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भागीरथ जेल में [व्यंग्य] - आलोक पुराणिक

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गंगा को जमीन पर लाने वाले अजर-अमर महर्षि भगीरथजी स्वर्ग में लंबी साधना के बाद जब चैतन्य हुए, तो उन्होने पाया कि भारतभूमि पर पब्लिक पानी की समस्या से त्रस्त है। समूचा भारत पानी के झंझट से ग्रस्त है। सो महर्षि ने दोबारा गंगा द्वितीय को लाने की सोची। महर्षि भारत भूमि पर पधारे और मुनि की रेती, हरिद्वार पर दोबारा साधनारत हो गये।

मुनि की रेती पर एक मुनि को भगीरथ को साधना करते देख पब्लिक में जिज्ञासा भाव जाग्रत हुआ।

छुटभैये नेता बोले कि गुरु हो न हो, जमीन पक्की कर रहा है। ये अगला चुनाव यहीं से लड़ेगा। यहां से एक और कैंडीडेट और बढ़ेगा। बवाल होगा, पुराने नेताओं की नेतागिरी पर सवाल होगा।

पुलिस वालों की भगीरथ साधना कुछ यूं लगी-हो न हो, यह कोई चालू महंत है। जरुर साधना के लपेटे में मुनि की रेती को लपेटने का इच्छुक संत है। तपस्या की आड़ में कब्जा करना चाहता है।

खबरिया टीवी चैनलों को लगा है कि सिर्फ मुनि हैं, तो अभी फोटोजेनिक खबरें नहीं बनेंगी। फोटोजेनिक खबरें तब बनेंगी, जब मुनि की तपस्या तुड़वाने के लिए कोई फोटोजेनिक अप्सरा आयेगी। टीआरपी साधना में नहीं, अप्सराओं में निहित होती है। टीवी पर खबर को फोटूजेनिक होना मांगता।

नगरपालिका वालों ने एक दिन जाकर कहा-मुनिवर साधना करने की परमीशन ली है आपने क्या।

भगीरथ ने कहा-साधना के लिए परमीशन कैसी।

नगरपालिका वालों ने कहा-महाराज परमीशन का यही हिसाब-किताब है। आप जो कुछ करेंगे, उसके लिए परमीशन की जरुरत होगी। थोड़े दिनों में आप पापुलर हो जायेंगे, एमपी, एमएलए वगैरह बन जायेंगे, तो फिर आप परमीशन देने वालों की कैटेगरी में आयेंगे। 

भगीरथ ने कहा-मैं साधना तो जनसेवा के लिए कर रहा हूं। सांसद मंत्री थोड़े ही होना है मुझे।

जी सब शुरु में यही कहते हैं। आप भी यही कहते जाइए। पर जो हमारा हिसाब बनता है, सो हमें सरकाइये-नगरपालिका के बंदों ने साफ किया।

देखिये मैं साधु-संत आदमी हूं, मेरे पास कहां कुछ है-भगीरथ ने कहा।

महाराज अब सबसे ज्यादा जमीन और संपत्ति साधुओं के पास ही है। न आश्रम, न जमीन, न कार, न नृत्य की अठखेलियां, ना चेलियां-आप सच्ची के साधु हैं या फोकटी के गृहस्थ। हे मुनिवर, आजकल साधुओं के पास ही टाप टनाटन आइटम होते हैं। दुःख, चिंता ,विपन्नता तो अब गृहस्थों के खाते के आइटम हैं-नगरपालिका वालों ने समझाया।

भगीरथ यह सुनकर गुस्सा हो गये और हरिद्वार-ऋषिकेश से और ऊपर के पहाड़ों पर चल दिये।

भगीरथ को बहुत गति से पहाड़ों की तरफ भागता हुआ सा देख कतिपय फोटोग्राफर भगीरथ के पास आकर बोले –देखिये, हम आपको जूते, च्यवनप्राश, अचार कोल्ड ड्रिंक, चाय, काफी, जूते, चप्पल जैसे किसी प्राडक्ट की माडलिंग के लिए ले सकते हैं।

पर माडलिंग क्या होती है वत्स-भगीरथ ने पूछा।

रचनाकार परिचय:-

आलोक पुराणिक वरिष्ठ व्यंग्यकार हैं तथा अंतर्जाल के साथ-साथ पिछले कई वर्षों से विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से स्तंभ लिख रहे हैं।

हा, हा, हा, हा हर समझदार और बड़ा आदमी इंडिया में माडलिंग के बारे में जानता है। आप नहीं जानते, तो इसका मतलब यह हुआ कि या तो आप समझदार आदमी नहीं हैं, या बडे़ आदमी नहीं हैं। एक बहुत बड़े सुपर स्टार को लगभग बुढ़ापे के आसपास पता चला कि उसकी धांसू परफारमेंस का राज नवरत्न तेल में छिपा है। एक बहुत बड़े प्लेयर को समझ में आया कि उसकी बैटिंग की वजह किसी कोल्ड ड्रिंक में घुली हुई है। आप की तेज चाल का राज हम किसी जूते या अचार को बना सकते हैं, बोलिये डील करें-फोटोग्राफरों ने कहा।

