
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर‘ के जन्म शताब्दी वर्ष पर मेधाश्रम संस्था के तत्वाधान में ‘‘राष्ट्रकवि दिनकर की रचनाधर्मिता के विविध आयाम‘‘ पर 26 दिसम्बर 2008 को कानपुर में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम को बतौर मुख्य वक्ता सम्बोधित करते हुए उत्तर प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन के पूर्व अध्यक्ष डा0 बद्री नारायण तिवारी ने कहा कि दिनकर जी की कवितायें सुनने और पढ़ने- दोनों स्तरों पर प्रभावित करती हैं। वे स्वतंत्रता पूर्व विद्रोही कवि तो स्वतंत्रता पश्चात राष्ट्रकवि रूप में प्रतिष्ठित हुए। दिनकर जी की कविताआंे में राष्ट्रवादी, क्रान्तिकारी, माक्र्सवादी, प्रगतिवादी और रोमांटिक सभी भावनाओं की अनुपम अभिव्यक्ति है। जहाँ ‘रेणुका‘ में साम्यवादी स्वर है, वहीं ‘कुरूक्षेत्र‘ में उन्होंने चरित्र को ऊपर रखा। ‘रश्मिरथी‘ में माक्र्सवादी प्रभाव से निकलकर दिनकर गांँधीवादी मूल्यों के हिमायती बने तो ‘नीलकुसुम‘ में रोमांटिक कल्पना के दर्शन हुए।
बतौर मुख्य अतिथि संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए भारतीय डाक सेवा के अधिकारी एवं साहित्यकार श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि दिनकर जी हिन्दी के उत्तर छायावादी कवियों में पहले ऐसे कवि हैं जिनकी काव्यभाषा में सहजता व संप्रेषणीयता होने के कारण वे लोगोँ की जुबान पर खूब चढ़ीं। दिनकर जी की कविताओं में अगर राष्ट्र का स्वाभिमान था तो गरीब जनता का हाहाकार भी शामिल था। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में दिनकर जी की कविताओं के सम्बन्ध में श्री यादव ने कहा कि दिनकर जी की कवितायें आज भी नव-औपनिवेशिक शक्तियों के विरोध में वैचारिक प्रतिरोध की व्यापक भावभूमि तैयार करती हैं। युवा कवयित्री एवं लेखिका श्रीमती आकांक्षा यादव ने संगोष्ठी को आगे बढ़ाते हुए कहा कि दिनकरजी का गद्य और पद्य पर समान रूप से अधिकार था। यही कारण है कि उनकी गद्य रचना ‘संस्कृति के चार अध्याय‘ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ तो उनकी चर्चित पद्य कृति ’उर्वशी’ हेतु भारतीय साहित्य का सर्वोच्च ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ। डा0 जे0 एस0 चैहार ने राष्ट्रकवि दिनकर जी की रचनाओं में सहजता को व्याख्यायित करते हुए उन्हें क्रान्ति का उद्घोषक कवि कहा, जो बाद में गाँधीवाद के दर्शन से प्रभावित हुए। मेधाश्रम संस्था के सचिव श्री अनुराग ने संगोष्ठी का समापन करते हुए कहा कि दिनकर जी को हिन्दी के तथाकथित आधुनिक आलोचकों की मार भी झेलनी पड़ी, पर पाठकों और हिन्दी के शुभेच्छुओं के बीच उन्हें बेहद सम्मान और गौरव प्राप्त है। इसी कारण उन्हें इतिहास बदलने वाला कवि भी कहा जाता है। इस अवसर पर अपनी क्रान्तिकारी कविताओं से लोकप्रियता हासिल करने वाले राष्ट्रकवि दिनकर के तैल चित्र का संसद के केन्द्रीय कक्ष में अनावरण होने पर प्रसन्नता जाहिर की गयी।

19 टिप्पणियाँ
Thanks for news
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
Rashtrakavi Ramdharisingh dinkar
जवाब देंहटाएंkee janm shataabdi par Kanpur mein
hue aayojan kaa vivran padhkar
bahut achchha lagaa hai.Bdhaaee.
