निराला सम्भवत: हिन्दी के पहले व अन्तिम कवि हैं, जिनकी लोकप्रियता व फक्कड़पन को कोई दूसरा कवि छू तक नहीं पाया है। निराला से ज्यादा लोकप्रियता सिर्फ कबीर को मिली। यद्यपि अर्थाभाव के कारण निराला को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा पर न तो वे कभी झुके और न ही अपने उसूलों से समझौता किया। यही कारण है कि उन पर अराजक और आक्रामक होने तक के आरोप लगे, पर वे इन सबसे बेपरवाह अपने फक्कड़पन में मस्त रहे।
कृष्ण कुमार यादव का जन्म 10 अगस्त 1977 को तहबरपुर, आजमगढ़ (उ0 प्र0) में हुआ। आपनें इलाहाबाद विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नात्कोत्तर किया है। आपकी रचनायें देश की अधिकतर प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं साथ ही अनेकों काव्य संकलनों में आपकी रचनाओं का प्रकाशन हुआ है। आपकी प्रमुख प्रकाशित कृतियाँ हैं: अभिलाषा (काव्य संग्रह-2005), अभिव्यक्तियों के बहाने (निबन्ध संग्रह-2006), इण्डिया पोस्ट-150 ग्लोरियस इयर्स (अंग्रेजी-2006), अनुभूतियाँ और विमर्श (निबन्ध संग्रह-2007), क्रान्ति यज्ञ :1857-1947 की गाथा (2007)।
आपको अनेकों सम्मान प्राप्त हैं जिनमें सोहनलाल द्विवेदी सम्मान, कविवर मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, महाकवि शेक्सपियर अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान, काव्य गौरव, राष्ट्रभाषा आचार्य, साहित्य-मनीषी सम्मान, साहित्यगौरव, काव्य मर्मज्ञ, अभिव्यक्ति सम्मान, साहित्य सेवा सम्मान, साहित्य श्री, साहित्य विद्यावाचस्पति, देवभूमि साहित्य रत्न, सृजनदीप सम्मान, ब्रज गौरव, सरस्वती पुत्र और भारती-रत्न से आप अलंकृत हैं। वर्तमान में आप भारतीय डाक सेवा में वरिष्ठ डाक अधीक्षक के पद पर कानपुर में कार्यरत हैं।
महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म बंगाल के मेदिनीपुर में 21 फरवरी 1897 को पं0 रामसहाय त्रिपाठी के पुत्र रूप में हुआ था। कालान्तर में आप इलाहाबाद के दारागंज की तंग गलियों में बस गये और वहीं पर अपने साहित्यिक जीवन के तीस-चालीस वर्ष बिताए। निराला जी गरीबों और शोषितों को प्रति काफी उदार व करुणामयी भावना रखते थे और दूसरों की सहायता के प्रति सदैव तत्पर रहते थे। चाहे वह अपनी पुस्तकों के बदले मिली रायल्टी का गरीबों में बाँटना हो, चाहे सम्मान रूप में मिली धनराशि व शाल जरूरतमंद वृद्धा को दे देना हो, चाहे इलाहाबाद में अध्ययनरत् विद्यार्थियों की जरूरत पड़ने पर सहायता करना हो अथवा एक बैलगाड़ी के एक सरकारी अधिकारी की कार से टकरा जाने पर अधिकारी द्वारा किसान को चाबुकों से पीटा जाने पर देखते ही देखते निराला द्वारा उक्त अधिकारी के हाथ से चाबुक छीनकर उसे ही पीटना हो। ये सभी घटनायें निराला जी के सम्वेदनशील व्यक्तित्व का उदाहरण कही जा सकती हैं।
जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानन्दन पंत और महादेवी वर्मा के साथ छायावाद के सशक्त स्तम्भ रहे निराला ने 1920 के आस-पास कविता लिखना आरम्भ किया और 1961 तक अबाध गति से लिखते रहे। इसमें प्रथम चरण (1920-38) में उन्होंने ‘अनामिका’, ‘परिमल’ व ‘गीतिका’ की रचना की तो द्वितीय चरण (1939-49) में वे गीतों की ओर मुड़ते दिखाई देते हैं। ‘मतवाला’ पत्रिका में ‘वाणी’ शीर्षक से उनके कई गीत प्रकाशित हुए। गीतों की परम्परा में उन्होंने लम्बी कविताएँ लिखना आरम्भ किया तो 1934 में उनकी ‘तुलसीदास’ नामक प्रबंधात्मक कविता सामने आई। इसके बाद तो मित्र के प्रति, सरोज-स्मृति, प्रेयसी, राम