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राजू का सच; शेयर बाजार बेबस [व्यंग्य] - अविनाश वाचस्पति

मुन्‍ना (संजय दत्‍त) और पप्‍पू (कांट डांस) को दिनों दिन मिल रही ख्‍याति से जलनवश राजू ने वो कर दिखाया जिसे कारनामा नहीं करतूत कहा जाता है। राजू ने सच के नाम पर सच बोल कर सच को शर्मसार कर दिया। नतीजा सत्‍य (सत्‍यम) आज मुंह छिपाता फिर रहा है। अब नहीं छिपाएगा क्‍योंकि जेल में ठूंस दिया गया है। बेगैरत तो उसे कर ही दिया गया है। 

नाम रख कर सत्‍यम, खूब किए झूठकर्म यानी कुकर्म। जिससे आहत हुआ उसमें विश्‍वास रखने वाले निवेशकों का मर्म। क्‍या यही हो गया है व्‍यापार का धर्म। इस पर भी नहीं आ रही है किसी को भी शर्म। भ्रष्‍टाचार के सब जगह व्‍यापक तौर पर फैल गए हैं जर्म। जर्म जुर्म का ही रूप हैं। अब सच बोलकर सहानुभूति बटोरने का कर्म किया गया अथवा एक और झूठ को सच के माध्‍यम से छिपाने का जुर्म। देश की मंदी में ये गंदी करतूतें भी शामिल हैं। 

राजू जेंटलमैन तो नहीं रहा पर कुख्‍याति खूब बटोर ली। सत्‍यम के जो दिखाई दे रहे थे कारनामे, अब करतूतें बनकर जगजाहिर हो रहे हैं। इसमें भी जर, जोरू और जमीन वाली जमीन की ही प्रमुख भूमिका रही है। ऐसा राजू ने स्‍वीकार किया है। प्रापर्टी के सौदों में घाटे के कारण उसे घोटाले करने पड़े। जिसने न जाने कितने निवेशकों के गले घोंट डाले। शेयरों और बाजार के तो प्राण ही फ्रिज कर दिए गए। 

शेयर की एक राजू मार्का कंपनी ने सभी शेरों बल्कि यूं कहना चाहिए कि शेयर बाजार को ही ढेर कर दिया। नाम उसका सत्‍यम पर वह रहा बहुत ही निर्मम। उसी निर्ममता से वो अपनी झोली को बोरी बनाकर भरता रहा, दूसरों की झोली खाली करता रहा बल्कि उन्‍हें ऐसे मोहपाश में बांधा कि वे खुद ही उडेलते रहे अपना धन सत्‍यम के नाम पर। उसकी निर्ममता से देशी नहीं विदेशी भी ग्रस्त हैं। बाजार सारे हुए बेजार हैं। चार हों या आठ, सब लाचार हैं। रोटी के साथ अब अचार की भी उम्मीद नहीं, रोटी ही खतरे में है। 

राजू जिसकी तुक तो काजू से मिलती है। पर अब ऐसा नसीब नहीं रहा कि सूखी रोटी की भी आस रह गई हो। पर जेल की रोटी अब भी बाकी है। लग नहीं सकती राजू को भारत में तो फांसी है। भारत में तो मक्‍का है, मदीना है और काशी है। चाहे राजू राम की ही राशि है। सत्‍य की हो रही जामातलाशी है। झूठ के चेहरे पर छा रही उदासी है। सत्‍यम ने झूठ का नकाब पहन कर रकाबी की है। बाजार की बरबादी की है। पर अपनी तो आबादी की हे। अब बाजार पस्‍त है। 

सेंसेक्‍स ने इतनी तेजी से गोता खाया है कि सब रोते बिसूरते नजर आ रहे हैं। राजू खुद तो बन गया जेंटलमैन पर पप्‍पू को फेल कर दिया। पप्‍पू अब नाच नहीं सकता। उसे राजू ने इस लायक छोड़ा ही नहीं है कि वो नाच सके। नाचना तो दूर नाचने की सोचना भी दूभर कर दिया है। इस मर्ज का इलाज मुन्‍नाभाई एमबीबीएस के पास भी नहीं है और न है मनमोहन या किसी चिदम्‍बरम सरीखे के भी पास। 

