साहित्य शिल्पी नें अंतरजाल पर अपनी सशक्त दस्तक दी है। यह भी सत्य है कि कंप्यूटर के की-बोर्ड की पहँच भले ही विश्वव्यापी हो, या कि देश के पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण में हो गयी हो किंतु बहुत से अनदेखे कोने हैं, जहाँ इस माध्यम का आलोक नहीं पहुँचता। यह आवश्यकता महसूस की गयी कि साहित्य शिल्पी को सभागारों, सडकों और गलियों तक भी पहुचना होगा। प्रेरणा उत्सव इस दिशा में पहला किंतु सशक्त कदम था।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिवस पर उन्हे स्मरण करने लिये साहित्य शिल्पी नें 25/01/2009 को गाजियाबाद स्थित भारती विद्या सदन स्कूल में लोक शक्ति अभियान के साथ मिल कर प्रेरणा दिवस मनाया। सुभाष चंद्र बोस एसे व्यक्तित्व थे जिनका नाम ही प्रेरणा से भर देता है। साहित्य शिल्पी के लिये भी हिन्दी और साहित्य के लिये जारी अपने आन्दोलन को एसी ही प्रेरणा की आवश्यकता है। कार्यक्रम का शुभारंभ अपने नियत समय पर, प्रात: लगभग साढे दस बजे प्रसिद्ध विचारक तथा साहित्यकार बी.एल.गौड के आगमन के साथ ही हुआ। मंच पर प्रसिद्ध शायर मासूम गाजियाबादी तथा सुभाष के चिंतन पर कार्य करने वाले सत्यप्रकाश आर्य भी उपस्थित थे। मंच पर साहित्य शिल्पी का प्रतिनिधित्व चंडीगढ से आये शिल्पी श्रीकांत मिश्र ‘कांत’ नें किया।

नेताजी सुभाष की तस्वीर पर पुष्पांजलि के साथ कार्यक्रम का आरंभ किया गया। तत्पश्चात लोक शक्ति अभियान के मुकेश शर्मा नें आमंत्रित अतिथियों का अभिवादन किया एवं लोक शक्ति अभियान से आमंत्रितों को परिचित कराया। नेताजी सुभाष के व्यक्तित्व पर बोलते हुए तथा विचारगोष्ठी का संचालन करते हुए योगेश समदर्शी नें युवा शक्ति का आह्वाहन किया कि वे अपनी दिशा सकारात्मक रख देश को नयी सुबह दे सकते हैं। काव्य गोष्ठी का संचालन राजीव रंजन प्रसाद नें किया।
गाजियाबाद के शायर मासूम गाजियाबादी नें अपनी ओजस्वी गज़ल से काव्य गोष्ठी का आगाज़ किया। अमर शहीदों को याद करते हुए उन्होंने कहा :-
भारत की नारी तेरे सत को प्रणाम करूँ
दुखों की नदी में भी तू नाव-खेवा हो गई
माँग का सिंदूर जब सीमा पे शहीद हुआ
तब जा के कहा लो मैं आज बेवा हो गई
पाकिस्तान और सीमापार आतंकवाद पर निशाना साधते हुए मासूम गाजियाबादी आगे कहते हैं:
मियाँ इतनी भी लम्बी दुश्मनी अच्छी नहीं होती
कि कुछ दिन बाद काँटा भी करकना छोड़ देता है
सुभाष नीरव ने अपनी कविता सुना कर श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया। उन्होने कहा -
राहो ने कब कहा हमें मत रोंदों
उन्होंने तो चूमे हमारे कदम और खुसामदीद कहा
ये हमीं थे ना शुकरे कि पैरों तले रोंदते रहे
और पहुंच कर अपनी मंजिल तक
उन्हें भूलते भी रहे....
उन्होंने तो चूमे हमारे कदम और खुसामदीद कहा
ये हमीं थे ना शुकरे कि पैरों तले रोंदते रहे
और पहुंच कर अपनी मंजिल तक
उन्हें भूलते भी रहे....
