
ग़ज़ल में शब्द के सही तौल, वज़न और उच्चारण की भाँति काफ़िया और रदीफ़ का महत्व भी अत्यधिक है। काफ़िया के तुक (अन्त्यानुप्रास) और उसके बाद आने वाले शब्द या शब्दों को रदीफ़ कहते है। काफ़िया बदलता है किन्तु रदीफ़ नहीं बदलती है। उसका रूप जस का तस रहता है।
जितने गिले हैं सारे मुँह से निकाल डालो
रखो न दिल में प्यारे मुँह से निकाल डालो। - बहादुर शाह ज़फर
इस मतले में 'सारे' और ’प्यारे’ काफ़िया है और 'मुँह से निकाल डालो' रदीफ़ है। यहां यह बतलाना उचित है कि ग़ज़ल के प्रारंभिक शेर को मतला और अंतिम शेर को मकता कहते हैं। मतला के दोनों मिसरों में तुक एक जैसी आती है और मकता में कवि का नाम या उपनाम रहता है। मतला का अर्थ है उदय और मकता का अर्थ है अस्त। उर्दू ग़ज़ल के नियमानुसार ग़ज़ल में मतला और मक़ता का होना अनिवार्य है वरना ग़ज़ल अधूरी मानी जाती है। लेकिन आज-कल ग़ज़लकार मकता के परम्परागत नियम को नहीं मानते है और इसके बिना ही ग़ज़ल कहते हैं। कुछेक कवि मतला के बगैर भी ग़ज़ल लिखते हैं लेकिन बात नहीं बनती है; क्योंकि गज़ल में मकता हो या न हो, मतला का होना लाज़मी है जैसे गीत में मुखड़ा। गायक को भी तो सुर बाँधने के लिए गीत के मुखड़े की भाँति मतला की आवश्यकता पड़ती ही है। ग़ज़ल में दो मतले हों तो दूसरे मतले को 'हुस्नेमतला' कहा जाता है। शेर का पहला मिसरा 'ऊला' और दूसरा मिसरा 'सानी' कहलाता है। दो काफ़िए वाले शेर को 'जू काफ़िया' कहते हैं।
शेर में काफिया का सही निर्वाह करने के लिए उससे सम्बद्ध कुछ एक मोटे-मोटे नियम हैं जिनको जानना या समझना कवि के लिए अत्यावश्यक हैं. दो मिसरों से मतला बनता है जैसे दो पंक्तिओं से दोहा. मतला के दोनों मिसरों में एक जैसा काफिया यानि तुक का इस्तेमाल किया जाता है. मतला के पहले मिसरा में यदि "सजाता" काफिया है तो मतले के दूसरे मिसरा में "लुभाता", "जगाता" या "उठाता" काफिया इस्तेमाल होता है. ग़ज़ल के अन्य शेर "बुलाता", "हटाता", "सुनाता" आदि काफिओं पर ही चलेंगे. मतला में "आता", "जाता", "पाता", "खाता","मुस्काता", "लहराता" आदि काफिये भी इस्तेमाल हो सकते हैं लेकिन ये बहर या छंद पर निर्भर है. निम्नलिखित बहर में की ग़ज़ल में "आता", "जाता", "मुस्कराता" आदि काफिये तो इस्तेमाल हो सकते हैं लेकिन "मुस्काता", "लहराता" आदि काफिये नहीं.
हम कहाँ उनको याद आते हैं
भूलने वाले भूल जाते हैं
मुस्कराहट हमारी देखते हो
हम तो गम में भी मुस्कराते हैं
झूठ का क्यों न बोल बाला हो
लोग सच का गला दबाते हैं - प्राण शर्मा
उर्दू शायरी में एक छूट है वो ये कि मतला के पहले मिसरा में "आता" और दूसरे में "लाया" काफियों का इस्तेमाल किया जा सकता है. मसलन--
वो यूँ बाहर जाता है
गोया घर का सताया है
लेकिन एक बंदिश भी है जिसका मैंने ऊपर उल्लेख किया है कि मतला के पहले मिसरा में "आता" और दूसरे मिसरा में "जाता" काफिये प्रयुक्त हुए हैं तो पूरी ग़ज़ल में समान ध्वनियों के शाब्द -खाता ,भाता, लाता आते हैं. इस हालत में "आता" के साथ "लाया" काफिया बाँधना ग़लत है. इसके अतिरिक्त ध्वनी या स्वर भिन्नता के कारण "कहा" के साथ "वहां", "ठाठ" के साथ "गाँठ", "ज़ोर" के साथ "तौर" काफिये इस्तेमाल करना दोषपूर्ण है.
