वचन संबंधी दोष:
ग़ज़ल में वचन संबंधी दोष भी अखरता है। व्यक्ति या वस्तु की एक या एक से अधिक संख्या का बोध कराने वाले शब्दों को क्रमश: एकवचन और बहुवचन कहा जाता है। एकवचन को बहुवचन और बहुवचन को एकवचन लिखना अनुपयुक्त है। वचन की उपयुक्तता ’राम का मुख’ और ’राम और श्याम के मुख’ लिखने में ही है। चूँकि निम्नलिखित अशआर में ’परिंदा’, ’सायबाँ’ और ’घर’ बहुवचन में प्रयुक्त हुए हैं; इसलिए ’पर’, 'दीवार' और 'छत' भी बहुवचन में प्रयुक्त होते तो उपयुक्त था। देखिए -
लेखक परिचय:-
प्राण शर्मा वरिष्ठ लेखक और प्रसिद्ध शायर हैं और इन दिनों ब्रिटेन में अवस्थित हैं। आप ग़ज़ल के जाने मानें उस्तादों में गिने जाते हैं। आप के "गज़ल कहता हूँ' और 'सुराही' - दो काव्य संग्रह प्रकाशित हैं, साथ ही साथ अंतर्जाल पर भी आप सक्रिय हैं।
ये बात मुझको बताई थी
एक चिडि़या ने
कुछ आसमान परिंदों के
पर में रहते हैं
- ज्ञानप्रकाश 'विवेक'
अगर दीवार हट जाए
तो ऐसे सायबाँ होंगे
बिना छत के घरों में
खूबसूरत आसमाँ होंगे
- महेश अनघ
कई बार ऐसा होता है कि कोई ग़ज़लकार भूल से न बदलने वाले एकवचन को बहुवचन बना देता है। 'पानी' का बहुवचन 'पानी' ही है लेकिन उर्दू के मशहूर शायर कतील शिफ़ाई ने अपने एक शेर में उसको बहुवचन बना दिया। देखिए-
जब भी दरिया बारिशों के पानियों से भर गए
तैरने हम भी बदन से बाँधकर पत्थर गए।
अब 'पानी' का बहुवचन 'पानियों' चलने लगा है। हिंदी और उर्दू के कई शेरों में यह रूप देखा जा सकता है।
एक कवि का तो तर्क था कि जब सूर्य की 'रश्मि' या 'किरण' का बहुवचन 'रश्मियों' या 'किरणों' होता है तो चाँद की चाँदनी' का बहुवचन 'चाँदनियों' क्यों नहीं हो सकता है?
लिंग संबंधी दोष:
हर कवि या शायर के लिए अन्य भाषा के शब्द को अपनी रचना में इस्तेमाल करने से पहले उसकी प्रकृति और उसके लिंग को भली-भांति समझना आवश्यक है। हिंदी भाषा में तत्सम, तदभव और विदेशी शब्द प्रचुरता में मिलते हैं। कुछेक शब्दों के लिंग अब तक निश्चित नहीं है। 'पवन' शब्द को ही लीजिए। यह पुल्लिंग में लिखा जाता है और स्त्रीलिंग में भी। उर्दू लफ़्ज़ 'कलम' हिंदी में पुल्लिंग और स्त्रीलिंग दोनों में ही प्रयुक्त होता है। संस्कृत में आत्मा शब्द पुल्लिंग है लेकिन हिंदी में स्त्रीलिंग। 'दही' हिंदी में 'खट्टी' और 'खट्टा' दोनों ही है। अन्य भाषा के किसी शब्द के साथ लगी 'इ' या 'ई' की मात्रा देखकर उसको स्त्रीलिंग का शब्द नहीं मान लेना चाहिए। उर्दू का लफ़्ज़ है 'जिहाद'। इसका शाब्दिक अर्थ है- धर्मयुद्ध। यह पुल्लिंग है उर्दू में और हिंदी में भी। इस शब्द के लिंग से अनभिज्ञ लगते हैं पारसनाथ बुल्ली। इसको स्त्रीलिंग में प्रयोग करके वह किसी विचार को लेकर कोई बहस छेड़ते हुए ऩजर आते हैं। देखिए-
किसी विचार को लेकर जिहाद छिड़ती है
