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उचित शब्द प्रयोग तथा विश्वसनीयता [ग़ज़ल : शिल्प और संरचना] - प्राण शर्मा


शब्द को उचित स्थान पर प्रयोग करना



रचनाकार परिचय:-


प्राण शर्मा वरिष्ठ लेखक और प्रसिद्ध शायर हैं और इन दिनों ब्रिटेन में अवस्थित हैं।

आप ग़ज़ल के जाने मानें उस्तादों में गिने जाते हैं। आप के "गज़ल कहता हूँ' और 'सुराही' - दो काव्य संग्रह प्रकाशित हैं, साथ ही साथ अंतर्जाल पर भी आप सक्रिय हैं।
शेर में शब्द को उचित स्थान पर प्रयोग करना ग़ज़ल की विशेषताओं में से एक है। 'तुम क्या खा रहे हो' को 'क्या तुम खा रहे हो।' लिखने से मानी बदल जाते है। 'और जीवन में कुछ मुस्काओ तो' को 'कुछ जीवन में मुस्काओ तो' लिखने से अर्थ का अनर्थ हो जाता है। शेर में शब्द का सही स्थान पर आना शेर के साथ-साथ उसके अपने सौष्ठव में वृद्धि करता है। उसकी अस्त-व्यस्त प्रस्तुति आकाश को छूनेवाले भाव व बिम्ब प्रतीक को बेमानी बना देती हैं। माना कि एक सफल ग़ज़लकार ग़ज़ल संबंधी समस्त विशेषताओं से परिचित होता है लेकिन यह ज़रूरी नहीं कि वह सदा सजग रहता है और किसी विशेषता से चूकता नहीं है यानी कभी भूल नहीं करता है। कहते हैं कि बड़े से बड़ा पहलवान भी हर तरह का दाव पेंच जानने के बावजूद कभी कभार अखाड़े में चारों खाने चित हो जाता है। वास्तव में 'ग़ालिब का है अंदा़जे बयाँ और' हर किसी शायर में मुमकिन नहीं है। इ़कबाल का शेर है-

माना कि तेरे दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं
तू मेरा शौक देख, मेरा इंतज़ार देख
'मेरा शौक़ कहना सही है लेकिन 'मेरा इंतज़ार' कहना ग़लत है। इंतज़ार तो 'तेरा' 'उसका' या किसी अन्य का होता है। यदि शायर का मंतव्य है कि तेरे इंतज़ार में मेरा शौक देख तो शब्द शेर में उचित स्थान पर आने से चूक गए हैं।

शेर में कभी 'आप' कभी 'तुम' लिखना भी ऐब है। नियम है कि यदि शेर के एक मिसरे में 'आप' का प्रयोग किया जाता है तो दूसरे मिसरे में भी उसको उसके अनुरूप ही निर्वाह किया जाना चाहिए। एक मिसरे में आप और दूसरे मिसरे में 'तुम' या 'तू' का प्रयोग खलता तो है ही; साथ में हास्यापद भी लगता है। साथी छतारवी की निम्नलिखित पंक्तियों में इस दोष को साफ़ देखा जा सकता है-

मेरे इस हतभागी मन ने गिन-गिन तारे रात गुज़ारी
कई बार कमीने घर में, ठहरी है औकात हमारी
"कमीना" शब्द वैसे भी ग़ज़ल या कविता के लिए अनुपयुक्त है।
मेरी रचनाधर्मिता के प्रारंभिक दिनों में मैंने भी ऐसी कई भूलें की थी। एक शेर पढ़िए-

पत्ती-पत्ती उदास थी तुझ बिन
आप आए तो खिल उठा गुलशन

अविश्वसनीयता, निराधार और तथ्य विरोधी शेर


अविश्वसनीयता, निराधार और तथ्य विरोधी बयान भी शेर को लील लेते हैं। ऐसे दोषों के कई शेर शिकार हैं। एक बार धर्मयुग पत्रिका में मैंने सूर्य भानु गुप्त के एक शेर पर चुटकी लेते हुए प्रतिक्रिया लिखी थी- "अध्यापक ने बच्चों से पूछा- "बताओ, साल भर में कितने दिन होते हैं?" "तीन सौ पैंसठ" बच्चे एक स्वर में बोले। लेकिन हिन्दी के जाने-माने गज़लकार सूर्य भानु गुप्त कैसे चूक गए हिसाब में? वो लिखते हैं--

