
प्रिय सुभाष !
आज तुम्हारा जन्म दिन है। भारत की आँखों के तारे का जन्म दिन। तुम यहाँ नहीं हो ,पर जाने क्यों आज तुमसे बहुत सी बातें करने का दिल कर रहा है। २३ जनवरी आते ही तुम और तुम्हारा जीवन आँखों के समक्ष आजाता है। भारत की तरूणाई में तुम्हें खोजने लगती हूँ, किन्तु कहीं भी वो त्याग,बलिदान और राष्ट्र प्रेम दिखाई नहीं देता। जिस भारत को स्वाधीन कराने के लिए तुमने अपना सारा जीवन होम कर दिया, वही भारत आज पुनः कमजोरियों का शिकार हो चुका है। भारत में जो कमियाँ उस समय थीं, वो ही आज पुनः आ गई हैं। मुझे याद आ रहा है तुम्हारा वो कथन- लोग जड़ हो गए हैं जड़। बुद्ध, रामकृष्ण, विवेकानन्द, कोई आ जाए,इन लोगों को चेतन नहीं कर सकते।
जिस अंग्रेजी शिक्षा को तुम निषेधात्मक कहते थे, आज उसी का बोलबाला है। राष्ट्रीयता का स्तर गिर रहा है, राष्ट भाषा तथा मातृ भाषा की उपेक्षा हो रही है तथा अंग्रेजी भाषा की गुलामी बढ़ती जा रही है। ग्यान भीतर से नहीं बाहर से लादा जा रहा है। ऐसे वातावरण में क्या उम्मीद की जा सकती है? अपनी जिस प्रवृति के कारण अंग्रेजों की ठोकरें खाई थीं, वो फिर बढ़ रही है। तुमने अंग्रेजों का विरोध तो किया पर साथ ही उनकी कुछ विशेषताओं को भी बताया था- ये घड़ी की भाँति निश्चित समय के अनुसार कार्य करते हैं। इनका दूसरा गुण आशावाद है।हम लोग जीवन के दुखों के बारे में सोचते हैं और ये लोग सुख-सुविधाओं के बारे में। इनकी सामान्य बुद्धि बड़ी कुशाग्र है।
तुम सदा ही अन्याय के खिलाफ़ लड़े। देश हो या विदेश तुमने कभी भी अन्याय नहीं सहा। इसके लिए बड़ी से बड़ी कीमत अदा की, किन्तु आज स्वाधीन भारत में लोग समझौता वादी हो गए हैं।अपने निहित स्वार्थों के लिए वे सब कुछ सहते हैं। शर्म आती है उन्हें देश को छोड़ विदेश की सेवा करते देख। जिस देश के स्वाभिमान की रक्षा के लिए तुमने आई सी एस का पद त्याग दिया, उसी देश का अभिमान उनकी नज़रों में कुछ नहीं रह गया है। वे देश और धन में धन को प्राथमिकता देते हैं।
तुम्हारे भीतर देश प्रेम की जो सलिला प्रवाहित होती थी,उसके समक्ष सांसारिक सुख कुछ भी नहीं थे। सारे विश्व को चकित करते हुए तुमने आई सी एस के उच्च पद से त्याग पत्र दे दिया। तुम्हें बताया गया- तुम लाखों भारतीयों के सरताज़ बनोगे,हज़ारों हज़ार भारतवासी तुम्हें नमन करेंगें। तब तुमने कहा था- मैं लोगों पर नहीं उनके दिलों पर राज करना चाहता हूँ, उनका हृदय सम्राट बनना चाहता हूँ।
तुमने स्वाध्याय को सदा प्राथमिकता दी। धर्म,दर्शन और इतिहास का गहन अध्ययन किया,किन्तु आज अध्ययन शीलता का सर्वथा अभाव है। तुमने भारतीयों को समझाया था- अंग्रेजों की शक्ति के पीछे उनका कठोर अनुशासन और राष्ट के प्रति प्रेम है। वे अपनी जाति का गौरव बनाए रखना चाहते हैं। मैं चाहती हूँ कि तुम्हारा ये संदेश आज भी हर भारतीय को मिले। कठोर अनुशासन का ये भी पालन करें तथा देश को प्राथमिकता दें। देश की सेवा करने के इच्छुक लोगों को देश भर में घूम-घूम कर देश के नागरिकों कादेशवासियों की कमजोरियों को समझकर उन्हें दूर करना चाहिए।
