
दुःख-दर्द सुनाने कभी घर-घर नहीं जाते
लेकर कोई हथिआर या पत्थर नहीं जाते
लड़ने के लिए दूसरों के घर नहीं जाते
हैं और भी गलियां कई जाने के लिए दोस्त
दुश्मन की गली से कभी हो कर नहीं जाते
जाओ वहां पर जिस जगह दिल चाहें तुम्हारे
नफरत के मगर दोस्तों दफ्तर नहीं जाते
इतना नही अच्छा तेरा ये डर मेरे साथी
सर ओखली में देने से तो मर नहीं जाते
ऐ दोस्त, ज़रा बैठके औरों की भी तू सुन
गुस्से में सभा से कभी उठ कर नहीं जाते
ऐ दोस्त,मिटाने की तू कौशिश नहीं करना
हर मून से खुदे प्यार के अक्षर नहीं जाते
ऐ बादलो ,बरसो कभी हर और ही खुलकर
सूखे हुए तालाब यूँ ही भर नहीं जाते
औरों की तरह "प्राण" भले ही करो कौशिश
गंगा में नहाने से सभी तर नहीं जाते
22 टिप्पणियाँ
आदरणीय प्राण साहब नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंमेरे जैसा अदना क्या आपकी तारीफ करे मगर ये क्या करे के कुछ न करे... बेहद उम्दा लिखा है आपने साहब बहोत ही शानदार....ढेरो बधाई कुबूल करें...
आभार
अर्श
बहुत अच्छी ग़ज़ल। बहुत बधाई प्राण जी।
जवाब देंहटाएंइतना नही अच्छा तेरा ये डर मेरे साथी
सर ओखली में देने से तो मर नहीं जाते
नसीहतों भरी ग़ज़ल है। जैसे दोहे होते थे जिनमें संदेश संन्निहित होते थे। बहुत अच्छा लगा इसे पढना।
जवाब देंहटाएंIts Ultimate. Thanks.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
आदरणीय प्राण सर,
जवाब देंहटाएंग़ज़ल पर आपके आलेख पढ कर इस विधा पर मेरी आजमाईश जारी है, आपकी ग़ज़ल पढना भी एक अनुभव ही है। सर शेर गहरा है, गंभार है और आत्मसात करने जैसा है।
***राजीव रंजन प्रसाद
बहुत अच्छी रचना है जनाब बधाई
जवाब देंहटाएंऐ बादलो ,बरसो कभी हर और ही खुलकर
सूखे हुए तालाब यूँ ही भर नहीं जाते
pran saheb,
जवाब देंहटाएंaap ustaad ho , guru ho , aapki tareef ,yaani ki suraj ko diya dikhana ...
आंखों में कभी अश्कों को भर कर नहीं जाते
दुःख-दर्द सुनाने कभी घर-घर नहीं जाते
wha wah ji ..
bus kya kahun...behatreen ...umda
bahut bahut badhai ..
aapka
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
जाओ वहां पर जिस जगह दिल चाहें तुम्हारे
जवाब देंहटाएंनफरत के मगर दोस्तों दफ्तर नहीं जाते
इतना नही अच्छा तेरा ये डर मेरे साथी
सर ओखली में देने से तो मर नहीं जाते
ऐ दोस्त, ज़रा बैठके औरों की भी तू सुन
गुस्से में सभा से कभी उठ कर नहीं जाते
वाह बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है. अति सुंदर.
Namaskaar Pran ji,
जवाब देंहटाएंkhoobsoorat ghazal ke liye dhanyvaad.