मास फॉर अवेयरनेस मूवमेंट चलाने वाले नीरज गुप्ता नें सुभाष के व्यक्तित्व पर बोलते हुए राष्ट्रीय चेतना के लिये छोटे छोटे प्रयासों की वकालत की। उन्होने अपने कार्टूनो को उस देश भक्ति का हिस्सा बताया जो लोकतंत्र को बचाने व उसे दिशा देने में आवश्यक है।

[कार्टून प्रदर्शनी - एक अवलोकन]
उनके वक्तव्य के बाद कार्यक्रम को कुछ देर का विराम दिया गया और उपस्थित अतिथि कार्टून प्रदर्शिनी के अवलोकन में लग गये। कार्यक्रम का पुन: आरंभ किया गया और श्रीकांत मिश्र कांत सुभाष की आज आवश्यकता पर अपना वक्तव्य दिया।

[उपर (बायें से दायें) - श्रीकांत मिश्र कांत, मासूम गाजियाबादी, नीरज गुप्ता तथा नीचे (बायें से दायें) - विजय कुमारी अहसास, योगेश समदर्शी, सुभाष नीरव]
योगेश समदर्शी नें इसके पश्चात बहुत तरन्नुम में अपनी दो कवियायें सुनायीं। एक ओजस्वी कविता में वे सवाल करते हैं:-
तूफानों से जिस किश्ती को लाकर सौंपा हाथ तुम्हारे
आदर्शों की, बलिदानों की बड़ी बेल थी साथ तुम्हारे
नया नया संसार बसा था, नई-नई सब अभिलाषाएं थीं
मातृभूमि और देश-प्रेम की सब के मुख पर भाषाएं थीं
फिर ये विघटन की क्रियाएं मेरे देश में क्यों घुस आईं
आपके रहते कहो महोदय, ये विकृतियाँ कहाँ से आईं
अविनाश वाचस्पति नें कार्यक्रम में विविधता लाते हुए व्यंग्य पाठ किया। उन्होंने व्यवस्था पर कटाक्ष करते हुए कहा कि “फुटपाथों पर पैदल चलने वालों की जगह विक्रेता कब्जार जमाए बैठे हैं और पैदलों को ही अपना सामान बेच रहे हैं। तो इतनी बेहतरीन मनोरम झांकियों के बीच जरूरत भी नहीं है कि परेड में 18 झांकियां भी निकाली जातीं, इन्हेंज बंद करना ही बेहतर है। राजधानी में झांकियों की कमी नहीं है। सूचना के अधिकार के तहत मात्र दस रुपये खर्च करके आप लिखित में संपूर्ण देश में झांकने की सुविधा का भरपूर लुत्फं उठा तो रहे हैं। देश को आमदनी भी हो रही है, जनता झांक भी रही है। सब कुछ आंक भी रही है। देश में झांकने के लिए छेद मौजूद हैं इसलिए झांकियों की जरूरत नहीं है।”

[उपर (बायें से दायें) - सुनीता चोटिया 'शानू' , मोहिन्दर कुमार तथा नीचे (बायें से दायें) - अविनाश वाचस्पति, शोभा महेन्द्रू, पवन कुमार 'चंदन']
कार्यक्रम में स्थानीय प्रतिभागिता भी रही। गाजियाबाद से उपस्थित कवयित्री सरोज त्यागी नें वर्तमान राजनीति पर कटाक्ष करते हुए कहा :-
बहन मिली, भैया मिले, मिला सकल परिवार
लाया मौसम वोट का, रिश्तों की बौछार
चुन-चुन संसद में गये, हम पर करने राज
सत्तर प्रतिशत माफ़िया, तीस कबूतरबाज
अल्लाह के संग कौन है, कौन राम के साथ
बहती गंगा में धुले, इनके उनके हाथ
काव्यपाठ में सुनीता चोटिया ‘शानू’, शोभा महेन्द्रू, राजीव तनेजा,अजय यादव, राजीव रंजन प्रसाद, मोहिन्दर कुमार, पवन कुमार ‘चंदन’ एवं बागी चाचा नें भी अपनी कवितायें सुनायी।
सुनीता शानू नें अपनी कविता में कहा:-
मक्की के आटे में गूंथा विश्वास
वासंती रंगत से दमक उठे रग
धरती के बेटों के आन बान भूप सी
धरती बना आई है नवरंगी रूप सी
वासंती रंगत से दमक उठे रग
धरती के बेटों के आन बान भूप सी
धरती बना आई है नवरंगी रूप सी
पवन चंदन ने शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए प्रस्तुत किया-
चाहता हूं तुझको तेरे नाम से पुकार लूं
जी करता है कि तेरी आरती उतार लूं
शोभा महेंद्रू नें नेताजी सुभाष पर लिखी पंक्तियाँ प्रस्तुत कीं:-
२३ जनवरी का दिन एक अविष्मर्णीय दिन बन जाता है
और एक गौरवशाली व्यक्तित्त्व को हम लोगों के सामने ले आता है
एक मरण मांगता युवा आकाश से झाकता है
और पश्चिम की धुन पर नाचते युवको को राह दिखाता है
राजीव तनेजा नें कहा -
क्या लिखूं कैसे लिखूं लिखना मुझे आता नहीं ...