की शक्ति-पूजा, सम्राट अष्टम एडवर्ड के प्रति, भिखारी, गुलाब, लिली, सखी की कहानियाँ, सुकुल की बीबी, बिल्लेसुर बकरिहा, जागो फिर एक बार और वनबेला जैसी उनकी अविस्मरणीय कृतियाँ सामने आयीं। निराला ने कलकत्ता पत्रिका, मतवाला, समन्वय इत्यादि पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। राम की शक्ति-पूजा, तुलसीदास और सरोज-स्मृति को निराला के काव्य शिल्प का श्रेष्ठतम उदाहरण माना जाता है। निराला की कविता सिर्फ एक मुकाम पर आकर ठहरने वाली नहीं थी, वरन् अपनी कविताओं में वे अन्त तक संशोधन करते रहते थे। तभी तो उन्होंने लिखा कि -
अभी न होगा मेरा अंतअभी-अभी तो आया है, मेरे वन मृदुल वसन्तअभी न होगा मेरा अन्त।
निराला की रचनाओं में अनेक प्रकार के भाव पाए जाते हैं। यद्यपि वे खड़ी बोली के कवि थे, पर ब्रजभाषा व अवधी में भी कविताएँ गढ़ लेते थे। उनकी रचनाओं में कहीं प्रेम की सघनता है, कहीं आध्यात्मिकता तो कहीं विपन्नों के प्रति सहानुभूति व सम्वेदना, कहीं देश-प्रेम का जज्बा तो कहीं सामाजिक रूढ़ियों का विरोध व कहीं प्रकृति के प्रति झलकता अनुराग। इलाहाबाद में पत्थर तोड़ती महिला पर लिखी उनकी कविता आज भी सामाजिक यथार्थ का एक आइना है। उनका जोर वक्तव्य पर नहीं वरन चित्रण पर था, सड़क के किनारे पत्थर तोड़ती महिला का रेखाकंन उनकी काव्य चेतना की सर्वोच्चता को दर्शाता है -
वह तोड़ती पत्थरदेखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ परवह तोड़ती पत्थरकोई न छायादार पेड़वह जिसके तले बैठी हुयी स्वीकारयाम तन, भर बंधा यौवननत नयन प्रिय कर्म-रत मनगुरू हथौड़ा हाथ, करती बार-बार प्रहारसामने तरू- मल्लिका अट्टालिका, प्राकार।
इसी प्रकार राह चलते भिखारी पर उन्होंने लिखा -
पेट-पीठ दोनों मिलकर हैं एकचल रहा लकुटिया टेकमुट्ठी भर दाने को, भूख मिटाने कोमुँह फटी पुरानी झोली का फैलातादो टूक कलेजे के करतापछताता पथ पर आता।
‘राम की शक्ति पूजा’ के माध्यम से निराला ने राम को समाज में एक आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया। वे लिखते हैं -
होगी जय, होगी जयहे पुरुषोत्तम नवीनकह महाशक्ति राम के बदन में हुईं लीन।
सौ पदों में लिखी गयी ‘तुलसीदास’ निराला की सबसे बड़ी कविता है, जो कि 1934 में लिखी गयी और 1935 में सुधा के पाँच अंकों में किस्तवार प्रकाशित हुयी। इस प्रबन्ध काव्य में निराला ने पत्नी के युवा तन-मन के आकर्षण में मोहग्रस्त तुलसीदास के महाकवि बनने को बखूबी दिखाया है -
जागा, जागा संस्कार प्रबलरे गया काम तत्क्षण वह जलदेखा वामा, वह न थी, अनल प्रतिमा वहइस ओर ज्ञान, उस ओर ज्ञानहो गया भस्म वह प्रथम भानछूटा जग का जो रहा ध्यान।
निराला की रचनाधर्मिता में एकरसता का पुट नहीं है। वे कभी भी बँधकर नहीं लिख पाते थे और न ही यह उनकी फक्कड़ प्रकृति के अनुकूल था। निराला की ‘जूही की कली’ कविता आज भी लोगों के जेहन में बसी है। इस कविता में निराला ने अपनी अभिव्यक्ति को छंदों की सीमा से परे छन्दविहीन कविता की ओर प्रवाहित किया है -
विजन-वन वल्लरी परसोती थी सुहाग भरी स्नेह स्वप्न मग्नअमल कोमिल तन तरूणी जूही की कलीदृग बंद किये, शिथिल पत्रांक मेंवासन्ती निशा थी।
१९३९ में निराला
यही नहीं, निराला एक जगह स्थिर होकर कविता-पाठ भी नहीं करते थे। एक बार एक समारोह में आकाशवाणी को उनकी कविता का सीधा प्रसारण करना था, तो उनके चारों ओर माइक लगाए गए कि पता नहीं वे घूम-घूम कर किस कोने से कविता पढ़ें। निराला ने अपने समय के मशहूर रजनीसेन, चण्डीदास, गोविन्द दास, विवेकानन्द और रवीन्द्र नाथ टैगोर इत्यादि की बांग्ला कविताओं का अनुवाद भी किया, यद्यपि उन पर टैगोर की कविताओं के अनुवाद को अपना मौलिक कहकर प्रकाशित कराने के आरोप भी लगे। राजधानी दिल्ली को भी निराला ने अपनी कविताओं में अभिव्यक्ति दी -
