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जिसका नाम था विवेकानंद [कविता] - विजय कुमार सपत्ति


12जनवरी, 1863 को कलकत्ता में जन्मे नरेंद्र नाथ कालांतर में स्वामेए विवेकानंद के नाम से विख्यात हुए। रामकृष्ण परमहंस के सान्निध्य से आरंभ हुई उनकी नें भारत में नव जागरण की अलख जगा दी थी। युवाओं के लिए उन का नारा था -उठो, जागो और लक्ष्य की प्राप्ति होने तक रुको मत, जिसने उन्हे हर युवा का प्रेरणा स्त्रोत व मार्गदर्शक बना दिया। युवाओं को उनका आग्रह था कि पहले मैदान में जाकर खेलो, कसरत करो जिससे स्वस्थ शरीर से धर्म-अध्यात्म ग्रंथों में बताए आदर्शो में आचरण कर सको। 11सितंबर, 1883में शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन अपने संबोधन में सबको भाइयो और बहनो कहना पश्चिम को मंत्रमुग्ध कर गया। देर् तक करतल ध्वनि होती रही। उन्होंने विदेशों में भी भारतीय धर्म दर्शन अद्वैत वेदांत की श्रेष्ठता सिद्ध कर पराधीन भारत को गौरव के वे क्षण दिये जिससे जन जन में आत्मबोध हुआ। उन्होंने सर्वदा मनुष्य और उसके उत्थान और कल्याण को सर्वोपरि माना व धार्मिक जड सिद्धांतों तथा सांप्रदायिक भेदभाव को मिटाने के आग्रह किए। विवेकानंद वस्तुत्त: एसे जन नायक थे जिन्होने भारत के भीतर आध्यात्म की लौ की आँच से जाग़्रति की अलख जला दी। 4जुलाई सन् 1902 को 39वर्ष की अल्प आयु में ही विवेकानंद नें यह लोक त्याग दिया लेकिन अमर हो कर। आज उनके जन्म दिवस पर प्रस्तुत है विजय कुमार सपत्ति की कविता :

आज भी परिभाषित है
उसकी ओज भरी वाणी से
निकले हुए वचन ;
जिसका नाम था विवेकानंद !

उठो ,जागो , सिंहो ;
यही कहा था कई सदियाँ पहले
उस महान साधू ने ,
जिसका नाम था विवेकानंद !

तब तक न रुको ,
जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो ...
कहा था उस विद्वान ने ;
जिसका नाम था विवेकानंद !

सोचो तो तुम कमजोर बनोंगे ;
सोचो तो तुम महान बनोंगे ;
कहा था उस परम ज्ञानी ने
जिसका नाम था विवेकानंद !

दूसरो के लिए ही जीना है
अपने लिए जीना पशु जीवन है
जिस स्वामी ने हमें कहा था ,
उसका नाम था विवेकानंद !

जिसने हमें समझाया था की
ईश्वर हमारे भीतर ही है ,
और इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है
उसका नाम था विवेकानंद !

आओ मित्रो , हम एक हो ;
और अपनी दुर्बलता से दूर हो ,
हम सब मिलकर ; एक नए समाज ,
एक नए भारत का निर्माण करे !
यही हमारा सच्चा नमन होंगा ;
भारत के उस महान संत को ;
जिसका नाम था स्वामी विवेकानंद !!!

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24 टिप्पणियाँ

  1. नूतन युग लाने वाले धर्म के इस महान शिष्य को मेरा शत शत नमन |
    साहित्य शिल्प स्वामी जी को याद करके एक महान काम कर रहा है |
    बधाई |

    -- अवनीश तिवारी

    जवाब देंहटाएं
  2. सोचो तो तुम कमजोर बनोंगे ;
    सोचो तो तुम महान बनोंगे
    ??????
    सपत्ति जी , सोचने से कोई कमज़ोर और महान एक साथ कैसे बन सकता है।
    अब आप बताइये राजीव जी इस पर कोई क्या टिप्पणी दे? यह तो कविता है ही नही।
    सपत्ति जी नाराज़ और हो जायेन्गे।

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  3. कोई याद भला क्यों करता, महान हुए कुछ लोगों को
    क्या कुछ देकर गये महापुरुष, धर्म के इन उद्योगों को

    राग आज तक ये आलापें, स्वामी जी की बातो का,
    खुद में कब सम्मान किया किसी ने उन ज्जबातो का..

