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परिन्दे [कविता] - सुभाष नीरव


परिन्दे
मनुष्य नहीं होते।


रचनाकार परिचय:-

सुभाष नीरव का जन्म 27–12–1953 को मुरादनगर (उत्तर प्रदेश) में हुआ। आप मेरठ विश्वविद्यालय से स्नातक हैं।

आपकी प्रमुख प्रकाशित कृतियाँ हैं:- ‘यत्कचित’, ‘रोशनी की लकीर’ (कविता संग्रह), ‘दैत्य तथा अन्य कहानियाँ’, ‘औरत होने का गुनाह’, ‘आखिरी पड़ाव का दु:ख’(कहानी-संग्रह), ‘कथाबिंदु’(लघुकथा–संग्रह), ‘मेहनत की रोटी’(बाल कहानी-संग्रह) आपनेँ लगभग 12 पुस्तकों का पंजाबी से हिंदी में अनुवाद, जिनमें “काला दौर”, “कथा-पंजाब – 2”, कुलवंत सिंह विर्क की चुनिंदा पंजाबी कहानियाँ”, “पंजाबी की चर्चित लघुकथाएं”, “तुम नहीं समझ सकते”(जिन्दर का कहानी संग्रह), “छांग्या रुक्ख”(बलबीर माधोपुरी की दलित आत्मकथा) और “रेत” (हरजीत अटवाल का उपन्यास) प्रमुख हैं। आप अनियतकालीन पत्रिका ‘प्रयास’ और मासिक ‘मचान’ का संपादन भी कर रहे हैं।

आप हिन्दी में लघुकथा लेखन के साथ-साथ पंजाबी-हिन्दी लघुकथाओं के श्रेष्ठ अनुवाद के लिए ‘माता शरबती देवी स्मृति पुरस्कार, 1992’ तथा ‘मंच पुरस्कार, 2000’ से सम्मानित।

वर्तमान मे आप भारत सरकार के पोत परिवहन मंत्रालय में अनुभाग अधिकारी(प्रशासन) के पद पर कार्यरत हैं।

धरती और आकाश
दोनों से रिश्ता रखते हैं परिन्दे।

उनकी उड़ान में है अनन्त व्योम
धरती का कोई टुकड़ा
वर्जित नहीं होता परिन्दों के लिए।

घर-आँगन, गाँव, बस्ती, शहर
किसी में भेद नहीं करते परिन्दे।

जाति, धर्म, नस्ल, सम्प्रदाय से
बहुत ऊपर होते हैं परिन्दे।

मंदिर में, मस्जिद में, चर्च और गुरुद्वारे में
कोई फ़र्क नहीं करते
जब चाहे बैठ जाते हैं उड़कर
उनकी ऊँची बुर्जियों पर बेखौफ!
कर्फ्यूग्रस्त शहर की
खौफजदा वीरान-सुनसान सड़कों, गलियों में
विचरने से भी नहीं घबराते परिन्दे।

प्रांत, देश की हदों-सरहदों से भी परे होते हैं
आकाश में उड़ते परिन्दे।
इन्हें पार करते हुए
नहीं चाहिए होती इन्हें कोई अनुमति
नहीं चाहिए होता कोई पासपोर्ट-वीज़ा।

शुक्र है-
परिन्दों ने नहीं सीखा रहना
मनुष्य की तरह धरती पर।

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17 टिप्पणियाँ

  1. शुक्र है-
    परिन्दों ने नहीं सीखा रहना
    मनुष्य की तरह धरती पर।

    बहुत अच्छी कविता।

    जवाब देंहटाएं
  2. परिन्‍दे
    परिन्‍दे होते हैं सिर्फ
    नहीं होते किसी सरकार के कारिन्‍दे
    न ही होते हैं दानवता के दरिन्‍दे
    परिन्‍दे परिन्‍दे होते हैं सिर्फ


    मन से प्रवाहमान होते हैं मगन वे
    अपनी धुन में, जमीं और गगन में
    नोंच डालते हैं पंख तो हमीं उनके
    जब डोल रहे होते हैं परिन्‍दे जमीं पे।

    भावों को आलोडि़त सुभाष नीरव जी
    की एक सुरम्‍य रचना।

    जवाब देंहटाएं
  3. पंछी बनूँ उड़ता फिरूँ मस्त गगन में

    आज मैँ आज़ाद हूँ दुनिया के चमन में


    अच्छी कविता

    जवाब देंहटाएं
  4. शुक्र है-
    परिन्दों ने नहीं सीखा रहना
    मनुष्य की तरह धरती पर।

    " sunder ati sundr"

    Regards

    जवाब देंहटाएं
  5. प्रांत, देश की हदों-सरहदों से भी परे होते हैं
    आकाश में उड़ते परिन्दे।
    इन्हें पार करते हुए
    नहीं चाहिए होती इन्हें कोई अनुमति
    नहीं चाहिए होता कोई पासपोर्ट-वीज़ा।
    ....Bahut sundar bhavabhivyakti !!

    जवाब देंहटाएं
  6. मंदिर में, मस्जिद में, चर्च और गुरुद्वारे में
    कोई फ़र्क नहीं करते
    जब चाहे बैठ जाते हैं उड़कर
    उनकी ऊँची बुर्जियों पर बेखौफ!

    विमर्श के लिये बहुत अच्छी रचना है।

    जवाब देंहटाएं
  7. परिन्दे
    मनुष्य नहीं होते।

    यह पंक्ति ही बहुत कुछ कह जाती है।

    जवाब देंहटाएं
  8. मानभावन भावभरी रचना.

    वैसे परिन्दे किसी जाति धर्म सम्प्रदाय को नहीं मानते मगर मनुष्य ने अपनी सहुलियत के लिये उनका भी वर्गीकरण कर रखा है..

    अच्छा है उन्होंने मनुष्य की नकल नहीं की..
    वैसे मनुष्य के पास अभी भी बहुत कुछ है उनसे सीखने के लिये.

    जवाब देंहटाएं
  9. पंछी के माध्यम से वर्तमान हालात को बयान कर दिया है आपने। बहुत अच्छे।

    जवाब देंहटाएं
  10. प्रांत, देश की हदों-सरहदों से भी परे होते हैं
    आकाश में उड़ते परिन्दे।
    इन्हें पार करते हुए
    नहीं चाहिए होती इन्हें कोई अनुमति
    नहीं चाहिए होता कोई पासपोर्ट-वीज़ा।

    शुक्र है-
    परिन्दों ने नहीं सीखा रहना
    मनुष्य की तरह धरती पर।

    टिप्पनी की गुंजायिश नहीं। सच है।

    जवाब देंहटाएं
  11. शुक्र है-
    परिन्दों ने नहीं सीखा रहना
    मनुष्य की तरह धरती पर।

    सही कहा आपने। शुक्र है परिंदे आदमी नहीं हैं।

    जवाब देंहटाएं
  12. AAPKEE SASHAKT KAVITA PADHKAR MUJHE
    APNA EK SHER YAAD AA GAYAA HAI--
    VE AAPAS MEIN TO LADTE HAIN
    MAGAR PANCHHEE KO PANCHHE SE
    KOEE PANCHHE LADAATAA HAI
    KABHEE HUM NE NAHIN DEKHA
    BADHAAEE

    जवाब देंहटाएं
  13. शुक्र है-
    परिन्दों ने नहीं सीखा रहना
    मनुष्य की तरह धरती पर।


    is panktin ne jaise man moh liya
    bhaut kamaal

    जवाब देंहटाएं

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