यमुना की ध्वनि में है गूँजती सुहाग-गाथासुनता है अन्धकार खड़ा चुपचाप जहाँआज वह ‘फिरदौस’, सुनसान है पड़ाशाही दीवान, आज स्तब्ध है हो रहादुपहर को, पार्श्व मेंउठता है झिल्ली रवबोलते हैं स्यार रात यमुना-कछार मेलीन हो गया है रव शाही अँगनाओं कानिस्तब्ध मीनार, मौन हैं मकबरे।
निराला की मौलिकता, प्रबल भावोद्वेग, लोकमानस के हृदय पटल पर छा जाने वाली जीवन्त व प्रभावी शैली, अद्भुत वाक्य विन्यास और उनमें अन्तर्निहित गूढ़ अर्थ उन्हें भीड़ से अलग खड़ा करते हैं। वसन्त पंचमी और निराला का सम्बन्ध बड़ा अद्भुत रहा और इस दिन हर साहित्यकार उनके सान्निध्य की अपेक्षा रखता था। ऐसे ही किन्हीं क्षणों में निराला की काव्य रचना में यौवन का भावावेग दिखा -
रोक-टोक से कभी नहीं रूकती हैयौवन-मद की बाढ़ नदी कीकिसे देख झुकती हैगरज-गरज वह क्या कहती है, कहने दोअपनी इच्छा से प्रबल वेग से बहने दो।
यौवन के चरम में प्रेम के वियोगी स्वरूप को भी उन्होंने उकेरा -
छोटे से घर की लघु सीमा मेंबंधे हैं क्षुद्र भावयह सच है प्रियप्रेम का पयोधि तो उमड़ता हैसदा ही नि:सीम भूमि पर।
निराला के काव्य में आध्यात्मिकता, दार्शनिकता, रहस्यवाद और जीवन के गूढ़ पक्षों की झलक मिलती है पर लोकमान्यता के आधार पर निराला ने विषयवस्तु में नये प्रतिमान स्थापित किये और समसामयिकता के पुट को भी खूब उभारा। अपनी पुत्री सरोज के असामायिक निधन और साहित्यकारों के एक गुट द्वारा अनवरत अनर्गल आलोचना किये जाने से निराला अपने जीवन के अन्तिम वर्षों में मनोविक्षिप्त से हो गये थे। पुत्री के निधन पर शोक-सन्तप्त निराला ‘सरोज-स्मृति’ में लिखते हैं -
मुझ भाग्यहीन की तू सम्बलयुग वर्ष बाद जब हुयी विकलदुख ही जीवन की कथा रहीक्या कहूँ आज, जो नहीं कही।
15 अक्टूबर 1961 को अपनी यादें छोड़कर निराला इस लोक को अलविदा कह गये पर मिथक और यथार्थ के बीच अन्तर्विरोधों के बावजूद अपनी रचनात्मकता को यथार्थ की भावभूमि पर टिकाये रखने वाले निराला आज भी हमारे बीच जीवन्त हैं। मुक्ति की उत्कट आकांक्षा उनको सदैव बेचैन करती रही, तभी तो उन्होंने लिखा -
तोड़ो, तोड़ो, तोड़ो कारापत्थर की, निकलो फिर गंगा-जलधारागृह-गृह की पार्वतीपुन: सत्य-सुन्दर-शिव को सँवारतीउर-उर की बनो आरतीभ्रान्तों की निश्चल ध्रुवतारातोड़ो, तोड़ो, तोड़ो कारा।
32 टिप्पणियाँ
निराला के जन्मदिवस पर इस आलेख को प्रस्तुत करने का धन्यवाद। हमारे महान साहित्यकारों को स्मरण किया जाना आवश्यक है।
जवाब देंहटाएंVery Good Article on Nirala je.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
निराला के काव्य में आध्यात्मिकता, दार्शनिकता, रहस्यवाद और जीवन के गूढ़ पक्षों की झलक मिलती है पर लोकमान्यता के आधार पर निराला ने विषयवस्तु में नये प्रतिमान स्थापित किये और समसामयिकता के पुट को भी खूब उभारा।
जवाब देंहटाएं----
निराला पर संपूर्ण आलेख
हिन्दी साहित्य और निराला एक दूसरे के पर्याय हैं। निराला के जीवन और कृतीत्व पर बहुत अच्छा आलेख है।
जवाब देंहटाएंजन्मदिवस पर निराला को स्मरण करने के लिये कृष्णकुमार यादव जी तथा साहित्य शिल्पी का धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
जवाब देंहटाएंनिराला जी पर अद्भुत प्रस्तुति...वाकई वे फक्कड़ ही थे.
