
मुँदी हुई पलकों की स्क्रीन में
इस्टमेन कलर की मूवी उभरती है
काली पुतलियाँ/प्रोजेक्टर की लेंस बन जाती हैं
और मष्तिष्क में
घूमती रहती है फिल्म की चक्की
मन ऑपरेटर होता है
तब/पलकों में उभर आये सीन में
तुम हीरोईन की तरह होती हो
कभी स्वीमिंग पूल में तिरती
कभी लॉन में हरी दूब पर पसरी
आँखों में काला चश्मा चढा कर
मुस्कुराती हो
भानुप्रिया/श्रीदेवी/जूही चावला
और माधुरी दीक्षित की तरह
एक दिल फरेब मुस्कान...
तुम्हारा घर
अविश्वसनीय रूप से
बंगले की तरह होता है
और तुम्हारा बाप
बहुत बडी फैक्ट्री का मालिक
पलकों के इस्टमेन कलर के चित्र में
मैं अनिल कपूर/आमिर खान
या जैकी श्राफ की तरह
कीमती सूट पहने तुम्हें
यहाँ वहाँ लाईन मारता फिरता हूँ
तुम लाईन देती हो।
हम गाते हैं/ साथ साथ
कोल्ड ड्रिंक पीते हैं
और तुम्हारी खातिर
मैं अजय देवगन की तरह
दस दस से अकेला भिड जाता हूँ।
सुबह जब आँखें खुलती हैं
और आँगन में निकल
मुँह धो रहा होता हूँ
तुम सामने की रोड से गुजरती हो
हमेशा की तरह
हाँथों में खाने की पोटली लिये
तुम्हारा बापू तुम्हारे पीछे पीछे निकलता है,
हमेशा की तरह/उदास
चिथडे सी ड्यूटी ड्रेस में
फैक्ट्री की ओर...
मैं रात के रंगीन सपने को याद कर
मुस्कुरा कर सर झटकता हूँ
और अपनी ड्यूटी ड्रेस कस कर
तुम्हारे बापू के पीछे हो लेता हूँ
ऐसा अक्सर होता है.....
*****
16 टिप्पणियाँ
साधारण सी लगने वाली असाधारण कविता है जो झकझोर के रख देती है।
जवाब देंहटाएंवर्ग संघर्ष और मनोविज्ञान पर आधारित अच्छी रचना है। रचना असहज लगती है लेकिन अपने चरम पर पहुँच कर बहुत कुछ कह जाती है।
जवाब देंहटाएंसुबह जब आँखें खुलती हैं
और आँगन में निकल
मुँह धो रहा होता हूँ
तुम सामने की रोड से गुजरती हो
हमेशा की तरह
हाँथों में खाने की पोटली लिये
तुम्हारा बापू तुम्हारे पीछे पीछे निकलता है,
हमेशा की तरह/उदास
चिथडे सी ड्यूटी ड्रेस में
फैक्ट्री की ओर...
निधि जी के वर्ग संघर्ष शब्द से मैं समहत नहीं हूँ। कविता सपना भर तो है। हाँ वर्ग विभेद को या कहें अमीर और गरीब की खाई को दिखाती जरूर है।
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता है। बधाई।
जवाब देंहटाएंमैं रात के रंगीन सपने को याद कर
जवाब देंहटाएंमुस्कुरा कर सर झटकता हूँ
और अपनी ड्यूटी ड्रेस कस कर
तुम्हारे बापू के पीछे हो लेता हूँ
ऐसा अक्सर होता है.....
अच्चा स्वप्न है। :)
कविता अच्छी है।
yatharth aur swapn ka jo chitran hai,wah bahut kuch kah jaati hai......
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna
प्रिय केवल,
जवाब देंहटाएंकविता सुनंने या पढने में अजीब लगती है, सिने कलाकारों के नाम व कुछ वाक्य या वाक्यांश कविता में अटपटापन लाते हैं। लेकिन कविता अपने आप को संप्रेषित करती है। अपनी बात गंभीरता से कह जाती है। यह कविता एक प्रयोग भी कही जा सकती है। स्वप्न में पाठक को उलझा कर कविता वहीं ले जाती है जहाँ यह सोच पनपे कि "वो सुबह कभी तो आयेगी...."
