
कुछ तुझको भी है ध्यान ?
सब तुझसे बंध कर चलते हैं
उन्हें भी याद कर , नादान!
ओ समय ! धीरे धीरे चल !
जो बिछडे साथी हैं उनका भी
कर लिहाज धर बाँह सभी,
भूखे, प्यासे मानव दल का,
बनना होगा विश्वास अभी -
ओ समय ! धीरे धीरे चल!
ना व्यर्थ गँवाना अपने को,
शोर शराबे भरी गलियों में,
जहाँ सिर्फ,खुमारी, रंगरेली हो,
क्या उनसे ही हो बात सभी ?
ओ समय ! धीरे धीरे चल !
तेरे लिये, जलाये आशा दीप,
राह तकें राजा रंक, यही रीत!
तज पुरानी गाथाओं के इतिहास,
रच आज कोई नव शौर्यगान!
ओ समय ! धीरे धीरे चल!
इस पृथ्वी पट पर तू है,
भूत, भविष्य, का ज्ञाता,
सँवार रे, नये बरस को,
हो सुखमय, ये जग सारा!
ओ समय ! धीरे धीरे चल !
22 टिप्पणियाँ
तेरे लिये, जलाये आशा दीप,
जवाब देंहटाएंराह तकें राजा रंक, यही रीत!
तज पुरानी गाथाओं के इतिहास,
रच आज कोई नव शौर्यगान!
ओ समय ! धीरे धीरे चल!
सुन्दर कविता।
इस पृथ्वी पट पर तू है,
जवाब देंहटाएंभूत, भविष्य, का ज्ञाता,
सँवार रे, नये बरस को,
हो सुखमय, ये जग सारा!
ओ समय ! धीरे धीरे चल !
" समय से धीरे चलने का बहुत सुंदर और भावनात्मक आह्वान ...."
Regards
आपकी कविता में एक ताजगी है। बहुत कम मिलती है यह आज की कविताओं में।
जवाब देंहटाएंइस पृथ्वी पट पर तू है,
जवाब देंहटाएंभूत, भविष्य, का ज्ञाता,
सँवार रे, नये बरस को,
हो सुखमय, ये जग सारा!
ओ समय ! धीरे धीरे चल
bahut sunder rachana
तेरे लिये, जलाये आशा दीप,
जवाब देंहटाएंराह तकें राजा रंक, यही रीत!
तज पुरानी गाथाओं के इतिहास,
रच आज कोई नव शौर्यगान!
ओ समय ! धीरे धीरे चल!
बहुत सुन्दर संदेश दिया है कविता में,किन्तु समय कहाँ रूकता है। उसकी अपनी गति है।
SUNDER BHAVABHIVYAKTI HAI.
जवाब देंहटाएंआपकी रचना पध कर जिस बात से सर्वाधिक प्रभावित होती हूँ वह है, भाषा। कहाँ खो गयी हैं एसी कवितायें। लावण्या जी आपकी कविताओं की प्रतीक्षा रहती है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना है लावण्या जी की. आपका बहुत आभार इसे प्रस्तुत करने का.
जवाब देंहटाएंसुदर रचना है....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना। लेकिन समय तो अपनी गति से चलता है। हम ही परिवर्तन की गति को तेज कर उस की गति धीमी कर सकते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंना व्यर्थ गँवाना अपने को,
जवाब देंहटाएंशोर शराबे भरी गलियों में,
जहाँ सिर्फ,खुमारी, रंगरेली हो,
क्या उनसे ही हो बात सभी ?
ओ समय ! धीरे धीरे चल !
bahut sunder kavita
समय तो अपनी गति से ही चलता रहेगा...हमें ही अपने कदमों की चाल को तेज़ करना पड़ेगा....
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता
bahut sunder
जवाब देंहटाएंdidi ki kavitaaye kaafi dino baad padhne ko milti hai
brijesh sharma
तेरे लिये, जलाये आशा दीप,
जवाब देंहटाएंराह तकें राजा रंक, यही रीत!..bahut sahi baat DI
साहित्य शिल्पी का बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंजो आप से सह्रदय~ स्नेही, पाठकोँ से,
इतनी सरलता से मिलना हो जाता है..
सभी को, "समय"
सुख, समृध्धि व स्वास्थ्य प्रदान करे
यही मेरी आशा है
-लावण्या
Very nice poem.
जवाब देंहटाएंLiked it v much.
Thanx.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
सुंदर भावाव्यक्ति है।
जवाब देंहटाएंतेरे लिये, जलाये आशा दीप,
राह तकें राजा रंक, यही रीत!
तज पुरानी गाथाओं के इतिहास,
रच आज कोई नव शौर्यगान!
ओ समय ! धीरे धीरे चल!
सुन्दर कविता!
जवाब देंहटाएंlawanaya ji ,
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar kavita .. man ko chooti hui , aur ek naye ahsaas ke saath jeevan jine ke liye kahti hui kavita...
इस पृथ्वी पट पर तू है,
भूत, भविष्य, का ज्ञाता,
सँवार रे, नये बरस को,
हो सुखमय, ये जग सारा!
ओ समय ! धीरे धीरे चल !
wah ji wah .. meri dil se badhai sweekar karen ..
ओ समय! धीरे धीरे चल!
जवाब देंहटाएंलावण्या जी की इस सुंदर कविता के लिए आपका धन्यवाद!
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.