अभिव्यक्ति की अपूर्णता, अस्वाभाविकता, छंद-अनभिज्ञता और शब्दों के ग़लत वज़्नों के दोषों की भांति हिन्दी की कुछेक गज़लों के काफियों और रदीफों के अशुद्ध प्रयोग भी मिलते हैं. जैसे-
आदमी की भीड़ में तनहा खडा है आदमी
आज बंजारा बना फिरता यहाँ हैं आदमी - राधे श्याम
राधे श्याम के शेर का दूसरा मिसरा "यहाँ" अनुनासिक होने के कारण अनुपयुक्त है.
ख़ुद से रूठे हैं हम लोग
जिनकी मूठें हैं हम लोग - शेर जंग गर्ग
दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है
खो जाए तो मिटटी है मिल जाए तो सोना है -निदा फाजली
इस शेर में "खिलौना" और "सोना" में आयी "औ" और "ओ" की ध्वनी में अन्तर है.
बंद जीवन युगों में टूटा है
बाँध को टूटना था टूटा है -त्रिलोचन
अपने दिल में ही रख प्यारे तू सच का खाता
सब के सब बेशर्म यहाँ पर कोई शर्म नहीं खाता -भवानी शंकर
फ़िक्र कुछ इसकी कीजिये यारो
आदमी किस तरह जिए यारो -विद्या सागर शर्मा
उपर्युक्त तीनों शेरों में "टूटा", "खाता" और "जिए" की पुनरावृति का दोष है. एक मतला है-
जिंदगी तुझ से सिमटना मेरी मजबूरी थी
अज़ल से भी तो लिपटना मेरी मजबूरी थी -कैलाश गुरु "स्वामी"
"सिमटना" और "लिपटना" में आए "मटना" और "पटना" काफिये हैं. आगे के शेरों में भी इनकी ध्वनियों -कटना, पलटना जैसे काफिये आने चाहिए थे लेकिन कैलाश गुरु "स्वामी" के अन्य शेर में "जलना" का ग़लत इस्तेमाल किया गया है. पढिये-
ये अलग बात तू शर्मिदगी से डूब गया
मैं इक चिराग था जलना मेरी मजबूरी थी
काफ़िया तो शुरू से ही हिंदी काव्य का अंग रहा है। रदी़फ भारतेंदु युग के आस-पास प्रयोग में आने लगी थी। हिंदी के किस कवि ने इसका प्रयोग सबसे पहले किया था, इसके बारे में कहना कठिन है। वस्तुतः वह फ़ारसी से उर्दू और उर्दू से हिंदी में आया। इसकी खूबसूरती से भारतेंदु हरिश्चंद्र, दीन दयाल जी, नाथूराम शर्मा शंकर, अयोध्या सिंह उपाध्याय, मैथलीशरण गुप्त, सूयर्कान्त त्रिपाठी 'निराला', हरिवंशराय बच्चन आदि कवि इसकी ओर आकर्षित हुए बिना नहीं रह सके। फलस्वरूप उन्होंने इसका प्रयोग करके हिंदी काव्य सौंदर्य में वृद्धि की। उर्दू शायरी के मिज़ाज़ को अच्छी तरह समझनेवाले हिंदी कवियों में राम नरेश त्रिपाठी का नाम उल्लेखनीय है। उर्दू की मशहूर बहर 'मफ़ऊल फ़ाइलातुन मफ़ऊल फ़ाइलातुन' (सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा) में बड़ी सुंदरता से प्रयोग की गई है। उनकी 'स्वदेश गीत' और 'अन्वेषण' कविताओं में 'में' की छोटी रदी़फ की छवि दर्शनीय है-
जब तक रहे फड़कती नस एक भी बदन में
हो रक्त बूँद भर भी जब तक हमारे तन में
मैं ढूँढता तुझे था जब कुंज और वन में
तू खोजता मुझे था तब दीन के वतन में
तू आह बन किसी की मुझको पुकारता था
मैं था तुझे बुलाता संगीत में भजन में