***राजीव रंजन प्रसाद
A Diffrent but good poem.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
किसी भी विधा में नए नए प्रयोगों में बाधाएं तो आती ही हैं। 'केवल' जी आप का
जवाब देंहटाएंयह प्रयास है। समय समय पर हिंदी काव्य में बहुत परिवर्तन हुए हैं और हो रहे हैं - कुछ ऐसे परिवर्तनों को काव्य का संहार कहते हैं तो कुछ इसे सुधार कहते हैं। कविता अपने उद्गारों की अभिव्यक्ति है जो आपने हृदय से लिखी है, अपने ढंग से लिखी है, सद्भावना से लिखी है, उसका मान रखते हुए बधाई।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंयतार्थ और सपनीली दुनिया के भंवर में गोते खाती आपकी कविता पसन्द आई।
जवाब देंहटाएंनए प्रयोगों का स्वागत किया जाना चाहिए....तालियाँ
बहुत अच्छी लगी कविता। प्रयोग में नवीनता है जो प्रभावित करता है।
जवाब देंहटाएंभीतर ही भीतर ग़ुम क्यों रहा जाय ?
जवाब देंहटाएंआपने अभिव्यक्ति को शब्द दिये हैं , स्वागत है।
नया केवल एक क्षण ही नया होता है।
प्रवीण पंडित
dosto,
जवाब देंहटाएंmeri kawita per aap sabon ki tippaniyo ke liye shukriya.
mai is kawita ke bare me khud bhi kuchh kaha chahta hun, ab jabki maine 10-15 salon se kavita hi nahi likhi.
ye bahoot purani kawita hai, jahir hai is arse me bahri duniya ke sath-sath mere bhitar bhi bahut kuchh badal gaya.mai is kawita ko bhool gaya tha, yah rajeev ki kisi dayri me mane kabhi yun hi likh di dhi.mai jin dino kawita likha karta tha un dino bhi mujhe is bat ki samajh thi ki meri kawitayen shilp ke mamle me kamjor hai, shayad isiliye maine unhe prakashit nahi hone diya. we dosto ke bich hi pari(padi)-sunahi gai aur fir farkar fenk di gai.
aaj aapni hi kawita ko parkar aisa lagta hai ki ise likhne wala shayad koi aur hai.ye kawita rajeev ne sahitya shilpi me dali aur itne salon bad us per apni tippani bhi de di. shukriya rajeev.
apni khandit ho chuki aasthao ko lekar bhitar kahi tees ho rahi hai. hairan hun ki tab mai kitna sawedanshil tha aur dunidari ne mujhe kis kadar badal kar rakh diya hai.
dosto, mujhe meri hi kawita ne jagaya hai.is kawita ka shukriya.rajeev ka shukriya.
dosto,
जवाब देंहटाएंmeri kawita per aap sabon ki tippaniyo ke liye shukriya.
mai is kawita ke bare me khud bhi kuchh kaha chahta hun, ab jabki maine 10-15 salon se kavita hi nahi likhi.
ye bahoot purani kawita hai, jahir hai is arse me bahri duniya ke sath-sath mere bhitar bhi bahut kuchh badal gaya.mai is kawita ko bhool gaya tha, yah rajeev ki kisi dayri me mane kabhi yun hi likh di dhi.mai jin dino kawita likha karta tha un dino bhi mujhe is bat ki samajh thi ki meri kawitayen shilp ke mamle me kamjor hai, shayad isiliye maine unhe prakashit nahi hone diya. we dosto ke bich hi pari(padi)-sunahi gai aur fir farkar fenk di gai.
aaj aapni hi kawita ko parkar aisa lagta hai ki ise likhne wala shayad koi aur hai.ye kawita rajeev ne sahitya shilpi me dali aur itne salon bad us per apni tippani bhi de di. shukriya rajeev.
apni khandit ho chuki aasthao ko lekar bhitar kahi tees ho rahi hai. hairan hun ki tab mai kitna sawedanshil tha aur dunidari ne mujhe kis kadar badal kar rakh diya hai.
dosto, mujhe meri hi kawita ne jagaya hai.is kawita ka shukriya.rajeev ka shukriya.
सपना सपना ही रहे तो अच्छा रहता मगर........ आभार
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.