एक दिन भीगता है मेले में
साल भर सूखता है सन्नाटा
आम धारणा है कि दंगों-फसादों में अधिकाँश गरीब ही मारे जाते हैं और उनके झोपड़ीनुमा मकान ही जलाए जाते हैं। पढिये यह शेर-

ये सच है झोपड़े ढाते हुए सबको ही देखा है
कोई महलों को ढाता है कभी हम ने नहीं देखा -प्राण शर्मा
ज्ञान प्रकाश का निम्न शेर वास्तविकता से कितना दूर है, सुधी पाठक स्वयं इसका निर्णय कर सकते हैं-

ढह गए थे जो भवन पिछले बरस दंगों में
उनको इस साल सँवरता हुआ देखूँ तो चलूँ
इस शेर के बारे में समीक्षक राम नारायण के विचार ध्यान देने योग्य हैं- "आज साधारण से साधारण आदमी ये समझता है कि दंगों का शिकार आम आदमी और गरीब की झोंपड़ी
अधिक होती है किंतु गज़लकार की चिंता भवन के प्रति है जो दरअसल दंगाईओं और आकाओं के ही हितसाधक अड्डे हैं। इस शेर में "भवन" की जगह "घर" या "मकानात" शब्द लाया जाता तो कथ्य को सही अभिव्यक्ति मिल सकती थी।
ज्ञान प्रकाश के इस शेर में भी इतिहास बोध का अभाव है-

भटकने के लिए दुनिया के रहनुमाओं ने
जमी पे इक फिलिस्तान भी बनाया है
राम नारायण सही कहते हैं कि फिलिस्तान तो पहले से है, बनाया तो इस्रायल गया है।
दुष्यंत कुमार का शेर है-

न हो कमीज़ तो पाँवों से पेट ढँक लेंगे
ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफर के लिए
क्या पेट पाँवों से भी ढका जा सकता है?
पंकज सुबीर का शेर है----

कोई आया है नीचे
दिल की खिड़की खोल मियाँ
दिल का दरवाजा होता तो बात बनती। निम्न शेर में देखिये कि खिड़की का इस्तेमाल किस खूबसूरती से हुआ है-

आप खिड़की तो खोलिए साहिब
देखिये कौन नीचे आया है
बाल स्वरुप राही का शेर है -

गर ये किस्से सँभाले जायेंगे
पुस्तकों तक में हवाले जायेंगे
किस्से तिलिस्मी भी होते हैं, इश्क के भी और रूहानी भी। किस किस्से की तरफ़ गज़लकार का संकेत है?
कन्हैया लाल वाजपेयी का शेर है-

जब से ये रोग लग गया मुझ को
दिन अक्सर बीते उपवास में
गज़लकार के "ये रोग" से स्पस्ट नहीं है कि वह किस रोग के शिकार हैं?
गौतम सचदेव का शेर है-

आग दिल में ओर शोले कुल जहाँ में
एक चिंगारी पडी मीनार पीछे
वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर विनाशक विस्फोट था। हजारों लोगों की जानें गयी। उस विस्फट से सकल विश्व आतंकित हुआ। उसको चिंगारी कहना हाथी को चींटी कहना है।
कैलाश गौतम का शेर पढिये-

छोटी सी वह भूल तुम्हारी नींद हुआ करती है मेरी
चादर जैसे तह करके मैं रखता हूँ सिरहाने जी
कैलाश गौतम के शेर में भूल ओर नींद का कोई ताल-मेल नज़र नहीं आता है। चादर की उपमा भी उलझी-उलझी सी है।
एक दृष्टि सत्य पाल नांगिया के शेर पर भी डालिए--

दीवानों का इश्क जहाँ में फलते-फलते फलता है
खोटा सिक्का चलता है पर चलते-चलते चलता है
यहाँ इश्क को खोटा सिक्का बना दिया गया है।

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23 टिप्पणियाँ

  1. प्रणाम प्राण साहब, अच्छा लेख लिखा है! बहुत कुछ ज्ञानवर्धन हुआ!

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  2. Thanks Pran Sir, a complete article.

