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दुःख-दर्द सुनाने कभी घर-घर नहीं जाते [ग़ज़ल] - प्राण शर्मा

आंखों में कभी अश्कों को भर कर नहीं जाते
दुःख-दर्द सुनाने कभी घर-घर नहीं जाते

लेकर कोई हथिआर या पत्थर नहीं जाते
लड़ने के लिए दूसरों के घर नहीं जाते

हैं और भी गलियां कई जाने के लिए दोस्त
दुश्मन की गली से कभी हो कर नहीं जाते

जाओ वहां पर जिस जगह दिल चाहें तुम्हारे
नफरत के मगर दोस्तों दफ्तर नहीं जाते

इतना नही अच्छा तेरा ये डर मेरे साथी
सर ओखली में देने से तो मर नहीं जाते

ऐ दोस्त, ज़रा बैठके औरों की भी तू सुन
गुस्से में सभा से कभी उठ कर नहीं जाते

ऐ दोस्त,मिटाने की तू कौशिश नहीं करना
हर मून से खुदे प्यार के अक्षर नहीं जाते

ऐ बादलो ,बरसो कभी हर और ही खुलकर
सूखे हुए तालाब यूँ ही भर नहीं जाते

औरों की तरह "प्राण" भले ही करो कौशिश
गंगा में नहाने से सभी तर नहीं जाते

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22 टिप्पणियाँ

  1. आदरणीय प्राण साहब नमस्कार ,
    मेरे जैसा अदना क्या आपकी तारीफ करे मगर ये क्या करे के कुछ न करे... बेहद उम्दा लिखा है आपने साहब बहोत ही शानदार....ढेरो बधाई कुबूल करें...


    आभार
    अर्श

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  2. बहुत अच्छी ग़ज़ल। बहुत बधाई प्राण जी।

    इतना नही अच्छा तेरा ये डर मेरे साथी
    सर ओखली में देने से तो मर नहीं जाते

    जवाब देंहटाएं
  3. नसीहतों भरी ग़ज़ल है। जैसे दोहे होते थे जिनमें संदेश संन्निहित होते थे। बहुत अच्छा लगा इसे पढना।

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीय प्राण सर,

    ग़ज़ल पर आपके आलेख पढ कर इस विधा पर मेरी आजमाईश जारी है, आपकी ग़ज़ल पढना भी एक अनुभव ही है। सर शेर गहरा है, गंभार है और आत्मसात करने जैसा है।

    ***राजीव रंजन प्रसाद

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत अच्छी रचना है जनाब बधाई

    ऐ बादलो ,बरसो कभी हर और ही खुलकर
    सूखे हुए तालाब यूँ ही भर नहीं जाते

    जवाब देंहटाएं
  6. pran saheb,

    aap ustaad ho , guru ho , aapki tareef ,yaani ki suraj ko diya dikhana ...

    आंखों में कभी अश्कों को भर कर नहीं जाते
    दुःख-दर्द सुनाने कभी घर-घर नहीं जाते

    wha wah ji ..


    bus kya kahun...behatreen ...umda

    bahut bahut badhai ..

    aapka
    vijay
    http://poemsofvijay.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  7. जाओ वहां पर जिस जगह दिल चाहें तुम्हारे
    नफरत के मगर दोस्तों दफ्तर नहीं जाते

    इतना नही अच्छा तेरा ये डर मेरे साथी
    सर ओखली में देने से तो मर नहीं जाते

    ऐ दोस्त, ज़रा बैठके औरों की भी तू सुन
    गुस्से में सभा से कभी उठ कर नहीं जाते
    वाह बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है. अति सुंदर.

    जवाब देंहटाएं
  8. Namaskaar Pran ji,
    khoobsoorat ghazal ke liye dhanyvaad.
    आंखों में कभी अश्कों को भर कर नहीं जाते
    दुःख-दर्द सुनाने कभी घर-घर नहीं जाते

    जवाब देंहटाएं
  9. Pran ji
    Charan sparsh,
    Aapki gazal ki tarif karna suraj ko diya dikhane jaisa hai

    ye aash'r bahut man bhaye

    इतना नही अच्छा तेरा ये डर मेरे साथी
    सर ओखली में देने से तो मर नहीं जाते

    shrddha

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत साफगोई से अपनी बातेँ गज़लोँ मेँ सुनाना आप का ही हुनर है प्राण जी
    - लावण्या