आंखों में कभी अश्कों को भर कर नहीं जाते
दुःख-दर्द सुनाने कभी घर-घर नहीं जाते
बहुत अच्छी लगी ग़ज़ल, बधाई।
जवाब देंहटाएंPran ji
जवाब देंहटाएंCharan sparsh,
Aapki gazal ki tarif karna suraj ko diya dikhane jaisa hai
ye aash'r bahut man bhaye
इतना नही अच्छा तेरा ये डर मेरे साथी
सर ओखली में देने से तो मर नहीं जाते
shrddha
बहुत साफगोई से अपनी बातेँ गज़लोँ मेँ सुनाना आप का ही हुनर है प्राण जी
जवाब देंहटाएं- लावण्या
आपके लेख को पढ़ने के बाद इस ग़ज़ल का और भी लुत्फ़ बढ़ गया है। पहले लेख को पढ़ें और फिर इस ग़ज़ल को, तो बहर सीखने में भी सहायता मिलती है। बस, इसी तरह काव्यानंद की वर्षा करते रहें और हम सब इसी प्रकार आनंद विभोर होते रहें।
जवाब देंहटाएंधन्य है आप।
लेकर कोई हथिआर या पत्थर नहीं जाते
जवाब देंहटाएंलड़ने के लिए दूसरों के घर नहीं जाते
इतना नही अच्छा तेरा ये डर मेरे साथी
सर ओखली में देने से तो मर नहीं जाते
ऐ बादलो ,बरसो कभी हर और ही खुलकर
सूखे हुए तालाब यूँ ही भर नहीं जाते
वाह वाह। धन्यवाद प्राण साहब।
बहुत अच्छी ग़ज़ल है, संजीदा बातों को समेटे हुए।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत ख्यालात का मुजाहरा करती हुई गजल..
जवाब देंहटाएंइतना नही अच्छा तेरा ये डर मेरे साथी
सर ओखली में देने से तो मर नहीं जाते
ऐ दोस्त,मिटाने की तू कौशिश नहीं करना
हर मन से खुदे प्यार के अक्षर नहीं जाते
औरों की तरह "प्राण" भले ही करो कौशिश
गंगा में नहाने से सभी तर नहीं जाते
आदरणीय प्राण साहब,
जवाब देंहटाएंआपके इन नक़्शे-पा पर, सब क्यूं कर, नहीं जाते
जो चल पड़ते तो क्या अभी तक,पार तर, नहीं जाते
आपकी ये ग़ज़ल, कितना ख़ूबसूरत सन्देश, कितने सादेपन से दे रही है. ये बस आप ही के बस की बात है सर. इससे नए लोगों प्रेरणा लेकर अपनी रचनाओं को संवारना, सजाना और प्रस्तुत करना चाहिए. आपका आशीर्वाद बना रहे हम पर, इसी दुआ के साथ.
अच्छी सीख और प्रेरणा देती गज़ल...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंप्राण जी की गज़ल देखी।गज़ल की तो उन्हें महारत है ही, मेरा उस पर कुछ कहना शोभा नहीं देता। भाव और व्यंजना के स्तर पर जीवन पर पकड़ को व्यक्त करती है यह रचना और अनुभवजन्यता भी स्पष्ट दिखाई देती है। उन्हें बधाई!
जवाब देंहटाएंमेरे ख्याल से इसमें कुछ टायपिंग की कुछ चूकें रह गई हैं,चन्द्रबिन्दु व अनुस्वार का तो कई जगह प्रयोग गड़बड़ाया हुआ है।
१)
मेरे खयाल से ‘मून’ जहाँ छपा है वहाँ ‘मन’ होना चाहिए था. बहर भी टूट रही है ‘मून’ की एक मात्रा बढ़ जाने से। साथ ही मून कोई सार्थक अभिव्यक्ति नहीं दे रहा।
२)
‘कौशिश’ की जगह ‘कोशिश’ कर दें यह चूक २ जगह रह गई है।
३)
ऐ बादलो,बरसो कभी हर और ही खुलकर ... में ‘और’ (and) की जगह‘ओर’ (तरफ़) आएगा
४)
’हथिआर’ की जगह हथियार होगा।
हुज़ूर ,आपकी ग़ज़ल पर वाह यूं तो छोटा सा लफ़्ज़ है लेकिन है दिल से ।
जवाब देंहटाएंस्वीकार करें।
प्रवीण पंडित
आंखों में कभी अश्कों को भर कर नहीं जाते
जवाब देंहटाएंदुःख-दर्द सुनाने कभी घर-घर नहीं जाते
लेकिन आपको पढने के लिए हम कहीं भी जा सकते हैं
आभार
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.