टीवी की झ्क झक मोबाईल की एसएमएस मुझे भाता नही ....
बागी चाचा नें सुनाया -
आज भी जनता शहीद हो रही है और वह डाक्टर के हाथो से शहीद हो रही थी
दीनू की किस्मत फूटनी थी सो फूट गई..
कार्यक्रम के मध्य में मोहिन्दर कुमार नें अपनी चर्चित कविता "गगन चूमनें की मंशा में..." सुनायी साथ ही, साहित्य शिल्पी और उसकी गतिविधियों तथा उपलब्धियों से उपस्थित जनमानस का परिचय करवाया।

[उपर (बायें से दायें) - सुनील शर्मा, राजीव रंजन प्रसाद, बागी चाचा तथा नीचे (बायें से दायें) - राजीव तनेजा, सत्यप्रकाश आर्य, अजय यादव]
विचार गोष्ठी में सत्यप्रकाश आर्य नें सुभाष चंद्र बोस और उनके व्यक्तित्व पर बहुत विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने सुभाष के जीवित होने जैसी भ्रांतियों पर भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम में स्थानीय विधायक सुनील शर्मा की भी उपस्थिति थी। सुनील जी नें समाज के अलग अलग वर्ग को भी देश सेवा के लिये आगे आने की अपील की। कार्यक्रम के अंत में अध्यक्ष बी.एल. गौड नें अपने विचार प्रस्तुत लिये। उन्होंने कार्य करने की महत्ता पर बल दिया और विरोधाभासों से बचने की सलाह दी।

उन्होने बदलते हुए समाज में सकारात्मक बदलावों की वकालत करते हुए रूढीवादिता को गलत बताया। अपने वक्तव्य के अंत में उन्होंने अपनी कविता की कुछ पंक्तियाँ भी प्रस्तुत कीं:
ऐ पावन मातृभूमि मेरी
मैं ज़िंदा माटी में तेरी
मैं जन्म-जन्म का विद्रोही
बागी, विप्लवी सुभाष बोस
अतिवादी सपनों में भटका
आज़ाद हिंद का विजय-घोष
मैं काल-निशाओं में भटका
भटका आँधी-तूफानों में
सागर-तल सभी छान डाले
भटका घाटी मैदानों में
मेरी आज़ाद हिंद सेना
भारत तेरी गौरव-गाथा
इसकी बलिदान-कथाओं से
भारत तेरा ऊँचा माथा
कार्यक्रम में साहित्यकारों विद्वानों और स्थानीय जन की बडी उपस्थ्ति थी।

साहित्य शिल्पी नें कार्यक्रम के अंत में यह संकल्प दोहराया कि साहित्य तथा हिन्दी को अभियान की तरह प्रसारित करने के लिये इस प्रकार के आयोजन जीयमित होते रहेंगे।

कार्यक्रम का समापन “जय हिन्द” के जयघोष के साथ हुआ।
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32 टिप्पणियाँ
मैंने उपरोक्त नेताजी सम्बन्धी समाचार पढे, हम सभी देशवासी उन्हें याद करते हैं ! इसके साथ ही दूसरा समाचार भी पढा इसे आप भी देखे और समझें http://rsfb.blogspot.com पर प्रेसविज्ञाप्ति अथवा सम्बोधन पर उपलब्ध है और हकीकत को बया करता है। http://pinksitygold.tk/
जवाब देंहटाएंबहुत सफल रही गोष्ठी -बधाई !
