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किसी तपते सफ़र को भीगती सी शाम दे जाऊं [ग़ज़ल] - प्रवीण पंडित

किसी तपते सफ़र को भीगती सी शाम दे जाऊं
किसी आधी -अधूरी बात को अंजाम दे जाऊं

मेरी तस्वीर भी रख ले वो अपनी शामो- सुबहों मे
किसी अपने को, घर बैठे,ज़रा सा काम दे जाऊं

बहुत मुमकिन है वो शायद अभी तक रास्ता देखे
किसी राहगीर के हाथों उसे पैग़ाम दे जाऊं


समंदर के किनारे हमने अक्सर प्यास देखी है
किसी के सूखे होंठों को खुशी का जाम दे जाऊं

रहा हो ग़म कोई भी पर सदा हंसती रहीं आंखें
मैं उसकी इस हुनरमंदी पे कुछ ईनाम दे जाऊं

न खो जाये कहीं कल वो यहाँ अपनी ही गलियों में
गली के मोड़ पर अपना कहीं भी नाम दे जाऊं

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19 टिप्पणियाँ

  1. समंदर के किनारे हमने अक्सर प्यास देखी है
    किसी के सूखे होंठों को खुशी का जाम दे जाऊं

    रहा हो ग़म कोई भी पर सदा हंसती रहीं आंखें
    मैं उसकी इस हुनरमंदी पे कुछ ईनाम दे जाऊं

    बहुत अच्छी ग़ज़ल है। बधाई प्रवीण जी।

    जवाब देंहटाएं
  2. किसी तपते सफ़र को भीगती सी शाम दे जाऊं
    किसी आधी -अधूरी बात को अंजाम दे जाऊं

    Nice Gazal.

    Alok Kataria

    जवाब देंहटाएं
  3. न खो जाये कहीं कल वो यहाँ अपनी ही गलियों में
    गली के मोड़ पर अपना कहीं भी नाम दे जाऊं
    वाह वाह..

    जवाब देंहटाएं
  4. GAZAL KE SABHEE ASHAAR ACHCHHE BAN
    PADE HAIN.SHER KAHNE KAA ACHCHHA
    SHAOOR HAI PRAVEEN JEE KO.

    जवाब देंहटाएं
  5. बहोत खूब लिखा है आपने ढेरो बधाई .................


    अर्श

    जवाब देंहटाएं
  6. न खो जाये कहीं कल वो यहाँ अपनी ही गलियों में
    गली के मोड़ पर अपना कहीं भी नाम दे जाऊं
    बहुत सुन्दर लिखा है।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत अच्छी ग़ज़ल है।

    जवाब देंहटाएं
  8. मत्अला बहुत अछ्छा है
    बधाइ

    कवि दीपक गुप्ता
    www.kavideepakgupta.com

    जवाब देंहटाएं
  9. प्रवीण जी

    बहुत ही संतुलन के साथ ...... एक एक मोती पिरोया है .... सुखद लगा आपको इस रूप में पढ़ना

    सप्रेम शुभकामना

    जवाब देंहटाएं
  10. समंदर के किनारे हमने अक्सर प्यास देखी है
    किसी के सूखे होंठों को खुशी का जाम दे जाऊं


    न खो जाये कहीं कल वो यहाँ अपनी ही गलियों में
    गली के मोड़ पर अपना कहीं भी नाम दे जाऊं



    वाह वाह.....


    बहुत अच्छी ग़ज़ल...
    बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  11. praveen ji , bahut hi sundar gazal , maine abhi ise do baar padha hai , mazaa aa gaya

    समंदर के किनारे हमने अक्सर प्यास देखी है
    किसी के सूखे होंठों को खुशी का जाम दे जाऊं

    ye lines bahut kuch kah jaati hai ..man ko chooti hui ...

    aapko dil se badhai ..

    vijay
    http://poemsofvijay.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  12. "rahaa ho gham koi bhi
    pr sda hansti rhi aankhein ,
    main uski iss hunar.mndi pe
    kuchh inaam de jaaoon"

    waah !
    ek nihaayat hi khoobsurat
    ghazal pr mubaarakbaad qubool farmaaein .

    ---MUFLIS---

    जवाब देंहटाएं
  13. यह रचना किसी और नाम से यहाँ छापी गयी है ...
    http://premkephool.blogspot.in/2013/09/blog-post_5358.html

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. satish ji, hum bhi apna wirodh darz kar aaye hain... us blog par sabhi rachnaayein doosron ki hi hain... janaab waah waahi bator rahe hain...

      हटाएं

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