
कितना है दम चराग़ में, तब ही पता चले
फानूस की न आस हो, उस पर हवा चले
फानूस = काँच का कवर
लेता हैं इम्तिहान गर, तो सब्र दे मुझे
कब तक किसी के साथ, कोई रहनुमा चले
नफ़रत की आँधियाँ कभी, बदले की आग में
अब कौन लेके झंडा –ए- अमनो-वफ़ा चले
चलना अगर गुनाह है, अपने उसूल पर
सारी उमर सज़ाओं का ही, सिल सिला चले
खंज़र लिए खड़े हो गर हाथों में दोस्त ही
"श्रद्धा" बताओ तुम वहाँ, फ़िर क्या दुआ चले
24 टिप्पणियाँ
कितना है दम चराग़ में, तब ही पता चले
जवाब देंहटाएंफानूस की न आस हो, उस पर हवा चले
चलना अगर गुनाह है, अपने उसूल पर
सारी उमर सज़ाओं का ही, सिल सिला चले
वाह श्रद्धा जी।
कितना है दम चराग़ में, तब ही पता चले
जवाब देंहटाएंफानूस की न आस हो, उस पर हवा चले
चलना अगर गुनाह है, अपने उसूल पर
सारी उमर सज़ाओं का ही, सिल सिला चले
वाह श्रद्धा जी।
रचना तो अच्छी है | लेकिन कुछ दमदार की आशा करता हूँ |
जवाब देंहटाएं-- अवनीश तिवारी
आदरणीया श्रद्धा जी
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी गजल के लिये बधाई
काबिलेतारीफ पंक्तियाँ -------
खंज़र लिए खड़े हो गर हाथों में दोस्त ही
"श्रद्धा" बताओ तुम वहाँ, फ़िर क्या दुआ चले
-विजय
श्रधा जी नमस्कार,
जवाब देंहटाएंये ग़ज़ल बहोत ही खुबसूरत है बहोत ही उम्दा ,ये ग़ज़ल मैंने पहले भी आपके ब्लॉग पे पढ़ी थी बहोत ही शानदार है ये ग़ज़ल ...ढेरो बधाई कुबूल करें....
आभार.
अर्श
SHRADHA JEE,AAPNE-MAFOOL FAILAAT
जवाब देंहटाएंMFAEEL FAILUN YANI 221 21 21 122
12 12 MEIN ACHCHHEE GAZAL KAHEE
HAI.LEKIN "GAR"SHABD DO MISRON KO
BEVAZN KAR RAHAA HAI.GAR MEIN DO
MAATRAAYEN HAIN,LEKIN YAHAN EK
MAATRAA KA KOEE SHABD CHAAHIYE.
ASHA HAI KI AAP MEREE IS ISLAH KO
BURAA NAHIN MAANEGEE.
आपकी ग़ज़ल पढ़कर दुष्यंत की याद आ गई, बधाई बेहतरीन ग़ज़ल के लिए
जवाब देंहटाएंकितना है दम चराग़ में, तब ही पता चले
जवाब देंहटाएंफ़ानूस की न आस हो, उस पर हवा चले
बहुत ख़ूब श्रद्धा जी,
बेहतरीन अन्दाज़ की ग़ज़ल कही आपने.
