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15 टिप्पणियाँ
दीप सा किरदार तो पैदा करो
जवाब देंहटाएंलोग चाहेंगे उजालों की तरह
ख़ुद को तुम इन्सान तो साबित करो
याद आओगे मिसालों की तरह
बहुत खूब...प्रेरणा देती आपकी गज़ल पसन्द आई
ham insan to bnana chahte hee nahi, sidhe bhagwan ho jana chahte hain. magar bhagwan to ban nahi pate insan bhee nahi rahte. narayan narayan
जवाब देंहटाएंभूख में लम्हात को खाया गया
जवाब देंहटाएंसख्त रोटी के निवालों की तरह
Very nice.
Alok Kataria
बहुत अच्छी ग़ज़ल है।
जवाब देंहटाएंलोग मिलते हैं सवालों की तरह
जैसे बिन चाबी के तालों की तरह
भूख में लम्हात को खाया गया
सख्त रोटी के निवालों की तरह
ख़ुद को तुम इन्सान तो साबित करो
याद आओगे मिसालों की तरह
बधाई।
दीप सा किरदार तो पैदा करो
जवाब देंहटाएंलोग चाहेंगे उजालों की तरह
दीपक जी बहुत अच्छी लगी आपकी यह ग़ज़ल।
बहुत अच्छी गज़ल है दीपक जी, बधाई।
जवाब देंहटाएंनिहायत खूबसूरत ख्यालों का मुजाहिरा किया है दीपक जी आपने इस गजल की मार्फ़त..पढ कर बहुत अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंघर अगर घर ही रहें तो ठीक है
जवाब देंहटाएंक्यों बनाते हो शिवालों की तरह
"लाजवाब अभिव्यक्ति"
Regards
बहुत अच्छी गजल है। भाव पक्ष सशक्त है।
जवाब देंहटाएंभूख में लम्हात को खाया गया
सख्त रोटी के निवालों की तरह
दीप सा किरदार तो पैदा करो
लोग चाहेंगे उजालों की तरह
भूख में लम्हात को खाया गया
जवाब देंहटाएंसख्त रोटी के निवालों की तरह
बहुत सुंदर.रंजन जी मतला एक बार चेक कर लें कहीं ग़ल्त तो नही टाईप हुआ.
लोग मिलते हैं सवालों की तरह
जवाब देंहटाएंदीपक जी आप की ग़ज़ल के इस मिसरे से जगजीत जी की गायी ग़ज़ल" लोग मिलते हैं बदलते हुए मौसम की तरह" याद आ गयी...बेहद खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने...बधाई...
नीरज
बहुत अच्छी गज़ल है भाई। बधाईयाँ …ख़ूब…वाह वाह
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी गजल है।
जवाब देंहटाएंख़ुद को तुम इन्सान तो साबित करो
याद आओगे मिसालों की तरह
बहुत खूब... बधाई।
दीप सा किरदार तो पैदा करो
जवाब देंहटाएंलोग चाहेंगे उजालों की तरह
बहुत खूब...
बधाई।
बहुत अच्छी गजल है।
जवाब देंहटाएंख़ुद को तुम इन्सान तो साबित करो
याद आओगे मिसालों की तरह
बहुत खूब... बधाई।
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.