    Alok Kataria

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  3. आपके आलेख की प्रतीक्षा इसी लिये रहती है क्योंकि कुछ नया कुछ विशेष हमेशा होता है आपने आलेखों में। अन-छुवे पहलु जो कोई सोचना भी नहीं।

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  4. आप और तुम जैसी गलतियाँ तो आप है। आज कल शब्दों में जान बूझ कर "कमीने" जैसे शब्द भी डाले जाते हैं बिलकुल वैसे ही जैसे चीख कर कोई बात सिद्ध करने की कोशिश की जाये। विश्वसनीयता भी एक एसा पहलु है जिसपर एक नजर में ध्यान नही दिया जाता। शायर को अपना लिखा बार बार पढना और सुधारना चाहिये। आपसे अनुरोध करूंगा कि ग़ज़ल और अलंकारों के संबंध पर भी प्रकाश डालें।

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  5. बहुत अच्छा आलेख है। विश्वसनीयता का अभाव शायरों में अलंकारों के अल्पज्ञान के कारण भी होता है और वे अपनी उपमाओं का सही स्थान पर प्रयोग नहीं करते। आपका लेख आसानी से समझ में आने वाला है मेरा अनुरोध है कि अगली कडियों में नंदन जी की माँग पूरी कर दीजिये।

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  6. "प्राण जी द्वारा लिखे आज के लेख ने बहुत ज्ञानवर्धन किया और रोचक जानकारी दी.....आभार इस लेख के लिए "

    Regards

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  7. शेर में उचित शब्दों के प्रयोग व विश्वसनीयता पर जानकारी प्रदान करने के लिये धन्यवाद।

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  8. लेख पढ कर आँख खुली। इकबाल साहब के शेर का जो उदाहरण आपने दिया है वह बहुत सरलता से उचित शब्दों के प्रयोग को समझाता है। सही कहा है किसी नें कि करत करत अभ्यास के जदमति होत सुजान यानि कि कविता लिखनी है तो अभ्यास भी चाहिये। एक और बात की प्रशंसा करूंगी कि आपके लेख केवल ग़ज़ल के लिये ही नहीं है कविता की हर शैली में एसी गलतियाँ आम हैं।

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  9. ग़ज़ल की कक्षायें इस मुकाम पर आ गयी हैं कि जो विद्यार्थी ग़ज़ल सीख समझ रहे हैं उनकी शायरी पर भी बात होती रहे। मैं प्राण जी से आग्रह करूंगा कि चार सप्ताह के इस क्रम में एक सप्ताह उन गज़लों पर बात हो जो नये शायर हैं व अपनी त्रुटियाँ जानना चाहते हैं।

    उचित शब्द प्रयोग तथा विश्वसनीयता पर लेख सार्थक है।

    अनुज कुमार सिन्हा

    भागलपुर

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  10. इस प्रभावी आलेख को प्रस्तुत करने का आभार।

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  11. आदरणीय प्राण जी का प्रस्तुत आलेख वह पहलु है जिस पर एक विषय-विशेषज्ञ ही ध्यान दे सकता है। कविता या गज़ल केवल शब्दों और उपमाओं का मनोभावानुकूल प्रस्तुतिकरण ही तो नहीं है। व्याकरण सम्मतता ही किसी रचना को महान बना सकती है साथ ही अनिवार्य शर्त है भाषा का ध्यान रखा जाना व उसका विश्वसनीय होना।

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  12. ग़ज़ल सोमवार का रहता है इंतज़ार।

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  13. बाज की सी पैनी नजर से किया गया विशलेषन..
    ज्ञानवर्धक लेख के लिये आभार

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  14. मैं आपसे इस लिये प्रभावित हूँ कि हिन्दी में गज़ल कैसे लिखी जा सके उसके लिये आपने बहुत मेहनत कर के अपने लेख तैयार किये हैं। उर्दू के नीयमों को हिन्दी के अनुरूप कर सरल कर के आप ने हमें दिया।

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  15. शब्द प्रयोग पर अनुपम उदाहरण के साथ आलेख प्रदान करने का धन्यवाद।

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  16. मैं दिल्ली वि वि में छात्रा हूँ और इंटरनेट हिन्दी की दुनियाँ में नयी हूँ। खुशी हुई इस वेबसाईट को देख कर।