अब कौन लेके झंडा –ए- अमनो-वफ़ा चले
को ऐसा कह के भी देखें ज़रा -
अब कौन लेके परचमे-अमनो-वफ़ा चले
शुभकामनाओं सहित
बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंउमदा तेवरों की ग़ज़ल है। बधाई श्रद्धा जी।
जवाब देंहटाएंनफ़रत की आँधियाँ कभी, बदले की आग में
अब कौन लेके झंडा –ए- अमनो-वफ़ा चले
हर शेर पसंद आया। बहुत अच्छी ग़ज़ल है।
जवाब देंहटाएंनफ़रत की आँधियाँ कभी, बदले की आग में
जवाब देंहटाएंअब कौन लेके झंडा –ए- अमनो-वफ़ा चले
वाह बेहतरीन ग़ज़ल,बधाई
श्रद्धा जी की ग़ज़लें की खासियत ये है की वो आत्मकेंद्रित होकर ग़ज़लें नहीं लिखती ,उनकी कविता सबकी कविता है ,जो उन्हें सबसे अलग करती है |इस ग़ज़ल में भी ये चीज बखूबी महसूस होती है |बधाई
जवाब देंहटाएंNamskaar pran ji,
जवाब देंहटाएंAapke kahe anusaar gazal ko badalne ki koshish ki hai
कितना है दम चराग़ में तब ही पता चले
फानूस की न आस हो , उस पर हवा चले
लेना है इम्तिहान अगर सब्र दे मुझे
कब तक किसी के साथ कोई रहनुमा चले
नफ़रत की आँधियाँ कभी, बदले की आग है
अब कौन लेके झंडा –ए- अमनो-वफ़ा चले
चलना अगर गुनाह है , अपने उसूल पर
सारी उमर सज़ाओं का ही सिल सिला चले
खंजर लिये खड़ें हों अगर मीत हाथ में
“श्रद्धा” बताओ तुम वहाँ फ़िर क्या दुआ चले
Kripya dekh kar batayiyega
aur bhi koi sudhaar ho to zarur bataye
abhi seekh rahi hoon aur galtiyon se hi seekh sakungi
Saadar abhaar
Shrddha
Shradha jee,mujhe vishvaas nahin
जवाब देंहटाएंthaa ki aap do ashaar ko itnee
jald durust kar lengee.Shayree par
yani urdu bahron par aapkee pakad
lajawaab hai.Dil bahut khush hua
hai.Aap shayree ko chaar chaand
lagaae.Shubh kamnaaon ke saath.
वाह...वाह...वाह...वाह
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया....लिखते रहें...जमे रहें
चलते चलें हम साथ में, इशारा जरा मिले
जवाब देंहटाएंचरागों का क्या बात है. माचिस भी ना मिले.
शब्दों की सजावट यदि, दे दे कवि का मान.
साधक को सौ-सौ जूतों की, सौगात नित मिले.
श्रद्धा है नाम माँ का, बाज़ार में ना बेच.
ऐसा ना हो कोई माँ, जग में मिले ना मिले.
चलना अगर गुनाह है, अपने उसूल पर
जवाब देंहटाएंसारी उमर सज़ाओं का ही, सिल सिला चले
वाह श्रधा जी वाह...बहुत दिनों बाद आप को पढने का मौका मिला लेकिन आप की इस ग़ज़ल को पढ़कर सारे शिकवे गिले भूल गए...आप को पढ़ना एक सुखद अनुभव है...आप के पास शब्द और भाव का न चुकने वाला खजाना जो है...बेहतरीन ग़ज़ल...बधाई.
नीरज
श्रद्धा जी बहुत ही खूबसूरत ख्यालों का मुजाहरा किया है आपने अपनी इस गजल की मार्फ़त... बधाई..
जवाब देंहटाएंश्रद्धा जी !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल पढ़वाई आपने ।सभी अश आर खूबसूरत हैं ।
अगली रचना की प्रतीक्षा रहेगी ।
सस्नेह
प्रवीण पंडित
चलना अगर गुनाह है, अपने उसूल पर
जवाब देंहटाएंसारी उमर सज़ाओं का ही, सिल सिला चले।
सुंदर ग़ज़ल । नववर्ष की शुभकामनाएं।
श्रद्धा जी,
जवाब देंहटाएंआपकी यह गज़ल याद रह जाने वाली है। सुगठित है और संशोधन के बाद और भी निखर कर आयी है।
***राजीव रंजन प्रसाद
शुभान-अल्लाह!
जवाब देंहटाएंदीदी आपने तो कमाल हीं कर दिया। बेहतरीन गज़ल।
एक-एक शेर कमाल का है और खासकर शेर का मतला तो लाजवाब है।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक
shraddha ji ,
जवाब देंहटाएंye aapki behtareen gazalon mein se ek hai ..
hjar sher sada hua aur jabardasht bhaavnao se bhara hua..
bus kya kahun...behatreen ...umda
bahut bahut badhai ..
aapka
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
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