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एकता का जन्म [लघुकथा] - सूरजप्रकाश


बहू को दर्द उठा है। सबके हाथ-पाँव फूल गए हैं । कैसे ले जाएँ इस समय अस्पताल। चारों तरफ मार-काट मची हुई है। चप्पे- चप्पे पे आग। दंगाईयों के दल लूट-पाट करते,कत्ल करते घुम रहें हैं। घर से निकलना, एकदम नामुमकिन। इधर जितनी देर होगी उतना रिस्क बढ़ता जाएगा।

रोना-धोना सुनकर पड़ोसन जागती है। स्थिति भाँपती है। किसी तरह गली-गली बचते-बचाते शकील मियाँ के घर पहुँचती है। दंगों के चक्कर में कई दिन से ऑटो खड़ा है । फाँके हो रहे हैं। वह सारी बात शकील मियाँ को बताती है। वे तुरन्त खड़े होते हैं- चलो मेरे साथ।

पाँच ही मिनटों बाद उनका ऑटो मरीज और दो औरतों को लेकर अस्पताल की तरफ जा रहा है।

दंगाइयों की भीड़ ऑटो रोक लेती है। मुसलमान ड्राइवर को देखते ही बाहर घसीट लिया जाता है।

शकील मियाँ चिल्लाते हैं - 'मैं मुसलमान । मुझे बेशक रोक लो , लेकिन इस हिन्दू बहन को जल्द अस्पताल पहुँचाओ। इसकी जान खतरे में है’। दंगाइयों के हाथ रूक जाते हैं।

शकील मियाँ ऑटो में ‍बिठा दिए जाते हैं। उनके ऑटो के साथ ही दसियों लोग चल पड़ते हैं। अस्पताल पहुँचते ही वह एक खूबसूरत बच्ची को जन्म देती है। तुरंत उसका नामकरण कर दिया जाता है -- एकता।

रचनाकार परिचय:-


सूरज प्रकाश का जन्म १४ मार्च १९५२ को देहरादून में हुआ। आपने विधिवत लेखन १९८७ से आरंभ किया। 

आपकी प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें हैं: - अधूरी तस्वीर (कहानी संग्रह) 1992, हादसों के बीच - उपन्यास 1998, देस बिराना - उपन्यास 2002, छूटे हुए घर - कहानी संग्रह 2002, ज़रा संभल के चलो -व्यंग्य संग्रह – 2002। इसके अलावा आपने अंग्रेजी से कई पुस्तकों के अनुवाद भी किये हैं जिनमें ऐन फैंक की डायरी का अनुवाद, चार्ली चैप्लिन की आत्म कथा का अनुवाद, चार्ल्स डार्विन की आत्म कथा का अनुवाद आदि प्रमुख हैं। आपने अनेकों कहानी संग्रहों का संपादन भी किया है। 

आपको प्राप्त सम्मानों में गुजरात साहित्य अकादमी का सम्मान, महाराष्ट्र अकादमी का सम्मान प्रमुख हैं। आप अंतर्जाल को भी अपनी रचनात्मकता से समृद्ध कर रहे हैं।

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21 टिप्पणियाँ

  1. एसी एकता के बहुत आवश्यकता है। बहुत अच्छी लघुकथा है।

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  2. भातर की असल संस्कृति आपकी लघुकथा में प्रस्तुत हुई है। वास्तव में यह एकता गहरी है, एसे उदाहरण अनेकों हैं। और एसे उदाहरण इस समंवय के खिलाफ षडयंत्र को अंगूठा भी अच्छी तरह दिखाते हैं।

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  3. एकता और भाईचारे को बढावा देती अच्छी कहानी...तालियाँ

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  4. सूरज जी द्वयं में एक संस्था है। उन पर टिप्पणी करने में स्वयं को बौना पाती हूँ। लघुकथा प्रेरक है। एसी लघुकथाओं को पाठ्यक्रम का हिस्सा होना चाहिये

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  5. ऐसी बन सकें स्थितियां
    यही चाहना है
    हमारी ही
    नहीं, सबकी, उनकी भी
    पर है कोई और जो, है
    पैदा करता हैवानियत इस
    जमीं पर, लहू से रंगता।

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  6. अत्यन्त सुंदर लघुकथा के लिए ढेरों बधाईयाँ !

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  7. सूरज जी प्रणाम। इस मंच पर आपकी बहुत सी लघुकथायें पढीं। आप की लघुकहानियाँ बहुत विस्तृत हैं, उनका प्रभावक्षेत्र अनंत है।

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  8. आज ऐसी ही हजारों एकता के जन्‍म लेने की आवश्‍यकता है.... इतनी सुंदर सोंच और इसे इतने सुंदर ढंग से अभिव्‍यक्ति दे पाने के लिए बधाई।

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  9. मैं रितु जी की बात को दोहराना चाहूँगा कि एसी कहानियाँ पाठ्यपुस्तकों का हिस्सा होनी चाहिये, यह मैं एक अध्यापक होने के कारण भी कह रहा हूँ। एकता का एसे ही जन्म होगा।

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  10. एकता का जन्म बहुत अच्छी लघुकथा है। इसका संदेश स्पष्ट है और किसी को भी सीधे समझ आता है।

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  11. एक प्रेरक लघुकथा।

    बधाई स्वीकारें!

    -विश्व दीपक

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  12. suraj ji

    aapki tareef karna ,suraj ko diya dhiklane jaisa honga..

    what a thought , what an expression, waah ji waah

    main to hamesha se aapki kahaniyon ka kaayal raha hoon .. bahut behtreen ..

    mujhe wo aapki pichli kaahani ab tak yaad hai ..

    bahut dil se badhai

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  13. बहुत अच्छी लघुकथा....

    ढेरों बधाईयाँ ....

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  14. आदरणीय सूरजप्रकाश जी अपने नाम के अनुरूप ही कथाजगत में स्थान रखते हैं। आपकी प्रस्तुत लघुकथा बह्त साधारण तरीके से कही अवश्य गयी है लेकिन संप्रेषित सशक्तता से हो रही है।

    ***राजीव रंजन प्रसाद

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  15. बहुत अच्छी लघुकथा है। इतने सुंदर ढंग से अभिव्‍यक्ति दे पाने के लिए बधाई।

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  16. He ishwar ,beshak matbhed hon aapas me....par kripa kar sari duniya ko aisa hi bana de...

    Bahut bahut sundar aur prernadayak is laghukatha hetu kotishah aabhaar.

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  17. एकदम सटीक। ऐसी एकता का कब वास्तव में जन्म होगा??

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  18. सुंदर लघुकथा के लिए ढेरों बधाईयाँ हमारे देश को एकता की बहुत आवश्यकता है

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  19. Jati paati ke bhed bhav ko Mitane ke liye Aisa sangam EKTA atti uttam hai. Sandeshatmak ....

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