यहाँ पर यह बतलाना आवश्यक है कि रदी़फ की खूबसूरती उसके चंद शब्दों में ही निहित है. शब्दों की लंबी रदी़फ काफ़िया की प्रभावोत्पादकता में बाधक तो बनती ही है, साथ ही शेर की सादगी पर बोझ हो जाती है। इसके अलावा ग़ज़ल में रदी़फ के रूप को बदलना बिल्कुल वैसा ही है जैसे कोई फूलदान में असली गुलाब की कली के साथ कागज़ की कली रख दे। गिरजानंद 'आकुल' का मतला है-
इतना चले हैं वो तेज़ सुध-बुध बिसार कर
आए हैं लौट-लौट के अपने ही द्वार पर
यहां 'बिसार' और 'द्वार' काफ़िए हैं उनकी रदी़फ है- 'कर'। चूँकि रदीफ बदलती नहीं है इसलिए अंतिम शेर तक 'कर' का ही रूप बना रहना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ग़ज़लकार ने काफ़िया के साथ-साथ 'कर' रदीफ को दूसरे मिसरे में 'पर' में बदल दिया है।
दुष्यंत कुमार का मतला है -
मेरे गीत तुम्हारे पास सहारा पाने आएंगे
मेरे बाद तुम्हें ये मेरी याद दिलाने आएंगे
यहां 'पाने' और 'दिलाने' काफ़िए है; और उनकी रदीफ है- 'आएंगे'। ग़ज़ल के अन्य शेर में 'आएंगे' के स्थान पर 'जाएंगे' रदीफ का इस्तेमाल करना सरासर ग़लत है। पढ़िए-
हम क्या बोलें इस आँधी में कई घरौंदे टूट गए।
इन असफल निर्मितियों के शव कल पहचाने जाएंगे।
कई अशआर में रदीफ के ऐसे ही प्रयोग मिलते हैं।
बहुत-बहुत शुक्रिया, प्राण साहब इतना उम्दा और जानकारी भरा लेख लिखने के लिए
जवाब देंहटाएं---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम
अगर मतले में उदाहरण के लिये "जाता" दोनों पंक्तियों में आ रहा हो तो क्या वह भी सही होगा?
जवाब देंहटाएंदो काफिये वाले किसी शेर का उदाहरण देजिये
I wait for your articles of GaZal.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
बहुत अच्छा और सरलता से समझाया गया आलेख है। बधाई।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंरदीफ कितने वर्ण या शब्दों की हो सकती है आपके लिये हुए उदाहरण में मुख से निकाल डालो लगभग आधा वाक्य है। इसमें स्थिरता और बहर की निरंतरता के अलावा भी क्या किसी बात का ध्यान रखना होगा।
जवाब देंहटाएंप्राण सर आपके द्वरा प्रस्तुत किया जा रहा यह स्तंभ बहुत जानकारी पूर्ण व उस भाषा में है इसे आसानी से समझा जा सके।
बहुत श्रम से सीख रहा हूँ और बुनियादी तथ्यों से अवगत होते ही आपके लिये परेशानी बढाने वाला हूँ जिसमें आपको मेरी और मुझ जैसे अनाडियों की ग़ज़लों से वास्ता पडे।
किसी ग़ज़ल में अगर अंत में तुकबंदी तो मिलती चले लेकिन किसी शब्द या वाक्यांश की आवृति न हो तो क्या उसे ग़ज़ल नहीं कहा जायेगा। मतला में शायर को नाम देना जरूरी है, हमेशा नाम लगाने के क्जक्कर में बहर चली जती है। बेमतला ग़ज़ल क्या खारिज होती है या उसे भी मान्यता है?
जवाब देंहटाएंAap ne koi gazal likhi he...
