
सत्य और अहिंसा की मूर्ति
जिनके सत्याग्रह ने
साम्राज्यवाद को भी मात दी
जिसने भारत की मिट्टी से
एक तूफान पैदा किया
जिसने पददलितों और उपेक्षितों
के मौन को आवाज दी
जो दुनिया की नजरों में
जीती-जागती किंवदंती बना
के मौन को आवाज दी
जो दुनिया की नजरों में
जीती-जागती किंवदंती बना
आज उसी गाँधी को हमने
चौराहों, मूर्तियों, सेमिनारों और किताबों
तक समेट दिया
गोडसे ने तो सिर्फ
उनके भौतिक शरीर को मारा
पर हम रोज उनकी
आत्मा को कुचलते देखते हैं
खामोशी से।
चौराहों, मूर्तियों, सेमिनारों और किताबों
तक समेट दिया
गोडसे ने तो सिर्फ
उनके भौतिक शरीर को मारा
पर हम रोज उनकी
आत्मा को कुचलते देखते हैं
खामोशी से।
*****
39 टिप्पणियाँ
महात्मा गाँधी की पुण्यतिथि पर शत शत नमन। यह भी सत्य है कि
जवाब देंहटाएंआज उसी गाँधी को हमने
चौराहों, मूर्तियों, सेमिनारों और किताबों
तक समेट दिया
गोडसे ने तो सिर्फ
उनके भौतिक शरीर को मारा
पर हम रोज उनकी
आत्मा को कुचलते देखते हैं
जिसने पददलितों और उपेक्षितों
जवाब देंहटाएंके मौन को आवाज दी
जो दुनिया की नजरों में
जीती-जागती किंवदंती बना
उन महात्मा गाँधी की पुण्य तिथि पर नमन। अच्छी कविता है।
गाँधी जी को उनकी पुण्यतिथि पर शत शत नमन
जवाब देंहटाएंमहात्मा हर संदर्भ में महात्मा थे। साबरमति के इस संत के कार्य को कविता प्रस्तुत करती हुई कर्तव्य बोध के प्रति लोगों को आगाह भी करती है।
जवाब देंहटाएंGandhi is relevent for ever.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
सटीक रचना लिखी है।
जवाब देंहटाएंमहात्मा गाँधी की पुण्यतिथि पर शत शत नमन।
saamayik sunder rachna hai Gandhiji ki punya tithi par shat shat parnam
जवाब देंहटाएंआज उसी गाँधी को हमने
जवाब देंहटाएंचौराहों, मूर्तियों, सेमिनारों और किताबों
तक समेट दिया
गांधीजी के विचारों को सही परिप्रेक्ष्य में प्रसारित करने की जरुरत है. स्वागत गांधीजी की विचारधारा को समर्पित मेरे ब्लॉग पर भी.
(gandhivichar.blogspot.com)
गाँधीजी और उनके विचार हर युग मे सामयिक रहेंगे। महात्मा को श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंजो दुनिया की नजरों में
जवाब देंहटाएंजीती-जागती किंवदंती बना
....Bahut sundar bhavabhivyakti !!!
आज के हालात में गाँधी जी के बहाने रुचिकर कविता.
जवाब देंहटाएंगोडसे ने तो सिर्फ
जवाब देंहटाएंउनके भौतिक शरीर को मारा
पर हम रोज उनकी
आत्मा को कुचलते देखते हैं
खामोशी से।
...अत्यंत मर्मस्पर्शी भाव. गाँधी जी का आज भी कोई विकल्प नहीं है.वे आज भी हमारे दिलों में जिन्दा हैं.
महात्मा गाँधी
जवाब देंहटाएंसत्य और अहिंसा की मूर्ति
जिनके सत्याग्रह ने
साम्राज्यवाद को भी मात दी
......पर हमारे राजनेता आज गाँधी जी को नारा बनाकर उछालते हैं....एक लम्बे समय बाद किसी कविता को पढ़कर दिल उद्देलित हुआ है. कृष्ण जी को साधुवाद.
यह मात्र कविता नहीं एक कड़वा सच है. काश कि हमारे नेतागण इससे कुछ सीख लेते.
जवाब देंहटाएंपुण्यतिथि पर गाँधी जी को श्रद्धांजलि.
जवाब देंहटाएंअद्भुत कविता...अद्भुत भाव.....गाँधी जी अमर रहें.....!
जवाब देंहटाएंआप सभी की सारगर्भित टिप्पणियों के लिए आभार. आपका प्रोत्साहन ही लेखनी को धार देता है. अपना स्नेह यूँ ही बनाये रखें.
जवाब देंहटाएंपुण्यतिथि पर गाँधी जी को श्रद्धांजलि. सारा राष्ट्र आपके दिखाए आदर्शों का कायल है.
जवाब देंहटाएंम. गाँधी के बारे में जितना भी कहा जाये, कम ही होगा.आज भी उनकी प्रासंगिकता उतनी ही है. अनुपम कविता के माध्यम से उनका पुण्य-स्मरण प्रभावित करता है.
