
सुबह से ही थाने में सफाई का अभियान चल रहा था। थानेदार सा'ब कल ही इस थाने में नये-नये आये थे।
- नहीं ! नहीं ! " क्रिमनल चार्ट उस तरफ लगाओ।
" हाँ ! ......... अरे मूरख ! गाँधी जी को मेरे चेयर के पीछे लगाओ..."
"बड़ा बाबू जी, जरा देख कर बतायें,...... लॉकउप में पानी की सुराही रखी है की नहीं....?"
"जी सर...."
सा'ब के चेम्बर से निकलते ही बड़ा बाबू मन ही मन नये थानेदार को कोसते हुए....धीरे-धीरे बड़बड़ाते हुए...."नया-नया है ना"....चेम्बर से बाहर आते ही रोब में दूसरे हवलदारों रोब छाड़ते हुए.... "देखतें क्या हैं ... जाइये अपना काम कीजीये"। बड़ा बाबू खुद लॉकउप को देखने चल देते हैं। बड़ा बाबू मन ही मन में बड़बड़ाते हुए....धीरे से एक फीता कस दिया ... "हूँ..! ... जैसे कोई सरकारी थाना नही हजूर के बाप का घर हो" पता नहीं सरकार भी कहाँ-कहाँ से नये-नये छोकड़ों को ऑफिसर बना कर थाने में भेज देती है। जैसे ही बड़ा बाबू लॉकउप की तरफ बढ़तें हैं एक अप्रत्याशित आवाज ने एकाएक बड़ा बाबू को डरा ही दिया हो।
"बड़ा बाबू ! जरा इधर आइयेगा।"
बड़ा बाबू लॉकउप का रास्ता बीच में ही छोड़ उलटे पांव पुनः सा'ब के चेम्बर की तरफ लौट पड़े। मन में एक अजीब सा डर पहले की अपेक्षा बढ़ चुका था, अचानक से क्या हो गया अभी तो सब ठीक-ठाक ही था, यह तेज आवाज किसलिए कहीं मेरी बात सुन तो नहीं ली सा'ब ने... नहीं... नही... मैं तो मन ही मन में बड़बड़ा रहा था, किसी से कहा भी तो नहीं, फिर.... इस तरह क्यों बुला रहे हैं... यह सब प्रश्न एक साथ मन के कमजोर हिस्से को कंप-कंपा दिया था। दिन में ही तारे नजर आने लगे थे। अभी लड़की को गवना देना भी बाकी है। गांव में बात चली गई की मेरा ट्रान्सफर हो गया तो बस आफ़त का पहाड़ टूट पड़ेगा। नहीं....नहीं.... मुझे काफी सावधानी से काम लेना होगा। .. दौड़ते हुए सा'ब के चेम्बर में जाकर खड़ा होते ही एक लम्बी छलांग के साथ पाँच फीट की सलामी देते हुए.. जी.. सर...हाजीर! .....और सावधान की मुद्रा में खड़ा हो गये थे बड़ा बाबू। यह सब देखकर सा'ब भी सकपका गये .. अरे ये क्या वही बड़ा बाबू है जो अभी तक मेरे को तीरछी नज़र से देख रहा था। सा'ब की तरफ पुनः एक अवाज लगाई.... सर.. हाजीर हूँ।
- "बड़ा बाबू !... ये थाने में रोजना की डायरी कौन लिखता है?"
- "सर ! " आपसे पहले वाले सा'ब तो, डायरी लिखने को मना करते थे। कहते थे, डायरी उनसे पूछकर ही लिखा करूँ।" सो डायरी ... थोड़ी चुप्पी...के बाद हकलाते हुए सर... कभी मैं तो कभी सा'ब खुद ही लिखा करते थे। फिर एकदम से नये सा'ब की तरफ भक्ति दर्शाते हुए अब सा'ब आप आ गएं हैं जैसा आपका आदेश होगा।
"नये सा'ब ने बड़ा बाबू के हृदय परिवर्तन पर प्रहार करते हुए .. ये दिवाल घड़ी खराब हो गई है या बंद पड़ी है?...."
"- नहीं , सर.... वो बैटरी खराब हो गई है।" एक ही सांस में ..." मेमो बनाकर दिया था सा'ब ...को पर?"
" - पर..... क्या? थानेदार ने बड़ा बाबू की बात को दोहराते हुए पुछा" सन्नाटा....
" बार-बार बैटरी खराब हो जाती है... बन्द रहने दो... " सर सा'ब ने कहा था तब से यह घड़ी बन्द पड़ी है।"
"कितने दिनों से बन्द है?....."