हटाएंGazal mein matla aur makta ka mahatb kafiya rdif ki tarah hai kya
हटाएंधन्यवाद प्राण साहब। इस विधा में जितना रस है उसे समझना उनना ही कठिन। आप का कार्य बहुत महत्वपूर्ण है।
जवाब देंहटाएंआप उदाहरण दे कर जो गुण दोषों की विवेचना कर रहे हैं वही कुंजी बनती जा रही है। मेरी विनती है कि छोटे छोटे आलेख ही प्रस्तुत करें चाहे कडिया अधिक प्रस्तुत करनी पडें। आज के चारो शब्द समझ में आ गये।
जवाब देंहटाएंसरलता से समझाया है आपने। कुछ प्रश्न जि उपर टिप्पणियों में आये हैं उनके उत्तर से मेरी शंकाओं का समाधान भी हो जायेगा।
जवाब देंहटाएंमतला, मक़ता, काफ़िया और रदीफ़ पर बहुत से संदेह आपके आलेख से दूर हुए। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत कम लोगों में बड़े शायरों की रचनाओं में दोष निकालने का साहस होता है। यह साहस आप दिखला रहे है। आपने निदा फाजली, त्रिलोचन, भवानी शंकर और यहाँ तक कि दुष्यंत कुमार के अशआर में भी न केवल दोष निकाला बल्कि उसे तर्क सहित बतलाया भी! नए ग़ज़लकारों को आपकी इस आलेख श्रृंखला से नि:संदेह बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।
जवाब देंहटाएंमैने बेमक्ता गज़लों के विषय में कहीं पढा था। कुछ लोग हज़ल लिख कर इसे नाम देने की कोशिश कर रहे है कई बात यह भी कि शेर सुन कर वाह वाह कह उठता हूँ लेकिन तकनीक उसे खारिज कर देती है। एक्ल नया शायर क्या करे। ग़ज़ल एक धुन की तरह उतर आयी अब उसे कैसे निभायें?
जवाब देंहटाएंअभी फ़िलहाल तो मैं गजल पर इन जानकारी प्रद लेखो को आत्मसात करने में लगा हूं..कुछ प्रशन मन में उठते हैं जो शायद आगे आने वाले अंको में समाधान पा जायेंगे.. सब कुछ मिला जो प्रशन बनेंगे उनका व्योरा तैयार कर एक बार में ही सारी शंकाओं का समाधान चाहूंगा...
जवाब देंहटाएंजानकारी के लिये आभार
NANDAN JEE,EK SHABD JAESE "JAATAA"
जवाब देंहटाएंKO MATLAA KEE DONO PANKTION MEIN
ISTEMAAL KARNAA PUNRAVRITI KAA DOSH
HAI.
RAJIV JEE,RADEEF CHHOTEE SEE
CHHOTEE "HAI"BHEE HO SAKTI HAI AUR
BADEE SEE BADEE BAHADUR SHAH KE
"MUKH SE NIKAAL DAALO"BHEE .KAFIYA
BADALTA HAI LEKIN RADEEF NAHIN.
JAESE--LUBHAANAA AA GAYAA HAI.IS
MEIN "LUBHAANAA" KAFIA HAI AUR"AA
GAYAA HAI"RADEEF.LUBHAANAA KE KAFIYE HONGE--STAANAA,RULAANAA AADI
RADEEF VAHEE RAHEGEE---AA GAYAA HAI.PANKTI KAA TUKDAA BANEGAA-
STAANAA AA GAYAA HAI,RULAANAA AA
GAYAA HAI.
ANUJ JEE,AAJKAL ADHIKANSH GAZLEN
MAKTAA KE BINAA KAHEE JAATEE HAIN.
MAKTAA VO HOTA HAI JISMEIN SHAYAR
KAA UPNAAM RAHTAA HAI.KOEE DHUN
AAPKE ZEHN MEIN AAYEE HAI TO KISEE
CHHAND YAA BAHAR KE ANUROOP SHABDON
MEIN DHAALIYE.
आदरणीय प्राण साहब, बहुत और बहुत बड़ा काम आपने तो कर दिया ये सभी बारीकियाँ प्रस्तुत कर के । अब फ़र्ज़ और समझदारी हम सभी नए लिखने वालों पर आएद है, के इस पर मेहनत करने के बाद ग़ज़ल और कविता लिखें. आप उस्ताद हैं जो कहेंगे, उससे लोगों को फ़ायदा हासिल करना चाहिए.
