
उग आए हैं इस बार....
राजनीति की आँधी,
और आतंक की बेमौसम
'मुंबई बरसात' से
होती हैं जड़ें बहुत गहरी
सुना है पाताल तक ...
धरती के फूल की
कंक्रीट के जंगल में
पांचसितारा संस्कृति में
परोसे जाने वाले व्यंजन ने
फैला दी है अपनी
खेत खलिहान ...
विलोपित जंगलों से लाई
खालिश देशज उर्जा
..और माटी की गंध सड़कों पर
धरती के फूल ......
यानी कुकुरमुत्ते की जाति...
उगते हैं उसी जगह
जहाँ करते हैं बहुधा 'कुत्ते'
टांग उठाने की राजनीति
गाँव की 'विलुप्त-बिजली के खम्भे' पर
प्रधान जी के 'स्कूलनुमा-बारातघर' में
अथवा 'भीड़तंत्री-गाड़ी' के
'अन्तुलाते' पहिये पर
वोटबैंक की तुच्छ बीमारी से लाचार.. ..
सत्तालोलुपता से दंशित राष्ट्र
पी सकेगा क्या ...?
इसबार ......
राष्ट्रीय स्वाभिमान का
उर्जावान पंचसितारा सूप
मिट्टी से पैदा धरती के फूल का
राष्ट्रीय स्वाभिमान का
उर्जावान पंचसितारा सूप
मिट्टी से पैदा धरती के फूल का
20 टिप्पणियाँ
सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएं---मेरा पृष्ठ
गुलाबी कोंपलें
---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम
गहरी सोच और चिंता को दर्शाती कविता.
जवाब देंहटाएंसामायिक है.और तीखे व्यंग्य का सहारा भी कविता को अर्थपूर्ण बना रहा है.
वर्तमान राजनीती स्थिति पर एक तमाचा ही है.
बधाई.
धरती के फूल ......
जवाब देंहटाएंयानी कुकुरमुत्ते की जाति...
उगते हैं उसी जगह
जहाँ करते हैं बहुधा 'कुत्ते'
टांग उठाने की राजनीति
गाँव की 'विलुप्त-बिजली के खम्भे' पर
प्रधान जी के 'स्कूलनुमा-बारातघर' में
अथवा 'भीड़तंत्री-गाड़ी' के
'अन्तुलाते' पहिये पर
वोटबैंक की तुच्छ बीमारी से लाचार.. ..
सत्तालोलुपता से दंशित राष्ट्र
पी सकेगा क्या ...?इसबार ......
राष्ट्रीय स्वाभिमान का
उर्जावान पंचसितारा सूप
मिट्टी से पैदा धरती के फूल का
वाह! प्रभावशाली तरीके से कवि नें बात कही है।
ACHCHHEE KAVITA HAI.MEREE DAAD
जवाब देंहटाएंKABOOL KIJIYE,SHREEKANT JEE.
धरती के फूल ......
जवाब देंहटाएंयानी कुकुरमुत्ते की जाति...
उगते हैं उसी जगह
जहाँ करते हैं बहुधा 'कुत्ते'
टांग उठाने की राजनीति
गाँव की 'विलुप्त-बिजली के खम्भे' पर
प्रधान जी के 'स्कूलनुमा-बारातघर' में
अथवा 'भीड़तंत्री-गाड़ी' के
'अन्तुलाते' पहिये पर
वोटबैंक की तुच्छ बीमारी से लाचार.. ..
सत्तालोलुपता से दंशित राष्ट्र
पी सकेगा क्या ...?
इसबार ......
राष्ट्रीय स्वाभिमान का
उर्जावान पंचसितारा सूप
मिट्टी से पैदा धरती के फूल का
वाह .बहुत सुंदर प्रतीक लिए hain
अथवा 'भीड़तंत्री-गाड़ी' के
जवाब देंहटाएं'अन्तुलाते' पहिये पर
वोटबैंक की तुच्छ बीमारी से लाचार.. ..
सत्तालोलुपता से दंशित राष्ट्र
पी सकेगा क्या ...?इसबार .....
कथन भी और प्रयोग भी, दोनो दृष्टि से कविता अच्छी है।
bahut ghari soch aur chinta ko darshati hui kavita
जवाब देंहटाएंaaj ke samay ko sajeev karti kaviata
bahut hi achhe shabdon ka chayan kiya hai
bahut prabhavshali kavita rahi
क्या बात कही है श्रीकांत जी! बहुत बढ़िया रचना है बधाई स्वीकार करे
जवाब देंहटाएंज्योति
बहुत बढ़िया आजकल की राजनीती की सही व्याख्या है
जवाब देंहटाएंअमिता
श्रीकांत जी
जवाब देंहटाएंइसबार ......
राष्ट्रीय स्वाभिमान का
उर्जावान पंचसितारा सूप
मिट्टी से पैदा धरती के फूल.....
इन पंन्क्तियो में अच्छा व्यग्य है तथा आजकल की परिस्थति छलकती है
भावानुकूल शब्द-चयन और सुंदर प्रतीकों के साथ अर्थपूर्ण कविता है। बधाई।
जवाब देंहटाएंश्रीकान्त जी
जवाब देंहटाएंजहाँ करते हैं बहुधा 'कुत्ते'
टांग उठाने की राजनीति
गाँव की 'विलुप्त-बिजली के खम्भे' पर
प्रधान जी के 'स्कूलनुमा-बारातघर' में
अथवा 'भीड़तंत्री-गाड़ी' के
'अन्तुलाते' पहिये पर
वाह क्या व्यंग्य है ...... फिर भी क्या इस राष्ट्र में किसी के कानो में जू तक रेंगेगी ?
मेरी ओर से आगे की रचनाओ के लिए शुभकामनाएं !
..
जवाब देंहटाएंजहाँ करते हैं बहुधा 'कुत्ते'
टांग उठाने की राजनीति
गाँव की 'विलुप्त-बिजली के खम्भे' पर
प्रधान जी के 'स्कूलनुमा-बारातघर' में
अथवा 'भीड़तंत्री-गाड़ी' के
'अन्तुलाते' पहिये पर
वाह बहुत सुंदर ..........बधाई !!
बहुत बढ़िया रचना है श्रीकांत जी ऐसे ही लिखते रहिये !
जवाब देंहटाएंश्रीकांत जी
जवाब देंहटाएंअर्थपूरण भावभीनी रचना के लिए बधाई
बहुत अच्छी कविता है
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकार करें
अर्थपूर्ण कविता....
जवाब देंहटाएंजहाँ करते हैं बहुधा 'कुत्ते'
जवाब देंहटाएंटांग उठाने की राजनीति
गाँव की 'विलुप्त-बिजली के खम्भे' पर
प्रधान जी के 'स्कूलनुमा-बारातघर' में
अथवा 'भीड़तंत्री-गाड़ी' के
'अन्तुलाते' पहिये पर
सामयिक व्यंग्य....
बहुत अच्छी कविता है। बधाई।
जवाब देंहटाएंshrikaant ji ,
जवाब देंहटाएंbahut sundar aur maujuda haalat ko darshati hui kavita
aapko badhai
vijay
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.