
बिन बरसे छट जाते हैं.
मेरे जीवन में भी ऐसे,
धन के मौसम आते हैं .
गुडिया को गुडिया देने की,
जब भी हमने ठानी है.
महसूस हुआ है कि अपनी,
तन्खवाह है या बेमानी है.
उसकी फीस मैं जब कोई
अन्य भत्ते जुड जाते हैं
तब जीवन के पलडे में
हम वेतन से तुल जाते हैं
जब त्योहारों के अवसर पर
बजट जरा बढ जाता है
तब हमको अपने खर्चों का
ब्योरा बहुत सताता है.
दूध किराया रशन लेकर
जो थोडा बच पाता है
मर्हम, पट्टी और दवा का
बिल उससे भर जाता है.
उत्सव उनको खुशियां देते
उनको ही हर्षाते हैं
जो तन्खवाह के साथ साथ
ऊपर का पैसा लाते हैं.
18 टिप्पणियाँ
बढ़िया कविता है!
जवाब देंहटाएं---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम
आय कम
जवाब देंहटाएंव्यय ज्यादा
का मार्मिक
और सजीव
चित्रण।
उत्सव उनको खुशियां देते
जवाब देंहटाएंउनको ही हर्षाते हैं
जो तन्खवाह के साथ साथ
ऊपर का पैसा लाते हैं.
" हा हा हा हा ये भी जीवन और कमाई का एक सच है...सुंदर चित्रण"
regards
एक आम आदमी की व्यथा का आपने सुन्दर चित्रण किया है..सचमुच तन्खवा तो चांद की तरह है..बढती कम है और खर्च तेजी से होती है :)
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी कविता। मध्यमवर्गी आदमी के दर्द को क्या खूब कहा है आपनें।
जवाब देंहटाएंउत्सव उनको खुशियां देते
उनको ही हर्षाते हैं
जो तन्खवाह के साथ साथ
ऊपर का पैसा लाते हैं.
जब त्योहारों के अवसर पर
जवाब देंहटाएंबजट जरा बढ जाता है
तब हमको अपने खर्चों का
ब्योरा बहुत सताता है.
दूध किराया रशन लेकर
जो थोडा बच पाता है
मर्हम, पट्टी और दवा का
बिल उससे भर जाता है.
आह!!
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति।
धन के मैसम ही होते हैं योगेश जी। बहुत अच्छी तरह से अभिव्यक्त किया है आपने इस कविता में। आपकी जमीन से जुडी हुई कविताओं का मैं कायल हूँ।
जवाब देंहटाएंVery Toucy Poem.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
बहुत अच्छी कविता है योगेश जी बधाई।
जवाब देंहटाएंयोगेश जी,
जवाब देंहटाएंआपकी कविता वास्तव में उन्ही शब्दों और कथन में होती है जो आम हो और आम आदमी के लिये हो। उत्कृष्ट रचना।
***राजीव रंजन प्रसाद
भीतर तक महसूस हुई आपकी कविता।
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी कविता है।
जवाब देंहटाएंकमाल लिखा है आपने मुक्त हृदय से प्रशंसा स्वीकार कीजिये।
जवाब देंहटाएंउसकी फीस मैं जब कोई
जवाब देंहटाएंअन्य भत्ते जुड जाते हैं
तब जीवन के पलडे में
हम वेतन से तुल जाते हैं
दूध किराया रशन लेकर
जो थोडा बच पाता है
मर्हम, पट्टी और दवा का
बिल उससे भर जाता है.
सच लिखा है आपनें कविता में।
उत्सव उनको खुशियां देते
जवाब देंहटाएंउनको ही हर्षाते हैं
जो तन्खवाह के साथ साथ
ऊपर का पैसा लाते हैं.
एक सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई।
आमदनी अठन्नी...खर्चा रुपईय्या...
जवाब देंहटाएंमध्यम वर्गीय जीवन की सच्चाईयो0ं से रुबरू कराती आपकी कविता बहुत अच्छी लगी...बधाई स्वीकारें
कड़वा सच -- सहज बोलचाल । एक रोचक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंप्रवीण पंडित
yogesh ji ,
जवाब देंहटाएंaamdani athanni aur khrcha ruppayaa..ek aam aadmi ki paristithi ka aapne sajeev chitran kiya hai ..
bahut bahut badhai ..
aapka
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
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