"यही सर..... चार..पाँच माह हो गये होंगे...।" बड़ा बाबू ने जबाब दिया।
"ठीक ह...ठीक ह... अब नये थानेदार ने बात को संभालते हुए कहा - आप सभी जरूरी समानों की लिस्ट बना दें"
"पुनः एक ही सांस में - और हाँ ! वह 'डायरी' लेकर कल हम बैठेंगे - सभी हवलदारों को बता दें।"
बड़ा बाबू एकदम से सर की चम्मचागीरी करते हुए - हजूर ! वो थाने के सामनेवाली रामनाथ की दुकान से सब समान मंगा लेते हैं पैसा भी नहीं देना पड़ता .... हल्की मुस्कान को चेहरे के ऊपर बिखेरते हुए...सर वेचारा तब से डरने लगा जब से पिछले थानेदार सा'ब ने उसे एक घंटा थाने के लॉकउप में ही बन्द कर दिया था।"
"क्या अपराध था उसका?"
"कुछ नहीं सर !... बस यूँ ही.. "। उसने सिपाही को कहा था कि पहले का बकाया पैसा दे जाओ तब नया उधार मिलेगा।" बस क्या था सा'ब ! साहेब ने उसे पैसा देने बुला भेजा और थाने में बन्द कर दिया। बोले.... "पैसा चुक जाये तो बोल देना छौड़ दूँगा" बस क्या था पूरे घर वाले जूट गये थाने का नाम सुनते ही फिर कुछ ले-देकर मामला सलटा।" तब से थाने के नाम से कोई भी मंगाते हैं पूर्जा नहीं काटता.. कहता है भाई चुकता ही समझो। जैसे ही बड़ा बाबू ने अपनी बात पूरी की " अपने चेहरे के भाव को और सख़्त करते हुए - अब आप जाकर लिस्ट बनाईये..."
मानो बड़ा बाबू के सारे मनसुबे पर ही पानी फिर गया हो...पुनः उसी सावधान की मुद्रा में सा'ब को सलामी ठोकते हुए चेम्बर से बाहर निकल गये।साहेब के चेम्बर से निकलते ही एक बूढ़े किसान को देखकर बड़ा बाबू के भीतर का सारा गुस्सा बरस पड़ा- "रौब से उस किसान की तरफ देखते हुए ..क्या हो गया तेरे को....यहाँ पर किस लिये आया है? .... जाओ उस तरफ बैंची पड़ी है उस पर बैठ... थोड़ी नजर थाने के चारों तरफ घुमाकर देखते हुए कि कहीं कोई चीज इधर-उधर तो नहीं पड़ी है... कहा ने जाकर उधर ब..बैठ..
"जी सरकार! बूढ़ा किसान दुबकता सा जाकर बैंच पर बैठ गया।"
थोड़ी देर चेयर पर जाकर सुस्ताते हुए, पास पड़ी एक बोतल से थोड़े पानी से गले को तरी किया और उस बूढ़े की तरफ नजर उठाकर देखा ही था कि ... बूढ़ा फिर बोल पड़ा.. हजूर.. मेरी.. लड़की....
"हाँ.... हाँ.. क्या हुआ इधर आकर बता... बस जैसे कोई नई कहानी सुनने की दिलचस्पी ने अचानक से बूढ़े की बात की तरफ सबका ध्यान खिंच गया।अब बूढ़ को भी थोड़ी हिम्मत हो गई " हजूर मेरी लड़की को कल कुछ बदमाशों ने ...... हाँ.....बोलो... क्या किया.....बूढ़ा तबतलक रोने सा लगा...बड़ा बाबू के चेहरे पर एक अजीब सी मधुर मुस्कान को भांपते हुए पास खड़े एक सिपाही ने बूढ़े किसान को अपनी अनुभवी हिम्मत बंधाई... बोल न "क्या हुआ तेरी लड़की के साथ..... "। मन में एक अजीब सी सनसनाहट ने उसके मन में भी कौतूहल पैदा कर दिया।
"सा'ब वे लोग बहुत निर्दयी हैं - हमें मार देगें....."
तो थाने काहे को आये हो.. अपने घर जाओ... बोल.. क्या हुआ तेरी लड़की के साथ... अब सिपाही एक कदम आगे बढ़कर उस बूढ़े से कहानी सुनने के बैताब हो रहा था.. बड़ा बाबू भी चुपचाप मन ही मन किसी स्वप्न सुन्दरी की कल्पना में खो चुके थे। बूढे़ किसान ने अपनी बात की एक परत और उतारी..
"हजूर.. कल शाम को जब मेरी लड़की अपनी माँ के साथ घर लौट रही थी...बस सब अनर्थ हो गया हजूऱ......."
तब तलक पास खड़े सिपाही ने तो अपना आपा ही को दिया था....एक ड़ंडा जोर से बूढ़े की टांग पर जड़ते हुए ..अबे बताता है कि भीतर बंद कर दूँ?