जवाब देंहटाएंसर, निक़ात की बारीकियों से भी, कभी अवसर मिले तो परिचित कराइएगा, इधर ब्ला॓ग जगत में इसकी बहुत कमी देखता हूँ ।
आपको सादर नमन ।
इंटरनेट पर ग़ज़ल पर कई लेख पढ़े हैं जो अच्छे भी हैं लेकिन एक निपुण और गुणी गुरू की तरह प्राण जी ने ग़ज़ल की संरचना जितनी आसानी से समझाई गई है, अन्यत्र नहीं देखा गया।
जवाब देंहटाएंदेखा गया है कि कई बार लेखक टिप्पणियों की तरफ़ ध्यान नहीं देते और टिप्पणीकारों के प्रश्न और संशय अधूरे रह जाते हैं किंतु प्राण जी की यह विशेषता देखी गई है कि प्रत्येक टिप्पणी
को पढ़ कर संतोषप्रद उत्तर देने में विलंब नहीं करते।
इस श्रृंखला से बहुत से ग़ज़ल प्रेमी रचनाकारों को केवल नई ग़ज़लों को ठीक ढंग से लिखना ही नहीं बल्कि पूर्व लिखित ग़ज़लों की भी सुधारने का अवसर मिलेगा।
प्राण जी आपको बधाई है। साहित्य शिल्पी और सतपाल 'ख़्याल'जी को धन्यवाद जिन्हों ने यह श्रृंखला ग़ज़ल-प्रेमियों के लिए एक अनुपम उपहार दिया है।
आदरणीय प्राण जी
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार
आपने काफ़िए दोष के बारे में जितने विस्तार से समझाया है उसमें लगभग सभी शंकाएँ शांत हो गयी है . निदा फ़ाज़ली जी की ग़ज़ल मैं ने भी पढ़ी थी और इससे मिलता जुलता एक काफिया मैने पढ़ा था और मेरे जैसे नये लिखने वाले के लिए ये बहुत कश्मकश की बात थी
जितना काफ़िए को समझा था और जैसे काफ़िए दिख रहे थे अलग थे और इतने बड़े शायर की ग़ज़ल
एक शेर में दौर और ज़ोर एक ही काफिया था
क्या ऐसा काफिया हो सकता है
अगर पहले शेर में ये दोनो काफिया प्रयोग किया जाए तो क्या हम सिर्फ़ र अरकान को काफिया मानते हैं
मगर क्या ऐसे में जो और दौ के बजन को कैसे गिना जाता है ?
प्राण भाई साहब
जवाब देंहटाएंआपका कितना साधुवाद किया जाये, कम है.
आपकी यह ज्ञानवर्धक शिक्षाप्रद श्रृंखला संग्रहणीय है और युगों तक अपनी सार्थकता प्रमाणित करती रहेगी.
बहुत बहुत आभार.
PRIY SHRADDHAA JEE,AUR KE SATH
जवाब देंहटाएंZOR KAA KAAFIA BAANDHNA ANUCHIT
HAI."AU" AUR "0" KEE DHVANION MEIN
ANTAR HAI MAANAAKI DONO KE VAZAN
SAMAAN HEE HAIN YANI 2 MAATRAAYEN.
आदरणीय प्राण साहब नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपके द्वारा मतला,मकता,काफिये,और रदीफ़ पे दिया गया ये ज्ञानवर्धक गोली मैंने तो खा ली है ,बहोत ही सही तथ्य सिखलाया आपने ...एक शंका है के क्या काफिये का वजन सभी मिसरे में एक सा होना चाहिए ..मसलन ..देखेगा (२२२ )एक जगह काफिया है तो दूसरी जगह पे रखेगा (१२२ )रखा जा सकता है ?
दूसरा सवाल ..
कल क्या होगा क्यूँ सोंचे है ..मात्र है ..२ २ २ २ २ २ २ २
इसका बहर कैसे तय करेंगे...??
कृपया मेरी शंका का निवारण करें?
आपका
अर्श
गुरु देव प्रणाम
जवाब देंहटाएंआप के लेख को पढ़कर बहुत सी बातों की समझ आसानी से आ जाती है क्यूँ की आप समझाते ही इतने असरदार अंदाज में हैं....ग़ज़ल की बारीकियाँ कोई आप से सीखे...हम खुशनसीब हैं जो आप की रह नुमाईं में सीख पा रहे हैं...