सोचना में से सो हटा दिया गया है और जो बाकी बचा है वो ऐसा चना है जो न भाड़ में भुनता है, न दांत से टूटता है, हां, दांत को जरूर तोड़ता है। कई बार तो इस चने के प्रकोप से जबाड़ा ही बाहर निकल आता है। सुनते हैं कि एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है और इधर यह सत्‍यम रूपी चना इससे शेयर बाजार को गंदा कर दिया है। वैसे ही इसमें क्‍या गंदगी कम रही है जो बचा खुचा कचरा भी इधर ही उंडेल दिया गया है। कचरा जो चारा नहीं है। कचरा और भी होगा पर जब तक न मालूम हो तब तक अधकचरा और जब पता लगे तो निवेशकों का कर देगा कचरा। 

सत्‍यम ने सच का भी कचरा कर दिया है। झूठ को देखो अपनी बादशाहत से कैसे कैसे महल खड़े कर दिए। अब जब पता लग रहा है कि झूठ है, तो कह रहे हैं कि अरे इतना गुपचुप। जितना गुपचुप रहा अब जब राज खुलने लगे तो सब सन्‍न हैं पर राजू ही कौन सा प्रसन्‍न है। पर उसका क्‍या बिगड़ेगा, उसने जो बिगाड़ा है, न जाने कितनों को उजाड़ा है, कितनों ने खुदकुशी की है, कितने करेंगे। कितने ही बिना खुदकुशी के भी जीते जी ही मरेंगे। काहे के शेर, काहे का सत्‍य। सब गीदड़ और चकाचक झूठ। झूठ की तगड़ी रही देखो कितने ही दिन मूठ। अब सत्‍य से रूठ या कर शिकवा, पर सत्‍य बन गया है अब ठूठ। चाहे हो जा रूसवा। 

मुन्‍ना और पप्‍पू खूब नाम कमा रहे थे। मुन्‍ना भाई बनकर और पप्‍पू बिना नाचे ही और पास होने की खबर से भी। पर राजू जेंटलमेन तो बना पर नाम इतना नहीं चढ़ा जितना अब झूठ के सिर पर चढ़कर नाच रहा है। सब मुन्‍ना और पप्‍पू फेल हो गए हैं अब राजू ही राजू है। इस राजू ने काजू की तरह सबको सुखा डाला है। ड्राई फ्रूट के नाम पर धब्‍बा लगते लगते बचा। अगर राजू का नाम काजू होता तो ड्राई फ्रूट्स का भविष्‍य तो बेतेल हो जाता। जिन्हें चिकनाई, मलाई पसंद नहीं उनके लिए तो बेतेल ही भला और लाभकर। 

शेयर बाजार के इतिहास में राजू का राज हो गया है। बदनाम क्‍या हुआ खूब नाम हो गया है। मुन्‍नागिरी और पप्‍पूगिरी खतरे में है। राजूगिरी की पौ छत्‍तीस है। इंफो, विप्रो, एचसीएल सरीखी कंपनियों को अवश्‍य ही इससे ताप चढ़ रहा होगा। बदनाम तो हुआ पर नाम भी खूब हुआ। जेल में रहा तो क्या, जुर्माना देना पड़े तो क्‍या, पर जो मिला, लोगों का धन पिया बल्कि निचोड़ा नींबू के माफिक। ऊंगली अंगूठे के मेल से मसक कर नहीं, नींबू निचोड़क में कसक कर। अब राजू को कितना ही निचोड़ लो, कितना ही जुर्माना ठोंक दो, कितना ही जेल में ठूंस दो– किया अनकिया या नोकिया होने से तो रहा। यह कोई नोकिया की खराब बैटरी तो नहीं, सत्‍यम के झूठ की नींव पर खड़े शेर हैं जो ढह गए हैं, सब खड़े देखते रह गए हैं। कर सका क्‍या कोई कुछ, कर सकेगा क्‍या कोई कुछ। कोई कुछ नहीं कर पाएगा। रोते बिसूरते रहेंगे। जांच कुजांच होती रहेंगी। पर इन पर कोई आंच आने से रही। 