जवाब देंहटाएंनिराला सम्भवत: हिन्दी के पहले व अन्तिम कवि हैं, जिनकी लोकप्रियता व फक्कड़पन को कोई दूसरा कवि छू तक नहीं पाया है। निराला से ज्यादा लोकप्रियता सिर्फ कबीर को मिली.....बहुत खूब लिखा कृष्ण कुमार जी ने. निराला जन्म तिथि की बधाइयाँ.
जवाब देंहटाएंफक्कड़ कवि निराला जी की जन्म तिथि पर साहित्य शिल्पी परिवार को बधाइयाँ.
जवाब देंहटाएंनिराला जी के समग्र काव्य चेतना को जिन खूबसूरत शब्दों में के.के. जी ने ढाला है, वह प्रशंसीय है. के.के. जी ने साहित्याशिल्पी पर तमाम प्रस्तुतियां दी हैं.प्रशासन के साथ यह रचनाधर्मिता का यह सुखद संयोग उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है..बधाई !!
जवाब देंहटाएंयही नहीं, निराला एक जगह स्थिर होकर कविता-पाठ भी नहीं करते थे। एक बार एक समारोह में आकाशवाणी को उनकी कविता का सीधा प्रसारण करना था, तो उनके चारों ओर माइक लगाए गए कि पता नहीं वे घूम-घूम कर किस कोने से कविता पढ़ें.
जवाब देंहटाएं____________________________
निराला जी की तो बात ही निराली थी.उनके जैसा फक्कड़ और अलमस्त कवि हिंदी-साहित्य में देखने को नहीं मिलता. उनको याद करके के.के. जी ने विद्वत परंपरा का बखूबी निर्वाह किया है.
निराला जी के लेखन की
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर झलकियाँ आपके
आलेख में दिखायी दीं...
आभार आपका यादव जी.....
और निराला जी को नमन...
निराला की सृजन-यात्रा के साथ उनकी महत्वपूर्ण कविताओं को समाहित कर इस आलेख को और भी प्रभावी बनाया गया है. इस तरह के उत्तम आलेख कम ही पढने को मिलते हैं..कृष्ण जी को इस प्रस्तुति हेतु साधुवाद !!
जवाब देंहटाएंअभी न होगा मेरा अंत
जवाब देंहटाएंअभी-अभी तो आया है, मेरे वन मृदुल वसन्त
अभी न होगा मेरा अन्त।.....निराला जी की इन पंक्तियों का कायल हूँ.
निराला जी मेरे प्रिय कवि हैं. उनकी जन्मतिथि पर उनका पुण्य स्मरण भावविभोर कर गया. नमन करता हूँ.
जवाब देंहटाएंवसन्त पंचमी और निराला का सम्बन्ध बड़ा अद्भुत रहा और इस दिन हर साहित्यकार उनके सान्निध्य की अपेक्षा रखता था। ऐसे ही किन्हीं क्षणों में निराला की काव्य रचना में यौवन का भावावेग दिखा -
जवाब देंहटाएंरोक-टोक से कभी नहीं रूकती है
यौवन-मद की बाढ़ नदी की
किसे देख झुकती है
गरज-गरज वह क्या कहती है, कहने दो
अपनी इच्छा से प्रबल वेग से बहने दो।
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तभी तो निराला जी आज भी युवाओं के सबसे प्रिय हैं. २१ फ़रवरी को जन्म-तिथि पड़ने का बावजूद वसंत के आगाज़ के साथ ही निराला-जयंती मनानी आरम्भ हो जाती है. उन जैसा कवि होना स्वयं में एक महानता है.
