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10 टिप्पणियाँ
मरते रहे औरों के लिए हर हमेशा
जवाब देंहटाएंअब कुछ पल अपने लिए जीने को जी चाहता है
सुनते रहे तमाम उम्र इसकी उसकी सबकी
अब बस अपनी करने को जी चाहता है...
बहुत बढिया....आपने तो मेरे मन की बात कह दी
आज की भागमभाग ज़िंदगी में हम घर-परिवार, दफ़्तर, दोस्त, दुनिया में उलझे रहते हैं और अपनी ओर झांकना भी भूल जाते हैं, इन्हीं भावों को कविता में पिरोने की सुन्दर कोशिश की गई है। पर शब्दों की गलतियँ अखरती हैं। कंप्यूटर पर बह भी नेट के लिए यूनिकोड में टाइप करना अभी लोग सीख रहे हैं और ऐसी गलतियाँ का हो जाना स्वाभाविक ही है। इन्हें अभी फिलहाल इग्नोर भी किया जा सकता है, पर यदि नेट पर अंतरार्ष्टीय समुदाय के सामने हमने अपनी हिंदी को रखना है तो आने वाले वक़्त में हमें इनसे बचना होगा। इस कविता में आये "चाअय" और "दिवार" शब्द साहित्य श्लिल्पी के पोस्टकर्ताओं को पोस्ट करते समय दुरस्त कर लेने चाहिएं थे।
जवाब देंहटाएंआदरणीय सुभाष नीरव जी ध्यानाकर्षित करने का धन्यवाद। त्रुटियाँ सुधार दी गयी हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता है, बधाई।
जवाब देंहटाएंएक तलब सी उठी है
जवाब देंहटाएं’अपने – आप’ की
अपने लिए,
महसूस हुई है
’अपनी ही ज़रूरत’।
बहुत अच्छी रचना, बेहद करीब लगी।
मैं वर्तमान युवा पीढ़ी के बारे में तो दावे से नहीं कह सकता, किन्तु हमारी पीढ़ी तक के लोग पहले अपने मां बाप के लिये जीते रहे, फिर समाज में उलझे रहे, अब अपना बच्चों के लिये जीते हैं - अपने लिये जीना हमें न तो सिखाया गया, न हमें आता है। ब्रिटेन में जब हर इन्सान को अपने लिए जीते पाता हूं और हर भारतीय को पश्चिमी देशों के मुक़ाबले मेरा भारत महान् कहते देखता और सुनता हूं तो अचानक मीनाक्षी जिजीविषा के विचार दिल को भीतर तक छू जाते हैं। - बधाई।
जवाब देंहटाएंमीनाक्षी जी,
जवाब देंहटाएंआपकी कविता एसी है जो हर किसी की आत्मानुभुती प्रतीत हो।
बिलकुल ऐसे ही आज
मेरे अंदर
एक तलब सी उठी है
’अपने – आप’ की
अपने लिए,
महसूस हुई है
’अपनी ही ज़रूरत’।
***राजीव रंजन प्रसाद
' अपने आप ' की यह तलब बहुत ही ज़रूरी शय है आज ।
जवाब देंहटाएंजब उठ जाय , तब ही भली।
प्रवीण पंडित
कम शब्दों में गहरी बात कह दी आपने मीनाक्षी जी..
जवाब देंहटाएंजैसे अधिकांश ब्लॉगों पर प्रकाशित कविताओं को योग्य सम्पादक और सहृदय एवं स्पष्टवक्ता पाठक नहीं निलते, उसी नियति को यह कविता भी प्राप्त हुई. सुभाष नीरव ने वर्तनी की जुँएँ खोजकर पल्ला झाड़ लिया. अन्य सभी ने तो सामाजिक शिष्टाचार का पाखण्ड ही प्रदर्शित किया है. इस खोखले कर्मकाण्ड से कविता का भला नहीं होने वाला..!
जवाब देंहटाएंbhuwaneshkumar220@yahoo.com
M. 09198201047
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.