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उदासीन [कविता] - देवेश वशिष्ठ 'खबरी'

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रचनाकार परिचय:-


देवेश वशिष्ठ उर्फ खबरी का जन्म आगरा में 6 अगस्त 1985 को हुआ। लम्बे समय से लेखन व पत्रकारिता के क्षेत्र से जुडे रहे हैं। आपने भोपाल के माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रिकारिता विश्वविद्यालय से मॉस कम्युनिकेशन में पोस्ट ग्रेजुएशन की और फिर देहरादून में स्वास्थ्य महानिदेशालय के लिए डॉक्यूमेंट्री फिल्में बनाने लगे। दिल्ली में कई प्रोडक्शन हाऊसों में कैमरामैन, वीडियो एडिटर और कंटेन्ट राइटर की नौकरी करते हुए आपने लाइव इंडिया चैनल में असिस्टेंट प्रड्यूसर के तौर पर काम किया। बाद में आप इंडिया न्यूज में प्रड्यूसर हो गय्रे। आपने तहलका की हिंदी मैगजीन में सीनियर कॉपी एडिटर का काम भी किया है। वर्तमान में आप पत्रकारिता व स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं।


चुप है मन,
थकियारा तन,
चुपचाप चला जाता जीवन॰॰
कम होता है,
धीरे-धीरे
साँसों का चलता घर्षण।

कैसा सुख?
फिर कैसा दुःख ?
उदासीनता का आँचल।
कहाँ सांझ है ?
कहाँ सवेरा ?
आ बैठा है अस्ताचल।

चलता हूँ,
रुक जाता हूँ,
मुडकर देखूँ क्या पीछे... ?
शायद कोई छूट गया है,
मिटकर भावों के नीचे।

लेकिन दिखता नहीं कहीं कुछ,
दूर-दूर तक उडती धूल,
चेहरा मेरा खिला कहाँ है?
कहाँ खिले दिल में
दो शूल?

बतलाओगे कैसा सूखा ?
कैसी होती है कलकल ?
मैंने कब का ओढ लिया है
उदासीनता का आँचल।
***** 

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19 टिप्पणियाँ

  1. मन:स्थिति का अच्छी तरह चित्रण करती है कविता।

    जवाब देंहटाएं
  2. बतलाओगे कैसा सूखा ?
    कैसी होती है कलकल ?
    मैंने कब का ओढ लिया है
    उदासीनता का आँचल।

    अच्छी कविता।

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रभावित करती है आपकी कविता।

    लेकिन दिखता नहीं कहीं कुछ,
    दूर-दूर तक उडती धूल,
    चेहरा मेरा खिला कहाँ है?
    कहाँ खिले दिल में
    दो शूल?

    बतलाओगे कैसा सूखा ?
    कैसी होती है कलकल ?
    मैंने कब का ओढ लिया है
    उदासीनता का आँचल।

    जवाब देंहटाएं
  4. बतलाओगे कैसा सूखा ?
    कैसी होती है कलकल ?
    मैंने कब का ओढ लिया है
    उदासीनता का आँचल

    मनोस्तिथि का चित्रण करती एक अच्छी कविता कविता

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत अच्छी कविता के लिये बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  6. बतलाओगे कैसा सूखा ?
    कैसी होती है कलकल ?
    मैंने कब का ओढ लिया है
    उदासीनता का आँचल।

    सुन्दर अहसास से भरी कविता।

    जवाब देंहटाएं
  7. अंतर्मन को तलाशती अच्छी कविता है।

    जवाब देंहटाएं
  8. लेकिन दिखता नहीं कहीं कुछ,
    दूर-दूर तक उडती धूल,
    चेहरा मेरा खिला कहाँ है?
    कहाँ खिले दिल में
    दो शूल?

    बतलाओगे कैसा सूखा ?
    कैसी होती है कलकल ?
    मैंने कब का ओढ लिया है
    उदासीनता का आँचल।
    सुन्दर लिखा है।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत अच्‍छी रचना..

    जवाब देंहटाएं
  10. चुप है मन,
    थकियारा तन,
    चुपचाप चला जाता जीवन॰॰


    बतलाओगे कैसा सूखा ?
    कैसी होती है कलकल ?
    मैंने कब का ओढ लिया है
    उदासीनता का आँचल।


    बहुत अच्छी कविता ...
    बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  11. व्यथित, व्याकुलता व अस्थिरता के मनोभाव लिये सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं
  12. wah

    kya baat hai Devesh ji aapko padhna bhaut achha laga

    बतलाओगे कैसा सूखा ?
    कैसी होती है कलकल ?
    मैंने कब का ओढ लिया है
    उदासीनता का आँचल।

    bahut khoob

    जवाब देंहटाएं
  13. चुप है मन,
    थकियारा तन,
    चुपचाप चला जाता जीवन॰॰
    कम होता है,
    धीरे-धीरे
    साँसों का चलता घर्षण।

    अच्छी कविता कविता है...बधाई.

    जवाब देंहटाएं

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