
माँ!
अब भी आसमान में
वही चाँद है,
जो तूने
मेरे जिद्द करने पर
तवे पर सेका था
और मैने अपनी नन्ही ऊँगलियों से
उसमें सेंध लगाई थी,
आह! मेरे चेहरे पर भाप
उबल पड़ा था,
तूने मेरे लिए
उस चाँद की चिमटे से पिटाई की थी,
चाँद अब भी काला पड़ा है।
माँ!
अब भी आसमान में
वही सूरज है,
जो तुझे
मुझे दुलारता देख
आईने की आँखों में चमक पड़ा था,
तू सहम गई थी
कि कहीं मुझे उसकी नज़र न लग जाए,
आय-हाय इतना डर... आईने ने कहा था
और उन आँखों को
आसमान के सुपुर्द कर दिया था
ताकि तू वहाँ तक पहुँच न सके,
पर तूने जब
अपनी आँखों का काज़ल
मेरे ललाट पर पिरो दिया था-
वह सूरज खुद में हीं जल-भुन गया था,
सूरज अब भी झुलसा हुआ है।
माँ!
क्या हुआ कि मेरी आँखों में
अब काज़ल नहीं,
क्या हुआ कि ढिठौने पुराने हो गए हैं,
क्या हुआ कि पलकों के कोर
अब बमुश्किल गीले होते हैं,
क्या हुआ कि अब नींद
बिना किसी लोरी के आती है,
क्या हुआ कि मैं अब
तेरी एक नज़र के लिए
नज़रें नहीं फेरता,
क्या हुआ कि
मैं अब दर्द सहना जानता हूँ,
क्या हुआ कि मैं
सोने के लिए
तुझसे अब
तेरी गोद नहीं माँगता,
क्या हुआ कि
अब प्यास भी
तेरे बिना हीं लग जाती है,
क्या हुआ कि मैं
अपनी नज़रों में बड़ा हो गया हूँ,
पर माँ!,
तू अपनी आँचल में छुपे
मेरे नन्हे-से बचपन को
याद कर बता कि
क्या मैं
अब भी प्यासा नहीं हूँ,
अब भी मेरी आँखों में
और मेरे ललाट पर
तेरी दुआओं का काज़ल नहीं लगा,
अब भी तेरी दो बूँद आँसू
की सुरमयी लोरियों के बिना
सो पाता हूँ,
अब भी तेरी "उप्फ" और "आह"
की मरहम के सिवा
मेरे चोटों का कोई इलाज है,
क्या मैं
अब भी तेरे कद और
तेरी दुलार के सामने
छोटा नहीं हूँ?
हाँ माँ,
मैं तेरे सामने बहुत छोटा हूँ,
तेरा एक छोटा-सा अंश हूँ,
जिसके लिए तूने
चाँद और सूरज क्या
पूरे ब्रह्मांड का सामना किया है।
*****
21 टिप्पणियाँ
maa ki mamta amulya hoti hai ..aapne bahut hi bhaavpporn tarike se is mamta ka chitran kiya hai ..
जवाब देंहटाएंaapko badhai
vijay
सुन्दर भावपूर्ण रचना. माँ से महान कोई नहीं.
जवाब देंहटाएंस्तब्ध कर देते हैं आपके बिम्ब और उतने ही भावों के भीतर उतारते हैं।
जवाब देंहटाएंवही चाँद है,
जो तूने
मेरे जिद्द करने पर
तवे पर सेका था
और मैने अपनी नन्ही ऊँगलियों से
उसमें सेंध लगाई थी,
आह! मेरे चेहरे पर भाप
उबल पड़ा था,
तूने मेरे लिए
उस चाँद की चिमटे से पिटाई की थी,
चाँद अब भी काला पड़ा है।
बेहतरीन कविता है भाई..
जवाब देंहटाएंकोई भी भावुक हो सकता है। आपकी कविता कहने की कला प्रसंशनीय है।
जवाब देंहटाएंहाँ माँ,
मैं तेरे सामने बहुत छोटा हूँ,
तेरा एक छोटा-सा अंश हूँ,
जिसके लिए तूने
चाँद और सूरज क्या
पूरे ब्रह्मांड का सामना किया है।
निस्संदेह बेहतरीन। बार बार पढा और बार बार पढूंगा। सभी मित्रों को भेजूंगा और बार बार पढवाउंगा।
जवाब देंहटाएंतनहा जी,
जवाब देंहटाएंआपकी कविताओं का मैं वैसे भी बडा प्रशंसक हूँ। उपमाओं के विशेषता होनी चाहिये कि वे जटिल न हों अपितु स्पर्श करें। उपमाओ का कार्य है बात को सीधे निशाने तक पहुँचने में सहायता करना। और जब माँ जैसे विषय पर कविता हो तो आपके बिम्ब कविता के साथ न केवल न्याय कर रहे हैं बल्कि कविता के कालजयी होने की घोषणा कर रहे हैं। एसी कविताये हर कोई अपने संग्रहालय में रखना चाहेगा।
और मैने अपनी नन्ही ऊँगलियों से
उसमें सेंध लगाई थी,
आह! मेरे चेहरे पर भाप
उबल पड़ा था,
तूने मेरे लिए
उस चाँद की चिमटे से पिटाई की थी,
आय-हाय इतना डर... आईने ने कहा था
और उन आँखों को
आसमान के सुपुर्द कर दिया था
ताकि तू वहाँ तक पहुँच न सके,
वह सूरज खुद में हीं जल-भुन गया था,
सूरज अब भी झुलसा हुआ है।
क्या हुआ कि
अब प्यास भी
तेरे बिना हीं लग जाती है,
क्या हुआ कि मैं
अपनी नज़रों में बड़ा हो गया हूँ,
अब भी तेरी दो बूँद आँसू
की सुरमयी लोरियों के बिना
सो पाता हूँ,
अब भी तेरी "उप्फ" और "आह"
की मरहम के सिवा
मेरे चोटों का कोई इलाज है,
तेरा एक छोटा-सा अंश हूँ,
जिसके लिए तूने
चाँद और सूरज क्या
पूरे ब्रह्मांड का सामना किया है।
तनहा जी आप बेमिसाल हैं।
***राजीव रंजन प्रसाद
Heart touching.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
बहुत अच्छी कविता है तनहा जी, बधाई।
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति तन्हा जी ..बधाई स्वीकारें ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावपूर्ण रचना. बधाई........
