
चमचागिरी बहुत श्रमसाध्य कार्य है, यह बात सभी जानते हैं। बास के घर की सब्जी लाने के लिए बहुत शर्मप्रूफ होना पड़ता है। ऐसे कईयों को मैं जानता हूं जो अपने घर की सब्जी कभी नहीं लाये, पर बास के घर की सब्जी बरसात में भी छाता लगाकर लेने जाते हैं। होता है।
पर ऐसे सब्जीलाऊ चमचों पर बहुत भारी गुजर रही है।
टमाटर के भाव जहां पहुंच गये हैं, उतना इन्क्रीमेंट हर महीने सेलरी में लगता रहे, तो कोई भी चमचा बहुत जल्दी सेनसेक्स की ऊंचाइयों पर पहुंच सकता है। एक चमचे ने बताया-बास के लिए टमाटर लाने हैं, अपनी सिगरेट में कटौती करनी पड़ रही है।....। आइडिया, पति की सिगरेट छुड़ाने की इच्छुक पत्नियों, पति को बास की टमाटरयुक्त चमचागिरी के लिए प्रेरित कीजिये। सिगरेट छूट जायेगी।
ये सब्जी वाली चमचागिरी बहुत डेंजरस है। टमाटर प्याज आलू कब कहां पहुंच जायें, कब खेल खराब कर दें। मैंने कहा एक सीनियर चमचे से कि छोड़ो सब्जी का चक्कर और कोई टाइप की चमचागिरी करो।
उसने बताया- शेयरवाली चमचेगिरी की थी। मैंने बास को बताना शुरु किया कि फलां शेयर खऱीद लो, ऊपर जायेगा। पर वह नीचे चला गया। पेंच हो गया। इनफोसिस के शेयर को ऊपर जाना चाहिए था, नहीं गया। टमाटर के भाव ऊपर चले गये।...। होता है, यह भी होता है। जिसे जब ऊपर जाना चाहिए, नहीं जाता। पड़ोस का बंटी अपने पूज्य पिताजी के बारे में भी यही कहता है।खैर भावों पर आधारित चमचागिरी टेंशनात्मक होती है। सबसे अच्छी चमचागिरी होती है वास्तु के आधार पर। बास के घर में जाकर बता दो ईशान कोण में चेंज कर दो। सूर्योदय को यहां से नहीं वहां से करवा दो। वास्तु पुरुष के पैरों से बैडरुम हटा दो। इसके रिजल्ट बारह साल बाद आयेंगे।
वास्तुआधारित चमचागिरी में बारह साल तक तो राहत रहती है। और बारह साल किसने देखे, अगर आप वाकई स्मार्ट चमचे हैं, तो बारह साल में आप ही बास के बास हो जायेंगे।
खैर बात तो भावों की हो रही थी। दिल्ली में सरकार ने टमाटर बेचे। अच्छी बात है। बल्कि सारी सरकारों को टमाटर ही बेचने चाहिए। नेता-अफसर लोग अगर सिर्फ टमाटर-प्याज बेचने में लगे रहें, तो फिर उन पर देश बेचने के आरोप लगना बंद हो जायेंगे। कई जगह विपक्षी दलों ने टमाटर खरीदने के लिए कर्ज दिये।
बैंकों को इस बात से आइडिये लेने चाहिए। इधर हर मोबाइल धारी के पास दिन में दो-चार काल किसी बैंक से यह पूछते हुए आ जाते हैं-आपका कोई रिक्वायरमेंट है लोन का।
फिर फोन आया है अमेरिकन बैंक का लोन ले लीजिये। चलूं एकाध लाख का लोन लेकर कुछ उड़द की दाल ले लूं। अगली तेजी में बेचकर इतना तो बचा लूंगा कि उड़द की दाल खाने की हैसियत पैदा कर लूं।
7 टिप्पणियाँ
बहुत ही बढिया...ज़बरदस्त....मँहगाई को निशाना बनाता हुआ आपका ये व्यंग्य बहुत पसन्द आया
जवाब देंहटाएंwah alok ji , bahut badhia,daal bane to batana.
जवाब देंहटाएंजबरदस्त चमचापुराण है आलोक जी। बधाई स्वीकारें इस पैने व्यंग्य के लिये।
जवाब देंहटाएं***राजीव रंजन प्रसाद
जबरदस्त चमचापुराण ... बढिया.
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छे और मधूर लेख प्रस्तुत करते हैं आप, दिल की गहराई से बहुत बहुत धन्यवाद। खूब लिखें और लिखते रहें, हमारी शुभकामनायें आपके साथ हैं, और हम ईश्वर से आपकी सफलता के लिए प्रार्थना करते है।
जवाब देंहटाएंपुराण आलोक
जवाब देंहटाएंव्यंग्य आलोक
बन गया है :-)
इतने मास्टर मांईडिड धांसू आईडिय फ़्री में मत सुझाईये सबको.. बल्की ट्रेड कीजिये और रातों रात अमीर बन जाईये :)
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.