
योगेन्द्र मौदगिल हास्य-व्यंग्य के कवि एवं गज़लकार हैं। आपकी कविताओं की ६ मौलिक एवं १० संपादित पुस्तकें प्रकाशित हैं। आपको अनेकों सम्मान प्राप्त हुए हैं जिनमें २००१ में गढ़गंगा शिखर सम्मान, २००२ में कलमवीर सम्मान, २००४ में करील सम्मान, २००६ में युगीन सम्मान, २००७ में उदयभानु हंस कविता सम्मान व २००७ में ही पानीपत रत्न प्रमुख हैं। आप हरियाणा की एकमात्र काव्यपत्रिका कलमदंश का ६ वर्षों से निरन्तर प्रकाशन व संपादन कर रहे हैं।
जब भी रंग बदलता पानी.
खुद को खुद से छलता पानी.
पृथ्वी का अनमोल खज़ाना,
उगती फसलें-चलता पानी.
कहीं त्रासदी-कहीं ज़िन्दगी,
मीलों-मील उछलता पानी.
दुनिया भर ऐसे पसमंज़र,
भूखे पेट-उबलता पानी.
उस की मर्जी दे या ना दे,
आंखें और छलकता पानी.
24 टिप्पणियाँ
दुनिया भर ऐसे पसमंज़र,
जवाब देंहटाएंभूखे पेट-उबलता पानी.
-बहुत उम्दा.आनन्द आ गया.
दुनिया भर ऐसे पसमंज़र,
जवाब देंहटाएंभूखे पेट-उबलता पानी.
बहुत खूब।
Nice Gazal
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
बहुत सुंदर ग़ज़ल!
जवाब देंहटाएंकहीं त्रासदी-कहीं ज़िन्दगी,
जवाब देंहटाएंमीलों-मील उछलता पानी.
" पानी के बिना जीवन की कल्पना भी मुश्किल है.... जानदार अभिव्यक्ति.....एक गीत याद आ गया... पानी रे पानी तेरा रंग कैसा ..जिस मे मिला दो लगे उस जैसा....."
Regards
BAHOT HI BADHIYA LAHAZA AUR BHAV BHARE BAHOT KHUB LIKHA HAI AAPNE DHERO BADHAI AAPKO...
जवाब देंहटाएंARSH
गुरू जी,
जवाब देंहटाएंइतने कम शब्दों में इतनी बढी बात कैसे कह लेते हैँ आप?....
बहुत ही बढिया....आनन्द आ गया
उस की मर्जी दे या ना दे,
जवाब देंहटाएंआंखें और छलकता पानी.
बहुत अच्छी ग़ज़ल। बधाई योगेन्द्र जी।
कमाल के शेर हैं। एक से बढ कर एक।
जवाब देंहटाएंपृथ्वी का अनमोल खज़ाना,
जवाब देंहटाएंउगती फसलें-चलता पानी.
दुनिया भर ऐसे पसमंज़र,
भूखे पेट-उबलता पानी.
पानी की महिमा अपरंपार है आपने बदी बदी बाते उसकी उपमा ले कर कह दीं।
अच्छी ग़ज़ल के लिये बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंअच्छी ग़ज़ल के लिये बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंवाह .. बहुत सुन्दर लिखा है आपने.. जीवन के सत्य के बहुत करीब की बातें...
जवाब देंहटाएंसच ही कहा है किसी ने
इक झोली में फ़ूल भरे हैं एक झोली में कांटे
तेरे बस में कुछ भी नहीं यह तो बांटने वाला बांटे
..... कोई तो कारण होगा..२
दुनिया भर ऐसे पसमंज़र,
जवाब देंहटाएंभूखे पेट-उबलता पानी.
bahut umda!!
उस की मर्जी दे या ना दे,
जवाब देंहटाएंआंखें और छलकता पानी.
एक से बढ कर एक शेर....
योगेन्द्र जी।
बहुत सुंदर ग़ज़ल....
बधाई
MAUDGIL SAHIB,
जवाब देंहटाएंCHHOTEE BAHAR KO KHOOB NIBHAAYA HAI AAPNE,GOYAA GAAGA
MEIN SAAGAR BHAR DIYAA.YAH SAB
LAGTA HAI KI AAPKE "YOG"KAA
KARISHMAA HAI.
दुनिया भर ऐसे पसमंज़र,
जवाब देंहटाएंभूखे पेट-उबलता पानी.
बहुत अच्छी रचना.. बधाई
उस की मर्जी दे या ना दे,
जवाब देंहटाएंआंखें और छलकता पानी.
कोई उस्ताद ही ऐसे शेर कह सकता है...और हमारे योगेन्द्र भाई तो उस्तादों के उस्ताद हैं...मान गए भाई...क्या लिखा है...वाह...
नीरज
बहुत सुंदर ग़ज़ल!आनन्द आ गया.
जवाब देंहटाएंआप तो शब्दों के बाजीगर हैं। अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत पसंद आया
जवाब देंहटाएं---
गुलाबी कोंपलें ।
चाँद, बादल और शाम
जब भी रंग बदलता पानी.
जवाब देंहटाएंखुद को खुद से छलता पानी.
बहुत उम्दा...
आप सभी की सम्मतियों के प्रति अभिभूत हूं......
जवाब देंहटाएंhar line bhaut hi achhse bandhi gayi hain
जवाब देंहटाएंor bahut hi saathak bandh hain
uchh bhav
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