
बेटी के पांव में आने लगी है
माँ की चप्पल
बेटी जवान हो रही है।
माँ को आ जाता है अब
बेटी का सूट
बेटी सचमुच जवान हो गई है।
माँ -बेटी आपस में अब
कर लेती हैं अदला-बदली
अपनी-अपनी चीजों की।
जब मन होता है
बेटी, माँ के नए सैंडिल पहन
चली जाती है सहेली के बर्थ-डे पर
और माँ –
बेटी का नया सिला सूट पहन कर
हो आती है मायके।
कभी-कभी दोनों में
‘तू-तकरार’ भी होती है
चीजों को लेकर
जब एक ही समय दोनों को पड़ती है
एक-सी ही चीजों की ज़रूरत।
माँ को करती है तैयार बेटी
शादी-पार्टी के लिए ऐसे
जैसे कर रही हो खुद को तैयार।
हेयर-क्लिप हो या नेल-पालिश
लिपिस्टिक हो या कपड़ों के रंग
हेयर-स्टाइल हो या बिंदी का आकार
इन सब पर देती है बेटी खुल कर
माँ को अपनी राय
और बन जाती है ऐसे क्षणों में
माँ के लिए एक आइना।
माँ भी निकाल देती है बेटी के लिए
अपनी सबसे प्यारी संजो कर रखी साड़ी
और खुद अपने हाथों से सिखाती है
साड़ी को बांधना,
चुन्नटों को ठीक करना
और पल्लू को संवारना
जब जाना होता है बेटी को
कालेज के ऐनुअल-फंक्शन में।
अकेले में बैठ कर अब
जाने क्या गिट-पिट करती रहती हैं दोनों
दो हम-उम्र और अंतरंग सहेलियों की तरह
राम जाने !
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19 टिप्पणियाँ
मन को छू गयी कविता। स्पंदित कर दिया इस कविता नें।
जवाब देंहटाएंअकेले में बैठ कर अब
जाने क्या गिट-पिट करती रहती हैं दोनों
दो हम-उम्र और अंतरंग सहेलियों की तरह
राम जाने !
माँ बेटी के रिश्ते की जो गहरायी है वह किसी अन्य संबंधों में नहीं। कमाल की रचना है कि गुदगुदाती है।
जवाब देंहटाएंमाँ भी निकाल देती है बेटी के लिए
जवाब देंहटाएंअपनी सबसे प्यारी संजो कर रखी साड़ी
और खुद अपने हाथों से सिखाती है
साड़ी को बांधना,
चुन्नटों को ठीक करना
और पल्लू को संवारना
जब जाना होता है बेटी को
कालेज के ऐनुअल-फंक्शन में।
वाह।
exicilent..अकेले में बैठ कर अब
जवाब देंहटाएंजाने क्या गिट-पिट करती रहती हैं दोनों
दो हम-उम्र और अंतरंग सहेलियों की तरह
prnaam,badhai,sundar isthtiyon ko shabdon main sametne ke liye
जीवित कविता है।
जवाब देंहटाएंमाँ और बेटी के संबंधों पर इतनी मधुर कविता मैने पहले कभी और कहीं नहीं पढी थी।
जवाब देंहटाएंUltimate.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
बहुत सुन्दर लिखा आपने.. मैं साक्षी हूं आपकी कविता के भावों का.
जवाब देंहटाएंमाँ भी निकाल देती है बेटी के लिए
जवाब देंहटाएंअपनी सबसे प्यारी संजो कर रखी साड़ी
और खुद अपने हाथों से सिखाती है
साड़ी को बांधना,
चुन्नटों को ठीक करना
और पल्लू को संवारना
जब जाना होता है बेटी को
कालेज के ऐनुअल-फंक्शन में।
सही लिखा है। मैं भी यही अनुभव करती हूँ आजकल।
SUBHAASH JEE,AAPKAA LEKH HO ,AAPKEE
जवाब देंहटाएंKAHANI HO YAA KAVITA HO VO "FULL OF
LIFE" HOTEE HAI.VATAYAN.BLOGSPOT.
COM PAR HAAL HEE MEIN AAPKAA LEKH
PARHH KAR MEREE AANKHEN SAJAL HO
GAYEE THEE.
KAVITA MEIN MAA-BETEE KE
RISHTE KAA CHITRAN AAPNE SEEDHEE-
SAADEE ZABAAN MEIN KHOOB KIYAA HAI.
AESEE KAVITAYEN MAN MEIN APNE-AAP
UTARTEE HAIN.
सुन्दर भावों से भरी कविता है।
जवाब देंहटाएंअच्छी एवं सही व्याख्या.....
जवाब देंहटाएंकविता के भाव अच्छे लगें , बातें अच्छी लगी और औरों की तरह कविता का अंत भी प्रशंसनीय लगा।
जवाब देंहटाएंलेकिन... न जाने क्यों मुझे इस कविता से ज़्यादा उम्मीदें थीं। ऎसा लगा मानो हर छंद में एक हीं बात को दुहराया गया है और अंत भी उसी दुहराव का एक हिस्सा-मात्र है। लगा जैसे कविता अगर छोटी होती तो ज्यादा अच्छी रहती। और हाँ अगर कविता लंबी थी तो क्लाईमेक्स होना चाहिए था।
औरों से जुदा मन्तव्य रखने के लिए क्षमा चाहता हूँ।
-विश्व दीपक
bahut badhiya
जवाब देंहटाएंप्रिय विश्व दीपक जी,
जवाब देंहटाएंआपकी राय की मैं कद्र करता हूँ। इसमें क्षमा चाहने वाली कोई बात ही नहीं है। आपको जो महसूस हुआ, आपने कहा। हर पाठक अपनी भिन्न दृष्टि होती है, रचना को देखने-परखने और उसका रस लेने की। इससे यह तो ज़ाहिर होता ही है कि रचना से आप गहरे जुड़े, कुछ महसूस किया तभी आपने कुछ कमी भी महसूस की। पाठक को अपनी राय देने का पूरा अधिकार होता है, भले ही आलोचना ही क्यों न हो, लेखक/कवि को इसे सहज ही लेना चाहिए।
उन सभी पाठक मित्रों का भी शुक्रगुजार हूँ जिन्होंने मेरी कविता "माँ-बेटी" पर अपनी टिप्पणी देकर मेरा हौसला बढ़ाया।
-सुभाष नीरव
subhash ji , abhi , maine apni patni ko ye kavita sunai ,uski aankhe nam ho gayi aur meri bhi..
जवाब देंहटाएंab is se jyada main kya kahun ..
bahut bahut badhai ..
aapka
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
विजय कुमार जी
जवाब देंहटाएंकविता अगर सही अर्धो में संप्रेषित हो जाए, तो क्या कहना! मन को अगर छू जाती है कविता तो उसके लिए शब्द बेमायने हो जाते हैं। आपकी टिप्पणी पढ़कर लगता है कि मैं इस कविता के माध्यम से जो कहना चाहता था, वह संप्रेषित हो गया। हर कवि चाहता भी यही है।
एक पवित्र संबंध की निर्मल भावाभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंप्रवीण पंडित
Yahi to jeevan hai, kabhi pyaar kabhi takraar chutki mein. Aur Maan Beti ka yeh rishta apni jagah sneh ki dor mein badha hai. Subash ji ki rachanyei hamein zindagi ke aur kareeb le aati hai..
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.