बड़ा बाबू को तो लगा कि किसी बात को सबके सामने बताने में संकोच कर रहा होगा, मन में एक काल्पनिक सुख की कल्पना करते हुए उसे पुचकारते हुए.. सिपाही जी जाईये दो कप चाय लेकर आईये.. बेचारा डर रहा है.... क्या नाम है तुम्हारा.. बूढ़े की तरफ मुखातिब होते हुए बड़ा बाबू ने बूढ़े को कहा।
"हजूर.. रामलाल.... चमार...जात का हूँ..."
"क्या....?"
मानो जात से ही थाने में पहचान होती हो----
"चमार.... तो इधर क्या करने आया है? "
"बूढ़े ने फिर अपनी बात दोहराई ... मेरी लड़की को...."
चमार शब्द सुनते ही बड़ा बाबू के बोलने का रूतबा ही बदला-बदला सा लगने लगा।
तो फिर उसकी इज्जत ले ली होगी?"
"नहीं हजूर"
"तो फिर उसके छेड़खानी की होगी?"
"नहीं हजूर"
"हाँ..हाँ ठीक है... तेरी लड़की को गुण्डे उठाकर ले गये होंगे?"
"नहीं... हजूर..."
अब तलक बड़ा बाबू आग बबूला हो गये, बरसते हुए बोले तो बताता क्यों नहीं.. क्या किया तेरी लड़की को?
उसके गले की चेन लूट ले गये। पत्नी ने बताया की वो जमींदार का लड़का भी साथ में था।
अब तो मानो बड़ा बाबू के अन्दर का सोया हुआ शैतान ही जग गया। बरस पड़ै...हरामजादे.. यही बताने के लिये मेरा इतना कीमती वक्त खराब किया। अब तलक सिपाही भी चाय ले कर आ चुका था, बड़ा बाबू चाय की चुस्की लेकर मन के अन्दर जागे हुए शैतान को समझाने का प्रायास कर रहे थे दूसरी तरफ टेबूल पर दूसरी कप चाय पड़ी-पड़ी ठण्डी हो गई।
एक तरफ किसान की जात तो दुसरी तरफ कहानी के नये मोड़ ने सबके सपने को चकनाचूर कर दिया था। तभी अचानक से नये थानेदार के डर ने थाने के सन्नाटे को तौड़ दिया। सिपाही जी ..इनकी डायरी दर्ज करा लिजीये। बड़ा बाबू ने यह बात ऐसे कही जैसे इस थाने में कोई नई घटना घट रही हो।
**********
16 टिप्पणियाँ
सही कहा आपने। बेबस के दर्द में चटखारेदार कहानी ढूंढने की प्रवृत्ति है समाज में और थानों में।
जवाब देंहटाएंपुलिस की मानसिकता को
जवाब देंहटाएंउकेरती नहीं उधेड़ती लघुकथा
जो अपने लघु रूप में
कहीं बड़े
आयामों को स्पष्ट करती है
यही तो है नंगा सच।
Truth.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
अच्छा कथानक है। आम आदमी के दर्द में किसी की रुचि नहीं। थाने उनके लिये बने ही नहीं।
जवाब देंहटाएंaajkal dusron ke dard main ras sabhi ko milta hai log aise hi udhedh kar uksa kar poochte hain
जवाब देंहटाएंaur phir kisi ladhki ki baat ho to ..................
aapki kahani kayi sach ko nanga karti hu
manas vayavhaar ka sachha chtran
कहानी नहीं यह व्यवस्था को आईना दिखाने जैसा है।
जवाब देंहटाएंप्रभावी कहानी है। समाज की संवेदनहीनता को उकेरने की कहानीकार की कोशिश अच्छी कही जा सकती है।
जवाब देंहटाएंबहुत दुखद परन्तु शायद सच को दर्शाती कहानी है यह।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
सही कहा आपनेआम आदमी के दर्द में किसी की रुचि नहीं।
जवाब देंहटाएंबहुत गंभीर कहानी है। थाने में बडे बाबू की अपनी भडास और आम आदमी के दर्द के प्रति उदासीनता को बहुत अच्छी तरह आपने प्रस्तुत किया है।
जवाब देंहटाएंsach nikalaa hai aapkee lekhanee se...
जवाब देंहटाएंbahuth bahaee....
बहुत बढिया लिखा है।बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंजब खुद को चोट लगे ..तभी दर्द का एहसास होता है....अच्छी कहानी...सच्ची कहानी
जवाब देंहटाएंकहानी की गम्भीरता को बखूबी निभाया गया है..कई उतार चढाव के बाबजूद कहानी पाठक को बांधे रखने में सक्षम है.. पुलिस के रवैये का बेहतरीन खुलासा.. बधाई
जवाब देंहटाएंshambu ji ,
जवाब देंहटाएंis katha ne to jaise samaaj ko aaina dikhaya hai ..
bahut hi bhaavpoorn prastuti ..
aap ko dil se badhai ..
कड़वा सच , नंगी व्यवस्था।
जवाब देंहटाएंआज का पूरा माहौल है सामने।
प्रवीण पंडित
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.