

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  48. ग़ज़ल ही नहीं किसी भी गीति रचना के उत्पत्ति भाव की अभिव्यक्ति से होती है. अभिव्यक्ति यदि सपाट लहजे में हो तो सामान्यतः गद्य कही जाती है तथा गति-यति के निर्धारित नियमों में हो तो पद्य कही जाती है. गीति रचना के नियम अभिव्यक्ति ही निखारते-संवारते-तराशते हैं गद्य एक बयां होता है, पद्य बयां मात्र नहीं होता. मात्राएँ गिनना या न गिनना कवि या शायर की सामर्थ्य पर निर्भर करता है. पर्याप्त शब्द भण्डार हो तो अभिव्यक्ति के लिए सही वज़न का लफ्ज़ मिल जाता है. शब्द भण्डार कम हो तो शब्द पदभार के अनुसार न होने पर भी रचनाकार उसका प्रयोग करता है जो जानकारों को खटकता है. तन के बिना मन तथा मन के बिना तन को पूर्णतः नहीं जाना जा सकता. वे एक दूसरे के प्रतिस्पर्धी नहीं पूरक हैं. इसी तरह भाव तथा शिल्प भी परस्पर पूरक हैं प्रतिस्पर्धी नहीं

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  49. प्रिय सतपाल-
    मुझे यह कहने में कतई संकोच नही की आपका यह लेख
    गज़ल के शे‘र की तरह सही-सटीक नपा तुला,याने बहर पर है-आपको और आपके गुरूजी को बधाई।
    द्विज जी की कुछ गज़ल-मसि-कागद में प्रकाशित करने का सौभाग्य हमें भी प्राप्त हैं।मैं ब्लॉगिंग पर अभी नया हूं-आपके ब्लॉग का पता मुझे रूपम के ब्लॉग से प्राप्त हुआ।
    श्याम सखा‘श्याम’

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  50. apne gazal k bare me achchhe se btaya to hy but matra ginna nhi btaya jo jaruri hy is vidha me
    Lata Chandra Balco

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  51. Online bank auction in India

    अब सस्ते दामों पर घर, गाड़ी खरीदना हुआ ओर भी आसान, banknilami.com कर रहा है E-Auction

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