
रात्रि के नीरव प्रहर में, प्रेम की प्रिय रागिनी सी।
याद की वीणा बजी, प्रिय चंद्र-मुख अनुरागिनी सी।।
चाँद गुमसुम सा गगन में, चाँदनी ओढ़े खड़ा है;
वक़्त की बहती नदी में, द्वीप ज्यों ठिठका पड़ा है।
क्या किसी की याद में बेचैन हो फिरता गगन में;
धधकती इसके हृदय में क्या कोई विरहागिनी सी?
टिमटिमाते कुछ सितारे, स्वयं में खोये हुये से;
झींगुरों के गीत भी हैं, आज कुछ सोये हुये से।
शांति-भंग होने से डरती, वायु भी बहती नहीं है;
चुप गुजरती राह अपनी, है निशा वैरागिनी सी।
ऐसे में आई अचानक याद तेरी पाँव दाबे;
वो तेरे हँसते नयन, वो मुस्कराते होंठ सादे।
बाँसुरी सी सुरमयी आवाज़ का मीठा तसव्वुर;
छेड़ती हो गीत कोई, मानिनी बड़भागिनी सी।
दिन जो तेरे साथ गुज़रे, निधि मेरी अनमोल हैं;
हृदय पर अंकित अभी तक, प्रिया तेरे बोल हैं।
मेरे मरु-जीवन पे छायी प्रेम की बदली सरीखी;
विरह की पीड़ा अभागिन भी बनी सौभागिनी सी।
19 टिप्पणियाँ
बहुत अच्छा लिखा है आपने अजय जी। भाषा प्रशंसनीय है।
जवाब देंहटाएंदिन जो तेरे साथ गुज़रे, निधि मेरी अनमोल हैं;
हृदय पर अंकित अभी तक, प्रिया तेरे बोल हैं।
मेरे मरु-जीवन पे छायी प्रेम की बदली सरीखी;
विरह की पीड़ा अभागिन भी बनी सौभागिनी सी।
रात्रि के नीरव प्रहर में, प्रेम की प्रिय रागिनी सी।
जवाब देंहटाएंयाद की वीणा बजी, प्रिय चंद्र-मुख अनुरागिनी सी।।
बहुत अच्छी कविता। बधाई।
aapne bahut accha likha hai .
जवाब देंहटाएंitni sundar hindi ka prayog , maza aa gaya padkar .
ye lines bahut acchi hai
न जो तेरे साथ गुज़रे, निधि मेरी अनमोल हैं;
हृदय पर अंकित अभी तक, प्रिया तेरे बोल हैं।
मेरे मरु-जीवन पे छायी प्रेम की बदली सरीखी;
विरह की पीड़ा अभागिन भी बनी सौभागिनी सी।
bahut bahut badhai
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
Nice poem in Chhayavadi touch.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
प्रकृति और प्रेम का यह अद्भुत शब्द चित्रण अनुपम मनोहारी है.
जवाब देंहटाएंशब्द शिल्प भाव सब अद्वितीय हैं.इस सुंदर कविता ने तो मन ही बाँध लिया.आपकी लेखनी को नमन .
बहुत अच्छी लगी आपकी कविता !
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
बहुत अच्छा,शब्द चित्रण मनोहारी है. बहुत अच्छी लगी कविता, बधाई।
जवाब देंहटाएंदिन जो तेरे साथ गुज़रे, निधि मेरी अनमोल हैं;
हृदय पर अंकित अभी तक, प्रिया तेरे बोल हैं।
मेरे मरु-जीवन पे छायी प्रेम की बदली सरीखी;
विरह की पीड़ा अभागिन भी बनी सौभागिनी सी।
बहुत अच्छा है
विरह की पीड़ा अभागिन भी बनी सौभागिनी सी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव!
बहुत भाव पूर्ण, प्रशंसनीय कविता।
जवाब देंहटाएंचाँद गुमसुम सा गगन में, चाँदनी ओढ़े खड़ा है;
वक़्त की बहती नदी में, द्वीप ज्यों ठिठका पड़ा है।
क्या किसी की याद में बेचैन हो फिरता गगन में;
धधकती इसके हृदय में क्या कोई विरहागिनी सी?
बहुत अच्छी कविता है अजय जी, बधाई।
जवाब देंहटाएंविरह की पीड़ा...जिस तन लागे वो तन जाने...
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता...बढिया बोल
अजय जी,
जवाब देंहटाएंआपकी इस रचना के कलापक्ष का कायल होना होगा। बिम्ब एसे प्रयुक्त हैं जो रचना को उंचाई प्रदान कर रहे हैं। शब्द प्रयोग एसा कि रवानगी त्रुटिहीन है।
***राजीव रंजन प्रसाद
मन को छू जाने वाले
जवाब देंहटाएंकोमल भावों से भरी
आपकी कविता ने मन-मोह लिया.....
भाषा का सौंदर्य और आपका शब्द चयन...
सभी कुछ बहुत सुंदर........
कई बार गुनगुनाया है......आभार....और बधाई....अजय जी...
बहुत सुन्दर गीत..संपूर्ण लयबद्ध..बहुत अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंकलावादियों की भी अपनी सौंदर्याभिरुचि होती है। उस दृष्टि से आपकी यह कविता उत्तम है।
जवाब देंहटाएंबहोत खूब साहब वाह क्या खूब लिखा है आपने मज़ा आगया ढेरो बधाई स्वीकारें साहब...
जवाब देंहटाएंअर्श
शब्द, प्रेम और लय का सुन्दर समागम है यह रचना... बधाई
जवाब देंहटाएंajay pira kya hoti hai kyon hoti aur use gahrayee ki had tak jakar kis kadar mahsus kiya ja sakta hai ye baat tumhari lekhni mein saf jhalakti hai
जवाब देंहटाएंrakesh prakash
bhasha,bhav kavita ki sadgi ko sarthak rup se gada hain sir apne
जवाब देंहटाएंbahut badiya laga padkar
shbdo ka star aajkal kam hi dekhne ko milta hain
logo ki rachnao me mujhe niji tour par or vaise bhi bahut pasand aayi rachna
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