देखिये मैं जनसेवा के लिए साधना करने जा रहा हूं-भगीरथ ने गुस्से में कहा।

गुरु आपका खेल बड़ा लगता है। बड़े खेल करने वाले सारी यह भाषा बोलते हैं। चलिये थोड़ी बड़ी रकम दिलवा देंगे-एक फोटोग्राफर ने कुछ खुसफुसायमान होकर कहा। 

देखिये, ये क्या खेल-खेल लगा रखा है। क्यां यहां बिना खेल के कुछ नहीं होता क्या-भगीरथ बहुत गुस्से में बोले।

जी बगैर खेल के यहां कुछ नहीं होता। यहां गंगा इसलिए बहती है कि वह गंगा साबुन के लिए माडलिंग कर सके। गोआ में समुद्र इसलिए बहता है कि वह गोआ टूरिज्म के इश्तिहारों में काम आ सके। हिमालय के तमाम पहाड़ इसलिए सुंदर हैं कि उन्होने उत्तरांचल टूरिज्म, उत्तर प्रदेश टूरिज्म के इश्तिहारों में माडलिंग करनी है। आपकी चाल में फुरती इसलिए ही है कि वह किसी चाय वाले या च्यवनप्राश वाले के इश्तिहार में काम आ सके। आपके बाल अभी तक काले इसलिए हैं कि वे नवरत्न तेल के इश्तिहार के काम आ सकें। हे मुनि, डाल से चूके बंदर और माडलिंग के माल से चूके बंदों के पास सिवाय पछतावे के कुछ नहीं होता-एक समझदार से फोटोग्राफर ने उन्हे समझाया।

भगीरथ मुनि गु्स्से में और ऊंचे पहाड़ों की ओर चले गये।

कई बरसों तक साधना चली।

मां गंगा द्वितीय प्रसन्न हुईं और एक पहाड़ को फोड़कर भगीरथ के सामने प्रकट हुईं।

जिस पहाड़ को फोड़कर गंगा प्रकट हुई थीं, वहां का सीन बदल गया था। बहुत सुंदर नदी के रुप में बहने की तैयारी गंगा मां कर ही रही थीं कि वहां करीब के एक फार्महाऊस वाले के निगाह पूरे मामले पर पड़ गयी।

वह फार्महाऊस पानी बेचने वाली एक कंपनी का था।

गंगा द्वितीय जिस कंपनी के फार्महाऊस के पास से निकल रही हैं, उसी कंपनी का हक गंगा पर बनता है, ऐसा विचार करके उस कंपनी का बंदा भगीरथ के पास आया और बोला कि गंगा पर उसकी कंपनी की मोनोपोली होगी। वही कंपनी गंगा का पानी बेचेगी। 

तब तक बाकी पानी कंपनियों को खबर हो चुकी थी।

बिसलेरी, खेंचलेरी, खालेरी, पालेरी, पचालेरी, फिनफिन, शिनशिन,छीनछीन समेत सारी अगड़म-बगड़म कंपनियों के बंदे मौके पर पहुंच लिये।

हर कंपनी वाला भगीरथ को समझा रहा था कि वह उसी की कंपनी को ज्वाइन कर ले। मुंहमांगी रकम दी जायेगी। गंगा द्वितीय उस कंपनी की संपत्ति हो जायेगी और भगीरथ को रायल्टी दे दी जायेगी।

पर भगीरथ नहीं माने। वह गंगा द्वितीय को जनता को समर्पित करना चाहते थे।

किसी कंपनी वाले की दाल नहीं गली।

पर..........।

सारी कंपनियों के बंदों ने आपस में खुसुर-पुसर की। खुसर-पुसर का दायरा बढ़ा, नगरपालिकाओं वाले आ गये। माहौल और खुसरपुसरित हुआ-भगीरथी की फ्यूचर पापुलरिटी की सोचकर आतंकित-परेशान नेता भी आ लिये। वाटर रिस्टोरेशन के लिए काम कर रहे एनजीओ के बंदे भी इस खुसर-पुसर में शामिल हुए।

फिर ...........भगीरथ गिरफ्तार कर लिये गये।

उन पर निम्नलिखित आरोप लगाये गये-

1- शासन की अनुमति लिये बगैर भगीरथ ने साधना की। इससे कानून –व्यवस्था जितनी भी थी, उसे खतरा हो सकता था।