यह भी मुंबई में ही हुआ, वो भी मुंबई में ही हुआ था। मुंबई का भविष्‍य तो अंधकारमय ही दिखाई दे रहा है। एक साथ दो दो हमले। पर एक पिछले बरस, दूसरा नए बरस। पाकिस्‍तान सबूत मांग रहा है और अभी तक साबूत है। जब तक जांच कंपनियों सबूत मांगती रहेंगी, राजू पूरा है, पूरा ही रहेगा। पाक है या नापाक है, पर नहीं हुआ अभी तक सुपूर्देखाक है। सत्‍यम स्‍वीकार रहा है – वो भी साबूत ही रहेगा। जान लेना इतना इजी नहीं है भारत में। 

पब्लिक की जान ही तो आसानी से ली जा सकती है। परंतु ऐसे शेरों की जान, इनकी जान पर जाऊं कुरबान। राजू तो कुरबानी दे रहा है1 उसने तो सच बताया है। उसे तो सहानुभूति का द्रव्‍य मिलेगा, उसका हकदार है। गलती करी और मान ली। भारतीय संस्‍कृति में गलती करके मानने वाला बड़ा होता है, तो राजू मत घबरा तू भी मुन्‍नाभाई की तरह नाम कमाएगा और पप्‍पू की तरह पास होकर, नहीं डांस करेगा तो क्‍या, शेयर बाजार को तो डांस कर ही रहा है। सब तेरी करामात है। पहले सरकार को कर दिया, अब दी मात है। डांस करने से करवाने वाला अधिक नाम कमाता है। पप्‍पू नाच नहीं सका इसलिए नाम कमाया। 

तूने शेयर बाजार के आर्थिक महामंदी के डांस में सिर्फ एक सच का ठुमका ही तो जोड़ा है। राजू तू महान है। गिरते शेयर बाजार में भी सच के महल की जान है। राजू तू तो ग्रेट है। गिरते शेयर बाजार का गेट है। क्‍या करे तू, जो सत्‍यम का नहीं रहा अब रेट है। आखिर सरकार की भी तो जिम्‍मेदारी है। तूने दोनों करों से खूब कर दिया है। सच बोल कर, कर दिया है। भारत सरकार को उस कर की कसम। मत घबरा राजू, सरकार बनेगी तेरी बाजू।

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25 टिप्पणियाँ

  1. munna, circut and raju ko le kar aapne jo lekh likhe hai vo sab bahut he mast hai..aise he likhte raho avinash ji.

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  2. राजू जानता है, वो नहीं घबरा रहा. घबराये तो वो हैं जिनका पैसा डूबा!!

    -बढि़या कटाक्ष. सही है अविनाश भाई.

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  3. सत्यम शिवम सुन्दम... बहुत अच्छा

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  4. ये सब तो चलता ही रहेगा मित्र...

    पहले 'हर्षद' ने हर्षित हो मनचाहे घोटाले किए....फिर 'केतन' ने भगवान को हाज़िर-नाज़िर जानकर अपने चेतन मन से गोलमाल किया....अब 'राजू' ने आजू-बाजू किसी की परवाह न करते हुए अपना जलवा दिखा दिया है।इस हिसाब से बेड़ागर्क करने वालों में अगला नम्बर तो शर्तिया तौर पर'पप्पू' का होना चाहिए...लेकिन अफसोस....वो तो जेल में है।.....


    अच्छा व्यंग्य ...

