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कितना है दम चराग़ में [ग़ज़ल] - श्रद्धा जैन


कितना है दम चराग़ में, तब ही पता चले
फानूस की न आस हो, उस पर हवा चले

फानूस = काँच का कवर

लेता हैं इम्तिहान गर, तो सब्र दे मुझे
कब तक किसी के साथ, कोई रहनुमा चले

नफ़रत की आँधियाँ कभी, बदले की आग में
अब कौन लेके झंडा –ए- अमनो-वफ़ा चले

चलना अगर गुनाह है, अपने उसूल पर
सारी उमर सज़ाओं का ही, सिल सिला चले

खंज़र लिए खड़े हो गर हाथों में दोस्त ही
"श्रद्धा" बताओ तुम वहाँ, फ़िर क्या दुआ चले

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24 टिप्पणियाँ

  1. कितना है दम चराग़ में, तब ही पता चले
    फानूस की न आस हो, उस पर हवा चले

    चलना अगर गुनाह है, अपने उसूल पर
    सारी उमर सज़ाओं का ही, सिल सिला चले

    वाह श्रद्धा जी।

    जवाब देंहटाएं
  2. कितना है दम चराग़ में, तब ही पता चले
    फानूस की न आस हो, उस पर हवा चले

    चलना अगर गुनाह है, अपने उसूल पर
    सारी उमर सज़ाओं का ही, सिल सिला चले

    वाह श्रद्धा जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. रचना तो अच्छी है | लेकिन कुछ दमदार की आशा करता हूँ |

    -- अवनीश तिवारी

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीया श्रद्धा जी

    बहुत अच्छी गजल के लिये बधाई
    काबिलेतारीफ पंक्तियाँ -------
    खंज़र लिए खड़े हो गर हाथों में दोस्त ही
    "श्रद्धा" बताओ तुम वहाँ, फ़िर क्या दुआ चले

    -विजय

    जवाब देंहटाएं
  5. श्रधा जी नमस्कार,
    ये ग़ज़ल बहोत ही खुबसूरत है बहोत ही उम्दा ,ये ग़ज़ल मैंने पहले भी आपके ब्लॉग पे पढ़ी थी बहोत ही शानदार है ये ग़ज़ल ...ढेरो बधाई कुबूल करें....

    आभार.
    अर्श

    जवाब देंहटाएं
  6. SHRADHA JEE,AAPNE-MAFOOL FAILAAT
    MFAEEL FAILUN YANI 221 21 21 122
    12 12 MEIN ACHCHHEE GAZAL KAHEE
    HAI.LEKIN "GAR"SHABD DO MISRON KO
    BEVAZN KAR RAHAA HAI.GAR MEIN DO
    MAATRAAYEN HAIN,LEKIN YAHAN EK
    MAATRAA KA KOEE SHABD CHAAHIYE.
    ASHA HAI KI AAP MEREE IS ISLAH KO
    BURAA NAHIN MAANEGEE.

    जवाब देंहटाएं
  7. आपकी ग़ज़ल पढ़कर दुष्‍यंत की याद आ गई, बधाई बेहतरीन ग़ज़ल के लिए

    जवाब देंहटाएं
  8. कितना है दम चराग़ में, तब ही पता चले
    फ़ानूस की न आस हो, उस पर हवा चले

    बहुत ख़ूब श्रद्धा जी,
    बेहतरीन अन्दाज़ की ग़ज़ल कही आपने.

    अब कौन लेके झंडा –ए- अमनो-वफ़ा चले

    को ऐसा कह के भी देखें ज़रा -

    अब कौन लेके परचमे-अमनो-वफ़ा चले

    शुभकामनाओं सहित

    जवाब देंहटाएं
  9. उमदा तेवरों की ग़ज़ल है। बधाई श्रद्धा जी।

    नफ़रत की आँधियाँ कभी, बदले की आग में
    अब कौन लेके झंडा –ए- अमनो-वफ़ा चले

    जवाब देंहटाएं
  10. हर शेर पसंद आया। बहुत अच्छी ग़ज़ल है।

    जवाब देंहटाएं
  11. नफ़रत की आँधियाँ कभी, बदले की आग में
    अब कौन लेके झंडा –ए- अमनो-वफ़ा चले

