
नरेश को आज न जाने क्या हो गया, सुबह से ही कुछ परेशान सा दिख रहा था। कल रात की कलह को लेकर मस्तिष्क में तूफान सा मचा हुआ। छोटी-मोटी बातें तो रोज ही होती रहती थी। आज ऐसी क्या बात थी जो नरेश को सोचने के लिये मजबूर कर रही थी।
नरेश की शादी हुये चार साल हो गये थे, राधा तीन माह के बाद मायके से लौटी थी। नरेश के दो बच्चे थे। सोनू तीन साल का हो गया था। छोटी लड़की अभी गोद में ही थी। तीन माह ही तो हुये थे उसको, राधा का पहला जापा (प्रसूति) घर में ही हुआ था। इस बार राधा चाहती थी कि उसका दूसरा बच्चा पीहर में ही हो, जहाँ घर के पास ही एक अस्पताल है, जहाँ आसानी से अपने होने वाले बच्चे को जन्म भी दे सकेगी। बस इतनी सी ही बात थी जो आज के कलह का मूल कारण था।
माँ को यह बात नागवार गुजरी। जैसे ही राधा ने घर में कदम क्या रखा, माँ ने तो मानो स्वांग ही भर लिया हो।
नरेश की शादी हुये चार साल हो गये थे, राधा तीन माह के बाद मायके से लौटी थी। नरेश के दो बच्चे थे। सोनू तीन साल का हो गया था। छोटी लड़की अभी गोद में ही थी। तीन माह ही तो हुये थे उसको, राधा का पहला जापा (प्रसूति) घर में ही हुआ था। इस बार राधा चाहती थी कि उसका दूसरा बच्चा पीहर में ही हो, जहाँ घर के पास ही एक अस्पताल है, जहाँ आसानी से अपने होने वाले बच्चे को जन्म भी दे सकेगी। बस इतनी सी ही बात थी जो आज के कलह का मूल कारण था।
माँ को यह बात नागवार गुजरी। जैसे ही राधा ने घर में कदम क्या रखा, माँ ने तो मानो स्वांग ही भर लिया हो।
"माँगने से भीख भी नहीं मिलती। बड़ा आया है - भीख माँग लूँगा - भीख माँग लूँगा!..पढ़ा-लिखा के इसलिए तुझे बड़ा किया था?..काम-धाम तो रहा नहीं।..दो-दो बच्चे पैदा कर लिये। पाल नहीं सकते तो किसने कहा था बच्चे पैदा करने के लिये? न घर की इज्जत, ना गाँव का ख्याल, मान- मर्यादा को ताक पर रख दिया। थोड़ा तो अपने खानदान की इज्जत रख ली होती। बस बहू क्या आ गयी, ससुराल का हो गया। मैं तो जलती लकड़ी हूँ! कब बुझ जाऊँगी, पता नहीं!..." राधा के घर में प्रवेश करते ही मानो, तीन महीने का गुस्सा फूट पड़ा हो।
कल तो माँ ने तूफान ही मचा दिया था। नरेश को लगा कि अब इस घर में और बर्दास्त नहीं हो सकेगा। बहुत हो गया.... यह सब। बस काम मिलते ही घर छोड़कर चला जायेगा। राधा ने भी कसम ही खा ली थी कि अब या तो तुम साथ चलो या…वह इस घर में एकदम नहीं रह सकती। बहुत दिन हो गये सुनते-सुनते।
रात भर राधा रो-रोकर कभी मुझे, तो कभी माँ को कोसती रही। बहुत समझाने का प्रयास किया। परन्तु राधा ने तय कर लिया था कि कल फैसला कर ही लेना है। किसी भी तरह से समझौते की संभावना नज़र नहीं आ रही थी। इस द्वंद्व ने मुझे पशोपेश में डाल दिया था। एकतरफ घर में माँ अकेली कैसे रहेगी? तो दूसरी तरफ राधा अब घर में किसी भी हालात में रहने को तैयार नहीं थी।
यह सब सोचते-सोचते घर से बाहर निकल.....पास ही स्टेशन की तरफ चल पड़ा। घर के पास से ही रेललाइन का रास्ता स्टेशन की तरफ जाता था। जल्द स्टेशन पहुंचने के लिये आमतौर पर गांव के लोग यही मार्ग चुनते थे। पता नहीं आज नरेश को क्या जल्दी थी, वह भी रेल की पटरियों के बीच चलने लगा। दिमाग पूरी तरह से खोखला हो चुका था।