    जवाब देंहटाएं
  11. आपके लेख को पढ़ने के बाद इस ग़ज़ल का और भी लुत्फ़ बढ़ गया है। पहले लेख को पढ़ें और फिर इस ग़ज़ल को, तो बहर सीखने में भी सहायता मिलती है। बस, इसी तरह काव्यानंद की वर्षा करते रहें और हम सब इसी प्रकार आनंद विभोर होते रहें।
    धन्य है आप।

    जवाब देंहटाएं
  12. लेकर कोई हथिआर या पत्थर नहीं जाते
    लड़ने के लिए दूसरों के घर नहीं जाते

    इतना नही अच्छा तेरा ये डर मेरे साथी
    सर ओखली में देने से तो मर नहीं जाते

    ऐ बादलो ,बरसो कभी हर और ही खुलकर
    सूखे हुए तालाब यूँ ही भर नहीं जाते

    वाह वाह। धन्यवाद प्राण साहब।

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत अच्छी ग़ज़ल है, संजीदा बातों को समेटे हुए।

    जवाब देंहटाएं
  14. खूबसूरत ख्यालात का मुजाहरा करती हुई गजल..

    इतना नही अच्छा तेरा ये डर मेरे साथी
    सर ओखली में देने से तो मर नहीं जाते

    ऐ दोस्त,मिटाने की तू कौशिश नहीं करना
    हर मन से खुदे प्यार के अक्षर नहीं जाते

    औरों की तरह "प्राण" भले ही करो कौशिश
    गंगा में नहाने से सभी तर नहीं जाते

    जवाब देंहटाएं
  15. आदरणीय प्राण साहब,

    आपके इन नक़्शे-पा पर, सब क्यूं कर, नहीं जाते
    जो चल पड़ते तो क्या अभी तक,पार तर, नहीं जाते

    आपकी ये ग़ज़ल, कितना ख़ूबसूरत सन्देश, कितने सादेपन से दे रही है. ये बस आप ही के बस की बात है सर. इससे नए लोगों प्रेरणा लेकर अपनी रचनाओं को संवारना, सजाना और प्रस्तुत करना चाहिए. आपका आशीर्वाद बना रहे हम पर, इसी दुआ के साथ.

    जवाब देंहटाएं
  16. अच्छी सीख और प्रेरणा देती गज़ल...

    जवाब देंहटाएं
  17. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  18. प्राण जी की गज़ल देखी।गज़ल की तो उन्हें महारत है ही, मेरा उस पर कुछ कहना शोभा नहीं देता। भाव और व्यंजना के स्तर पर जीवन पर पकड़ को व्यक्त करती है यह रचना और अनुभवजन्यता भी स्पष्ट दिखाई देती है। उन्हें बधाई!

    मेरे ख्याल से इसमें कुछ टायपिंग की कुछ चूकें रह गई हैं,चन्द्रबिन्दु व अनुस्वार का तो कई जगह प्रयोग गड़बड़ाया हुआ है।

    १)
    मेरे खयाल से ‘मून’ जहाँ छपा है वहाँ ‘मन’ होना चाहिए था. बहर भी टूट रही है ‘मून’ की एक मात्रा बढ़ जाने से। साथ ही मून कोई सार्थक अभिव्यक्ति नहीं दे रहा।

    २)
    ‘कौशिश’ की जगह ‘कोशिश’ कर दें यह चूक २ जगह रह गई है।

    ३)
    ऐ बादलो,बरसो कभी हर और ही खुलकर ... में ‘और’ (and) की जगह‘ओर’ (तरफ़) आएगा

    ४)
    ’हथिआर’ की जगह हथियार होगा।

    जवाब देंहटाएं
  19. हुज़ूर ,आपकी ग़ज़ल पर वाह यूं तो छोटा सा लफ़्ज़ है लेकिन है दिल से ।

    स्वीकार करें।

    प्रवीण पंडित

    जवाब देंहटाएं
  20. आंखों में कभी अश्कों को भर कर नहीं जाते
    दुःख-दर्द सुनाने कभी घर-घर नहीं जाते
    लेकिन आपको पढने के लिए हम कहीं भी जा सकते हैं
    आभार

    जवाब देंहटाएं

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