तुमने देश में घूम-घूम कर निष्कर्ष निकाला था- हमारी सामाजिक स्थिति बद्तर है, जाति-पाति तो है ही, गरीब और अमीर की खाई भी समाज को बाँटे हुए है। इतने वर्षों बाद भी यहाँ कुछ नहीं बदला। समाज की आज भी वही दशा है। धर्म और जाति के नाम पर आज भी झगड़े होते हैं और शायद अधिक विकृत रूप में। राज्यों का क्षेत्र वार विकास नहीं है। योजनाओं का कार्यान्वयन नहीं होता, किन्तु किसी का ध्यान इस ओर नहीं जाता। सब सरकार की निन्दा तो करते हैं, किन्तु इन्हें दूर करने के प्रयास नहीं करते।
२३ वर्ष के तुम विदेश से पूर्ण भारतीय बनकर आए थे, किन्तु आज भारत में रहने वाला नवयुवक भी विदेशी बनकर रहता है। भारत और भारतीय मूल्य कहीं दिखाई नहीं देते। निरक्षरता आज भी देश के लिए अभिशाप है। देश में साधु-सन्तों की बाढ़ आई हुई है, किन्तु देश सेवा को आध्यात्मिकता का अंग मानने वाले देश बन्धु एक भी नहीं। तुम्हारी असीम मेधा, तुम्हारे श्रम करने की ताकत आज भी अपेक्षित है।
तुम अपने बुद्धिबल से ग्यान की गंगा बहाते रहे। छल-छद्म से दूर दबंग, विवेकशील, निर्भीक, सत्य पथ अनुगामी, भारतीय संस्कृति के पुजारी तथा जन-जन के हृदय का हार थे। तुमने माँडले जेल की विपरीत परिस्थितियों में कभी धैर्य नहीं खोया और कहा- बिना त्याग के हम किन्हीं स्थाई मूल्यों को प्राप्त नहीं कर सकते। मैं चाहती हूँ कि भारत की तरूणाई में यही भावना जगे ,तुम्हारा चरित्र देश के हर युवा में उतारना चाहती हूँ। अरविन्द के शब्दों में- तुम श्रम करो जिससे मातृ भूमि सबल बनें, समृद्धशाली बने। तुम कष्ट सहो, जिससे मातृभूमि सुखी रहे।
यह सन्देश भारत के हर युवा के लिए है। तुम्हारे जन्म दिन पर यदि एक भी युवक को सुभाष बना सकी तो तुम्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी। जय हिन्द,जय भारत।
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9 टिप्पणियाँ
बहुत गहरी बातें लिखी हैं आपनें। काश आज सुभाष होते।
जवाब देंहटाएंअच्छी भावना से लिखा गया पत्र है।
जवाब देंहटाएंबहुत दिल से लिखा है, बधाई.
जवाब देंहटाएंसुभाष जी को उनके जन्मदिन पर नमन......
जवाब देंहटाएंशोभा जी को दिल से लिखे गए लेख के लिए ढेरों-ढेर बधाई
shobha ji
जवाब देंहटाएंek sacchi shradanjali .. antim panktyiyaan, sochne par vivasha karti hai ..
vijay
सुभाष जी को गहरे भावपूर्ण शब्दों के साथ प्रस्तुतिकरन
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकारिया
Shobha ji aapki baaten padh kar man bhaavvihval ho gaya
जवाब देंहटाएंbhaut man se likha gaya hai ye patra
सुभाष जी को नमन......और आपको बधाई
जवाब देंहटाएंसुभाष जी को नमन......और आपको बधाई
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.