    क्यों स्वामी के बाद कहीं से कोई तरुण नहीं आया...
    क्यों स्वामी के सब भक्तो को लील बई बैरी माया...

    क्यों पुस्तक से कोई विचारक पुनर्जीवत नहीं हुआ...
    क्योंकी शब्दों में कभी को ज्जबा निहित नहीं हुआ...

    आज उस स्वामी को हमको नई दशा में लाना है
    क्या था सपना स्वामी जी का बस इतना समझाना है

    बतलाना है आज तरुण को क्या मतलब तरुणाई का,
    समझाना है अर्थ विचार की एक नई अंगडाई का..

    त्याग और संयम की अब तो नई परिभाषा दैगा कौन?
    नई चुनौती, नवक्रान्ति की नवाअशा देगा कौन...

    आओ एक संकल्प करें हम आज वीर स्वामी की खातिर
    हम देश के सेवक होंगे हम नहीं होंगे कोई शातिर..

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  4. स्वामी जी पुण्यात्मा हैँ उन्हेँ शत शत नमन व आपकी कविता भी बहुत अच्छी लगी
    - लावण्या

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  5. स्वामी जी को याद करता यह आलेख बहुत अच्छा लगा. सपत्ति जी की कविता स्वामी जी को श्रद्धांजलि के तौर पर मन के भावों का प्राकट्य मात्र प्रतीत होती है. अत: इसमें काव्य-तत्वों की न्यूनता का विचार ज़रूरी नहीं लगता. ऐसे महान व्यक्तित्व को याद करने का यह ज़रिया भी पसंद आया.

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  6. स्वामी विवेकानंद जी के जन्मदिन की आप सभी को बधाई

    जवाब देंहटाएं
  7. विवेकानंद को याद करना और याद रखना भी बडा और महत्वपूर्ण कार्य है। विजय जी को धन्यवाद। आपने बडा काम किया है।

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  8. स्वामि विवेकानंद का परिचय व उनकी वाणी को शब्द देने का विजय सपत्ति जी का प्रयास अच्छा लगा। विवेकानंद जयंति की बधाई।

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  9. योगेश समदर्शी की टिप्पणी में की गयी कविता भी बेमिसाल है।

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  10. स्वामी विवेकानंद जी के जन्मदिन पर बहुत ही अच्छा और सुन्दर रचनाएं पढ़ने को मिली। विजय जी
    तब तक न रुको ,
    जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो ...
    कहा था उस विद्वान ने ;
    जिसका नाम था विवेकानंद !

    बहुत खूब। और साथ ही योगेश जी की रचना भी बहुत उम्दा लगी।

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  11. स्वामी जी को
    शत-शत नमन ...


    आपका स्मरण करना ही
    इस कविता को उत्तम स्थान प्रदान करता है....

    बधाई आपको...

    आभार....


    स-स्नेह
    गीता पंडित

    जवाब देंहटाएं
  12. आज हमारे देश को फिर से एक स्वामी विवेकानंद जी की जरुरत हे , भारत को फिर से सर्वोपरि बनाने के लिए
    ललित कुमार (भारत)

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. Ji haa pr hmarai andr bhi to chmta h khuch kr dikhanai ki uska use kraingy to hm bhi Vivaikanand ji jaisey ya unsey accha caray kr pay

      हटाएं
  13. Aapke kaaran swami ji kitnon ka berha par hua, aapke karan swami ji kitnon ka samman hua....

    जवाब देंहटाएं
  14. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  15. स्वामी जी पर लिखी आप की कविता पढ़ कर मन हर्षित हो गया, अपने अन्दर का तेज जाग गया। "उठो चलो और तब तक चलते रहो जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाय। " सचमुच आज लगा की दुनिया मे सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है। 🙏🙏🙏🙏

    जवाब देंहटाएं

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