2- इस इलाके को पहले सूखा क्षेत्र माना गया था। अब यहां पानी आने से कैलकुलेशन गड़बड़ा गये। पहले इसे सूखा क्षेत्र मानते हुए यहां तर किस्म की ग्रांट-सब्सिडी की व्यवस्था की गयी थी योजना में। अब दरअसल पूरी योजना ही गड़बड़ा गयी। यह सिर्फ भगीरथ की वजह से हुआ। योजना प्रक्रिया को संकट में डालने का अपराध देशद्रोह के अपराध से कम नहीं है।

3- भगीरथ ने विदेशों से आ रही मदद, रकम में बाधा पैदा करके राष्ट्र को बहुमूल्य विदेशी मुद्रा से वंचित किया है। इस क्षेत्र के जल संकट को निपटाने के लिए फ्रांस के एनजीओ फाऊं-फाऊं फाउंडेशन और कनाडा के एनजीओ खाऊं-खाऊं ट्रस्ट ने लोकल एनजीओज (संयोगवश जिनकी संचालिकाएं स्थानीय ब्यूरोक्रेट्स की पत्नियां थीं) को कई अरब डालर देने का प्रस्ताव दिया था। अब जल आ गया, तो इन एनजीओज को संकट हो गया। फ्रांस और कनाडा के एनजीओज ने सहायता कैंसल कर दी। इस तरह से भगीरथ ने गंगा द्वितीय को बहाकर विदेशी मदद को अवरुद्ध कर दिया। भारत को विदेशी मुद्रा से वंचित करना देशद्रोह के अपराध से कम नहीं है।

4- पहाड़ को फोड़कर गंगा द्वितीय जिस तरह से प्रकट हुई हैं, उससे इस क्षेत्र का नक्शा बदल गया है, जो हरिद्वार नगर पालिका या किसी और नगर पालिका ने पास नहीं किया है।

5- शासन की सम्यक संस्तुति के बगैर जिस तरह से नदी निकली है, वह हो न हो, किसी दुश्मन की साजिश भी हो सकती है।

गिरफ्तार भगीरथ जेल में चले गये, उनको केस लड़ने के लिए कोई वकील नहीं मिला, क्योंकि सारे वकील पानी कंपनियों ने सैट कर लिये थे।

लेटेस्ट खबर यह है कि गंगा निकालना तो दूर अब भगीरथ खुद को जेल से निकालने का जुगाड़ नहीं खोज पा रहे हैं।

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17 टिप्पणियाँ

  1. हा, हा, हा, हा हर समझदार और बड़ा आदमी इंडिया में माडलिंग के बारे में जानता है। आप नहीं जानते, तो इसका मतलब यह हुआ कि या तो आप समझदार आदमी नहीं हैं,
    बहुत ही सुन्दर लिखा है। आज यही दशा है देश की।

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  2. सही है आलोक जी आज बेचारे भागीरथ को जेल ही मिलेगी।

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  3. आलोक पुराणिक वर्तमान के बडे व्यंग्य लेखकों में गिने जाते हैं यह केवल उनकी लेखन शैली के कारण ही नहीं अपितु उनकी परिवेश पर पैनी दृष्टि के कारण भी है।

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  4. गंगा की उपेक्षा और उसके बहुराष्ट्रीय कं द्वारा किये जा रहे दोहन पर अच्छा व्यंग्य है।

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  5. गंगा पर जो हंगामा है उसे तो बहुत अच्छे के आपने प्रस्तुत किया है।

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  6. Aalok jee,
    Achchha vyangy hai.Meree
    badhaaee sweekar karen.

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  7. सभी आरोप सही हैं। भागीरथ (जैसे) महोदय वक्त की नजाकत समझते ही नहीं। सर्वजन हिताय की परिभाषा बदल गयी है।

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  8. गंगा पर बहुत सी बहसे हैं और बहुत सी कहानियाँ हैं। पौराणिक पात्र को इस मनोरंजक तरह से जीवित करना और समस्या को कटाक्ष के जरिये प्रस्तुत करने का आपका अंदाज बहुत पसंद आया।

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  9. जी इसे कहते हैं होम करके हाथ जलाना.. गंगा सुखाने वालों को गंगा के पुन:अवतरण की फ़िक्र कहां है..

    सुन्दर रुचिकर व्यंगय के लिये आभार

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  10. aaj ki dasha ko shabd sarthak rup se diye hain sir bahut hi umada or achha lekh padne ko mila
    dhanyaawad

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  11. बहुत अच्छा व्यंग्य प्रस्तुत किया है आलोक जी आपने. सम सामयिक व्यवस्थाओं की वास्तविकता का बहुत ही सटीक प्रदर्शन कर रही है आपकी रचना.
    बधाई.

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  12. आलोक जी व्यंग्य को हर बार एक नया आयाम दे जाते हैं। इस बार भी भगीरथ और भगीरथी-द्वितीय की सहायता से उन्होंने कईयों की पोल खोली है।
    बधाई स्वीकारें।

    -विश्व दीपक

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