निराला जी जितने बड़े कवि थे, उससे भी महान व्यक्ति थे. के.के. जी ने इस आलेख में उन तमाम पहलुओं का उल्लेख कर निराला जी को समग्र रूप में प्रस्तुत किया है.
जवाब देंहटाएंराम की शक्ति-पूजा, तुलसीदास और सरोज-स्मृति को निराला के काव्य शिल्प का श्रेष्ठतम उदाहरण माना जाता है। निराला की कविता सिर्फ एक मुकाम पर आकर ठहरने वाली नहीं थी, वरन् अपनी कविताओं में वे अन्त तक संशोधन करते रहते थे.....इसी कारण निराला जी की फक्कड़ी आज भी याद की जाती है.
जवाब देंहटाएंनिराला के कृती व्यक्तित्व का अच्छा विश्लेषण है.
जवाब देंहटाएंनिराजा के जीवन से जुडे कुछ प्रसंग पहली बार पढे। वे सचमुच विशेष थे।
जवाब देंहटाएं"निराला सम्भवत: हिन्दी के पहले व अन्तिम कवि हैं, जिनकी लोकप्रियता व फक्कड़पन को कोई दूसरा कवि छू तक नहीं पाया है। निराला से ज्यादा लोकप्रियता सिर्फ कबीर को मिली। यद्यपि अर्थाभाव के कारण निराला को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा पर न तो वे कभी झुके और न ही अपने उसूलों से समझौता किया। यही कारण है कि उन पर अराजक और आक्रामक होने तक के आरोप लगे, पर वे इन सबसे बेपरवाह अपने फक्कड़पन में मस्त रहे।"
जवाब देंहटाएंनिराला के व्यक्तित्व पर अच्छा आलेख है।
समयचक्र: चिठ्ठी चर्चा : चिठ्ठी लेकर आया हूँ कोई देख तो नही रहा हैबहुत अच्छा जी
जवाब देंहटाएंआपके चिठ्ठे की चर्चा चिठ्ठीचर्चा "समयचक्र" में
महेन्द्र मिश्र
बहुत सुंदर, सारगर्भित प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएं=========================
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
महाप्राण निराला के विषय में इतना विस्तार से देने के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंसबसे प्रसंशनीय बात यह है कि कृष्ण कुमार यादव जी हिन्दी को नेट पर समृद्ध बनाने की प्रकृया का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। वे एसी सामग्री साहित्य शिल्पी को निरंतर उपलब्ध कराते रहे हैं जो साहित्य जगत की महत्वपूर्ण घटनायें हैं अथवा महत्व के महत्व के व्यक्ति हैं। अंतर्जाल जगत पर जिन विषयों पर सतही जानकारी ही उपलब्ध है उन पर सारगर्भित रचनायें उपलब्ध कराने का धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसुन्दर ,सारगर्भित ,सुरुचिपूर्ण लेख प्रकाशित करने के लिये आपको बधाई .
जवाब देंहटाएंनिराला के निरालेपन की भावभीनी सुगन्ध
जब भी साहित्य की बात चलेगी.. निराला जी के जिक्र के बिना अधूरी होगी..
जवाब देंहटाएंसुन्दर सुरुचिपूर्ण लेख के लिये बधाई
hamari tarah ke ubharte logo ke liye ye jankari bahut hi upyogi hain
जवाब देंहटाएंsadar dhanyawad
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंके.के. जी ! निराला पर आपकी यह रचना दिल्ली से प्रकाशित साप्ताहिक पत्रिका "इंडिया न्यूज़" के २७ फ़रवरी,२००९ अंक में प्रकाशित हुयी है...बधाई !!!
जवाब देंहटाएंKK Ji, निराला जी पर आपका एक आलेख कानपुर से प्रकाशित पत्रिका "नव-निकष" के फ़रवरी 2009 अंक में पढ़कर प्रसन्नता हुयी.
जवाब देंहटाएंकृष्ण कुमार यादव जी की रचनाएँ तमाम प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं और अंतर्जाल पर अक्सर पढने को मिलती हैं. उनका रचना-संसार काफी समृद्ध है.यहाँ उनकी रचना पढना सुखद लगा..बधाई !!
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