
अमेरिका के टेक्सस स्टेट के शहर डेंटन में आये हुए ६ महीने हो चुके थे सपनो की दुनिया सा लगता था शांत सुन्दर मोहक. कंही कोई परेशानी नही. जिस अपार्टमेन्ट में रहती थी उसमे कोई भी भारतीय नही था. कोई किसी से हाय हेल्लो के आलावा कोई बात नही करता था. बस यहीं पे याद आता था अपना मोहल्ला. घर से सड़क तक पहुचने में भी २० मिनट लगजाते थे.
मेरे बगल वाला घर कुछ दिन पहले ही खाली हुआ था, सोचती थी नजाने कौन आयेगा रहने. एक सुबह जब सूरज का पीला प्रकाश घर में घुस रहा था मैने देखा युहाल का ट्रक(यहाँ ज्यादा तर लोग इसका उपयोग करते है सामान लेने और लेजाने में) आ के रुका लगता है, बगल के घर में कोई आया है रहने को, कौन है इस उत्सुकता में बाहर झाँका तो पाया ये तो अपने ही लोग थे यानि भारतीय. दिल खुशी से झूम गया. थोडी ही देर में उनका सामान (जो कुछ खास नही था)घर में रख दिया गया. कुल दो जने थे वह भी सीनियर सिटिज़न.
दो ही दिनों में उनसे थोडी जान पहचान हो गयी. अंकल जी शाम को काम पे जाते और आंटी सुबह. दोनों बहुत मेहनत करते. मैं आश्चर्य में थी कि ये न जने क्यों इतनी मेहनत कर रहे हैं.
फ़िर एक रोज़ मैने उनसे पूछ ही लिया "आंटी क्या आप अमेरिका में अकेली है आप के बच्चे ?"
"नही मेरा बेटा है, इसी शहर में रहता है वो, और उसकी बीवी दोनों काम पे जाते हैं. हम को तो बस एक बोझ समझते है दुनिया कुछ न कहे इसीलिए हम को यहाँ ले आए पर क्या मजाल की कभी बेटे ने दो घड़ी भी हमारे साथ बिताई हो. कई बार इस बात पे बहस हुई पर काम और उनकी अपनी शोशल लाइफ. उस में हम बूढा बूढी कहाँ फिट होते. एक दिन हमने कहा की तुम हम को भारत भेज दो .वहां कम से काम बात करने वाला तो कोई होगा, तो जानती हो उसने क्या कहा? बोला अभी तो टिकट बहुत महंगा है. यही बहाना वो एक साल तक करता रहा. अभी ५ दिन पहले की बात है किसी बात फ़िर मेरे मुँह से निकला बेटा टिकट कब सस्ता होता है हमें भेज दो तो गुस्से से बोला अम्मा इतना आसान नही है बहुत पैसे लगते हैं, तभी उसकी बीवी आके बोली आप को मालूम नही की यहाँ दो आदमियों पे कितना खर्चा आता है पैसे बचते ही नही आपका टिकट कहाँ से लायें. अब आप सोच ले आप को क्या करना है.
"क्या करना है हमारे सामने कोई रास्ता ही नही रखा तुम लोगो नें"
उस रात हम सो नही पाए. बहुत असहाय महसूस कर रहे थे. दूसरे दिन तुम्हारे अंकल ने ये अपार्टमेन्ट लिया फ़िर वाल मार्ट में नैकरी मेरे लिए ढूंढी और अपने लिए एक दुकान पे अकाउंट देखने का काम लिया और हम यहाँ आ गये. अब बस इंडिया जाने भर के पैसे हो जायें तो हम चले जायेंगे, इसी लिए इतनी मेहनत कर रहें है"
मेरा तो दिमाग जैसे सुन्न हो गया. यहाँ की इस शान्ति में भी बहुत शोर सा लगने लगा था.