जवाब देंहटाएंके. के. जी के ही आलेख से--
जवाब देंहटाएंविश्व पटल पर महात्मा गाँधी सिर्फ एक नाम नहीं अपितु शान्ति और अहिंसा का प्रतीक है। महात्मा गाँधी के पूर्व भी शान्ति और अहिंसा की अवधारणा फलित थी, परन्तु उन्होंने जिस प्रकार सत्याग्रह एवं शान्ति व अहिंसा के रास्तों पर चलते हुये अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया, उसका कोई दूसरा उदाहरण विश्व इतिहास में देखने को नहीं मिलता। तभी तो प्रख्यात वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था कि -‘‘हजार साल बाद आने वाली नस्लें इस बात पर मुश्किल से विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से बना ऐसा कोई इन्सान धरती पर कभी आया था।’’ संयुक्त रा’ट्र संघ ने वर्ष 2007 से गाँधी जयन्ती को ‘विश्व अहिंसा दिवस’ के रूप में मनाये जाने की घोषणा करके शान्ति व अहिंसा के पुजारी महात्मा गाँधी के विचारों की प्रासंगिकता को एक बार पुनः सिद्ध कर दिया है।
कविता की अंतिम पंक्तियाँ आह्वाहन है। कविता गाँधी जी को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करती है।
जवाब देंहटाएंराष्ट्रपिता को श्रद्धांजलि। अच्छी कविता।
जवाब देंहटाएंआज के सांध्य टाइम्स दैनिक नई दिल्ली में पेज 5 पर गांधीजी की पुण्यतिथि पर पढ़ें :-
जवाब देंहटाएं'उन्होंने खुद भुगती सजा'
(बोधकथा)
यादव जी अच्छी रचना है बधाई...
जवाब देंहटाएंदे दी हमें आज़ादी
जवाब देंहटाएंबिना खडग बिना ढाल
साबरमती के संत
तूने कर दिया कमाल
नमन मेरा भी...पूज्य महात्मा को.....
"तीस जनवरी की संध्या भूलेगी नहीं भुलाये,
याद रखेंगीं सदियाँ,सुधियों में तुम्हीं सुहाये,"
गीता पंडित
पिछले साल इसी दिन "गाँधी के विचारों की प्रासंगिकता " विषय पर एक गोष्ठी में गया था । चर्चा में मूल उद्येश्य से भटके वक्तागण वही पुरानी घिसी-पिटी बातें को लेकर गाँधी गुणगान में लगे थे । बात होनी चाहिए थी किआज २१ वीं सदी में गांधीवाद कितना प्रासंगिक है ? लेकिन पुरी चर्चा से ये मुद्दा ही गायब था । क्या कीजियेगा हमारे यहाँ शुरू से इस महिमामंडन कि परम्परा रही है! जीवन पर्यंत इश्वर में अविश्वास रखने वाले बुद्ध की प्रतिमा आज उतने ही आडम्बर के साथ पूजी जाती है! गाँधी जो ख़ुद जीवन भर ऐसी चीजों का विरोध करते रहे आज उनके चेले उनके विचारों पर गोबर डाल रहे हैं ! गाँधी जिस राम का नाम लेते-लेते जहाँ से चले गए आज उसी राम का नाम लेने से उनके चेले घबराते हैं! विडंबना ही है साहब !आजीवन गाँधी स्वदेशी - स्वदेशी रटते रहे आज उनके छद्म अनुयायी विदेशी कंपनियों को भारत को लुटने का लाइसेंस दोनों हाथों से बाँट रहे हैं! अब कितनी बात बताऊँ इन गांधीवादियों की सुन-सुन कर पक जायेंगे आप ।
जवाब देंहटाएंतो अब वापस चलते हैं गोष्ठी में । गोष्ठी में ७-८ प्रतिभागी बोल कर जा चुके थे । लगभग बापू के हर सिद्धांत सत्य ,अहिंसा और भाईचारा वगैरह-वगैरह सभी पर लम्बी -लम्बी बातें फेंकी जा चुकी थी । आगे एक छात्रा ने बोलते हुए कहा कि आज बापू के सिद्धांत कई तरह से प्रासंगिक है । क्षमा ,दया ,प्रेम और अहिंसा के सहारे समाज को बदला जा सकता है। समाज में बढ़ते अमानवीय कृत्यों को बापू के रस्ते पर चल कर ही रोका जा सकता है । अपने गाँधी -दर्शन के प्रेम में या शायद श्रोताओं का ध्यान खींचने के लिए व्यावहारिकता को ताक पर रख कर अंत में कह गई कि अगर निठारी कांड के अभियुक्तों को छोड़ दिया जाए तो उनको सुधार जा सकता है । सुनते ही मेरे अन्दर खलबली सी मच गई ।{ मैं ठहरा, गाँधी नही गांधीवाद का विरोधी ।