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  5. त्रासदी और त्रासदी कर्ता पर अच्छा व्यंग्य है।

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  6. बहुत बढ़िया। यह व्यंग्य बताता है कि अविनाश वाचस्पति की दृष्टि कितनी पैनी है और उसकी कलम में कितनी धार है। वाह भाई, बधाई ! बधाई !! बधाई !!!

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  7. राजू जिसकी तुक तो काजू से मिलती है। पर अब ऐसा नसीब नहीं रहा कि सूखी रोटी की भी आस रह गई हो।

    :)

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  8. बहुत अच्छा व्यंग्य लेख है। बधाई।

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  9. आज तक शेयर वेयर के चक्कर में मैं नहीं पडी। बहुत लटके हुए चेहरे देख रही हूँ। अच्छा व्यंग्य किया है आपने अविनाश जी।

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  10. वैसे हम कभी पिछली गलतियों से कोई सबक नही लेते और फिर किसी दिन एक नया घोटाला सामने आ जाता है। खैर व्यग्य की धार देखते ही बनती है। अविनाश जी जारी रखिए।

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  11. सत्यम की आपने भी ले डाली रिमांड
    एसे लोगों के दुनिया मे खासी है डिमांड
    जदूगर तो केवल स्थित वस्तु को गुम करता है
    फिर वापस बुलाता है...
    पर कमाल हैं ऐसे लोग जो पैसा रखते नहीं
    बस पैदा कर देते है, सत्यम ने वही किया

    आपका व्यंग्य अच्छा है.. बधाई

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  12. AVINASH JEE,BAHUT DINON BAAD EK
    ACHCHHA VYANGYA PADHNE KO MILAA
    HAI.VYANGYA LIKHNE MEIN AAP MAAHIR
    HAIN.ISEE TARAH AAP VYANGYA -BHANDAAR KO BHARTE RAHEN.SHUBH-
    KAMNAYEN.

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  13. aapke vayang sabhi ke dil ki aawaj jaise hote hain
    bahut achhe katkash karte hue aapki lekhni ne is vayang se bhi bahut prabhavit kiya

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  14. बहुत बधाई इस आर्थिक व्यंग्य के लिये अविनाश बाबू। शब्दों का जामा पहनाकर तीखा व्यंग्य किया है आपने।

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  15. शब्दों को ऐसा नटखट नटवर नागर बना कर प्रस्तुत कर देना कौशल ही है.
    शब्द के अर्थ कहीं भटकें, अनाथ पड़ जांय तो उसका पुनर्वास कर देते हैं अविनाश जी.
    इस सुन्दर व्यंग्य के लिये धन्यवाद.

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  16. Avinash ji kya khoon?, raju ke karan hajoro logo ki roti ke liye dar dar bhatakna pad rha hai, kuch din pehley sataym ke karmachariyon ke udas cherey samachar patra main dekhe they.

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  17. बहुत ही तीखा व्यंग्य है। शब्दों का जादू , अत्यंत रोचक ढंग, आपकी कलम को प्रणाम।

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  18. बढ़िया तुक है। शर्म.मर्म.जुर्म।

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  19. IS GATNA SE YE SABIT HOTA HAE KI PAAP OR JHOOT KAHI BHI HO LEKIN CHHOOP NAHI SAKTA.Avinash bhai achchhe lekh ke leye subkamnaye!

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  20. Avinash Vachaspati ji,
    aapka vyangya samsamyik to hai hi saath hi man ko gudgudata hai. Aaj hi aapke madhyam se SAHITYA SHILPI dekhi. Dhanyavad. Aapko tatha Sahitya Shilpi ke pathkon aur rachnakaron ko badhai.
    Sharad Alok
    Oslo, Norway

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  21. avinash ji
    Satyam ke Mithyam par kiya gaya apka kataksh behad achchha hai.Kya ise apike hi naam se anyatra prakashit kiya ja sakta hai?

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