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  17. PANKAJ SUBEER KE SHER KO YUN
    PADHIYE---
    KOEE AAYAA HAI BAHAR
    DIL KEE KHIDKEE KHOL MIYAN

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  18. NIDHI AGGARWAL JEE ,AAPNE SAHEE
    KAHAA HAI KI --
    KARAT-KARAT ABHYAAS KE
    JADMATI HOT SUJAAN

    PANKAJ AUR NANDAN JEE,AAJ KAL MAIN
    KAVITA ,GEET AUR GAZAL MEIN ANTAR
    AUR GAZAL AUR ALANKAAR PAR KAAM
    KAR RAHAA HOON.DO-TEEN MAHINON KE
    BAAD LEKHON KO LEKAR HAAZIR HOONGA.

    ANUJ JEE,YE LEKH NAYE GAZALKARON
    AUR KAVION KE LIYE HEE HAIN.

    EK BAAT YAAD RAKHIYE KI GEET HO
    YAA KAVITA BAHUT KOMAL HAI,GAALIYAN
    DENE KE LIYE NAHIN BANEE HAI.

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  19. Sir ji,
    pahile hi sher likhne mein itni mushkil hoti hai aur itni sari baaten dhaayn rakhna
    baap re..............

    magar aapse seekhna bahut achha lag raha hai
    jitna aapko pad rahi hoon utni hi natmastak hoti jaa rahi hoon


    sach hai jab ped falon se lad jata hai jhut jata hai

    sadar naman
    Shrdda

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  20. प्राण शर्मा जी का यह लेख उनके अन्य लेखों की भांति ज्ञानवर्धक है. आशा है यह क्रम चलता रहेगा और गीत, कविता और ग़ज़ल आदि लिखने वालों को उचित राह और प्रोत्साहन मिलेगा. ग़ज़ल में रूचि रखने वाले शर्मा जी के हमेशा आभारी रहेंगे.

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  21. प्राण जी ने बेहद उपयोगी जानकारी प्रदान की है। सबसे अच्छी बात यह है कि प्राण जी बस रदीफ़, काफ़िया या फिर बहर की हीं जानकारी नहीं दे रहे, बल्कि उन बातों पर भी प्रकाश डाल रहे हैं जो बाकी लोग नज़र-अंदाज़ कर जाते हैं।

    प्राण जी का तहे-दिल से शुक्रिया।

    -विश्व दीपक

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  22. आदरणीय प्राण शर्मा जी
    गजल के शिल्प और संरचना पर आपके लेख बहुत ध्यान से पढता हूं और बहुत सी जानकारी भी प्राप्त हुई जो पहले नहीं थी.

    परन्तु इस लेख में मुझे लगा कि कुछ बातें ऐसी होती हैं जो सिर्फ़ लेखक के विचारों में होती हैं जब वह लिख रहा होता है... और शायद पाठक उसे पूर्ण रूप से ग्रहण नहीं कर पाता इस लिये आलोचना कर बैठता है... शायद मेरे साथ भी ऐसा ही हो... आपके लेख का उदाहरण दे रहा हूं.. आशा है आप इस पर कुछ प्रकाश डालेंगे

    "न हो कमीज़ तो पाँवों से पेट ढँक लेंगे
    ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफर के लिए"

    क्या हम इन पंक्तियों को इस संदर्भ में नहीं ले सकते कि एक नंगा (गरीव)व्यक्ति अपनी नंगनता को छुपाने के लिये हाथ पांव सिकोड (बाधं) कर ही बेठेगा.. वो चल कैसे पायेगा

    जवाब देंहटाएं
  23. गलत भाषा बोलना हमारी आदत है पर उसे लिखना नहीं चाहिए. यात्रा करते समय 'शहर आ गया' कहते हुए हम भूल जाते हैं कि शहर नहीं यात्री आते-जाते हैं ऐसे ही एक गलत प्रयोग पर मेरा एक श'र है-

    'क्या पूछते हो राह यह जाती कहाँ है?
    आदमी जाते हैं नादाँ रास्ते जाते नहीं हैं.'

    लेखमाला जितनी रोचक है उतनी ही उपयोगी भी है.

    जवाब देंहटाएं

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