अच्छी प्रस्तुति है। अनुराग जी बधाई।
जवाब देंहटाएंअनुराग जी का आभार जिन्होंने यह दिनकर जी की जन्मश्ताबदी पर हुए कार्यक्रम की रिपोर्ट इस लेख के मध्यम से हम सब तक पहुंचाई
जवाब देंहटाएंसराहनीय कार्य है।
जवाब देंहटाएंआयोजनकर्ताओं को साधुवाद। दिनकर को याद किया जाना अहम है।
जवाब देंहटाएंजन्म शताब्दी वर्ष में राष्ट्रकवि दिनकर जी को याद करना सुखद लगा.
जवाब देंहटाएंश्रीकृष्ण कुमार यादव जी का कथन कि- ''दिनकर जी की कवितायें आज भी नव-औपनिवेशिक शक्तियों के विरोध में वैचारिक प्रतिरोध की व्यापक भावभूमि तैयार करती हैं।''...बड़ी सटीक बात है.
जवाब देंहटाएंदिनकर जी की कविताआंे में राष्ट्रवादी, क्रान्तिकारी, माक्र्सवादी, प्रगतिवादी और रोमांटिक सभी भावनाओं की अनुपम अभिव्यक्ति है। जहाँ ‘रेणुका‘ में साम्यवादी स्वर है, वहीं ‘कुरूक्षेत्र‘ में उन्होंने चरित्र को ऊपर रखा। ‘रश्मिरथी‘ में माक्र्सवादी प्रभाव से निकलकर दिनकर गांँधीवादी मूल्यों के हिमायती बने तो ‘नीलकुसुम‘ में रोमांटिक कल्पना के दर्शन हुए।....बेहद सारगर्भित विश्लेषण. इस आयोजन हेतु बधाई !!
जवाब देंहटाएंअपनी क्रान्तिकारी कविताओं से लोकप्रियता हासिल करने वाले राष्ट्रकवि दिनकर के तैल चित्र का संसद के केन्द्रीय कक्ष में अनावरण होने सम्बन्धी समाचार पाकर हर्ष हुआ. अनुराग जी को ऐसे आयोजन हेतु बधाई.
जवाब देंहटाएंऐसे आयोजन समाज में साहित्य को जीवंत रखते हैं.
जवाब देंहटाएंनव-वर्ष की आप सभी को बधाई.
जवाब देंहटाएंसाहित्य शिल्पी देश के कोने-कोने में हो रहे साहित्यिक कार्यक्रमों को अपने पाठकों तक पहुंचकर जहाँ अपनी प्रतिबद्धता दर्शा रहा है, वहीँ लोगों के दिलों को भी छू रहा है...कोटिश: साधुवाद.
जवाब देंहटाएं....और लो हम भी आ गए नए साल की सौगातें लेकर...खूब लिखो-खूब पढो मेरे मित्रों !!
जवाब देंहटाएंयुवा कवयित्री एवं लेखिका श्रीमती आकांक्षा यादव ने संगोष्ठी को आगे बढ़ाते हुए कहा कि दिनकरजी का गद्य और पद्य पर समान रूप से अधिकार था। यही कारण है कि उनकी गद्य रचना ‘संस्कृति के चार अध्याय‘ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ तो उनकी चर्चित पद्य कृति ’उर्वशी’ हेतु भारतीय साहित्य का सर्वोच्च ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ।
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ऐसा बेजोड़ समन्वय होने के कारण ही दिनकर जी ''राष्ट्रकवि'' कहलाये.
आयोजकों को बधाई। एसे आयोजन जरूरी हैं।
जवाब देंहटाएंNice to see this news at sahitya shilpi..thanks.
जवाब देंहटाएंराष्ट्र -कवि विषयक सुरुचिपूर्ण जानकारी पढ़कर अच्छा लगा ।
जवाब देंहटाएंआभार ।
प्रवीण पंडित
Rashtrakavi Dinkar ji ko mera pranam . main unki ojhaswi kavitaon ko padhkar hamesha hi josh mein bhar jaata tha.
जवाब देंहटाएंsahityashilpi ,itne acche acche lekh le kar aa raha hai , aur mujhe is baat ka garv hai ki , main inse juda hoon ..
bahut badhai.
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
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