
अबकी लौटा गांव तो, बरगद मिला उदास
फसलें सहमी झुलस कर, काट रही थी दिन
और खेत सूने मिले, हल बैलों के बिन
कुएं खुद ही मर गये झेल झेल कर प्यास
अबकी लौटा गांव तो, बरगद मिला उदास
उग आई आंगन कई, मोटी सी दीवार
कितना निष्ठुर हो गया, आपस में परिवार
चिडिया सब चुप हो गई, कग्गे भये निराश
अबकी लौटा गांव तो, बरगद मिला उदास
रिश्ते बेमानी हुए, सगे सौतेले लोग
स्वास्थ्य से दुश्मनी, घर घर बैटे रोग
दारू पी कर सभ्यता, खेल रही थी तास
अबकी लौटा गांव तो, बरगद मिला उदास
अपने तक सीमित हुए, जो थे बडे उदार
कैसी शिक्षा पा गये, बदल गया व्यवहार
चावल ढाई हो गया, हुक्के सबके पास
अबकी लौटा गांव तो, बरगद मिला उदास
अब आइये इसी कविता को खुद योगेश जी की आवाज़ में सुनते हैं:
योगेश समदर्शी का जन्म १ जुलाई १९७४ को हुआ।
बारहवी कक्षा की पढाई के बाद आजादी बचाओ आंदोलन में सक्रिय भागीदारी के कारण औपचारिक शिक्षा बींच में ही छोड दी. आपकी रचनायें अब तक कई समाचार पत्र और पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं।
आपकी पुस्तक “आई मुझको याद गाँव की” शीघ्र प्रकाशित होगी।
28 टिप्पणियाँ
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंगाँव के खोने का दर्द आपकी कविता में और आवाज दोनों में दिखा।
जवाब देंहटाएंमिट्टी से जुड़ी आपकी कविता पठ्य और श्रव्य दोनों रूपों में गहरा प्रभाव छोड़ती है
जवाब देंहटाएंफसलें सहमी झुलस कर, काट रही थी दिन
जवाब देंहटाएंऔर खेत सूने मिले, हल बैलों के बिन
कुएं खुद ही मर गये झेल झेल कर प्यास
अबकी लौटा गांव तो, बरगद मिला उदास
उदास कर दिया आपकी कविता नें।
Ultimate. Beyond words.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
बहुत अच्छी कवित्आ है योगेश जी, बहुत अच्छा लगा इसे सुनना।
जवाब देंहटाएंदिल को छू जाने वाली रचना. न जाने क्यूँ, सुन नहीं पा रहे हैं.
जवाब देंहटाएंअपने तक सीमित हुए, जो थे बडे उदार
जवाब देंहटाएंकैसी शिक्षा पा गये, बदल गया व्यवहार
सुन्दर रचना ...लिखते रहिये...शुभकामनओं के साथ।
हरे भरे हो गये हम योगेश जी। पीपल, बरगद, पोखर, डंगर, कूँआ, पनघट कितना जोडते हैं आदमी को और आज भीड में हम कितने अकेले हो गये हैं।
जवाब देंहटाएंअपने तक सीमित हुए, जो थे बडे उदार
कैसी शिक्षा पा गये, बदल गया व्यवहार
चावल ढाई हो गया, हुक्के सबके पास
अबकी लौटा गांव तो, बरगद मिला उदास
आप नितांत संभावनाओं से भरे कवि हैं व दिल से लिखते हैं।
एक एक पंक्ति हृदय विदारक है। एक एक पंक्ति सोंधी मिट्टी की खुशबू से सरोबार और एक एक पंक्ति में दर्द भी।
जवाब देंहटाएंभाई, बहुत भाई रचना ।
जवाब देंहटाएंशब्द जैसे आकार ले उठे।
मैं उसी संवेदी धरातल पर उदास महसूस कर रहा हूं, जिस पर बरगद उदास है ।
प्रवीण पंडित
पत्थर के दिल हो गये, पथरीले आवास
जवाब देंहटाएंअबकी लौटा गांव तो, बरगद मिला उदास
सच कहा योगेश जी।
बदलते सामाजिक परिवेश और मूल्यों को रेखांकित करती एक प्रासंगिक रचना..
जवाब देंहटाएंशहरीकरण के कारण गांव के बदलते परिवेश पर सुन्दर कविता... सस्वर सुनने में बहुत ही आन्नद आया.
जवाब देंहटाएंयोगेश समदर्शी सोंधी मिट्टी के कवि हैं। जमीन से जुड कर लिखना ही उनकी रचनात्मकता है। जो पंक्तिया कविता को उठा रही हैं दर असल हमारी आत्मा को वे झकझोर रहीं है कि हम क्या हो गये।
जवाब देंहटाएं"कुएं खुद ही मर गये झेल झेल कर प्यास
अबकी लौटा गांव तो, बरगद मिला उदास"
"चिडिया सब चुप हो गई, कग्गे भये निराश"
"दारू पी कर सभ्यता, खेल रही थी तास"
"कैसी शिक्षा पा गये, बदल गया व्यवहार
चावल ढाई हो गया, हुक्के सबके पास"
कविता वही है जिसमें शब्द बात करते हैं। कविता वही है जो आपके भीतर उतरे और एसी कवितायें निस्संदेह गहन हैं, महत्वपूर्ण भी।
***राजीव रंजन प्रसाद
प्रशंशा के लिये शब्द नहीं हैं। आपकी आवाज में गीत नें आँख नम कर दी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर |
जवाब देंहटाएंअवनीश
Yogesh jee,
जवाब देंहटाएंAapkee is kavita mein
dard khulkar saamne aayaa hai.