जवाब देंहटाएंमाँ शब्द में ही कविता है फिर उनपर लिखी गयी कविता तो अच्छी होगी ही।
जवाब देंहटाएंविश्वदीपक 'तनहा' जी, आपकी यह कविता दिल को छूती है। 'माँ' पर बहुत अच्छी कविताएं पहले भी पढ़ चुका हूँ, पर आपकी यह कविता उनसे हटकर है और पाठक को अपने संग-संग ले चलती है। तवे पर चाँद -सी रोटी की जो उपमा है, इसे मैं अपनी कविता "काम करता आदमी" में बहुत वर्ष पहले दे चुका हूँ। मेरी इस बात को अन्यथा न लेना, इससे आपकी कविता कहीं झूठी या छोटी नहीं पड़ जाती है। इसका एक अलग ही प्रभाव है और पाठक को अपनी गिरफ़्त में लेने की पूरी ताकत रखती है। यहाँ मेरा मन हो रहा है कि मै अपनी कविता को उदाहरण के तौर पर रखूं और आपसे शेयर करूँ-
जवाब देंहटाएंकितना अच्छा लगता है
काम करता आदमी।
बहुत अच्छा लगता है
लोहा पीटता लुहार
रंदा लगाता बढ़ई
गोद में बच्चा लिए
पत्थर तोड़ती औरत
और
सड़क बनाता मज़दूर।
कितना अच्छा लगता है
मिट्टी के संग मिट्टी हुआ किसान
अटेंशन की मुद्रा में
चौकसी करता जवान।
अच्छा लगता है
फाइलों में खोया बाबू
पियानों की तरह
टाइपराइटर* बजाता टाइपिस्ट।
बहुत अच्छी लगती है
धुआँते चूल्हे में फुकनी मारती माँ
तवे के आकाश पर
चाँद-सी रोटी सेकती बहन
धुले-गीले कपड़ों को
अलगनी पर सुखाती पत्नी।
दरअसल
काम करता आदमी
प्रार्धनारत् होता है
और
प्रार्थनारत् आदमी
किसे अच्छा नहीं लगता !
(* अब तो टाइपराइटर की जगह कम्प्यूटर आ गए हैं)
आशा करता हूँ- टिप्पणी में मेरे द्वारा अपनी कविता को ठूँसना आपको और अन्य पाठकों को अन्यथा नहीं लगेगा।
सुन्दर कविता के लिए आपको बधाई !
आपकी कविता का असर आंखों से आंसू बन कर स्वत: बह उठा. बस इसके बाद शब्दों की कुछ कहने की क्या जरूरत... साधुवाद और बधाई सुंदर और उत्तम रचना के लिये
जवाब देंहटाएंमाँ!
जवाब देंहटाएंअब भी आसमान में
वही चाँद है,
जो तूने
मेरे जिद्द करने पर
तवे पर सेका था
और मैने अपनी नन्ही ऊँगलियों से
उसमें सेंध लगाई थी,
आह! मेरे चेहरे पर भाप
उबल पड़ा था,
तूने मेरे लिए
उस चाँद की चिमटे से पिटाई की थी,
चाँद अब भी काला पड़ा है।
वाह जी वाह बहुत ही बेहतरीन कविता दिल को छू गई
gret thought given in this poem
जवाब देंहटाएंmarvelous !
great poem
जवाब देंहटाएंaap ki kavita kisi ke dil ko bhi hila ke rakh sakti hai
जवाब देंहटाएंun logon ko ye kavita jaroor padhni chahiye to apne mata pita ka dhayan nahi rakhte
bahut sunder
saader
rachana
प्रेम और ममतामयी स्नेहभरी कविता के लिए बहुत-बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण कविता है।
जवाब देंहटाएंहाँ माँ,
मैं तेरे सामने बहुत छोटा हूँ,
तेरा एक छोटा-सा अंश हूँ,
जिसके लिए तूने
चाँद और सूरज क्या
पूरे ब्रह्मांड का सामना किया है।
दिल को छू गई।
Bahut hi bhaavpurn rachna
जवाब देंहटाएंdil ko chhu gayi soch ki gharayi
bahut kamaal raha
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.