
असमंजस
तैरने की इज़ाज़त ना मिली
तो डूब मरा..
आँखों के झील में!
अपना कातिल कहूँ उसको
या कविता की माँ बोलूं?
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याद
जबसे सन्नाटे ने
फोड़ दिए मेरे कान!
तेरी याद..
बस तन्हाई के शोर में आती है !
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ख्वाहिश
घूमना चाहता हूँ
सारा जहाँ ...
ताकि रो सकूँ
दुनिया की
हर खूबसूरत जगह पर जाकर !
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अजीब
अजीब है ना..
हंसते हुए
यूँ ही
आँसू निकल आना
और रोना ताउम्र
बिना आँसू बहाए!
तेरा नाम
मेरी धड़कन में
गूँजता है तेरा नाम !
बेहोश था
जब माँ को सुनवाया
उस डॉक्टर ने
स्टेथस्कोप से !
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हनुमान
हनुमान ने चीरा था सीना
'अपने' भगवान के लिए!
मगर मैं..
चीर कर दिखा सकता हूँ
वो 'भगवान'
जो पराया है !
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अनशन
आमरण अनशन पर
बैठे हैं आतंकी
पाकिस्तानी संसद के सामने |
माँग है..
आरक्षण चाहिये
लाहौर-दिल्ली बस में!
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आमरण अनशन पर
बैठे हैं आतंकी
पाकिस्तानी संसद के सामने |
माँग है..
आरक्षण चाहिये
लाहौर-दिल्ली बस में!
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पूजा
आज पत्थर बोला..
पकड़कर पुजारी का हाथ!
क्यों पूजते हो बेमतलब?
किसी और का हूँ मैं !
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13 टिप्पणियाँ
अच्छी कोशिश कहूँगा। अधिकतम क्षणिकायें उलझी हुई हैं। सुलझाईये उन्हें। जैसे पहली ही क्षणिका लीजिये, संदर्भ प्रेमिका से प्रेम का और बात माँ के वात्सल्य की। इस विरोधाभास को कैसे जस्टीफाई करेंगे आप? साथ में यह अवश्य जोडना चाहूँगा कि आप प्रभावित करने वाले कवि हैं।
जवाब देंहटाएंख्वाहिश, अजीब, तेरा नाम और पोजा अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंअजीब है ना..
जवाब देंहटाएंहंसते हुए
यूँ ही
आँसू निकल आना
और रोना ताउम्र
बिना आँसू बहाए!
" behtrin , bhut acchi lgi"
regards
अजीब
जवाब देंहटाएंसजीव
है
विपुलता
नाम में है
लघुता है
ही नहीं।
आज पत्थर बोला..
जवाब देंहटाएंपकड़कर पुजारी का हाथ!
क्यों पूजते हो बेमतलब?
किसी और का हूँ मैं !
......Man gaye guru.
आमरण अनशन पर
जवाब देंहटाएंबैठे हैं आतंकी
पाकिस्तानी संसद के सामने |
माँग है..
आरक्षण चाहिये
लाहौर-दिल्ली बस में!
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बहुत बढ़िया.
आमरण अनशन पर
जवाब देंहटाएंबैठे हैं आतंकी
पाकिस्तानी संसद के सामने |
माँग है..
आरक्षण चाहिये
लाहौर-दिल्ली बस में!
ज़बरदस्त....विचारोतेजक.....विस्मयजनक...
कुछ उलझी सी...कुछ सुलझी सी...
और क्या कहें?
प्रिय विपुल,
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी क्षणिकायें हैं। क्षणिका की विशेषता ही होती है कि कम शब्दों में कथ्य कह दें वह भी इस तरह कि पाठक चमत्कृत हो उठे। तुम्हारी सभी क्षणिकायें इस विशेषता का पालन करती हैं।
***राजीव रंजन प्रसाद
अच्छी क्षणिकायें हैं, बधाई।
जवाब देंहटाएंअच्छी क्षणिकायें हैं विपुल
जवाब देंहटाएंविपुल ! एक दीर्घ अंतराल के बाद , और वो भी 'क्षणिक '।
जवाब देंहटाएंप्रवीण पंडित
aisa aur likhtey raho
जवाब देंहटाएंsameer bhave
sabhi bahut achchi hain par yeh ek to man ko cho gai badhai.
जवाब देंहटाएंअजीब है ना..
हंसते हुए
यूँ ही
आँसू निकल आना
और रोना ताउम्र
बिना आँसू बहाए
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.