    वाह बेहतरीन ग़ज़ल,बधाई

    जवाब देंहटाएं
  12. श्रद्धा जी की ग़ज़लें की खासियत ये है की वो आत्मकेंद्रित होकर ग़ज़लें नहीं लिखती ,उनकी कविता सबकी कविता है ,जो उन्हें सबसे अलग करती है |इस ग़ज़ल में भी ये चीज बखूबी महसूस होती है |बधाई

    जवाब देंहटाएं
  13. Namskaar pran ji,
    Aapke kahe anusaar gazal ko badalne ki koshish ki hai

    कितना है दम चराग़ में तब ही पता चले
    फानूस की न आस हो , उस पर हवा चले

    लेना है इम्तिहान अगर सब्र दे मुझे
    कब तक किसी के साथ कोई रहनुमा चले

    नफ़रत की आँधियाँ कभी, बदले की आग है
    अब कौन लेके झंडा –ए- अमनो-वफ़ा चले

    चलना अगर गुनाह है , अपने उसूल पर
    सारी उमर सज़ाओं का ही सिल सिला चले

    खंजर लिये खड़ें हों अगर मीत हाथ में
    “श्रद्धा” बताओ तुम वहाँ फ़िर क्या दुआ चले

    Kripya dekh kar batayiyega
    aur bhi koi sudhaar ho to zarur bataye
    abhi seekh rahi hoon aur galtiyon se hi seekh sakungi

    Saadar abhaar
    Shrddha

    जवाब देंहटाएं
  14. Shradha jee,mujhe vishvaas nahin
    thaa ki aap do ashaar ko itnee
    jald durust kar lengee.Shayree par
    yani urdu bahron par aapkee pakad
    lajawaab hai.Dil bahut khush hua
    hai.Aap shayree ko chaar chaand
    lagaae.Shubh kamnaaon ke saath.

    जवाब देंहटाएं
  15. वाह...वाह...वाह...वाह

    बहुत बढिया....लिखते रहें...जमे रहें

    जवाब देंहटाएं
  16. चलते चलें हम साथ में, इशारा जरा मिले
    चरागों का क्या बात है. माचिस भी ना मिले.

    शब्दों की सजावट यदि, दे दे कवि का मान.
    साधक को सौ-सौ जूतों की, सौगात नित मिले.

    श्रद्धा है नाम माँ का, बाज़ार में ना बेच.
    ऐसा ना हो कोई माँ, जग में मिले ना मिले.

    जवाब देंहटाएं
  17. चलना अगर गुनाह है, अपने उसूल पर
    सारी उमर सज़ाओं का ही, सिल सिला चले
    वाह श्रधा जी वाह...बहुत दिनों बाद आप को पढने का मौका मिला लेकिन आप की इस ग़ज़ल को पढ़कर सारे शिकवे गिले भूल गए...आप को पढ़ना एक सुखद अनुभव है...आप के पास शब्द और भाव का न चुकने वाला खजाना जो है...बेहतरीन ग़ज़ल...बधाई.
    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  18. श्रद्धा जी बहुत ही खूबसूरत ख्यालों का मुजाहरा किया है आपने अपनी इस गजल की मार्फ़त... बधाई..

    जवाब देंहटाएं
  19. श्रद्धा जी !
    बेहतरीन ग़ज़ल पढ़वाई आपने ।सभी अश आर खूबसूरत हैं ।
    अगली रचना की प्रतीक्षा रहेगी ।

    सस्नेह
    प्रवीण पंडित

    जवाब देंहटाएं
  20. चलना अगर गुनाह है, अपने उसूल पर
    सारी उमर सज़ाओं का ही, सिल सिला चले।

    सुंदर ग़ज़ल । नववर्ष की शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  21. श्रद्धा जी,

    आपकी यह गज़ल याद रह जाने वाली है। सुगठित है और संशोधन के बाद और भी निखर कर आयी है।

    ***राजीव रंजन प्रसाद

    जवाब देंहटाएं
  22. शुभान-अल्लाह!

    दीदी आपने तो कमाल हीं कर दिया। बेहतरीन गज़ल।
    एक-एक शेर कमाल का है और खासकर शेर का मतला तो लाजवाब है।

    बधाई स्वीकारें।

    -विश्व दीपक

    जवाब देंहटाएं
  23. shraddha ji ,

    ye aapki behtareen gazalon mein se ek hai ..
    hjar sher sada hua aur jabardasht bhaavnao se bhara hua..

    bus kya kahun...behatreen ...umda

    bahut bahut badhai ..

    aapka
    vijay
    http://poemsofvijay.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं

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