
अंजान सफर है
दर्द का घर है
यह दुनिया
सुबह सवेरे बाग किनारे
इक मरियल नौकर
मोटे बाघिल कुत्ते को
बेमन से सैर कराता है
सर्दियों में आधी रात को
जब सोई होती है सारी दुनिया
नुक्कड के ढाबे का छोटू
ठंठे पानी ओर मिट्टी राख से
घिस घिस कर, अधभूखे पेट
ढेर से जुठे बर्तन चमकाता है
कोयले की बोरियां हैं
उसका बिस्तर और रज़ाई
और आस पास के
जूठन पर पलते
दो चार कुत्ते
साथ में सो कर उसके
देते हैं उसको गर्मायी
लेटे लेटे खुली आंख से
देखता है वो कितने सपने
दुनिया की इस भरी भीड में
ढूंढता है वो कुछ खोये अपने
तारों से भरे आकाश में
अपना सितारा ढूंढता है
गोल मोल सी
इस दुनिया में जाने क्यूं
एक किनारा ढूंढता है
दूर खूमारी होने से पहले
फिर उसको उठ जाना है
मालिक के आने से पहले
चुलहा उसे जलाना है
यूहीं प्यास को पीते पीते
अरमानों पर लगा पलीते
उसको जीते जाना है
हर दिन यही दोहराना है
रोज दोपहरी एक दरोगा
इसी ढाबे पर बिन पैसे दिये
दावत रोज उडाता है
क्या वो नही जानता
बाल रोज़गार का
क्या विधान है
और क्या कोई जानता है
रोजगार छुट जाने पर
इस बाल की रोटी का क्या
प्रावधान है
जटिल प्रश्न है
नही विज्ञान है
एक प्रयत्न है
केवल संज्ञान है
सिर्फ एक खबर है
अंजान सफर है
दर्द का घर है
यह दुनिया
*****
16 टिप्पणियाँ
सुन्दर रचना के लिए बधाई !!
जवाब देंहटाएंक्या वो नही जानता
जवाब देंहटाएंबाल रोज़गार का
क्या विधान है
और क्या कोई जानता है
रोजगार छुट जाने पर
इस बाल की रोटी का क्या
प्रावधान है
जटिल प्रश्न है
नही विज्ञान है
एक प्रयत्न है
केवल संज्ञान है
Bahut sahi kaha aapne.
जन संदर्भों को आपकी कविता बहुत अच्छी तरह प्रस्तुत कर रही है।
जवाब देंहटाएंसिर्फ एक खबर है
अंजान सफर है
दर्द का घर है
यह दुनिया
आपने भीतर तक छुवा।
सुबह सवेरे बाग किनारे
जवाब देंहटाएंइक मरियल नौकर
मोटे बाघिल कुत्ते को
बेमन से सैर कराता है
सर्दियों में आधी रात को
जब सोई होती है सारी दुनिया
नुक्कड के ढाबे का छोटू
ठंठे पानी ओर मिट्टी राख से
घिस घिस कर, अधभूखे पेट
ढेर से जुठे बर्तन चमकाता है
सजीव दृश्य है। जीवंत रचना है।
mohinder ji ,
जवाब देंहटाएंkavita bahut sundar ban padhi hai ...ek dum zindagi ka chehra ..
hamaare aaspaas ghatit hoti hui baaten aur un baaton ko behtreen shabdo mein piroya hai aapne ..
सिर्फ एक खबर है
अंजान सफर है
दर्द का घर है
यह दुनिया
these lines are great ultimate work ..
shaanddar abhivyakhti
badhai aapko
vijay
रोज दोपहरी एक दरोगा
जवाब देंहटाएंइसी ढाबे पर बिन पैसे दिये
दावत रोज उडाता है
क्या वो नही जानता
बाल रोज़गार का
क्या विधान है
और क्या कोई जानता है
रोजगार छुट जाने पर
इस बाल की रोटी का क्या
प्रावधान है
जटिल प्रश्न है
नही विज्ञान है
एक प्रयत्न है
केवल संज्ञान है
महसूस करने वाली कविता है। इस पर टिप्पणी मुश्किल है।
सिर्फ एक खबर है
जवाब देंहटाएंअंजान सफर है
दर्द का घर है
यह दुनिया
....Bahut khoob !!
बहुत सुन्दर यथार्थ का दर्शन कराती कविता लिखी है आपने। ये कुछ ऐसे दृश्य हैं जिन्हें हम देखकर भी नहीं देखते और जानकर भी नहीं जानते। हमारी संवेदनाओं को जगाने के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता है। छोटी छोटी नित्य नजरंदाज होने वाली बातों से मिल कर यह गंभीर हृदय स्पर्शी रचना बनी है।
जवाब देंहटाएंबडी ही सरल रफतार और अंदाज की कविता है बहुत सहज दिल में उतरने वाले भाव और भाव से उपजती पीडा का अंदाजेबयां गजब का है रचना के लिये आपको बधाई
जवाब देंहटाएंसामाजिक सरोकार से प्रत्यक्ष करती हुयी दार्शनिक छांव ढूँढती बढ़िया रचना ......
जवाब देंहटाएंbahot khub likha hai aapne ...
जवाब देंहटाएंarsh
ये सब कुछ हम रोज़ देखते हैँ...देख कर आँखें मूंद लेते हैँ कि कौन पड़े बेगाने पचड़े में?....
जवाब देंहटाएंयतार्थ को दर्शाती जीवंत कविता
मोहिन्दर जी
जवाब देंहटाएंनहीं विज्ञान है
एक प्रयत्न है
केवल संज्ञान है
बहुत बधाई
सुन्दर व सफल रचना के लिए.
Mohinder jee,achchhee kavita ke liye aapko badhaaee.
जवाब देंहटाएंसिर्फ संज्ञान नहीं
जवाब देंहटाएंविज्ञान भी है कविता
मोह लिया इन्द्र जी
आपकी कविता ने।
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.