काम की तलाश...., घर की इज्जत....., माँ की देखभाल..., बच्चे का ख्याल...., राधा की बात...., माँ के ताने..., गाँव की मर्यादा....,सब एक साथ अपना हक माँगने के लिये खड़े थे। एक की बात सुनूँ तो दूसरे का अपमान, किसकी मानूँ, धीरे-धीरे रेल की पटरियों से आती आवाज ने रफ़्तार ले ली थी, पटरियों से आती आवाज ने नरेश को संकेत दे दिया था कि अब कुछ ही पलों में इन पटरियों के ऊपर से ट्रेन गुजरने वाली है। नरेश को यह भी पता था कि जल्द ही उसे इन पटरियों से नीचे दूर हटना ही होगा।
नरेश चाहता भी नहीं था कि उसे कमजोर होकर लड़ना है। आत्महत्या का जरा भी विचार मन में नहीं था। वह यह भी जानता था कि यह कार्य कमजोर मानसिकता का जन्म है, या फिर मानसिक अस्वस्थता के लक्षण। वह जीवन से हताश नहीं था, परेशान जरूर हो चुका था, लेकिन इतना भी नहीं जो उसे मौत के इतने करीब ला खड़ा कर दे।
ट्रेन की आवाज़ काफी नज़दीक आ चुकी थी, नरेश बस अब हटने की सोच ही चुका था। एक तेज आवाज बस कान को सुनाई दी। नहीं..................ट्रेन की पटरियों पर लोगों की हुजूम लग गया था। ट्रेन रूक चुकी थी। भीड़ में से एक नरेश को पहचानते हुये....चिल्ला पड़ा .... अरे................. ये तो नरेश है।
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15 टिप्पणियाँ
Nice Psycological analysis of mindstate.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
क्या कहूं .....
जवाब देंहटाएंऐसी कहनी क्यों लिख दी जाती है बस यही सवाल उठता है मन में पढने के बाद ...
पढ कर रेल की पटरी पर जाने को मन होता है... जो कहानी समाधान नहीं देती वहा अंधेरा बिखेरती है... लघु करने के चक्कर मे कहानी का क्थ्य कहानी में आया ही नहीं....
अंतर्व्यथा की परिणति को दर्शाती कहानी अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंकश्मकश.....
जवाब देंहटाएंकहानी अधूरी लगती है। पाठक कुछ और तलाशता रह जाता है। वैसे इसे अच्छी लघुकथा कहूँगी।
जवाब देंहटाएंअच्छी कहानी है। बधाई।
जवाब देंहटाएंकहानी की भाषा-शैली और विष्य पसन्द आया लेकिन अंत अखरता है।मेरे ख्याल से कहानी में समाधान होना ज़रूरी है।
जवाब देंहटाएंशम्भू जी बहुत सुंदर कहानी लिखी है मानव भावनाओं को बखूबी लिखा है
जवाब देंहटाएंसादर
रचना
बहोत ही बढ़िया लघु कथा बहोत खूब लिखा है आपने ढेरो बधाई आपको.......
जवाब देंहटाएंएक अच्छा प्रयास मगर कहीं कुछ कमी सी अखरती है कहानी में. शायद नकारात्मक अंश अधिक होने के कारण यह कमी है. अंत इस से बेहतर हो सकता था
जवाब देंहटाएंलघु-कथा
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी।
कथ्य में नएपन की कमी है। लघुकथा अगर प्रशंसनीय है तो केवल लिखने के अंदाज के कारण।
जवाब देंहटाएंइसी अंदाज में कुछ नया लाईये।
-तन्हा
अच्छी प्रस्तुति मगर और बेहतर की प्रतीक्षा!
जवाब देंहटाएंbahut acchi lagu katha hai , in fact main aisa sochta hoon ki hum sabhi apne man ke bheetar jhank kar sochen .
जवाब देंहटाएंbahut bahut badhai
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
an average level short story.
जवाब देंहटाएंExpecting better one from next time.
Congratulation for this.
Avaneesh Tiwari
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