जवाब देंहटाएंइस कार्यक्रम का हिस्सा बन कर अच्छा लगा। ऐसे कार्यक्रम लगतार होने चाहिए
जवाब देंहटाएं।मेरे ख्याल से चार-चार चित्रों को एक साथ जोड़ने के बजाए अगर सभी को अलग-अलग से दिया जाता तो लेख और अधिक प्रभावी बनता।साहित्य शिल्पी से निवेदन है कि वो सभी चित्रों को अलग से उपलब्ध कराए।
प्रेरणा उत्सव के विषय में पढ कर और तस्वीरें देख कर वहाँ उपस्थित न हो पाने की कमी बहुत खली। सफल आयोजन की साहित्य शिल्पी को बधाई।
जवाब देंहटाएंइस तरह के कार्यक्रम अब नीयमित होने चाहिये। प्रेरणा उत्सव का हिस्सा बन कर बहुत अच्छा लगा। आयोजन की बधाई।
जवाब देंहटाएंGood report. Keep it up.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
रिपोर्ट पढ कर बहुत अच्छा लगा। एसे कार्यक्रम नीयमित अंतराल पर साहित्य शिल्पी को अलग अलग शहरों में आयोजित करते रहने चाहिये। सीधे जनसंपर्क से विचार आसानी से लोगों तक पहुँचते हैं। प्रेरणस उत्सव के सफल आयोजन की बधाई।
जवाब देंहटाएंअपरिहार्य कारणों से मेरा आना संभव नहीं हो सका था। रिपोर्ट पढ कर प्रतीत हो रहा है कि कार्यक्रम बहुत अच्छा रहा। सभी को बधाई।
जवाब देंहटाएंप्रेरणा उत्सव की रिपोर्ट पढ कर बहुत अच्छा लगा. गाजियाबाद इस अवसर को हमेशा याद रखेगा. साहित्य शिल्पी इसी परकार गाली गली मोहल्ले मोह्ल्ले जा कर लोगों को इन्टरनेट पर हिंदी के प्रसार के आंदोलन से जोडता रहा तो वह दिन दूर नही जब पुनं प्रेमचंद घर घर के मोनीटर पर पढे जाएंगे. लोग साहित्य के प्रति रुझान दिखा रहे है बस जरूरत है सहयोग के साथ आगे बढने की साथियों को सामूहिक प्रयास करना होगा और यदि सामूहिक प्रयास हुई तो एक नही अनेक प्रेरणा उत्सव सफल हो जाएंगे... कार्यक्रम में उपस्थिति देने वाले साथियों को एक बार फिर आभार...
जवाब देंहटाएंबधाई साहित्य शिल्पी को।
जवाब देंहटाएंयह बडा कदम है। एसे कार्यक्रम लोगों से जोडते हैं। इसे प्रसारित करना होगा जिससे साहित्य का तथा हमारी भाषा का हित होगा। रिपोर्ट को पढना सुखद लगा। साहित्य शिल्पी का एक और मील का पत्थर है।
जवाब देंहटाएंअच्छा और सार्थक आयोजन। बधाई।
जवाब देंहटाएंनि:संदेह यह एक अच्छा प्रयास था और भविष्य में भी ऐसे प्रयास होते रहने चाहिएं। मैं इस कार्यक्रम में उपस्थित था और मैंने पाया कि भविष्य में आयोजित किए जाने वाले ऐसे कार्यक्रमों को और अधिक सुव्यवस्थित ढ़ंग से मनाया जा सकता है। ऐसे कार्यक्रम जिस स्थान पर भी हों, वहाँ के स्थानीय लेखकों, कवियों, पत्रकारों और साहित्य प्रेमियों को अधिक से अधिक संख्या में जोड़ने का प्रयास होना चाहिए, बजाए नेताओं आदि को जोड़ने के। आप जिस मिशन पर चले हैं, वह तब कहीं अधिक सार्थक भूमिका निभा पाएगा। आयोजकों को इस सफल कार्यक्रम की बहुत बहुत बधाई !