नीरज
PRIY ARSH JEE,MUSKATA KE SAATH
जवाब देंहटाएं2 2 2
SJATA KAAFIA AA SAKTA HAI LEKIN
1 2 2
YAH CHHAND YAA BAHAR PAR NIRBHAR HAI.JAESE-
JAB DEKHO VO MUSKATA HAI
2 2 2
HAR DIL KO DOST LUBHATA HAI
1 2 2
---------
KAL KYA HOGA KYON SOCHEN HUM
2 2 2 2 2 2 2 2
AAPNE SWAYAM HEE SHANKA KAA
NIVAARAN KAR DIYAA HAI.BAS ,YUN HEE
MISRE KAHTE JAAYEN.
मुझे आते आते देर हो गई परँतु
जवाब देंहटाएंप्राण जी का आलेख पढने से इतना जान पाई हूँ उसके लिये
"शुक्रिया" शब्द बहुत
"कम" लग रहा है --
साहित्य शिल्पी के सारे प्रयास व प्रस्तुतियाँ इतनी बढिया हो रहीँ हैँ कि ध्यान से पढने के लिये
काफी समय देना पड रहा है -
ये भी अच्छी बात है !
- लावण्या
आपको पढ़कर गुनने मे जो सुख है ,अवर्णनीय है।
जवाब देंहटाएंप्रवीण पंडित
आदरणीय!
जवाब देंहटाएंक्या पूरा का पूरा मिसरा बतौर रदीफ़ इस्तेमाल किया जा सकता है?
इस अंक में बहुत उपयोगी जानकारी मिली है. साधुवाद.
BAHUT BAHUT SUKRIYA SHAHAB
जवाब देंहटाएंआपने बहुत ही सहज और सरल तरीक़े से रदीफ़ और क़ाफ़िया के बारे में हमको समझाया है !!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया 💐🙏
बहुत ही सुन्दर तरीके से सहजता से आपने ग़ज़ल की गहराइयों को बताया है जो की कहने के लिए शुरुआती है।।। बहुत खूब।।
जवाब देंहटाएंबहुत आधारभूत और बहुत अच्छी जानकारी के लिए बहुत शुक्रिया !!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब बहुत ही अच्छी पकड़ है आपकी बहर ए शेर पर रदीफ़ काफिया की बंदिश को अच्छा समझाया है
जवाब देंहटाएंप्राण साहब , गझल गायक किसी गज़ल की शुरुआत कर ते समय, किसी अन्य शायर की शेर गा कर फीर दुसरे शायर की गज़ल गाता हे उसमे, वह पहला शेर को क्या कह्ते हे ..?? शुक्रिया ..एडवांस मे....
जवाब देंहटाएंकाफिया के बारे में एक जानकारी चाहिए थी
जवाब देंहटाएंयही मतले में दुआ, हुआ का प्रयोग किया गया हो तो गजल के अन्य शेर में काफिया गया ,हया ले सकते हैं....
बहुत सुंदर जानकारी।
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी।
जवाब देंहटाएंबेहद शुक्रिया
जवाब देंहटाएंKya aap aek gazal ka snwadan dekhati he
हटाएंबिखरे फूलों की माला बनाना सीखिये,
जवाब देंहटाएंशब्दों की ताकत गजल बनाना सीखिये।
बहुत सुंदर👍
जवाब देंहटाएंआदरणीय
जवाब देंहटाएंक्या किसी गजल के मतले में पास और साथ या बात और लाश काफ़िये लिए जा सकते हैं
सादर
Article acha hai par nida fazli sahab ke Sher me kafiya aap samajh nahi pae..khilauna Aur sona mat dekhie..kafia ek matra ka bhi ho sakta hai..Aur yaha alif ko kafiya banaya gaya hai..Matlab आ ko..aur nida sahab ne..'nu' Aur alif ko kafiya banaya hai.matlab 'ना' ko.
जवाब देंहटाएंआज बहुत दिनों बाद कुछ अलग सा पढ़ने को मिला
जवाब देंहटाएं" वो शौक़ ही कया जो गिरेबा चाक कर दे
नाज़ उनके उठाएं तो उठाएं कैसे "
फिलबदीह का अर्थ क्या है
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंBahut zabardast qism se aapne samjhaya janaab.... Bahut kaam aayegi nye shoara k ye
जवाब देंहटाएंसरल और सहज भाषा में उदाहरणों के साथ दी गयी जानकारी बहुत
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी ।
Pooche hai rahguzar kahan aa gya hun main,
जवाब देंहटाएंKiska hai intezar kahan aa gya hun main.