युवा संवाद, ग्वालियर की पहलकदमी पर नगर के अनेक साहित्यिक, सांस्कृतिक तथा कर्मचारी संगठनों ने 6.12.08 को बंबई में हुई आतंकी घटना के शिकार लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए 'आतंकवाद तथा सांप्रदायिकता के खिलाफ' संयुक्त शांति मार्च निकाला ।
इसके पहले दो दिनो तक युवा संवाद ने 'शहर के विभिन्न चौराहों ,कालेजों तथा विश्वविद्यालय में पर्चा वितरण कर अभियान चलाया था ।
शास्त्री प्रतिमा , पड़ाव से आरम्भ हुए इस 'शांति मार्च में युवा संवाद, प्रगति'शील लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ, इप्टा, परवरिश संवाद, इण्डियन लायस एसोसिये'शन, कर्मचारी मोर्चा नगर निगम, ग्वालियर यूनाइटेड ट्रेड यूनियन कांग्रेस, जनरल इंश्योरेंस डिविजनल एसोसिये'शन, परिवर्तन समूह, विवेकानंद नीडम, भारतेंदुभारतेंदु रंगमंच तथा स्त्री अधिकार संगठन के कार्यकर्ताओं के साथ बड़ी संख्या में लेखकों, कवियों ,बुद्धजिवियों , सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा आम लोगों ने भागीदारी की।
काली पट्टियाँ बांधे लोगों के हाथों में मोमबत्तियां तथा तख्तियां थीं जिन पर 'आतंक नहीं शांति, 'क्षेत्रवाद, जातिवाद,सांप्रदायिकता मुर्दाबाद',' समाजवाद, समृद्धि तथा शान्ति जैसे नारे लिखे थे। पवन करन, ज़हीर कुरैशी , प्रकाश दिक्षीत, जगदीश सलिल, अतुल अजनबी , मधुमास खरे, किरन, नीला हर्डीकर, अजय गुलाटी आदि की महत्वपूर्ण उपस्थिति इस अवसर पर रही।
गांधी प्रतिमा, फूलबाग पर जाकर यह मार्च आमसभा में बदल गया जिसमें लोगों ने सांप्रदायिकता तथा आतंकवाद के खिलाफ संकल्पबद्ध होने की प्रतिज्ञा की तथा विभिन्न संगठनो से जुड़े लोगों ने आज के हालात में एक शांतिपूर्ण समाज के निर्माण में बौद्धिक वर्ग की भूमिका पर विचार रखे । सभा के अंत में गांधी प्रतिमा पर मोमबत्तियां जलाकर तथा मौन रखकर इस हादसे तथा दे'श भर में सांप्रदायिक, जातीय तथा क्षेत्रवादी हिंसा के शिकार लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित की गयी ।
साहित्य शिल्पी अशोक कुमार ने इस अवसर पर कहा कि "6 दिसम्बर 1992 भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण मोड है जहाँ से साम्प्रदायिकता राजनीति मे न केवल निर्णायक रूप मे प्रवेश करती है अपितु एक हद तक स्वीर्कार्यता भी प्राप्त करती है। यहीं वह दौर भी है जिसमे सोवियत संघ के टूटनें के बाद एकध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था सामने आती है और भूमन्डलीकरण तथा उदारिकरण की नीतियाँ लागू की गयी। देश मे नवसाम्राज्यवाद अपनी भयावहता से पैर पसारने लगा और बाज़ार के हावी होते जाने के साथ साथ पूरे देश मे प्रगतिशील ताक़तें कमज़ोर पडी जिससे विचारधारा के रूप मे साम्प्रदायिकता ने तेज़ी से विस्तार किया।...। गरीब और अमीर के बीच बढती खाई ने वह सामाजिक आर्थिक आधार बनाया जिसने इन साम्प्रदायिक ताकतो को रंगरूट उपलब्ध कराये। यह न केवल भारत अपितु पूरे उपमहाद्वीप के लिये सच है। ईसीलिये आतंकवाद के खिलाफ़ लडाई साम्प्रदायिकता और नवसाम्राज्यवाद के खिलाफ़ लड कर ही जीती जा सकती है।"
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14 टिप्पणियाँ
बढिया पहलक़दमी।
जवाब देंहटाएंबधाई
acchi shuruwaat hai..par dekhna hoga ki shantimarch aur goshthiyon se "atankwaad" jaise samasya ka kitna hal nikala ja sakta hai..kuch rachnatmak aur apratyashit karna chahiye
जवाब देंहटाएंबधाई....
जवाब देंहटाएंYuva Samvad Gwalior k saathiyo ko bendhayi...andhre samye mai ek mombaati ki roshni bhi kafi important hai...umeed hai y karwa isi pirkar aaghe bedhta rehega....
जवाब देंहटाएंसभी मित्रों को धन्यवाद
जवाब देंहटाएंजनता को आतंकवाद के खिलाफ़ जगाने की अच्छी पहल हुई है।
जवाब देंहटाएंआतंकवाद के विरुद्ध सामान्य जन को एकजुट करने के ऐसे प्रयास होते रहने चाहिये. एक अच्छी शुरुआत!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआतंकवाद से लडने के लिये एसी एकजुटता व प्रयासों की नितांत आवश्यकता है।
जवाब देंहटाएंसार्थक आयोजन।
जवाब देंहटाएंबढिया रिपोर्ट..
जवाब देंहटाएंएकजुटता ही आतंकवाद से लडने का एकमात्र हथियार है क्योंकि आतंकवादी तो यही चाहते हैं कि हम लडें..धर्म के नाम पर, जाति के नाम पर.. या उन सभी कारणों को ले कर जिन का समाधान शान्तिपूर्ण ढंग से भी हो सकता है..
प्रशंसायोग्य प्रयास है। बधाई।
जवाब देंहटाएंआयोजनकर्ताओं को बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंसभी मित्रो का तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
जवाब देंहटाएंयुवा सम्वाद सामाजिक क्षेत्र मे ऐसी पहलक़दमी करते रहने के लिये वचनबद्ध है आपकी स्वीक्रिति हमे बल देगी।
अशोक
युवा सम्वाद ग्वालियर
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