तभी निजात की सूरत कहीं निकलती है
ग़ज़लकार को शब्द के लिंग से संबद्ध एक बात और ध्यान में रखनी चाहिए। वह यह कि स्त्रीलिंग में प्रयुक्त शब्द का उपमान भी स्त्रीलिंग का शब्द होना चाहिए। शारदा को शेर कहना अनुपयुक्त है, उसको शेरनी ही कहना उपयुक्त है। राजेश रेडडी का शेर है-
ऐ खुशी, मैं जानता हूँ तू है सोने का हिरण
तेरे पीछे लेके आई है मेरी किस्मत मुझे
खुशी को 'हिरण' कहने के बजाए 'हिरणी' या मृगी कहा जाता तो उपयुक्त था। शेर को यूँ लिखा जाना चाहिए था-
ऐ खुशी, मैं जानता हूँ तू है हिरणी सोने की
तेरे पीछे लेके आई है मेरी किस्मत मुझे
28 टिप्पणियाँ
वचन और लिंग संबंधी दोष को सरलता से समझाया गया है।
जवाब देंहटाएंवचन और लिंग संबंधी दोष शायरी में आम हैं। प्राण जी से मैं सहमत हूँ कि एक कविता इन दोसःओ से मुक्त हो कर ही सही कही जा सकती है।
जवाब देंहटाएंप्रवाह, तुक और आलंकारिक प्रस्तुति के लिये शायर इस तरह के दोष करता है। एसे दोषों से बचा जाना चाहिये। बहुत अच्छा आलेख है। आभार प्राण जी।
जवाब देंहटाएंA complete Article. Thanks.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
बहुत अच्छा लेख है प्राण साहब। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंप्राण शर्मा जी नमस्कार,
जवाब देंहटाएंबहोत ही उपयोगी जानकारी मिली इस लेख से एक वचन और बहु बचन केलिए ... सहेजने के लायक . लेकिन मुझे जहाँ तक पता है या मेरे गुरुओं ने कहा है के दही तो स्त्रीलिंग ही लिया जाता है हिन्दी में ... तो क्या इसे ग़ज़ल में प्रयोग करते समय पुलिंग में इस्तेमाल कर सकते है .. कृपया इसका समाधान करें ....
आपका
अर्श
लिंग एवं वचन संबंधी दोष कैसे मजा बिगाड़ देते हैं, यह बात आपने बहुत ज्ञानवर्धक बताई. हमेशा याद रहेगी. बहुत आभार.
जवाब देंहटाएंप्राण जी, अर्श जी का प्रश्न महत्वपूर्ण है। कई शब्दों के प्रयोग के आधार पर लिंग विभेद मिटते पाये गये हैं। वचन में भी एसी वर्जनायें तोड कर शेर लिखे गये हैं। बात कहने में शेर सफल तो होते हैं लेकिन दोष तो है ही। जब वज़न बहर रदीफ काफिया जैसे बंधन के बिना शेर खारिज होता है तो इन दोषों को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता।
जवाब देंहटाएंप्राण साहब से पूरी तरह सहमत हूँ कि गज़ल को हिन्दी में लिखने के लिये वे नीयम भी मानने होंगे जो हिन्दी व्याकरण के मानक हैं। इस तरह ही इस विधा को परिपूर्ण कहा जा सकेगा।
जवाब देंहटाएंगज़ल और नीयम एक दूसरे के पूरक हैं अत: वचन और लिंग संबंधी दोष भी हटाये जाने आवश्यक हैं।
जवाब देंहटाएंpran ji ,
जवाब देंहटाएंye kuch naya jaana maine aaj , hindi vyaakaran bhi itna upyogi hai , gazal men? well, aisa lagta hai ,ki mujhe abhi bahut kuch seekhna hai ..aapse..
is lekh ke liye badhai..