मेरी नजर में गाँधी एक सफल राजनेता अवश्य हैं लेकिन उनके विचारों ( उनके व्यक्तिगतachchhi aadaton को छोड़ कर) से मेरा कोई सरोकार नही है । }main भी आयोजक के पास पहुँचा और २ मिनट का समय माँगा , संयोग से मिल भी गई । मैंने कहा - में कोई शायर या विचारक नही जो शेरो-शायरी और बड़ी -बड़ी बातों /नारों सच को झूट और झूट को सच बता सकूँ । मैं तो केवल कुछ पूछना चाहता हूँ आप सब से । क्या गाँधी के विचारों के नाम पर निठारी के नर -पिशाचों को छोड़ने की भूल कर हम और हजारों सुरेन्द्र & मोनिदर सिंह पंधेर को जन्म नही देंगे ?क्या आप एक भी ऐसे देश का नाम बता सकते हैं जहाँ आज अहिंसा को राजकीय धर्म बनाया गया और वहां अपराध नही है ? नही बल्कि जिस देश में (चीन तथा अरब देशो
आदि में)जुर्म के खिलाफ कड़ी से कड़ी सज़ा का प्रावधान है अपराध भी वहीँ कम हैं । हकीकत से जी मत चुराइए । एक सवाल और जानना चाहूँगा कि अगर किसी लड़की / महिला के साथ बलात्कार हो रहा हो अथवा कोशिश कि जा रही हो तब क्या वो गाँधी के तस्वीर को याद करेगी ? क्या वो एक बार बलात्कारहो जाने पर दोबारा उन दरिंदो के सामने अपने को पेश करेगी ?या फ़िर अपने बचाव में हिंसा का सहारा लेगी ? इस उदाहरण से मैंने यह साबित करना चाह कि दूसरा गाल बढ़ाने वाली गाँधी के सिद्धांत हर जगह लागु नही हो सकते । और कब तक हम गाँधी - गाँधी चिल्लाते रहेंगे ?आज देश को विश्व को नए गाँधी , नए मार्क्स की जरुरत है , नए विचारों को आगे लाना होगा ताकि हम भी आगे जा सकें ।
जयराम जी की बात भी विचारणीय है।
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता। गाँधी जी की पुण्यतिथि पर नमन।
आज के दौर में गाँधी जी पर अतिसुन्दर लिखा है आपने.
जवाब देंहटाएंपुण्यतिथि पर गाँधी जी को नमन.
जवाब देंहटाएं@ Jayram
जवाब देंहटाएंमैं तो केवल कुछ पूछना चाहता हूँ आप सब से । क्या गाँधी के विचारों के नाम पर निठारी के नर -पिशाचों को छोड़ने की भूल कर हम और हजारों सुरेन्द्र & मोनिदर सिंह पंधेर को जन्म नही देंगे ?क्या आप एक भी ऐसे देश का नाम बता सकते हैं जहाँ आज अहिंसा को राजकीय धर्म बनाया गया ...जयराम जी! आप गाँधी जी की अहिंसा को शायद पूरी तरह नहीं समझ सके हैं. अहिंसा माने कायरता नहीं होती और ना ही गाँधी जी ने कभी कायरता को प्रश्रय दिया.
जो दुनिया की नजरों में
जवाब देंहटाएंजीती-जागती किंवदंती बना
....ये दो पंक्तियाँ ही बहुत कुछ कह जाती हैं. सुन्दर भाव..सुन्दर कविता.कृष्ण कुमार जी को इस प्रस्तुति हेतु बधाई.
I am fully agree with Dakiya.....जो लोग गाँधी जी की अहिंसा को कायराना मानते हैं,उन्हें पता होना चाहिए की जब गाँधी जी के आश्रम में एक गे असाध्य बीमारी से तड़प रही थी तो स्वयं गाँधी जी उसका दुःख न बर्दाश्त कर सके और डॉक्टर को उसे इंजेक्शन देकर सदैव के लिए इस दुःख से मुक्त करने को कहा.....बेहतर होगा की गाँधी जी के विचारों को सतही आधार पर नहीं बल्कि वास्तविक परिप्रेक्ष्य में देखा जाय.
जवाब देंहटाएंकल 30/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
बापू को नमन!!
जवाब देंहटाएंसटीक रचना ..
जवाब देंहटाएंकाश कभी ऐसा दिन आये
जब सब ठीक सा होने का अंदेशा हो ..
पुण्यतिथि पर गाँधी जी को नमन.
अगर इंसान की सच्ची परिभाषा किसी ने समझी तो वो थे मात्र महात्मा गांधी ।
जवाब देंहटाएंअगर इंसान की सच्ची परिभाषा किसी ने समझी तो वो थे मात्र महात्मा गांधी ।
जवाब देंहटाएंगाँधी के विचारधारा पर चर्चा होनी चाहिए , गाँधी एक व्यक्ति को लेकर चर्चा करना मैं समझता हूँ , नहीं होना चाहिए ,
जवाब देंहटाएंसुधीर सिंह , दिल्ली
गाँधी के विचारधारा पर चर्चा होनी चाहिए , गाँधी एक व्यक्ति को लेकर चर्चा करना मैं समझता हूँ , नहीं होना चाहिए ,
जवाब देंहटाएंसुधीर सिंह , दिल्ली
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