Maatrik chhand"Doha"
mein kahee yah kavita geet,gazal
sab kuchh hai.Pahlee do panktion
ko agar is tarah kaha jaaye-
Ab kee lauta gaanv to
bargad milaa udaas
patthar ke dil ho gaye
pathreele aavaav
sher ke kisee matle se kam nahin
hai.
Achchhee kavita ke liye
badhaaee
वाह ! सुंदर भावाभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंओह ! मन मुग्ध हो गया !
कटु यथार्थ का जीवंत रूप आपने सम्मुख उपस्थित कर दिया.....पंकितियाँ ह्रदय में गहरे उतर गयीं.वाह !
अतिसुन्दर और सरस इस रचना हेतु धन्यवाद स्वीकारें.
bahut sundar kavita hai.
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक रचना है।
जवाब देंहटाएंकुएं खुद ही मर गये झेल झेल कर प्यास
अबकी लौटा गांव तो, बरगद मिला उदास
बहुत सुंदर
पत्थर के दिल हो गये, पथरीले आवास
जवाब देंहटाएंअबकी लौटा गांव तो, बरगद मिला उदास
फसलें सहमी झुलस कर, काट रही थी दिन
और खेत सूने मिले, हल बैलों के बिन
कुएं खुद ही मर गये झेल झेल कर प्यास
अबकी लौटा गांव तो, बरगद मिला उदास
wah aapki kavita jab bhi padhti hoon dil mein ghar jaane ki kasak uthti hai
उग आई आंगन कई, मोटी सी दीवार
कितना निष्ठुर हो गया, आपस में परिवार
चिडिया सब चुप हो गई, कग्गे भये निराश
अबकी लौटा गांव तो, बरगद मिला उदास
is baar aapne dukh likha hai
रिश्ते बेमानी हुए, सगे सौतेले लोग
स्वास्थ्य से दुश्मनी, घर घर बैटे रोग
दारू पी कर सभ्यता, खेल रही थी तास
अबकी लौटा गांव तो, बरगद मिला उदास
yahi aajkal ki sachhayi hai
अपने तक सीमित हुए, जो थे बडे उदार
कैसी शिक्षा पा गये, बदल गया व्यवहार
चावल ढाई हो गया, हुक्के सबके पास
अबकी लौटा गांव तो, बरगद मिला उदास
hmm shiksha shayad shikshit log kitaabon se mil lete hain aur duniydari bhol jaate hain
bahut hi bhavuk kavita hai
kal se aapki aawaz sunnne ki koshish kar rahi hoon nahi sun saki
ho sake to iski file mujhe email kar de bhiyaa ji
पत्थर के दिल हो गये, पथरीले आवास
जवाब देंहटाएंअबकी लौटा गांव तो, बरगद मिला उदास
योगेश जी,
आपकी कविता और आवाज
दोनों का दर्द उदास कर रहा है ।
Yogesh ji, badhai aapko aur Sahitya Shilpi ho bhee! Bhagwan aapki kalam ko aur bhee majbooti pradan karen, yahi meri kamna hai.
जवाब देंहटाएंMahendra Awdhesh
yogesh ji
जवाब देंहटाएंi am speechless on this wonderful poem .. yaar , meri to aankh nam ho gayi ,, gaon ki yaad dila di..
badhai
dil se badhai
रिश्ते बेमानी हुए, सगे सौतेले लोग
जवाब देंहटाएंस्वास्थ्य से दुश्मनी, घर घर बैटे रोग
दारू पी कर सभ्यता, खेल रही थी तास
अबकी लौटा गांव तो, बरगद मिला उदास
bahut sunder shabd rachna yogesh ji . badhai
रिश्ते बेमानी हुए, सगे सौतेले लोग
जवाब देंहटाएंस्वास्थ्य से दुश्मनी, घर घर बैटे रोग
दारू पी कर सभ्यता, खेल रही थी तास
अबकी लौटा गांव तो, बरगद मिला उदास
bahut sunder shabd rachna yogesh ji . badhai
yogesh ji,
जवाब देंहटाएंwaaqai aapne jhanjod kar rakh diya. delhi me maheeno tak kaam me phanse rehne ke baad jab do ek din ke liye ghar jaate hain, to vahaan ke badalte maahaul ko dekh kar aisa hi dukh mehsoos hota hai, jaisa aapko hua. likhte rahiye... ALLAH KAREY ZOREY QALAM AUR ZIYAADA...!
---moinSHAMSI
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