जवाब देंहटाएंऔर अंत में एक बात टिप्पणीकारों से- "लीव योर कमेंट्स" में एक आप्शन होता है, परव्यू का। कृपया अपनी टिप्पणी छोड़ने से पूर्व "परव्यू" में जाकर अपनी भाषा और शब्दों की त्रुटियों को अवश्य जाँच लें ताकि "गली" जैसे शब्द "गाली" न बन जाएं।
-सुभाष नीरव
sahitya shilpi ko badhai
जवाब देंहटाएंबधाई......... इस तरह के आयोजन होते रहने चाहिये। जनसम्पर्क के साथ-साथ विचारों के आदान-प्रदान से रचनात्मकता तो निखरेगी ही साथ ही संवादशीलता भी बनी रहेगी।
जवाब देंहटाएंरिपोर्ट पढ कर अच्छा लगा। नीरव जी की बात भी ध्यान देने योग्य है। यह दृष्टिकोण रख कर ही अपने अभियान को जारी रखें।
जवाब देंहटाएंऐसे सार्थक कार्यक्रम निरंतर होते रहने चाहिए।मैँ सुभाष नीरव जी की बात से शतप्रतिशत सहमत हूँ कि नेताओं के बजाय साहित्य प्रेमियों को इससे जोड़ा जाना चाहिए।
जवाब देंहटाएंकार्यक्रम के अंत में अध्यक्ष श्री बी.एल.गौड़ जी के वक्तव्य में एक बात अखरी कि हम चाहे जितने भी प्रयास कर लें... अँग्रेज़ी हमेशा सर्वोपरि रहेगी या हम लाख चाहने और कोशिशें करने के बाद भी अँग्रेज़ी के वर्चस्व को कम नहीं किया जा सकता"
बेशक ये एक कटु सत्य हो सकता है लेकिन मेरे ख्याल से ऐसा कहने या मानने से वहाँ मौजूद सभी हिन्दी सेवकों तथा हिन्दी प्रेमियों का मनोबल ज़रूर कुछ कम हुआ होगा।
संजू जी, मैं भी आपकी इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि अग्रज और वरिष्ठ लोगों को मंच पर से ऐसी ह्तोत्साहित करने वाली बात नहीं कहनी चाहिए।
जवाब देंहटाएंआदरणीय गौड़ साहब ने नि:संदेह एक कटु सत्य की ओर इशारा किया है, परन्तु मेरा मानना है कि ऐसे मंचों से हिन्दी में लिखने वालों, हिन्दी में काम करने वालों के मनोबल को बढ़ाने वाली बातें होनी चाहिएं, न कि उनके मनोबल को गिराने वाली।
बेहद सार्थक पहल के लिए पूरी साहित्य-शिल्पी टीम को करोड़ों बधाईयाँ!
जवाब देंहटाएं-विश्व दीपक
नीरव जी एवं संजु जी, आपकी बात का समर्थन करने हुए मैं जोडना चाहूँगा कि हिन्दी को ले कर अब भ्रांतिया टूटने लगी है। विज्ञापन से ले कर बहुराष्ट्रीय संस्कृति भी हिन्दी को आत्मसात करने में लगी है। हिन्दी समृद्ध हो रही है और होगी।
जवाब देंहटाएंA fruitful efforts!
जवाब देंहटाएंCongrats to all of you who belongs to Shahitya Shilpi.
Great going...