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13 टिप्पणियाँ
हिन्दुस्तान और प्रवास दोनो जगह की आम घटना है। कहानी थोडी और कसी जा सकती थी।
जवाब देंहटाएंयह सच है, मैंने भी विदेश में देखा ऐसा ही माहौल है |
जवाब देंहटाएंबिना माता पिता के जीना कोई जीना है |
माता पिता सबसे बड़ी संपदा है और जो इसे नही अपनाता मूर्ख है |
ईश्वर ऐसे मूर्ख का कल्याण करे |
-- अवनीश तिवारी
बुजुर्गों के संदर्भों पर जो भी लिखा जाये उसे मैं कहानी कला की दृष्टि से नही भलकि भावना की दृष्टि से देखना अधिक पसंद करती हूँ। हमारा समाज असहिष्णु है और हमें यह संवेदना समाज में विस्तृत करनी होगी।
जवाब देंहटाएंएक अचंभित करती हुई कहानी .. पीड़ा भी देती है .. और अधिक पीड़ा देती है इस की वास्तविकता से नजदीकी .. सरप्राइज़ एलेमेन्ट काफ़ी अच्छा था | लघु कथा होने के नाते काफ़ी तेज भी है सो लघु कथा धर्म का निर्वाह भी किया गया है | :-)
जवाब देंहटाएंभाषा पर थोड़ा ध्यान दिया जा सकता है .. कहीं कहीं ऐसे शब्द इस्तेमाल किए गए हैं जो बोलने सुनने में आते हैं लिखने में नही ..
मन द्रवित हो जाता है ऐसी घटनाओं को सुन पढ़ कर.
जवाब देंहटाएंलघुकथा इस समाज की संवेदनशून्यता को दर्शाती है। लेखिका को इस सृजन के लिये बधाई।
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना है रचना जी। बधाई।
जवाब देंहटाएंदिल को छू लेने वाली कथा. आज देश मैं भी यही हाल है विदेश की बात जाने दो.
जवाब देंहटाएंrachanaji
जवाब देंहटाएंiss laghu katha ke jariye aapne budhape mein honewali durgati ko darshaya hai. ye jeevan ki trasadee bhee hai aur sacchai bhee.
sweekar karna hi hoga.ye videsh mein kyon, BHarat mein bhee ho raha hai aur dhallade se ho raha hai.hNa hameiN khud ko aisee sthiti se nipatane ke liye mansik roop se taiyaar rahana chahiye. ye kisi ke bhee saath ho sakta hai. jeevan ka sach hai. sweekar kar lein tow takleef nahin hotee aur sympathy card ki zaroorat bhee nahin hotee. mein Old Age HOme jaatee hooN aur wanha logon ke haal sunatee hooN. isliye atapata nahin laga.
sahityshilpi ko dhanyavaad ki iss tarah ki marmik sthiti se roob-ru karaya.
घर-घर की कहानी
जवाब देंहटाएंआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद के आप ने कहानी को पढ़ा और समय निकाल के लिखा भी .आप के प्यारे शब्द मेरे लिए अमूल्य हैं जो सदा मुझे लिखने की पेरणा देते हैं .
जवाब देंहटाएंआशा है आप अपना प्यार और सहयोग इसी तरह बनाये रखेंगें
रचना
रचना जी,
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी आपकी "लघुकथा" ...............इस लघु में कितना दीर्घ है , ये हर श्रवन कुमार को पता है ......पता नहीं मुझे ऐसा कहना चाहिए के नहीं ....पर कम से कम वहाँ पर सीनियर सिटिज़न को भी काम मिल जाता है ...और यहाँ तो ऐसे भी देखे हैं ..के हट्टे कट्टे आदमी ने बैल की तरह काम भी किया और अपने बच्चों के दूध -चाय का जुगाड़ कर के ख़ुद के पास दोपहर में लंच के लायक १२ रुपये भी नहीं बचते.........बहुत हैं ऐसे भी........मैं जानता भी हूँ....मैंने देखा भी है...और जो बेचारे मुंह से नहीं कहते ...उन्हें महसूस भी किया है....पता नहीं कहाँ जायेगी ये दुनिया....???
मैं यहाँ पर टिपण्णी आमतौर पर नहीं करता .पर कहानी मुझे बहुत पसंद आई ...अपनी सी लगी ..
सो दिल की बात लिख दी......................
कथा. द्रवित करनेवाली होते हुए भी
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी आपकी रचना जी।
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.