regards,
vijay
बेहद उपयोगी आलेख।
जवाब देंहटाएंअमूमन सभी से वचन या फिर लिंग की गलती हो हीं जाती है। वचन की गलती तो अक्षम्य है। लेकिन लिंग की गलती होने का एक कारण है कई शब्दों का लिंग स्पष्ट नहीं होना।और इस कारण कवि या फिर लेखक इस दोष को नज़र-अंदाज़ कर आगे बढ जाता है। मुझसे भी ऎसी गलतियाँ कई बार हुई हैं।
इस आलेख को पढने के बाद यह प्रण तो लिया हीं जा सकता है कि जब तक किसी भी शब्द के लिंग की जाँच-पड़ताल न कर लें, रचना में उस शब्द का इस्तेमाल नहीं करेंगे।
प्राण जी का तहे-दिल से शुक्रिया।
-विश्व दीपक
आपके दृष्टिकोण से पूरी तरह सहमत हूँ। आभार।
जवाब देंहटाएंकभी कभी अजाने भी हो जाती है गलती।
जवाब देंहटाएंआपका लेख सजग रखने मे सहायक होगा।
प्रवीण पंडित
संग्रह कर के रखने योग्य हैं आपके सारे गज़ल संदर्भित लेख। साहित्य शिल्पी का भी ध्न्यवाद कि उन्होने मुख्पृष्ठ पर ही सारे आलेख को पढने की सुविधाजन्य व्यवस्था कर दी है। शायर वचन और लिंग की बारीकियों का भी ध्यान रखें तो रचना में निखार आयेगा ही।
जवाब देंहटाएंअनुज कुमार सिन्हा
भागलपुर
आदरणीय प्राण सर के आलेखों नें गज़ल लेखन के उन पहलुओं को भी छुआ है जिनपर कभी दृष्टि नहीं जाती। आपका अध्ययन आपले आलेखों में नजर आता है साथ ही साथ आप जिन उद्धरणों से अपनी बात समझाते हैं वह समझ की परतों को खोलता है और विषय को समझने की प्रक्रिया में नयी दृष्टि प्रदान करता है।
जवाब देंहटाएंARSH JEE,
जवाब देंहटाएंDAHEE PURLING HOTAA HAI,STREE
LING NAHIN.AB TO STREE KE LIYE BHEE
PURLING CHAL PADAA HAI.JAESE--
"BAHAN JEE,AAP KAB AAYE HAIN?"
छोटी छोटी गलतियाँ हैं जिस पर ध्यान ही नहीं जाता...आपने किस सरलता से उन पर ध्यान दिलाया है....आप की ये श्रृंखला ग़ज़ल लिखने वालों के लिए बेहद मददगार साबित होगी...नमन आपको हमें ये ज्ञान देने के लिए...
जवाब देंहटाएंनीरज
बहुत अच्छा आलेख ...
जवाब देंहटाएंप्राण जी !
आभार
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअच्छा ज्ञानवर्धक आलेख बधाई आभार
जवाब देंहटाएंAaj ka lesson seekha
जवाब देंहटाएंin doshon se mukt ho to gazal bhaut sunder banegi
bahut seekhna baki hai
Monday ke intezaar mein
Aadarneey pran ji
जवाब देंहटाएंCharan sparsh,
aapki ye pankti bhaut achhi lagi
"BAHAN JEE,AAP KAB AAYE HAIN?"
aajkal hindi ki halat aisi hi hai
प्राण भाई साहब ने बहुत सही बातोँ से सावधान करवाया है आभार !
जवाब देंहटाएं- लावण्या
प्राण जी को चरण-स्पर्श !!
जवाब देंहटाएंइतनी गुढ़ बातें और इतनी अहम बातें हम तो अक्सर नजर अंदाज ही कर जाते हैं...
आपको शुक्रिया कहना,महज शुक्रिया भर कह देना- ठीक नहीं लगता...
वचन और लिंग की छोटी सी ग़लती भी ग़ज़ल का रूप बिगाड़ देती है। प्राण जी का यह लेख उनके अन्य लेखों की तरह ज्ञानवर्द्धक है। सारे ही लेखों को पढ़ने के बाद सब से बड़ा लाभ होता है कि मस्तिष्क, क़लम और शब्दों में संतुलन बना रहता है जो किसी भी रचना, चाहे ग़ज़ल हो, कविता या नज़्म हो, के लिए बहुत आवश्यक है।
जवाब देंहटाएंएक और बात देखी गई है कि अपनी बात इतने सरल रूप में लिखते हैं जो आसानी से समझ में आजाती है। गुणी गुरु के गुणों में यह गुण बहुत अहमियत रखता है।
सारे लेख फ़ाईल में रखने के योग्य हैं।
वचन और लिंग संबंधी दोष हांलाकि आसानी से पकड में नहीं आते परन्तु निश्चय ही गजल का मजा बिगाड देते हैं यदि कोई ध्यान से पढे.. सार भरे लेख के लिये प्राण शर्मा जी का आभार
जवाब देंहटाएंएक कवि का तो तर्क था कि जब सूर्य की 'रश्मि' या 'किरण' का बहुवचन 'रश्मियों' या 'किरणों' होता है तो चाँद की चाँदनी' का बहुवचन 'चाँदनियों' क्यों नहीं हो सकता है?
जवाब देंहटाएंजिस तरह धुप का बहु वचन धूपों नहीं होता, उसी तरह चादनी का बहुवचन चान्दनियों नहीं हो सकता.
कारकों की त्रुटियों को भी उजागर कीजिये.
इसी तरह गलत प्रतीक, दोषपूर्ण उपमाओं को भी उदाहरण सहित समझाइये.
आपको सौ-सौ बार बधाई.
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.