झूठी बात मन को सुहाती जरूर है पर हकीकत कहीं से भी कही जाये हमें उसे स्वीकार करना चाहिये... आदर्णीय गुरू जी ने जो बात कही थी वह हो सकता है कि आपको चुभी हो पर यह बात सच है कि वहां उपस्थित हिंदी की सेवा करने वाले लगभग हम सभी (संभवत:) एक भी ऐसा नहीं जो अंग्रेजी भाषा का पूर्ण बहिष्कार करके हिंदी की सेवा कर रहा हो.. हम सबके बच्चे अंग्रेजी माध्यम के पब्लिक स्कूलों में बडे बडे डोनेशन देकर भर्ती कराये गये हैं अत: हमें उस बुजुर्ग के शब्दों से एंतराज करने की बजाए अपना आत्म चिंतन करना होगा कि एक तरफ तो हम हिंदी की सेवा की बात करते है दूसरी तरफ अंग्रेजी जब हमारी जीवनचर्या बन गई हो ऐसे मे हिंदी बनाम अंग्रेजी की लडाई के साथ न्यान नहीं कर पाएंगे इससे बेहतर है कि हम अंग्रेजी तेरा भी भला और हिंदी तेरी भी जय का रास्ता अपनाएं हम हिंदी में जितना काम कर सकें करे पर हिंदी बनाम अंग्रेजी कोई लडाई का मैदान न बनाएं गुरूजी ने बस इतना मैसेज कड्वे शब्दों मे दिया था.... मेरा ऐसा मानना है... जिन नेता जी को कार्यक्रम में बुलाया गया था वह नेता ही नही... साहित्य से उनका गहरा रिश्ता है.. गाजियाबाद के विधायक महोदय पढे लिखे पाठक और कविताओ साहित्यिक कार्यक्रमों मे रुचि रखने वाले व्यक्ति हैं.... उनका बयान और उनकी बातें जो उन्होंने इस मंच से की थी वह राजनैतिक नही बल्कि उसी धुरी की बातें थी जिन पर गोष्ठी के लोग चर्चा कर रहे थे... हम नेताओ की बुराई करें पर पीठ पीछे क्यों उनको मंच पर बुला कर उनके सम्मुख चर्चा हो... इस कार्यक्रम में आपको यह देखने से ज्यादा कि इस कार्यक्रम मे राजनेता भी आये थे यह देखना चाहिये था कि हमने राजनेता को बुला कर फूल माला नहीं पहनाई आप सब आगंतुकों की भांति उन्हे भी स्थान दिया कुछ देर बैठ कर सुनने को भी मंजबूर किया उनके आने तक कार्यक्रम को प्रारंभ भी न करें ऐसा कुछ नहीं किया उनके जाते ही कार्यक्रम समाप्त कर दिया जाये ऐसा भी नहीं किया गया उनको बैठते ही यह कह दिया गया कि हम नेताओं के कार्यकलाप से असंतुष्ट हैं क्या यह सामाजिक चेतना का कार्य इस कार्यक्रम में नहीं हुआ क्या नेता को साहित्य पर टिप्पणी और समाज के अच्छी कार्यक्रमों में न बुला कर हम देश और समाज का कुछ भला कर देंगे..
जवाब देंहटाएंकिसी बहस नहीं बस पक्ष को स्पष्ट करने के लिये मुझे यह विनम्र निवेदन करना पडा मुझे आशा है कि इसे अन्यथा नहीं लिया जाएगा...
