
जनतंत्र के उद्घोष से गुंजित दिशाएँ!
आज जन-जन अंग शासन का,
बढ़ गया है मोल जीवन का,
स्वाधीनता के प्रति समर्पित भावनाएँ!
अब नहीं तम सर उठाएगा,
ज्याति से नभ जगमगाएगा,
उद्देश्य-प्रेरित दृढ़ हमारी धारणाएँ ।
मूक होगी रागिनी दुख की,
मूर्त होगी कामना सुख की,
अब दूर होंगी हर तरह की विषमताएँ!
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आलोकित हो अन्तरतम,
गूँजे कलरव-सम सरगम,
गणतंत्र-दिवस के उज्ज्वल भावों को मधुमय स्वर दो !
आँखों में समता झलके,
स्नेह भरा सागर छलके,
गणतंत्र-दिवस की आस्था कण-कण में मुखरित कर दो !
पशुता सारी ढह जाये,
जन-जन में गरिमा आये,
गणतंत्र-दिवस की करुणा-गंगा में कल्मष हर लो !
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साहित्य शिल्पी के पाठकों को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।------------
10 टिप्पणियाँ
बहुत उम्दा रचनाऐं.
जवाब देंहटाएंआपको एवं आपके परिवार को गणतंत्र दिवस पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
न तम सर उठाएगा
जवाब देंहटाएंऔर न तुम
न हम।
मधुमय कर दिए
भाव गर
डॉयबिटीज छा जाएगी।
बढिया रचनाएँ...आप सभी को गणतंत्र की हार्दिक शुभ कामनाएँ
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar abhivyakti. bahut saari badhai.
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की सभी को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंअब नहीं तम सर उठाएगा,
ज्याति से नभ जगमगाएगा,
उद्देश्य-प्रेरित दृढ़ हमारी धारणाएँ ।
मूक होगी रागिनी दुख की,
मूर्त होगी कामना सुख की,
अब दूर होंगी हर तरह की विषमताएँ!
यह मूर्त हो।
जन-जन में गरिमा आये,
जवाब देंहटाएंगणतंत्र-दिवस की करुणा-गंगा में कल्मष हर लो !
सभी को गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें।
गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंकविता क्र. २ में प्रथम पंक्ति छूट गयी :
जवाब देंहटाएं'गणतंत्र-दिवस की स्वर्णिम किरणों को मन में भर लो!
— महेंद्रभटनागर
फ़ोन : ०७५१-४०९२९०८
प्रभावी कविता है। गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.