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16 टिप्पणियाँ
कालचक्र में
जवाब देंहटाएंकहीं खो गये
दुर्लभ क्षण
जो थे इतिहास समेटे
बासी कढी का उफ़ान है
चहुँ ओर आज जो मचा शोर है...
सच्ची अभिव्यक्ति है।
"बासी कढी का उफ़ान है" अच्छा प्रतीक लिया है आपने। बधाई एक अच्छी रचना के लिये।
जवाब देंहटाएंकालचक्र में
जवाब देंहटाएंकहीं खो गये
दुर्लभ क्षण
जो थे इतिहास समेटे
बासी कढी का उफ़ान है
चहुँ ओर आज जो मचा शोर है...
सही लगी आपकी यह पंक्तियाँ सुंदर भाव है
बहुत ही अच्छी कविता.. बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंमित्रो क्षमा कीजियेगा... गलती वश दो कविताओं का मिश्रण पोस्ट हो गया था... उसे ठीक कर दोबारा पोस्ट किया जा रहा है... असुविधा के लिये खेद है
जवाब देंहटाएंएक अच्छी रचना बधाई.
जवाब देंहटाएंbahut sunder kavita
जवाब देंहटाएंमनभावन गीति-कविता है। पंछी पर कवि के अवचेतन मन में गहरे पैठे दु:ख की अभिव्यंजना हुई है। पंछी तो माध्यम भर है,यहाँ दु:ख तो आरोपित है पंछी पर। कवि के मन में जो अवसाद प्रच्छन्न है, उसे छायावादी रीति से इस गीति-काव्य में उतारा गया है। पर जीवन को पलायनवादी प्रवृति से बचाना होगा। इन्हीं प्रवृतियों से एकात्म होकर छायावाद-काल में कवितायें रची गयी जिसे छायावादोत्तर प्रगतिशील धारा के कवियों ने चुनौती दिया। बहरहाल, दुख भी तो जीवन का ही अंग है, इसलिये उसकी अभिव्यक्ति में भी जीवन जीने की पूर्णता है। “मैं नीर भरी दु:ख की बदली,कल उमड़ी थी आज मिट चली”- महादेवी जी की इन पंक्तियों को याद कर रहा हूँ मोहिन्दर कुमार की यह रचना पढ़कर। पर बचना होगा इस पीड़ा से,हालाकि कौन बच पाया है ? मोहिन्दर जी ने मुझे अपने बीते क्षण याद दिला दिये ! एक सार्थक कविता। -सुशील कुमार।
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट पर रचना सागर, पंकज सक्सेना और रंजना जी की बातें मेरी समझ में नहीं आ रही। किस कविता की बात कर रहे हैं वे, शायद कहीं कुछ गड़बड़झाला है ! हा हा हा.....(ठहाके !!!)
जवाब देंहटाएंमोहिन्दर जी,आज आपको एक कहानी सुनाता हूँ। एक आदमी के रेडियो का स्टेशन बीच-बीच में फँस जाता था। फलत: कभी ‘विविधभारती’ तो कभी ’रेडियों शिलाँग’पकड़ लेता था। एक सुबह उसे चटनी बनानी थी और उसके व्यायाम का समय भी निकला जाता था। अपना रेडियो भी खोल रखा था उसने । और इत्तफ़ाकन विविधभारती से व्यायाम पर और रेडियो शिलाँग से चटनी बनाने की विधि पर प्रसारण हो रहा था। उसे यह सब निपटाकर ऑफिस के लिये भी तैयार होने की हड़बड़ी थी। बेचारा कभी व्यायाम करे, कभी चटनी बनाए ! पंद्र्ह मिनटों बाद क्या रेसीपी तैयार हुई होगी उस सम्मिश्रित कार्यक्रम को लक्ष्य करके ,आप समझ सकते है, हा हा हा (ठहाके !) बुरा मत मानना भाई जी,मजाक़ करने की आदत है मुझे, बस कोई मौक़ा दे दे ! - सुशील कुमार।
जवाब देंहटाएंअच्छी अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकारें...
atyant khoobsurat kavita prastut ki aapne.
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति ................
जवाब देंहटाएंmohinder ji ,
जवाब देंहटाएंkavita bahut acchi hai , flow bahut sundar hai ..
badhai ..
vijay
मोहिंदर जी !
जवाब देंहटाएंबिलम्ब के साथ ही सही किंतु मुझे इस सचित्र रचना का आनंद मिला तो पता चला की कई दिनों से क्या खोया सा लग रहा था .... सुंदर ...
एक हूँ मैं कितने खूँटे हैं
जवाब देंहटाएंस्वप्न मेरे सारे टूटे हैं.
वाह-वाह मोहिन्दर जी
,
man is born free but everywhere he is in chains.
bahut hee khooooooob.
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.