समदर्शी जी आपका कहना बिलकुल सही है कि झूठी बात मन को सुहाती जरूर है पर हकीकत कहीं से भी कही जाये हमें उसे स्वीकार करना चाहिये क्योंकि सच्चाई छुप नहीं सकती बनावट के उसूलों से और खुशबू आ नहीं सकती कागज़ के फूलों से लेकिन ये भी तो सच है ना कि कड़वी दवाई को भी कैपसूल के रंग-बिरंगे और मनमोहक खोल में डालने के बाद ही मरीज़ को दिया जाता है ताकि उसका मुँह कसैला ना हो जाए।
जवाब देंहटाएंकार्यक्रम में नेता जी आए...उनका स्वागत है। हालांकि उन्होंने बड़े रोचक ढंग से अपनी बात को रखा लेकिन मेरे ख्याल से कार्यक्रम में उनके आने से कार्यक्रम की दिशा और ध्यान साहित्य की तरफ से हट कर राजनीति तथा इधर-उधर की बातों की तरफ मुड़ गया था।
पहले उनके आने से मैँ ज़रूर उत्साहित हुआ था क्योंकि वो अपने साथ कुछ भीड़ को भी ले आए थे जिन्हें हम गलती से श्रोता समझ बैठे।हमारा ये भ्रम तब दूर हुआ जब उनके जाते ही भीड़ भी खुद बा खुद नदारद हो गई।इस कारण मुझ जैसे कईयों को मायूसी के पलों से दो-चार होना पड़ा।
योगेश जी, मैं भी नहीं चाहता कि हमारी यह प्रतिक्रिया किसी अप्रिय बहस का हिस्सा बनें। मैं आपके विचारों का भी उतना ही सम्मान करता हूँ जितना आदरणीय गौड़ जी का। इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में हर किसी को अपनी बात कहने का पूरा हक है। पर हम अपनी बात किसी राग-द्वेष में न कहें/ रखें। आपने जो बात कही है, वह भी कड़वी सच्चाई है कि हम अंग्रेजी की आलोचना करते हैं पर अपने ब्च्चों को अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ाते हैं या पढ़ाने की ख्वाहिश रखते हैं क्योंकि आज एक तरह से मान लिया गया है( बल्की सिद्ध हो गया है) कि यदि अच्छा रोजगार पाना है तो अंग्रेजी अपने बच्चों को सिखलानी ही होगी।
जवाब देंहटाएंलेकिन यहाँ यह भी स्पष्ट कर दूँ कि यदि मैंने संजू जी की बात का समर्थन किया है तो अपने गिरेबां में झांक कर ही किया है। मेरे बच्चे न तो अंग्रेजी स्कुलों में पढ़े हैं, न पढ़ रहे हैं।
आशा है, आप भी अन्यथा न लेंगे और इसे बहस का मुद्दा नहीं बनाएंगे।
प्रेरणा उत्सव के सफल आयोजन की बधाई। ऐसे कार्यक्रम नियमित रूप से होने चाहिए।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसमाचार नहीं
जवाब देंहटाएंसाहित्यिक समाचार
रपट भी कह सकते हैं
पर रपटें नहीं।
टिप्पणियों में सच्चाई है
कूट कूट कर भरी है
कितना और कूटें हम
लेकिन बाहर न निकलने दें।
निकले बाहर तो
मुद्दा बने सार्थक बहस का
इतना माद्दा तो हो सबमें
कहने सुनने और सहने का
।
इससे उपर अच्छी सच्ची
बात बेलौस होकर कहने का
जो परमादरणीय गुरुदेव ने कहीं
उनका उम्र का चिंतन कह रहा था
सबसे अनुभवी वही थे
सबके बीच।
हम कम उम्र
कम अनुभवी
जैसे सब समझते हैं
कि हैं होशियार हम
पर हम शब्दों की बाजीगरी
से अधिक कुछ नहीं जानते।
हमें मानना होगा
सच को स्वीकारना होगा
और सच है वही
जो कह गये हैं गुरुदेव
चाहे मैंने उनसे ज्ञान नहीं लिया
पर मुझसे अधिक उम्रियों को
उन्होंने है ज्ञान दिया।
सिर्फ ज्ञान ही नहीं दिया
अनुभव दिया और जिया
जीना सार्थक उनका
कहना सार्थक उनका
आंखें उन्होंने खोल दीं
वैसे ही जैसे खोलीं
श्री सत्यदेव आर्य जी ने
नेताजी सुभाषचन्द्र बोस जी की
हकीकत बतलाकर
सच सामने लाकर
और उसी सच्चाई का तीसरा सिरा
थे सुनील शर्मा
अपने बारे में खुद ही कह गये
सत्य की सारी कहानी गह गये
हम सब सुनते समझते बह गये
भावों में, रागों में, धागों में
उलझे, सुलझे सब कुछ सह गये।
कार्यक्रम अच्छा रहा
जगह कम रही
छोटी रही पर
प्रेमी बढ़ते रहे
आयोजनकर्ता का दिल दरिया
कार्टून भी इतने में ही
करोड़ों शब्दों को वाणी दे गये।
राजीव भाई.. बहुत बधाई.. सारी की सारी टीम को..
जवाब देंहटाएंराजीव भाई.. बहुत बधाई.. सारी की सारी टीम को..
जवाब देंहटाएंक्षमा चाहता हूँ मगर अपनी बात कहे बिना दिल नही मान रहा...... गौड़ जी ने जो कहा वो मुझे बहुत जंचा .... हिन्दी की प्रगति में किसी को भी कोई आपत्ति नही है परन्तु इंग्लिश को हिन्दी का शत्रु मानना भी ठीक नही है... हमें दोहरी मानसिकता से उबरना होगा... एक तरफ़ तो हम अपने बच्चों को कॉन्वेंट स्कूल भेजते हैं और दूसरी और इंग्लिश से पीछा छुडाने की बात करते हैं. तरकश में जितने अधिक बाण हों वो सब काम ही आते हैं व्यर्थ नही जाते... विदेशों से लोग हिन्दी और संस्कृत का ज्ञान लेने के लिए भारत आते हैं तो इंग्लिश में महारत हासिल करने में हमें परहेज नहीं होना चाहिए...
जवाब देंहटाएंलोच होने से अस्तित्व बना रह सकता है... "यूनान मिस्र रोमा सब मिट गए जहाँ से बाकी बचा हुआ है नामों निशान हमारा" क्यों की हम कट्टर नही हैं... हमारा हिरदय इतना विशाल है की हम सब को अपने में समां लेते हैं इस तरह की उसका अपना कोई अस्तित्व ही नही रहता. ..
पैनी नजर और इस आयोजन को सफल बनाने के लिए सभी का धन्यवाद जिन्होंने स्थल पर उपस्थित हो कर कार्यक्रम की शोभा दुगनी कर दी. पहले पहला कार्यक्रम होने के कारण कुछ कमियाँ रह गयी जिनका भविष्य में ध्यान रखा जायेगा.. एक बार पुन आभार
साहित्य शिल्पी की पूरी टीम को कार्यक्रम के आयोजन की बधाई।
जवाब देंहटाएंकुछ सलाह देना चाहूंगा
1 समारोह स्थल कुछ बड़ा हो तो बेहतर होता
2 दोपहर के समय नाश्ता, जमा नहीं
इसके अलावा जो बहस चली है अंग्रेजी व हिन्दी से संबंधित उसमें मैं चाहूंगा कि जब हम किसी भी योजना का आरंभ करें तब उस योजना का नाम हिन्दी में करें तो हिन्दी अपने आप आ जाएगी और छा जाएगी। एक उदाहरण
रिंग रोड बनी तो उसे रिंग रोड क्यों कहा गया और उस पर चलने वाली बस को रिंग बस क्यों नहीं कहा गया। देखो न, मुद्रिका चलन में आयी। जो लोग हिन्दी शब्दों को क्लिष्ट कहते हैं उनको भी तीव्र मुद्रिका कहने में परेशानी नहीं हुई। सो भाई लोगों जब नाम करण हो तो हिन्दी को याद करो निसंदेह हिन्दी आपको याद करेगी।
हार्डिंग ब्रिज को तिलक ब्रिज कर दिया गया, तिलक सेतू क्यों नहीं किया गया।
जब राम सेतू बोला जा सकता है तो शिवाजी सेतू क्यों नहीं। हमारे नजदीक एक बाजार है भोगल, जी हां इसी भोगल में एक सुनार की दुकान का नाम रखा गया जेवर । एक और दुकान है उसका नाम रखा गया आभूषण। उसकी दुकान से भी गहने बिकते ही हैं।
ऐसे बहुत सारे उदाहरण हैं जिन पर चर्चा की जा सकती है।
साहित्य शिल्पी और लोक शक्ति अभियान को बहुत अर्थवान आयोजन के लिए हार्दिक बधाई, प्रेणना के ऐसे स्रोतों और उनको सहेजने के ऐसे सुंदर प्रयासों को संबल और सहयोग देने की जरूरत है.
जवाब देंहटाएंअगर ऐसे प्रयासों को रेतीले होते समय में नदी माने तो हरजीत का यह शेर बड़ा मौंजू होगा.
इसके बाद तुमको बस रेत ही मिलेगी,
तुम इसको साथ ले लो, ये आखिरी नदी है.
पंकज पुष्कर
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.